मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

अमरबेल

अमरबेल को आकाश बेल, अकास बोंग, और स्वर्ण लता भी कहते हैं. ये पीले रंग की लम्बे लम्बे धागों की शक्ल में पेड़ो पर लटकती हैं. ये एक परजीवी पौधा है. ये बबूल, आम, बेर आदि के पौधों पर चढ़ जाती है. इसका पौधा ज़मीन में बीज से उगता है. लेकिन जल्दी ही ये ज़मीन से नाता तोड़ कर किसी पास के पौधे से लिपट जाती है. इसकी जेड पौधे के तने और शाखाओं में धंस जाती हैं और पौधे का रस और पोषक पदार्थ चूस कर ये परवान चढ़ती है.
कहते हैं इसके शाखा तोड़कर किसी पौधे पर डाल दी जाए तो भी ये पनप जाती है. पौधे इसके असर से सूख जाते हैं. इसमें बहुत छोटे फूल खिलते हैं और बाद में बीज बन जाते हैं. ये बीज ज़मीन में 7 -8 वर्षों तक भी पड़े रह सकते हैं और अनुकूल वातावरण मिलने पर फूटते हैं.
अमरबेल वर्षों से देसी दवाओं में प्रयोग की जा रही है. बालों को उगने और बढ़ने में ये बहुत उपयोगी है. इसका तेल बनाकर सर में लगाने से बालो का झड़ना रूक जाता है. नए बालों के उगने में ये मदद करती है.
पीलिया रोग में ये उपयोगी है. इसका काढ़ा बनाकर पीने से पीलिया जाता रहता है.
मिर्गी और शरीर के कांपने में भी ये एक उपयोगी दवा है.


शनिवार, 17 नवंबर 2018

सरकंडा

सरकंडा को काना भी कहते हैं. इसका एक नाम बान भी है. ये एक घनी झाड़ीदार घास है. बरसात में खूब बढ़ती है. अक्टूबर आते आते इसमें सफ़ेद फूल खिलते हैं. इसकी पत्तियां लम्बी लम्बी धारदार होती हैं. जिनको हाथ लगाने से हाथ कट जाता है.
इसकी वह टहनियां जिन में फूल खिलते हैं पत्तियों को मोटे कवर से ढकी होती हैं. इस कवर को उतार कर, कूटकर उसके रेशे को बारीक करके बान बनाया जाता है जिससे चारपाई बुनी जाती है. इसे मूँज भी कहते हैं.
सरकंडे में बांस की तरह कुछ दूरी पर गांठे होती हैं. इनसे छप्पर बनाने का काम लिया जाता है. और फर्नीचर भी बनाया जाता है.

सरकंडा एक बहु उपयोगी पौधा है. इसकी जड़ें  गुच्छेदार होती हैं. ये भूमि के कटान को रोकता है. इसके पौधे बरसात में भूमि-छरण  नहीं होने देते. इसके पौधों को पतेल भी कहते हैं.
गर्मी आते आते इसके पौधे सूखने लगते हैं. सरकंडे पीले रंग के हो जाते हैं. किसान इन पौधों को काटकर विभिन्न प्रकार से प्रयोग में लाते हैं. जेड रह जाती हैं जिनमे आग लगाकर जला दिया जाता है. खेतो के किनारे सरकंडे की जली हुई जड़े दिखाई देती हैं.
अजीब बात है की इन जाली जड़ो से बरसात आते ही नए पौधे फूट निकलते हैं. इसकी अंदरूनी जड़ों तक आग नहीं पहुंचती।
सरकंडा पेशाब की जलन को दूर करता है. इसकी पत्तियों का पानी पेट के कीड़े मार कर निकाल देता है.
इसकी जड़ो को सुखाकर कूटकर थोड़ी सी हल्दी, सोंठ और गुड़ के साथ पकाकर पेस्ट बना लिया जाता है. सुबह शाम दूध के साथ एक चमच इस्तेमाल करने से टूटी हड्डी भी जुड़ जाती है.
 सरकंडा-2 
सरकंडा पर बहुत से पाठकों ने कमेंट्स किये हैं. आप सबका बहुत धन्यवाद. कुछ लोगों ने पूछा है की इसके छोटे पौधे की पहचान कैसे करें. इसका छोटा पौधा घास के सामान होता है. लेकिन इसकी पत्तियां घास से लम्बी, मोटी और किनारे से धारदार होती हैं. इनको हाथ लगाने से धार से हाथ कट जाता है. इसके नए पौधे बरसात के मौसम में निकलते हैं. पुरानी जड़ों से इसके पौधे भी बरसात में बढ़ते हैं. शुरू से ही इसका पौधा जड़ के पास से ही गुच्छे दार और घना होता है. खेतों के किनारे, सड़कों के किनारे, खाली पड़े स्थानों पर, नदी के किनारे, रेत में इसके पौधे मिल जाते हैं. बरसात में ये तेज़ी से बढ़कर सितम्बर अक्टूबर तक 2 - 3 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं. अक्टूबर में इसमें फूल खिलने लगते हैं. जड़ों से फूलों के लिए लम्बी शाखा निकलती है जिसपर पत्तियां आवरण के रूप में लिपटी होती हैं. इस शाखा में ऐसी गांठें होती हैं जैसे बांस में होती हैं. यही सरकंडा, सेठा, सेंटा, काना कहलाता है. इसके ऊपरी सिरे पर 1 - 2 फुट लम्बा गुच्छे दार फूल लगता है. जो दूर से सफ़ेद, चमकदार पहचाना जा सकता है.
सरकंडे का कुटीर उद्योग में बड़ा महत्त्व है. इसकी पत्तियों का उपयोग छप्पर बनाने, खपरैल बनाने में किया जाता है. सरकंडे का ऊपरी कवर उतार कर हरे लाल रंग से रंगकर डलियां बुनी जाती हैं. यही कवर सुखाकर पानी में भिगोकर मुगरी या लकड़ी से कूटकर रेशों में बदल जाता है. इसे ही मूंज कहते हैं. इन रेशों से घर पोतने के लिए कूची /ब्रश बनायी जाती है. इसी मूंज को बटकर बान बनाये जाते हैं जिससे चारपाई बुनी जाती है. मूंज की रस्सी भी बनायीं जाती है.
सरकंडे से बैठने के लिए कुर्सी, मोढ़ा बनाया जाता है. इस प्रकार की कुर्सियां आपने अक्सर देखी  होंगी. घरेलु दस्तकारी, सजावटी सामान बनाने, पंखों की डंडियां बनाने में सरकंडे का उपयोग होता है. पुराने ज़माने में बच्चे सरकंडे का प्रयोग कलम के रूप में करते थे. इसी सरकंडे से हलके और छोटे बाण भी बनाये जाते थे.
इस पौधे के विभिन्न अंगों के नाम और उनके उपयोग से जो शब्द बने हैं वह आप ऊपर पढ़ चुके हैं. वह शब्द ये हैं. सरकंडा, सेंटा,  काना, पतेल, मूंज, बाण, बान.
सरकंडा, सेंटा,  काना पौधे का एक भाग है लेकिन पुरे पौधे का भी यही नाम लोग जानते हैं.
बाण वही सरकंडा है लेकिन बाण के रूप में प्रयुक्त होता है.
बाण से बान बना है लेकिन ये मूंज  की पतली बटी हुई डोरी है जिससे चारपाई बुनी जाती है. लेकिन पूरे पौधे को भी इसी नाम से जाना जाता है.
सरकंडा कमाल का पौधा है.

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पागल बूटी धतूरा

  धतूरा, घूरे, कूड़े के ढेर और खाली पड़े स्थानों पर उगता है. इसके उगने का समय भी बरसात का है. इसकी कई प्रजातियां हैं. जिनमे आम तौर से मिलने वाला सफ़ेद धतूरा, और काला धतूरा प्रमुख हैं.
इसके फल कांटेदार होते हैं. फूल पीछे से पतले और आगे से चौड़े, भोपे के आकर के होते हैं. इसके बहुत से देसी नाम भी हैं. संस्कृत में इसे कनक कहते हैं. फल सूखने पर चटक जाते हैं और उनमे से बीज गिर जाते हैं. इन्ही बीजों से बरसात में नए पौधे उगते हैं. इसके बीज, बैगन के बीज से मिलते जुलते होते हैं. इनका रंग काला, भूरा होता है.
कला धतूरा देखने से ही काली आभा लिए होता है. इसके फूल भी सफ़ेद फूलो के बजाय बैगनी रंग के होते हैं. काला धतूरा सफ़ेद से अधिक ज़हरीला होता है.
इसके पेड़ को कोई जानवर नहीं खता और इस पर कीड़े, मक्खी, मच्छर भी नहीं आते. इसे पहले खेतो की बाढ़ के रूप में किसान लगाते थे जिससे उनके खेत को जानवर न चरे.
देसी दवाओं में इसके पत्तो और बीजो का प्रयोग किया जाता है. कुछ हकीम इसके पत्तों के सूखे चूर्ण को बहुत काम मात्रा में चिलम में डाल कर दमे के मरीज़ को धूम्रपान करते थे इससे दमे का दौरा रुक जाता था. इसके बीजों का प्रयोग शुद्ध करके ही बहुत काम मात्रा में अन्य दवाओं के साथ किया जाता है. क्योंकि धतूरा के प्रयोग से होश-हवास जाते रहते है और आदमी पागलों जैसे हरकते करने लगता है इसलिए कहा जाता है कि धतूरा पागल बूटी है.
धतूरा सूजन और दर्द- नाशक है. इसके पत्तों का तेल जोड़ो के दर्दो, गठिया की सूजन में प्रयोग किया जाता है. इसके पत्तों को सरसों के तेल में डालकर पकाया जाता है कि पत्ते जल जाते हैं. इस तेल को छान कर रख लिया जाता है. जोड़ो के दर्द में थोड़ा गर्म करके इसकी मालिश करके गर्म पट्टी बाँध दी जाती है. ऐसा निरंतर करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. लेकिन ध्यान रहे की इस तेल के प्रयोग के बाद हाथ अच्छी तरह साबुन से धो लिया जाए और इस दवा को बच्चो की पहुंच से दूर रखा जाए.
सावधानी इसी में है कि इस ज़हरीले पौधे से दूर रहे. 

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

काला बिछुआ या बघनखी

बघनखी या बाघनखी या बाघनख एक पौधा है जो बरसात में उगता है और सर्दी आते आते सूख जाता है. इसके फल सूख कर चटक जाते हैं और उनमे से एक काले या भूरे रंग का बड़ा सा बीज निकलता है. इस बीज की शकल बाघ के मुड़े हुए नाखूनों जैसी होती है. इसलिए इसे बघनखी या बाघनखी या बाघनख कहते हैं.
इसके पत्ते बड़े और रोएंदार होते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को हाथाजोड़ी, हथजोड़ी का पौधा कहकर भ्रम फैला रहे हैं. हथजोड़ी के नाम से जो चीज़ बाजार में महंगे दामों बेची जा रही थी वह मॉनिटर लिज़र्ड का जननांग था और इस पर जब वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके ये बताया कि  मॉनिटर लिज़र्ड इस हथजोड़ी के चक्कर में मारी जा रही है और जंगली जन्तुओं का नाश हो रहा है तो इसका बेचना बंद कर दिया गया. भ्रम फैलाने वाले कहते थे कि असली हथजोड़ी विंध्याचल के जंगलों में मिलती है. कोई इसे हिमालय में बताता था. कोई कहता था की पेड़ की जड़ है और कोई फल बताता था. हथजोड़ी के मामले में भ्रम फैलाने वालों की अब भी कमी नहीं है.
बघनखी के पौधे को अंग्रेजी भाषा में  डेविल्स क्ला (शैतानी पंजा) कहते है. इसका वैज्ञानिक नाम मार्टिनिया एनुआ  है. देसी भाषाओं में कहीं इसे उलट कांटा भी कहते हैं. इसके मुड़े हुए कांटो की वजह से इसे बिच्छू फल या काला बिछुआ भी कहते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को बिच्छू झाडी समझते हैं. जबकि बिच्छू झाड़ी एक अलग ही पौधा है.
कुछ लोगों ने ये भ्रम भी पाल रखा है की ये पौधा वहीँ उगता है जहां बिच्छू रहते हैं. और ये बिच्छू काटे की अच्छी दवा है.
इसके कई नाम होने के कारण अन्य पौधों की नामों में भ्रम हो जाता है. ये पौधा ही ऐसा है.
ये पौधा सूजन और दर्द को दूर करता है. इसमें रक्त शोधक गुण हैं. सूजन और दर्द को दूर करने के गुणों के कारण  इसे गठिया रोग में इस्तेमाल किया जाता है. इसके पत्तों को सरसों के तेल में पकाकर ये तेल जोड़ो के दर्द में मालिश करने से बहुत आराम मिलता है. इसके सूखे फलों को कूटकर भी तेल में पका सकते हैं. ये एक अच्छा दर्द निवारक तेल बन जाता है.
इसके फलो का तेल बालों में लगाने से बाल जल्दी सफ़ेद नहीं होते.
इसकी जड़ का पाउडर एक से दो ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा का पाउडर सामान मात्रा में मिलाकर शहद के साथ सुबह शाम इस्तेमाल करने से गठिया रोग में राहत मिलती है.
कुछ लोगों को इसके इस्तेमाल से एलर्जी हो जाती है. इसका प्रयोग करने से पहले किसी काबिल हकीम या वैद्य की सलाह अवश्य लें.


बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

लपेटुआ

लपेटुआ का वैज्ञानिक नाम यूरेना लोबाटा है. इस पौधे के बीज रोएंदार होते हैं और इस लिए ये किसी भी व्यक्ति या जानवर के आसानी से चिपक जाते हैं और दूर दूर पहुंच जाते हैं. बरसात में इन बीजों से लपेटुआ के नये पौधे निकलते हैं. ये पौधा खेत खलिहानो में और खाली पड़ी ज़मीनो में उगता है.  
इसका रेशा मज़बूत होता है. जूट के पौधों की तरह ही इसके रेशे भी निकाले जाते हैं और उनकी रस्सी बनायी जाती है या फिर इन रेशो को बुनकर कैनवास जैसा कपडा बनाया जाता है.  ये मालवेसी कुल का  पौधा है. इसे अंग्रेजी में सीज़र -वीड, कांगो-जूट, और मडगास्कर-जूट भी कहते हैं.
इसके बीज पानी में भीगकर लेसदार हो जाते हैं. बीजों का ये म्यूसिलेज, या चिपचिपा पदार्थ पेट के रोगों में फ़ायदा करता है.
इसका स्वाभाव गर्म है. इसकी जड़  को पानी में उबालकर पिलाने  से शिशु-जन्म आसानी से हो जाता है.
फूलों को सुखाकर  रख लिया जाता है. इन फूलो को पानी में पकाकर पीने से खांसी में आराम मिलता है और जमा हुआ बलगम निकल जाता है.
बीजों को पानी में पकाकर पीने से पेट के कीडे मर कर निकल जाते हैं.

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

गुंजा, गुंजा, रत्ती, रत्ती

रत्ती और गुंजा एक बेल के बीज हैं. इस बेल को और इसके बीजों को रत्ती, रतियां, घुंघची, घुमची, गुंजा आदि कहा जाता है. आम तौर से लाल और काले रंग की रत्ती मिलती है. इस बीज का आधे से ज़्यादा भाग लाल होता है और आधे से कुछ कम  भाग काला होता है. देखने में ये बीज मोती जैसे लगते हैं.
इन बीजों से सुनार सोना तोलते थे. लाल - काली रत्ती लगभग समान आकार और वज़न की होती है. इसे एक रत्ती भार के बराबर माना जाता
रत्ती के बेल के पत्ते इमली के सामान होते हैं. ये एक पतली और नाज़ुक से बेल होती है. इसके फलने - फूलने का समय बरसात का है. जाड़े आते आते रत्ती के बीज सूख जाते हैं और फलियां चटक जाती हैं. जिनमे से बीज बिखर जाते हैं.
रत्ती की एक वैराइटी सफ़ेद होती है जिसका बहुत थोड़ा सा भाग कला होता है. इसे सफ़ेद रत्ती कहते हैं. एक अन्य प्रकार की रत्ती सफ़ेद और ब्राउन रंग की होती है. ये रत्तियां काली लाल रत्तियों से आकर में बड़ी होती हैं और इस लिए इन्हे सोना तोलने के काम में नहीं लाया जाता.

रत्ती एक बहुत ज़हरीला पौधा है. दवाई के रूप में इसकी पत्तिया, जड़ और बीज का प्रयोग किया जाता है. पत्तियां और जड़ में कम विष होता है. अजीब बात हैं की इसके बीज बहुत विषाक्त होते हैं. इसका प्रयोग केवल लगाने की दवाई के रूप में किया जाता है. लेकिन भूलकर भी ये जड़ी बूटी खुले घाव वाले स्थान पर न लगायी जाय.  और इसका प्रयोग केवल  काबिल हकीम और वैद्य की निगरानी में ही किया जाए.
किसी खाने की दवा  में अगर रत्ती का  इस्तेमाल लिखा हो तो ऐसे नुस्खे का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि रत्ती या गुंजा खतरनाक ज़हर है. 

फूल के ऊपर पत्ता

फूल के ऊपर पत्ता गोमा जड़ी बूटी की विशेष पहचान है. गोमा को गुम्मा घास, और द्रोण पुष्पी भी कहा जाता है. इसमें सफ़ेद रंग के फूल खिलते हैं.
गोमा को सर्प दंश की अचूक दवा माना जाता है. गोमा को खिलाने और काटे हुए स्थान पर लगाने से सांप का विष दूर हो जाता है. एक हकीम ने जंगल में देखा की एक सांप और नेवला लड़ रहे हैं. सांप नेवले को कई बार काटता है और नेवला भागकर एक बूटी के पत्ते खाकर लड़ाई के लिए फिर आ जाता है. वह ये सब देखते रहे. जब नेवले ने सांप को मार  लिया और उसी बूटी के पत्ते खाकर चला गया तो उनहोंने उस बूटी को जड़ से उखाड़कर अपने झोले में डाल लिया और पास के रेलवे स्टेशन से अपने गांव जाने के लिए गाड़ी पकड़ ली.
उस ट्रेन में उन्हें एक मरीज़ मिला जिसके शरीर के हर भाग से खून बह  रहा था. पूछने पर पता लगा की इस आदमी को सांप ने काटा था. दवा से मरने से तो बच गया लेकिन ज़हर के असर से शरीर का खून इतना पतला हो चुका  है की त्वचा के छिद्रों से बह रहा है. इसे  डाक्टर को शहर में दिखाने ले गए थे.  उन्होंने कहा इसका कोई इलाज नहीं.
हकीम ने थैले में हाथ डाला और गोमा बूटी को रगड़कर गोली से बना दी. और ऐसी तीन गोलियां मरीज़ को देदी. कहा कि एक अभी खालो, एक तीन घंटे बाद और एक उसके तीन घंटे बाद खा लेना. रास्ते में उनका गांव आ गया और उनहोंने उतरने से पहले हकीम का पता ले लिया.
 तीसरे दिन हकीम अपनी दुकान पर बैठे थे कि एक आदमी आया और उनके पैरों पर गिर पड़ा. ये वही मरीज़ था. बिलकुल ठीक हो चुका  था.
गोमा कमाल की बूटी है.
बुखारों के लिए भी गोमा ज़बरदस्त असर रखती है. सूखी गोमा बूटी के भरे हुए गद्दे पर मरीज़ को लिटाने से ही पुराना बुखार भी उतर जाता है.
गोमा लिवर की बीमारियों की बड़ी दवा है. लिवर ठीक काम न करता हो, पीलिया रोग में और लीवर की सूजन घटाने में ये जड़ी बूटी लाभकारी है.


मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

सुगंधित वृक्ष यूकेलिप्टस

 यूकेलिप्टस एक सुगंधित वृक्ष है. ये वास्तव में आस्ट्रेलिया का वृक्ष है. इसकी बहुत सी प्रजातियां पायी जाती हैं. 1980 के दशक में जब हरित क्रांति के नाम पर पौधे लगाने का काम भारत में शुरू किया गया तो हर खेत, जंगल और गांव में इसके पौधे बहुतायत से लगाए गए. ये तेज़ी से बढ़ता था और लकड़ी का अच्छा साधन होने की वजह से गरीबो की आय बढ़ाने का काम करता था. लेकिन कुछ समय बाद इसे बदनाम किया जाने लगा कि ये तो दलदली ज़मीनो का पौधा है. ज़मीन से अधिक मात्रा में पानी सोख लेता है. खेत बंजर हो रहे हैं.
यूकेलिप्टस में चिपचिपा सुगंधित तेल पाया जाता है. इसकी पत्तियों से ये तेल निकला जाता है और दवाओं में प्रयोग होता है. इसकी सुगंध लोगों को अच्छी लगती है. कुछ लोग इसे इलाइची जैसी सुगंध समझते हैं.
ये एक नेचुरल माउथ फ्रेशनर है. टूथपेस्ट, माउथ वाश में और मंजन में मिलाया जाता है. ये जीवाणु  और फफूंदी  नाशक है.
कॉमन कोल्ड और ज़ुकाम में प्रयोग की जाने वाली बाम का ये एक विशेष अव्यव है. सीने और माथे पर लगाने से बाम वाष्पित होती है और इसकी सुगंध नाक से अंदर जाकर सर्दी ज़ुकाम में राहत दिलाती है.
यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल बाजार में उपलब्ध है. इसका प्रयोग किसी तेल जैसे जैतून के तेल में मिलाकर मच्छर दूर रखने के लिए किया जा सकता है. ये तेल हाथ पैर में लगा लेने से मच्छर पास नहीं आते.
मुंह की दुर्गन्ध दूर करने के लिए और दांतो और मसूढ़ों से जीवाणु  दूर रखने के लिए माउथ वाश के रूप में एक कप पानी में एक से दो बूंद यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल और एक बूंद पिपरमिंट आयल की ,अच्छी तरह मिलकर माउथ वाश करने से दुर्गन्ध से मुक्ति मिलती है.
घरेलु इस्तेमाल के लिए अगर यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल बनाना हो तो यूकेलिप्टस की पत्तियों को थोड़ा सा कुचलकर कांच के जार में डाल दें और पत्तियों के वज़न से दो गुना जैतून का तेल या तिल का तेल जार में ऊपर से डाल कर अच्छी तरह उसका मुंह बंद करके किसी गर्म कमरे में दो से तीन दिन रखा रहने दें. फिर अच्छी तरह फ़िल्टर कर शीशी में रख लें. इस तेल को मच्छर भगाने, जोड़ो के दर्द, और सर्दी ज़ुकाम में लगाने में प्रयोग कर सकते हैं.
यद् रखे यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल एक बाहरी प्रयोग की दवा है. इसको खाने में कदापि प्रयोग न करे, स्वास्थ्य को गम्भीर हानि हो सकती है.

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

मेट्रोनिडाज़ोल कैंसर-कारक है ?

मेट्रोनिडाज़ोल एक ज़बरदस्त एंटीबायोटिक दवा है. इसे इंफेक्शन को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. ये जीवाणुओं को नष्ट करती है लेकिन वाइरस को नष्ट नहीं कर सकती. ये दवा, पेट के इंफेक्शन या संक्रमण में बहुत ज़्यादा इस्तेमाल के जाती है. 

बहुत से लोग ब्रांड नाम फ्लैजिल के नाम से इस दवा से परिचित हैं और इसकी गोली हमेशा जेब में रखते हैं. जब भी पेट ख़राब होने का डर हुआ फ़ौरन गोली खाली. ऐसे लोग जिनका पेट अक्सर ख़राब रहता है, पेचिश, दस्त के रोगी हैं वह बरसो से बिना कोई परवाह किये मेट्रोनिडाज़ोल की गोलियां खा रहे हैं.
ये दवा जेनरिक या ब्रांड नाम से आसानी से उपलब्ध है. इसे पेट, योनि, तवचा, जोड़ों आदि के जीवाणु संक्रमण के लिए प्रयोग किया जाता है. बच्चों को भी दस्त और पेट के संक्रमण में ये दवा सीरप के रूप में इस्तेमाल कराई जाती है.
लेकिन ये दवा चूहों पर प्रयोग की गयी तो इसे कैंसर-कारक यानि कैंसर पैदा करने वाली दवा पाया गया. इसलिए कानूनी तौर पर मेट्रोनिडाज़ोल की टेबलेट के पत्ते, सीरप की शीशी पर चेतावनी लिखी जाती है कि मेट्रोनिडाज़ोल को चूहों में कैंसर-कारक पाया गया  है अतः इस दवा का अनावशयक प्रयोग न किया जाए. लेकिन फिर भी ये दवा एक बहुत आम दवा की तरह उपयोग में लायी जा रही है. 

रविवार, 23 सितंबर 2018

बदबूदार पौधा पंवाड़

पंवाड़ बरसात में उगने वाला पौधा है. इसमें से अजीब सी दुर्गन्ध आती है. ये सड़कों के किनारे और खाली पड़े स्थानों में ऊगा हुआ मिल जाएगा. इसमें पीले रंग के फूल आते हैं और लम्बी लम्बी फलियां लगती हैं. सूख जाने पर फलियां चटक जाती हैं और उनके बीज बिखर जाते हैं.
इसको पंवाड़, पमडुआ, आदि नामो से जाना जाता है. अंग्रेजी में इसे फीटिड कैरिया और कैशिया टोरा कहते हैं. अंग्रेजी के दोनों नाम भी दुर्गन्धयुक्त पौधे की तरफ इशारा करते हैं.
इसके बीजों की गिरी का पाउडर इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है. इससे बना पंवाड़ का गोंद या कैशिया टोरा गम खाने की चीज़ों में, कुत्ते, बिल्ली के फ़ूड में इस्तेमाल किया जाता है. कैशिया टोरा गम जेल के रूप में और बाइंडर के रूप में इस्तेमाल होता है. आइसक्रीम में मिलाने पर ये पानी को क्रिस्टल  में जमने नहीं देता और आइसक्रीम को एक चिपचिपा रूप देता है.
पंवाड़ जीवाणु नाशक और फफूंदी नाशक है. इसके बीजों को पीसकर और दही में मिलकर कुछ दिन रख दिया जाता है. इसमें दुर्गन्ध पैदा हो जाती है. इस पेस्ट को त्वचा पर लगाने से खुजली और दाद नष्ट हो जाता  है.
इसके बीजों का पाउडर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से त्वचा के रोगों में आराम मिलता है. ये बीज कब्ज़ को भी दूर करते हैं.
पंवाड़ जोड़ों के दर्द में भी लाभकारी है. इसके लिए इसके बीजों के पाउडर का प्रयोग किया जाता है.
पंवाड़ के  पत्ते  फलियां और बीजों की कम्पोस्ट खाद खेतों में डालने से कीड़ा नहीं लगता और फफूंदी की समस्या भी नहीं रहती.
प्राकृतिक कीड़े मार दवा के रूप में पंवाड़ के बीजों का काढ़ा बनाकर, ठंडा करके पौधों पर छिड़कने से कीड़े मर जाते हैं. यदि इस काढ़े में नीम के बीज भी कुचलकर मिला दिये जाएं तो ये बहुत अच्छा कीड़ानाशक बन जाता है.
पंवाड़ का असर बहुत तेज़ होता है. कुछ लोगों को इसके प्रयोग से जी मिचलाना, उलटी, पेट दर्द की शिकायत हो सकती है. इसलिए पंवाड़ के अंदरूनी इस्तेमाल से पहले किसी काबिल हकीम या वैद्य की  सलाह ज़रूरी है. 

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

खून को जमने से बचाए एस्प्रिन

एस्प्रिन  खून का थक्का बनने से रोकती है. दिल के मरीज़ों के लिए, जिन्हे पहले दिल का दौरा पड़ चुका हो, ये एक कारगर और ज़रूरी दवा बताई जाती है. डाक्टर ऐसे मरीज़ों को जिन्हे स्टेन्ट लग चुका हो एस्प्रिन की कम खुराक या लो डोज़ लेने की सलाह देते हैं जिससे खून पतला रहे और थक्का बनने की परेशानी न हो.
इसके आलावा एस्प्रिन रोज़मर्रा के टेंशन, टेंशन  से होने वाले सरदर्द, शरीर के दर्द, दांत दर्द और बुखार में भी बड़ी सुरक्षित दवा के रूप में ली जाती है. कुछ लोग एस्प्रिन की गोलियां जेब में रखते हैं और ज़रुरत पड़ने पर फ़ौरन इस्तेमाल करते हैं.
लेकिन वे लोग जिनका खून पहले ही किसी वजह, दवा या बीमारी की वजह से या तो  पतला है, या अंदरूनी अंगो में रक्त - स्राव हो रहा है, उन्हें एस्प्रिन जानलेवा साबित हो सकती है.
कभी कभी सर के दर्द में खून की बारीक नसों यानि कैपिलरीज से ब्लड ऊज़िंग या रक्त स्राव होने लगता है. इस प्रकार के सर दर्द में एस्प्रिन की एक खुराक ब्रेन हैमरेज का कारण बन जाती है और मरीज़ के लेने के देने पड़ जाते हैं.
बार बार और अत्यधिक मात्रा में एस्प्रिन की खुराक से खून इतना पतला हो जाता है कि शरीर की अंदरूनी झिल्लियों से बहने लगता है. जैसे हेमीचुरिया या पेशाब में खून आना, आंतों से मल के साथ खून आने की समस्या.
दिल के कई मरीज़ एस्प्रिन के इसी प्रभाव के कारण दिल को बचाते बचाते हैमरेज का शिकार हो गये.
लेकिन नयी रिसर्च में पता लगाया गया है की एस्प्रिन कैंसर को फैलने से रोकती है. इसकी लो - डोज़ जो दिल के मरीज़ों को दी जाती है, कैंसर के फैलाव को रोकने में कारगर है.

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

रेड 40 फ़ूड कलर

रेड 40 फ़ूड कलर खाने की चीज़ों और मुख्य रूप से पेय पदार्थ जैसे फलों के जूस, शरबत, सॉस, केचप, चटनी, बच्चों के लिए मिठाइयां, मीठी चीज़ें, बच्चों की दवाएं, खांसी के सीरप, आदि में इस्तेमाल किया जाता है. 

ये रूई के गले वाली मिठाई जिसे बच्चे कॉटन कैंडी कहते हैं का विशेष रंग है. देसी और आयुर्वेद के नाम पर जो ठगी की जा रही है, वे लोग भी देसी दवाओं के नाम पर तरह तरह के नाम रखकर शरबत बना रहे हैं और रेड 40 कलर मिलाकर खूबसूरत फूलों और फलों के नाम पर बेच रहे हैं. इस कलर को एलोरा रेड भी कहते हैं. बहुत से चीज़ों में इसे मिलाया जाता है.
सौंदर्य प्रसाधनों का भी ये विशेष रंग है. साबुन से लेकर, क्रीम, बालों के तेल, में भी मिलाया जाता है. अन्य सिंथेटिक रंगों की तरह इसके भी दुष्प्रभाव हैं और उन पर विभिन्न एजेंसियां रिसर्च भी कर चुकी हैं. लेकिन इनके परिणाम लोगों से छिपाये जाते हैं. केवल यही कहा जाता है की ये रंग 7 मिलीग्राम तक एक व्यक्ति एक दिन में इस्तेमाल कर सकता है. और इसका दुष्प्रभाव  एलर्जी और बच्चों में हाइपर सेंस्टिविटी के आलावा कुछ भी नहीं है. लेकिन ये भी कहा जाता है कि ये सभी रंग कैंसर का कारण हैं. क्योंकि ये खाने की चीज़ नहीं है. एलर्जी  स्किन के ऊपर प्रकट होती है. जब कलर शरीर में प्रवेश करता है तो पाचन तंत्र से ब्लड में जाता है और वहां से कुछ तो मूत्र के रस्ते बाहर निकल जाता है और सूक्ष मात्रा में शरीर की कोशिकाओं में पहुंचता है. यदि शरीर उसे सहन नहीं करता तो स्किन की कोशिकाओं में भेज देता है. इससे कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और नतीजा एलर्जी के रूप में निकलता है.
ये एलर्जी दवाओं से भी नहीं जाती क्योंकि खाने के चीज़ों से कलर बराबर शरीर में पहुंच रहा होता है और इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता.
इसे प्रकार ये हानिकारक चीज़ें शरीर के  अंदर ऊतकों को नष्ट करती हैं तो नतीजा कैंसर के रूप में निकलता है.
लेकिन ये दुनिया एक बड़ा बाजार है इसलिए रिसर्च के परिणाम भी छिपाये जाते हैं जिससे बिज़नेस चलती रहे.



बुधवार, 12 सितंबर 2018

शहद से नुक्सान

एक मज़दूर को एक दिन काम नहीं मिला. उसके बच्चे भूखे थे. काम की तलाश में गांव में इधर उधर घूम रहा था. उसने देखा की एक बड़े आम के पेड़ पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. वह देखता रहा तो बात उसकी समझ में आ गयी. आम का पेड़ बहुत पुराना था और उसकी शाखा में एक गहरी खोह थी जिसमें शहद की मक्खियां आ-जा रही थीं. वह समझ गया की इसके अंदर ज़रूर शहद की मक्खी का छत्ता है.
वह फ़ौरन पेड़ पर चढ़ गया. शहद का छत्ता तोडा. पुराना छत्ता था. बहुत शहद निकला. वह खुश हो गया. चलो बच्चो के लिए स्वास्थ्यवर्धक शहद मुफ्त में हाथ आया.
उस दिन दोपहर में पूरे परिवार ने खूब शहद खाया. असली शहद था. ऐसा कहां मिलेगा. खाले  बेटा पेट भरके. उसने अपने मासूम बेटे से बोला
खाकर वे सो गये. सोते में ही उन सब की तबियत बिगड़ गयी. उलटी और दस्त से निढाल हो गए. गांव वालों ने अस्पताल में भर्ती कराया.
डाक्टर हैरान की शहद में ऐसा क्या था जिसने नुक्सान किया. शहद तो स्वास्थ्य का रखवाला है. अमृत के सामान है.
जांच की गयी तो पता चला की शहद ज़हरीला था. अब शहद में ज़हर कहां से आया. मक्खियां तो फूलों का रस इकठ्ठा करके शहद बनाती हैं. पता चला कि गांव वाले फसलों पर पेस्टीसाइड का प्रयोग बहुतायत से करते थे. ऐसे ही फूलों से मधु मक्खियों ने शहद बनाया था.....


मंगलवार, 11 सितंबर 2018

अनन्नास का किसान और शराब

एक किसान  अनन्नास की खेती करता  था. वह बहुत मेहनत करता. अनन्नास के पौधों की देखभाल करता, उनपर कीड़ेमार दवाई छिड़कता. चार अनन्नास का जूस रोज़ पीता और खुश रहता.
धीरे धीरे उसकी तबियत बिगड़ने लगी. डाक्टरों ने कहा तुम्हारा जिगर यानि लिवर ख़राब है. उसने बड़े अस्पताल में अच्छे डाक्टर से जो लिवर का स्पेशलिस्ट था दिखाया, डाक्टर ने बहुत सरे  टेस्ट कराए. डाक्टरों ने कहा तुम्हें लिवर सिरोसिस है तुम पुराने शराबी हो. शराब का सेवन बंद कर दो नहीं तो ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ेंगे.
किसान ने कहा मैंने कभी शराब का सेवन नहीं किया है. मैं केवल अपने खेत के ताज़े अनन्नास का जूस रोज़ाना पीता हूं।  डाक्टर को विशवास नहीं हुआ. उसने एक और टेस्ट लिखा जिससे किसान की बात की सच्चाई पता चले.
टेस्ट पॉज़िटिव आया और पुष्टि हो गयी की ये पुराना  शराबी है.  और बात को झुठला रहा है.
डाक्टर ने उसकी रिपोर्ट सामने रखी और उसकी  पत्नी और बच्चों को बुलाकर पूछा - सच सच बताओ ये शराब पीते हैं या नहीं. ये इनकी ज़िंदगी का सवाल है.
उसकी पत्नी और बच्चों ने भी इंकार किया।
डाक्टर चक्कर में पड़  गया.
किसी दवा का इस्तेमाल तो नहीं करते. डाक्टर ने पूछा.
हां - पत्नी ने कहा ये आयुर्वेदिक दवा दशमूलारिष्ट का सेवन करते हैं जिससे पेट ठीक रहे.
पत्नी ने कहा पहले इनका पेट ठीक रहता था. कुछ दिन से गैस की समस्या हो गयी. ये अनन्नास का जूस पीते थे. गैस बनती थी तो दशमूलारिष्ट पीते थे.
लेकिन दशमूलारिष्ट तो सुरक्षित दवा है. बरसो से लोग इसका सेवन कर रहे हैं. डाक्टर ने कहा.
जब और गहन जांच की गयी तो पता चला कि अनन्नास पर छिड़के पेस्टीसाइड ने उसकी सेहत को बिगाड़ा. इसीसे पेट ख़राब हुआ. दशमूलारिष्ट जैसी दवाओं में अल्कोहोल की मात्रा होती है लेकिन उस मात्रा की कोई माप या डिग्री नहीं है. ये अनकंट्रोल्ड अल्कोहोल वाली दवाई है. किसान लम्बे समय से बिना जाने अल्कोहोल का सेवन कर रहा था जिसने लिवर को डैमेज कर दिया.
सभी दवाएं सुरक्षित नहीं होतीं. और न सबको सूट करती हैं. 


डूबते सूरज का रंग

डूबते सूरज का रंग बाजार की भाषा में सनसेट यलो एफ सी एफ कहलाता है. ये रंग भी टार से बनता है. इसे भी खाने और दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसे E-110 और  FD&C YELLOW 6 भी कहते हैं.

ये रंग खाने को संतरे जैसा रंग देता है. चिकन से बने खाने, चिकन कोरमा, चिकन फ्राई, चिकन रोस्टेड को इसी रंग में खूब लपेटा जाता है जिससे रंग सुन्दर दिखाई दे. पनीर के पकवान जैसे शाही पनीर, पनीर कढ़ाई, पनीर हांड़ी, पालक पनीर में भी खूब मिलाया जाता है.
इसके अलावा नमकीन, स्नैक्स, बिस्किट, और उनमे लगाने वाली क्रीम में भी यही रंग बहुतायत से पाया जाता है. इसी रंग को लाल रंग के साथ मिलकर ब्राउन रंग बनाया जाता है जो चॉकलेट और केक में प्रयोग होता है. सॉफ्ट ड्रिंक और फलों के जूस का भी ये अच्छा रंग है.
टॉनिक, पेट की दवाएं जैसे जेल और टेबलेट में भी ये मिलाया जाता है.
मानक के अनुसार ये रंग खाने की चीज़ों में एक किलो  में 4 मिलीग्राम तक  मिलाया जा सकता है. लेकिन हमारे देश में ये 100 - 200 गुना तक मिला दिया जाता है और इससे फ़ूड पॉइज़निंग होने का खतरा रहता है क्योकि ये इतनी मात्रा में पेट में पहुँचता है जो निर्धारित मानक से कहीं ज़्यादा होती है.
घरों में खाने की चीज़ो में मिलते समय ये नहीं देखा जाता की इसकी मात्रा कितनी है. अधिक से अधिक मात्रा का प्रयोग घरेलु महिलाओं द्वारा, हलवाइयों द्वारा मिठाइयों में किया जाता है.
ये रंग भी एलर्जी पैदा कर सकता है और ये भी कहा जाता है की इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो कैंसर को जन्म दे.
इसलिए घबराने की कोई बात नहीं लेकिन आप वह चीज़ें क्यों खा रहे हैं जो खाने की नहीं हैं ?  

एक जंग कलर के खिलाफ

 खाने में आपको कुछ भी खिलाया और पिलाया जा रहा है. क्या आपने कभी सोचा है की इस मल्टी-नैशनल बाजार में तरह तरह की खाने की चीज़े परोसी जा रही हैं. पीले कलर के ऐसे कोल्ड ड्रिंक हैं जो आम जैसे फलों के जूस के नाम पर बेचे जा रहे हैं. इनको पीने से दांत तक पीले पड़  जाते हैं.

पीले फ़ूड कलर में कई तरह के रंग प्रयोग होते हैं. इनमें मुख्य रंग है टार्टराजिन  ये खिलता हुआ पीला कलर नीबू जैसा  है और टार से बनता है. इसे E - 102 से भी जाना जाता है. इसे एफ डी एंड सी यलो नंबर 5 भी कहते हैं. 
 ये रंग सॉफ्ट ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक, फलों के जूस, आइस क्रीम, कैंडी, पॉप कॉर्न, आलू के चिप्स, नमकीन, नूडल्स, ब्रेड, आदि और बहुत सी ऐसी चीज़ों में मिलाया जाता है जिसका आपको पता भी नहीं चलता.
खाने के आलावा लगाने की चीज़ों में जैसे साबुन, क्रीम, शैम्पू, हेयर ऑइल, दवाओं की टेबलेट, पीने की दवाएं, लगाने की दवाएं भी इस रंग से युक्त होती हैं.
ये रंग एलर्जी पैदा करता है. दमे के रोगियों को नुकसान करता है. इसके प्रयोग से बच्चो में हाइपर होने की सम्भावना बढ़ जाती है.
दुनिया में फ़ूड कलर के रूप में सबसे ज़्यादा यही रंग प्रयोग किया जाता है. कुछ चीज़ों में ये इतनी काम मात्रा में मिला होता है जिसे रंग का पता भी नहीं चलता. इसकी मात्रा 7. 5 मिलीग्राम एक किलो में ली जा सकती है. कहा जाता है की कैंसर का कारण यही रंग है लेकिन साइंटिस्ट इसे  नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार ऐसा कुछ नहीं पाया गया. उनका कहना है की ये एक निष्क्रिय पदार्थ है और अन्य पदार्थो से क्रिया नहीं करता.

सोमवार, 10 सितंबर 2018

मुश्कदाना

मुश्कदाना कमाल का पौधा है. इसका पौधा और पत्तियां भिंडी से मिलती जुलती होती हैं.  ये मैलो जाती का पौधा है. भिंडी की से मिलता जुलता होने के कारण इसे  जंगली भिंडी भी कहते हैं.

इसका पौधा रोएंदार होता है. इसमें पीले रंग के खूबसूरत फूल खिलते हैं. इसके बीजो में मुश्क या कस्तूरी की तरह सुगंध आती है इसलिए इसके बीजों को ही मुश्कदाना कहते हैं. इसके पौधे को कस्तूरी लता या लताकस्तूरी भी कहते हैं. अंग्रेजी में इसका नाम अम्ब्रेट है. ये नाम अम्बर से बना है जो स्वयं एक सुगंध है. इसके बीजों से सुगन्धित तेल निकला जाता है जो कास्मेटिक में प्रयोग होता है.
देहातों में इस पौधे का प्रयोग शकर को साफ़ करने में किया जाता था. इस पौधे से शकर का रंग साफ़ हो जाता था. इससे सेहत की कोई हानि भी नहीं होती थी. अब शकर को साफ़ करने के लिए शुगर मिलों में केमिकल का प्रयोग किया जाता है.
इसके बीजों से जो तेल निकलता है वह काफी सुगन्धित होता है और इस तेल का प्रयोग सुगंध बनाने में, इतर में और अगरबत्ती बनाने में उपयोग होता है. लेकिन अब इसकी जगह भी कृतिम सुगंध ने लेली है.
साबुन उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन में इसकी सुगंध का प्रयोग किया जाता है.
ये पौधा सांप के ज़हर को नष्ट करता है. सांप कटे में इसका अंदरूनी और बाहरी प्रयोग किया जाता था. ये डाइयुरेटिक यानि पेशाब-आवर है इसलिए ये गुर्दे और रक्त से अशुद्धियाँ निकाल  देता है.
इसके कच्चे फलों की सब्ज़ी भिंडी की तरह ही बनाकर खायी जाती है. कुछ लोग इसके फूलों और कोंपलों को भी सब्ज़ी के रूप में प्रयोग करते हैं.
इसका बीज पेट को रोगों में कारगर है. दवाओं में इसके बीज के चूर्ण का प्रयोग किया जाता है.


रविवार, 9 सितंबर 2018

नान स्टिक कुकवेयर

नान स्टिक कुकवेयर का आजकल बहुत चलन है. इन बर्तनो में खाना पकाने में बहुत आसानी रहती है. खाना कम चिकनाई में पक जाता है और बर्तनो में भी नहीं चिपकता जिससे बर्तनो को धोने में मेहनत नहीं करना पड़ती.

नान स्टिक कुकवेयर बेचने वाले आपके दिल की सेहत के लिए इन्हे अच्छा बताते हैं की ज़्यादा फैट खाने से बचो और दिल को दुरुस्त रखो. मोटापे, ब्लड प्रेशर जैसे बीमारियों से भी दूर रहो. लेकिन नान स्टिक कुकवेयर आपकी सेहत को कैसे बिगाड़ता है इसके बारे में कुछ नहीं बताते. कई रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया की नान स्टिक कुकवेयर कैंसर जैसे रोगों को बढ़ावा देता है. लेकिन इस रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया जाता है और यही कहा जाता है की नान स्टिक कुकवेयर से कुछ भी नुकसान नहीं होता.

नान स्टिक कुकवेयर में बर्तनो पर कई प्रकार के पदार्थ की परतें चढ़ाई जाती हैं. इनमें पॉली -टेट्रा -फ्लोरो -एथिलीन एक मुख्य पदार्थ है. इसे संक्षेप में पी टी एफ ई कहते हैं. आम तौर से इसे इसके ट्रेड नेम टेफ्लॉन के नाम से जाना जाता है. पी टी एफ ई का इस्तेमाल सबसे पहले एटम बम बनाने की प्रक्रिया के दौरान प्रयोग की जाने वाली  गैस यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सील बनाने में किया गया था. बाद में इसे अन्य कार्यो में इस्तेमाल किया जाने लगा.
नान स्टिक कुकवेयर में खाना बनाते समय इसकी परत न उखड़े इसके लिए पैन में लकड़ी या प्लास्टिक के चमच का प्रयोग किया जाता है. लेकिन इसकी परत तो उखड़ती ही है. खाने के साथ टेफ्लॉन के बारीक़ कण और छोटे टुकड़े पेट में पहुंचते रहते हैं. लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से बर्तनों से टेफ्लॉन का बंधन टूट जाता है और फिर बड़े बड़े टुकड़े उतरने लगते हैं.
ये दुनिया एक बड़ा बाज़ार है इसलिए नान स्टिक कुकवेयर बनाने और बेचने वाले कहते हैं कि  इससे कोई नुकसान नहीं होता. टेफ्लॉन ऐसा पदार्थ है जो निष्क्रिय है और अन्य पदार्थो से क्रिया नहीं करता. इसके टुकड़े और सूक्ष्म कण शरीर पर बिना किसी दुष्प्रभाव के ऐसे ही बाहर निकल जाते हैं. इसलिए ये सुरक्षित है और डरने की कोई ज़रुरत नहीं.  लेकिन टेफ्लॉन की कोटिंग खाने के साथ खायी जा रही है. लोग वह चीज़ें खा रहे हैं जो खाने वाली नहीं हैं.             टेफ्लॉन के खतरों से बचने के लिए सेरामिक  कुकवेयर का प्रयोग किया जाने लगा है. सेरामिक कोटिंग सॉल - जेल प्रक्रिया कहलाती है जो मेटल के बर्तनो को भट्टी में सेरेमिक बर्तनों की तरह तपाकर की जाती है. ये बर्तन टेफ्लॉन कोटिंग वाले बर्तनो की तुलना में अधिक सुरक्षित माने  जाते हैं और अभी तक इनके दुष्प्रभाव सामने नहीं आये क्योंकि ये केमिकल से मुक्त होते  हैं.

रविवार, 2 सितंबर 2018

कचनार Bauhinia Variegata

कचनार एक मध्यम आकार का वृक्ष है. फरवरी से मार्च के मौसम में ये खूबसूरत फूलों से भर जाता है. इसकी पत्तियां आगे से अंदर की ओर धंसी हुई होती हैं. इनका आकर ऐसा लगता है जैसे ऊँट के पैर का रेत में पड़ा निशान हो. इसलिए इसे अंग्रेजी में कैमल्स फुट ट्री भी कहते हैं.  ये एक प्रकार का ऑर्किड है. इसकी कई प्रजातियां हैं. इसलिए कचनार को ऑर्किड ट्री भी कहते हैं. 

ये अपने पत्तों और फूलों से आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके फूल आम तौर से हलके बैगनी या पर्पल कलर के होते हैं. लेकिन सफ़ेद और गुलाबी फूलों वाला कचनार भी पाया जाता है. इसके फूल की एक पंखुड़ी सबसे अलग होती है जिस पर क्राउन का निशान बना होता है. इस प्रकार के फूलों को क्राउन पंखुड़ी वाले फूल कहते हैं. गुलमोहर के फूल की पंखुड़ी में भी क्राउन बना होता है. तालाबों और नदियों में पायी जाने वाली जलकुम्भी या वाटर ह्यसिन्थ के फूल की पंखुड़ी में भी क्राउन होता है. 
कचनार की कलियों की सब्ज़ी बनायी जाती है. इनका स्वाद कुछ कड़वापन लिए हुए होता है. कचनार पेट के रोगों की अच्छी दवा है. इसके लिए इसकी छाल का चूर्ण सुखी अदरक जिसे सोंठ भी कहते हैं के चूर्ण के साथ मिलकर सुबह शाम तीन ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से लाभ मिलता है. कचनार डायरिया में लाभ करता है. इसकी कलियों का अचार भी बनाया जाता है जो आँतों को शक्ति देता है और भूख बढ़ाता है.
कचनार ब्लड प्रेशर को घटाता है. जिन लोगों को थायराइड का रोग हो उन्हें कचनार के फूलों का काढ़ा पीने से लाभ मिलता है. आयुर्वेदिक दवाओं की कम्पनी कचनार काश्य बनाती है जो एक प्रकार का सीरप होता है और इसे घेघा रोग के लिए प्रयोग किया जाता है. 
इसके फूल सूखे भी प्रयोग किये जा सकते हैं. यदि फूल न मिलें तो कचनार की छाल का काढ़ा भी पिया जा सकता है. इसके अलावा कचनार शरीर की गांठों और बढ़ी हुई गिल्टियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है. यूट्रस की रसौलियां, पीठ में होने वाला लाइपोमा भी इससे ठीक हो जाता है. 

कचनार बवासीर के लिए उपयोगी है. इसके प्रोयोग से बवासीर ठीक हो जाती है. इसके लिए फूलों और कलियों की सब्ज़ी खाना लाभकारी होता है.
कचनार में कैंसर रोधी गुण हैं. सीज़न में इसके इस्तेमाल से कैंसर होने का खतरा नहीं रहता. इस रोग में इसकी छाल का काढ़ा पीना लाभकारी होता है.
कचनार की पत्तियों का जूस या काढ़ा कांच निकलने के रोग में लाभ करता है. इससे रेक्टम के तंतु मज़बूत हो जाते हैं.
मुंह के छालों के लिए भी कचनार की पत्तियों का काढ़ा अच्छी दवा है. इससे गारगल करने से मुंह के रोगों में लाभ मिलता है दांत और मसूढ़े मज़बूत होते हैं.
अजीब बात है कि कचनार के बीज ज़हरीले होते हैं. कचनार की फलियों और बीजों को नहीं खाना चाहिए,  इनके खाने से गंभीर स्वास्थय समस्या उत्पन्न हो सकती है. 

गुरुवार, 23 अगस्त 2018

कुटकी

कुटकी एक प्रकार की जड़ है जो काले -भूरे रंग की कुछ ऐंठी हुई सी होती है. इसका पौधा पहाड़ो पर उगता है. इसे ऊंचाई और ठंडक दोनो चाहिए होते हैं. इस पौधे के जड़ ही दवा के रूप में प्रयोग की जाती है. इसका स्वाद कडुवा होता है और इसके कड़वे या कटु स्वाद के कारण ही इसका नाम कटुकी या कुटकी पड़ा.

कुटकी बरसों से लिवर के इलाज में प्रयोग की जा रही है. इसे लिवर टॉनिक माना जाता है. ये लिवर के कार्यों को दुरुस्त रखती है. कुटकी का प्रयोग अधिकतर शहद के साथ मिलकर  किया जाता है. शहद केवल इसके स्वाद को ही नहीं बल्कि इसके दुष्प्रभाव को भी काम कर देता है.
पीलिया रोग में कुटकी का एक ग्राम से तीन ग्राम की मात्रा में चूर्ण शहद के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है. ये लिवर के एंजाइम को दुरुस्त रखती है और लिवर सिर्रोसिस में बहुत लाभकारी है.
कुटकी के प्रयोग से आंतों का फंक्शन तेज़ हो जाता है जिससे भूख लगने लगती है और कब्ज़ भी दूर हो जाता है.
पेट और लिवर का फंक्शन ठीक होने से शरीर पर जो प्रभाव पड़ता है उससे रोगों से लड़ने की शक्ति यानि इम्युनिटी बढ़ जाती है और शरीर चुस्त दुरुस्त रहने लगता है.
कुटकी जोड़ो के दर्द में भी लाभकारी है. इसका नियमित प्रयोग शरीर से टॉक्सिन निकाल देता है. यूरिक एसिड की समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके लिए कुटकी को अश्वगंधा के साथ मिलकर प्रयोग किया जाता है.
कुटकी बुखार में भी लाभकारी है. बुखार में इसका पाउडर काली मिर्च के पाउडर और  शहद या शकर के साथ  खाया जाता है.
लेकिन कोई भी दवा जो फायदा करती है कुछ लोगों को नुकसान भी कर सकती है. इसलिए किसी भी जड़ी बूटी और दवा का प्रयोग करने से पहले हकीम या वैद्य की सलाह ज़रूर लेना चाहिए.

बुधवार, 8 अगस्त 2018

नीम

नीम के पेड़ को सभी जानते हैं. ये एक बड़ा वृक्ष है. इसकी पत्तियां, फल और छाल सभी कड़वी होती हैं. मार्च के महीने में नीम में सफ़ेद रंग के छोटे छोटे फूल आते हैं. 

 नीम का पतझड़ होने के बाद जब नई पत्तियां निकलती हैं के साथ ही नीम में फूल भी लगते हैं. फूल गुच्छो में लगते हैं. नीम के फल को निबोरी, निमोली, निमकौली, कहते हैं. ये फल भी कड़वे होते हैं लेकिन पकने के बाद कुछ मीठे हो जाते हैं लेकिन कड़वापन फिर भी बाकी रहता है.
नीम की नयी पत्तियां जिन्हे कोंपल भी कहते हैं मार्च में महीने में इस प्रकार सेवन की जाती हैं कि ढाई पत्तियां नीम की और ढाई काली मिर्च चबा कर सुबह बिना कुछ खाये तीन दिन तक खाई जाती है. इन तीन दिनों में खाने में बेसन की रोटी देशी घी लगाकर खायी जाती है. इसके अलावा सब चीज़ का परहेज़ रहता है. कहते हैं कि ये नुस्खा बेहतरीन ब्लड प्यूरीफायर है और इससे साल भर त्वचा के रोग नहीं होते.
इसी प्रकार ब्लड प्यूरीफिकेशन के लिए नीम की अंतर छाल यानि नीम की ऊपरी छाल को हटाकर नीचे जो गीली छाल निकलती है, का प्रयोग मार्च के महीने से जून के महीने तक किया जाता है. इस अंतर छाल का तीन से चार इंच के टुकड़े को सुबह एक गिलास पानी में भिगो दिया जाता है. शाम को खली पेट चार बजे ये पानी कुछ महीनो पीने से शरीर का सभी टॉक्सिन निकल जाता है और बहुत से रोगो के होने का खतरा टल जाता है.
यदि शरीर से  टॉक्सिन समय समय पर निकलते रहे तो भयंकर बीमारियों के होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. इसकी अंतर-छाल को पानी में भिगोकर पीने से रक्त ही साफ़ नहीं होता होता  त्वचा भी  कांतिमय हो जाती है और चेहरा दमकने लगता है.
नीम का तेल एंटी सेप्टिक है. बाजार में आसानी से मिल जाता है. थोड़ी मात्रा में नीम के बीज से घर पर भी निकला जा सकता है. इसके लिए नीम के बीजों को पीस लिया जाता है और थोड़े पानी में मिलकर आग पर गर्म करते हैं. तेल ऊपर आजाता है जिसे अलग कर लिया जाता है. 
नीम एक बहु-उपयोगी पौधा है. इसे नीम या आधा हकीम कहते हैं.  बरसात के दिनों में निलकने वाले फोड़े और फुंसी में नीम की बाहरी छाल पानी में घिसकर लगाने से लाभ होता है.
नीम के पके फल दिन में तीन से पांच की मात्रा में खाने से त्वचा के बीमारियां नहीं होतीं. इनका  प्रयोग लगातार 3 से 4  सप्ताह करना चाहिए.

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

कुकरमुत्ता

कुकरमुत्ता को टोडस्टूल और  मशरूम कहते हैं. ये एक प्रकार की फफूंद या फंगस है. गीले और नम स्थानों में उगता है. बरसात में कूड़े कचरे के ढेरों और पेड़ो की  छाल पर उगता है. बरसात में ये बहुतायत से पाया जाता है.

 बाजार मेंमशरूम के नाम से मिलता है. इसका सबसे प्रसिद्ध प्रकार बटन मशरूम है जो बहुतायत से सब्ज़ी के रूप में खाया जाता है. सब्ज़ी खाने वाले इसे सब्ज़ी - खोरों का मीट कहते हैं. लेकिन न ये मीट है न सब्ज़ी बल्कि ये एक फफूंद है.
बरसात में लोग जंगलों और खाली पड़े स्थानों पर मशरूम की तलाश में निकल जाते हैं. इसका एक प्रकार खुम्बी  या भुइं -फोड़ भी है. खुम्बी मशरूम की शाखा लम्बी और कैप गोल छोटी सी, घुण्डीदार होती है. ये भी बरसात में सब्ज़ी की दुकानों पर मिल जाती है. ये मशरूम ज़मीन को फोड़ कर उगता है. लोगों में भ्रान्ति है की जब बरसात में बिजली कड़कती है तो ये मशरूम पैदा होता है. लेकिन ये केवल भ्रान्ति ही है. सभी मशरूम बहुत सूक्ष्म बीज या स्पोर से उत्पन्न होते हैं.
मशरूम का सेवन डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभकारी है. मशरूम ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखता है. ये दिल को रोगो के लिए भी लाभकारी है.
शरीर का कांपना, स्नायु तंत्र की कमज़ोरी, धमनियों का मोटा पड़ना, और भूलने के बीमारी में मशरूम का नियमित इस्तेमाल लाभ करता  है.
मशरूम के इस्तेमाल से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ये कैंसर से बचाव करता है.
इसकी बहुत सी वैराइटी खायी जा सकती हैं. जो लोग जंगलों में मशरूम की खोज करते हैं वे कभी कभी जानकारी न होने के कारण  ज़हरीले मशरूम भी ले आते हैं. ऐसे मशरूम को खाकर भयानक बीमारियां हुई हैं और कभी कभी जान भी चली गयी है.
ये भी कहा जाता है की मशरूम देखने में जितना रंगीला, ख़ूबसूरत और चटकीले रंग वाला, चित्तीदार, या बहुत भयानक आकर, प्रकार का होता है उतना ही ज़हरीला होता है. बिना जाने समझे मशरूम का सेवन जानलेवा साबित हो सकता है.
बाजार में मिलने वाले मशरूम भी कभी कभी फ़ूड पॉइज़निंग का कारण बन जाते हैं. कुछ लोगों को मशरूम से एलर्जी होती है. ऐसे लोगों को मशरूम का सेवन उचित नहीं.

सोमवार, 30 जुलाई 2018

मिन्ट

मिन्ट या पोदीना एक सदाबहार जड़ी है जो साल भर रहता है. लेकिन का पौधा मार्च से  महीने से मई और जून तक खूब बढ़ता है. बरसात के पानी से इसकी जड़ें सड़  जाती हैं और जल भराव के कारण पौधे ख़त्म हो जाते हैं. बरसात आने से पहले इसके पौधों को ऐसी जगह पर जहाँ जल भराव न हो शिफ्ट कर देना चाहिए.  यदि इसे बरसात के पानी से बचा लिया जाए तो ये साल भर रह सकता है. जाड़े का सीज़न भी इसके लिए उपयुक्त नहीं है.
मिन्ट का स्वाभाव ठंडा होता है. इसलिए इसकी पत्तियां गर्मी के मौसम में चटनी और भोजन में इस्तेमाल की  जाती हैं. खाने के चीज़ों को सुगंध देने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है. इसका स्वाद कुछ कड़वापन लिए ठंडा ठंडा सा होता है. इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों से लेकर टूथ पेस्ट में, माउथ फ्रेशनर बनाने में, नज़ले ज़ुकाम और  सर दर्द के लिए बाम बनाने में किया जाता है.
मिन्ट की कई वैराइटी हैं. इसकी एक वैराइटी से मेंथा आयल निकला जाता है जो दवाओं में काम आता है.
दवाई के रूप में मिन्ट का प्रयोग हकीम  करते हैं. जवारिश पोदीना प्रसिद्ध यूनानी दवा है जो गैस और पेट के रोगों में इस्तेमाल होती है. इसके अलावा कुर्स पोदीना, अर्क  पोदीना भी यूनानी या देसी दवाऐं हैं.
मिन्ट या पोदीना पेट के अफारे या गैस में बहुत लाभकारी है. सत -पोदीना या पीपरमिंट बाजार में क्रिस्टल फार्म में मिलता है. इसकी  गंध बहुत तेज़ होती है. पेट दर्द और बदहज़मी में इसका प्रयोग  अन्य दवाओं के साथ मिलकर किया जाता है. 


पुदीना मुंह की दुर्गन्ध को दूर करता है. जोड़ों के दर्द और एलर्जी में लाभदायक है. ये कोलेस्ट्रॉल को घटाता है, दिल के फंक्शन को दुरुस्त रखता है.
सूखे पोदीने की पत्तियां उबाल कर उसकी चाय या काढ़ा पीने से वर्षो पुरानी एलेर्जी  ठीक हो जाती है. ये एसिडिटी को घटाता है और है ब्लड प्रेशर में भी लाभकारी दवा है.
कीड़े मकौड़ो के काटने पर मिन्ट की पत्तियों का रस लगाने से लाभ मिलता है.
सत पोदीना, सत अजवायन और कपूर सामान मात्रा में मिलाकर  कुल मात्रा में 10 भाग सफ़ेद वैसलीन  को अच्छी तरह मिलाने से जो क्रीम बनती है वह नज़ले ज़ुकाम और सर दर्द में लगाने से बहुत लाभ करती है. यह वही फार्मूला है जिसे बड़ी बड़ी कम्पनियाँ सर्दी ज़ुकाम की बाम के नाम से बेच रही हैं.

पुदीने की पत्तियां गर्मी के मौसम में सुखाकर रख ली जाती हैं. और जब भी ज़रुरत हो इनका प्रयोग किया जा सकता है. बाजार में भी देसी दवा की दुकानों पर सूखा पुदीना मिल जाता है.
पुदीने को कटिंग से या फिर जड़ वाले पौधों से उगाया जाता है. इसकी बढ़वार तेज़ी से होती है. पुदीने को पानी उपयुक्त मात्रा में चाहिए होता है. इसकी पत्तियां मोटापन लिए होती हैं. पुदीने में फूल नहीं खिलता.
पुदीने की विशेष सुगंध होती है. इसे सुगंध से हे पहचाना जाता है. पुदीने का स्वाभाव ठंडा है. इसको चटनी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. पुदीना एसिडिटी के लिए बहुत लाभकारी है. एसिडिटी के लिए पुदीने की पत्तियां, ताज़ी हों या सूखी, थोड़ी सी शकर के साथ पीसकर पिलाने से एसिडिटी दूर हो जाती है.
पुदीना, कला नमक, मिलाकर खिलने से पेट का अफरा, बदहज़मी, दूर होती है.
सत पुदीना बाजार में पिपरमिंट, के नाम से मिल जाता है. पुदीने के बहुत सी किस्मे हैं. पिपरमिंट एक दूसरी किस्म के पुदीने का एक्सट्रेक्ट है जो बारीक़ कलमों की शक्ल में मिलता है. हवा लगते ही पानी बन जाता है.
अजीब बात ये है की पुदीने का स्वाभाव ठंडा होते हुए भी इसे सर्दी के रोगों जैसे नज़ला ज़ुकाम, में लगाने के लिए, बाम, मरहम, और दर्द निवारक दवाओं में प्रयोग किया जाता है.


शनिवार, 14 जुलाई 2018

कबरा

कबरा या केपर बुश एक कांटेदार बेल की तरह फैलने वाली झाड़ी है. ये ढलवां चट्टानों पर उगता है. इसे कम पानी चाहिए होता है. इसे कांटो की वजह से बागो की हिफाज़त के लिए लगाया जाता है.
ये एक दवाई पौधा है. इसके फूल तीन पंखुड़ी के सफ़ेद खिलते हैं दुसरे दिन यही फूल बैगनी रंग के हो जाते हैं.
ये पौधा लिवर की बड़ी औषधि है. लिवर के तमाम विकारों को दूर करने में सक्षम है. इसे पेट के रोगों में गैस से रहत पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. दवा के रूप में इसके जड़ छाल प्रयोग की जाती है. गुर्दे के रोगों में लाभकारी है. इसके इस्तेमाल से पेशाब अधिक आता है. इस मामले में ये डायूरेटिक का काम करता है.
जलंधर या ड्रॉप्सी के रोग में इसके काढ़े को पीने से लाभ मिलता है.
गठिया के रोगों और जोड़ों की सूजन में भी ये अच्छी औषधि है.
इसकी जड़ की छाल या जड़ का पाउडर 3 से 5 ग्राम तक की मात्रा में दिन में दो से तीन बार लिया जा सकता है. कुछ लोगों में कबरा के इस्तेमाल से पेट दर्द, जी मिचलाना और उलटी की शिकायत हो सकती है. इसका दवाई के रूप में प्रयोग हाकिम या वैध  के बिना नहीं करना चाहिए.   

बुधवार, 20 जून 2018

नागफनी

नागफनी एक कांटेदार पौधा है. ये कैक्टस पौधों  के परिवार से सम्बन्ध रखता है. खली पड़े स्थानों और बंजर और सूखी जगहों पर पाया जाता है. इसे बाग - बगीचों के बाढ़ के तौर पर भी लगाया जाता है.
इसके तने पर जो पत्तियों के आकर का दिखाई देता है गुच्छो में कांटे होते हैं. कुछ कांटे बड़े बड़े और कुछ कांटे बहुत बारीक़ होते हैं जो शरीर में चुभ कर घाव पैदा कर देते हैं. अकाल के ज़माने में जब खाने को कुछ नहीं रहता था लोग इसके फलों को खाकर पेट भरते थे.

 नागफनी स्वभाव से गर्म और खुश्क है. शरीर की चोट और सूजन में इसके पत्तों को कांटे दूर करके, बीच में से फाड़ कर उसमे हल्दी का पाउडर छिड़क कर और थोड़े सरसों के तेल के साथ गर्म करके बांधने से न सिर्फ गुम  चोट का दर्द ठीक  हो जाता है बल्कि अर्थराइटिस के कारण आयी जोड़ो की सूजन और दर्द में भी आराम मिलता है.
इसके फल पक कर गहरे बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इनका मज़ा मीठा हो जाता है. इन फलों का रस शकर के साथ पकाकर, सीरप की तरह इस्तेमाल करने से पुरानी  खांसी और अस्थमा के रोग में लाभ मिलता है.
कुछ लोगों को नागफ़नी के पौधे के अंशों को अंदरूनी इस्तेमाल से जी मिचलाना, उलटी होना और अन्य प्रकार  के साइड इफेक्ट हो सकते हैं. इसलिए इसका अंदरूनी इस्तेमाल किसी काबिल हकीम या वैध की देख रेख और सलाह से  ही करना चाहिए.

रविवार, 17 जून 2018

बंदा

बांदा या बंदा एक पैरासाइट हर्ब है. ये आम, बबूल, बरगद, आदि के वृक्षों पर पाया जाता है. ये जिस पेड़ पर होता है उसे के गुण इसमें आ जाते हैं.

आम तौर से बंदा को हड्डी टूटने और हड्डी की चोट में प्रयोग करते हैं. इसकी पत्तियों को पीसकर तेल में पकाकर चोट के स्थान पर लगाने से और हड्डी को सहारा देकर ठीक प्रकार से बांध देने से हड्डी जल्दी जुड़ जाती है.
हड्डी की चोट में और हड्डियों को ताकत देने के लिए बाँदा को पीस कर इसका पाउडर एक से तीन ग्राम की मात्रा में दिन में एक से दो बार दूध के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है. इसका अंदरूनी प्रयोग कभी कभी ज़हरीले प्रभाव भी उत्पन्न करता है. इसलिए इसका प्रयोग काबिल हकीम या वैध की निगरानी में ही करना चाहिए.
बांदा में खून  को बंद करने का गुण है. ये मासिक धर्म के अत्यधिक रक्त प्रवाह को नियमित करता है.
बांदा डायूरेटिक है इसका प्रयोग गुर्दे की पथरी को तोड़कर निकल देता है. 

ख़रबूज़ा

ख़रबूज़ा एक मौसमी फल है. अप्रैल और मई में ख़रबूज़े की फसल होती है. इसे पालेज या फालेज़ की फसल भी कहते हैं. ख़रबूज़े की कई वैराइटी हैं. उत्तर प्रदेश में लखनऊ और फर्रुखाबाद की ख़रबूज़े मशहूर हैं. ख़रबूज़े की विशेष सुगंध होती है.
ये एक सस्ता फल और गरीबों के लिए पेट भरने का साधन था. लेकिन मार्केटिंग के इस दौर में ख़रबूज़े भी महंगे हो गए है इसलिए अब ये पेट भरने का साधन नहीं रह गया है.

ख़रबूज़ा पेशाब लाता है ये डायूरेटिक है. यही इसकी अजीब बात और बहुत बड़ा गुण है. नवाबी के ज़माने में फर्रुखाबाद में हकीम मसीहउल्ला खान बड़े मार्के का इलाज किया करते थे. वह गरीबों का इलाज मुफ्त करते लेकिन अमीरों से एडवांस पैसे लिया करते थे. एक दिन फर्रुखाबाद के सेठ का पेशाब बंद हो गया. बहुत इलाज किया लेकिन लाभ नहीं मिला. शाम तक सेठ जी की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. मुनीम जी को हकीम मसीहउल्ला खान का ध्यान आया की उन्हें दिखाया जाए. मुनीम जी घोडा गाड़ी लेकर हकीम जी के घर पहुंचे और सेठ  जी की बीमारी के बारे में बताया. हकीम जी ने कहा की चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन मुआवज़ा क्या दिया जाएगा. मुनीम जी बोले जो आप कहें. हकीम जी ने एक हज़ार रुपये तय किये और मुनीम जी के साथ चल दिए. घर जाकर सेठ जी की नब्ज़ देखी  और कहा ख़रबूज़े के छिलके मंगवाओ.
गर्मी का मौसम था. ख़रबूज़े की बहुतायत थी. ख़रबूज़े के छिलके पीसे गये और पानी में मिलकर सेठ जी को पिला  दिए गए. थोड़ी देर बाद सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ.
हकीम जी को पांच सौ रूपये दिए गये और पांच सौ रूपये बाद में देने का वादा करके हकीम जी को घर भेज दिया गया. हकीम जी ने कई बार रुपयों का तकादा किया लेकिन सेठ जी ने टाल मटोल की और रूपये नहीं दिये हकीम जी भी शांत बैठ गए.
सेठ जी ख़रबूज़े के छिलकों से इलाज देख चुके थे. इसलिए सीज़न में ख़रबूज़े के बहुत से छिलके सुखाकर रख लिए की दुःख दर्द में काम आएंगे.
जाड़ों का का मौसम आया. सेठ जी का पेशाब फिर बंद हो गया. ख़रबूज़े के छिलके पीसकर पिलाये गये लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बार बार पिलाने से सेठ जी का पेट फूल गया और तकलीफ बढ़ गयी.
फिर मुनीम जी रूपये लेकर हकीम जी के पास गए और उन्हें सेठ जी की बीमारी बतायी हकीम जी ने कहा चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन पैसे सब एडवांस लूँगा. क्योंकि तुम पहले वादा खिलाफी कर चुके हो इसलिए 500 पिछले और 1000 रूपये अभी के यानि 1500 रूपये हवाले करो तो मैं चलूँ.
मुनीम जी ने फ़ौरन 1500 रूपये निकल कर दिये हकीम जी ने सेठ जी को जाकर देखा. कहने लगे ख़रबूज़े का मौसम तो है नहीं. कहीं छिलके मिलें तो मंगवाओ.
घर वालों ने कहा वही छिलके तो हम कई बार पीसकर पीला चुके  हैं  उससे तो और तकलीफ बढ़ गयी है.
हकीम जी बोले इसका इलाज तो वही है.
फिर छिलके पीसे गए और पानी में घोले गए. हकीम जी ने कहा अब इस घोल को गर्म करलो और सेठ जी को गर्म गर्म पिला दो.
गर्म घोल पिलाने से सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ और सभी घर वाले खुश हो गए.
हकीम जी ने तीन खुराकें किसी माजून की दीं और कहा अब ये तकलीफ दोबारा  नहीं होगी.
मुनीम जी बोले अगर इतनी सी बात पता चल जाती कि  गर्मियों में ठंडा और जाड़ों में गर्म ख़रबूज़े के छिलकों का घोल पेशाब की रुकावट में दिया जाता है तो डेढ़ हज़ार रूपये का नुकसान नहीं होता.
सेठ जी ने कहा जिसका काम उसी को साझे.
ख़रबूज़ा कब्ज़ के लिए घरेलु दवा है. एक मरीज़ कब्ज़ से बहुत परेशान था. हकीम जी को दिखाया, हकीम जी ने कहा - खाने के साथ ख़रबूज़ा खाया करो. एक कौर खाने का और एक कौर ख़रबूज़े का, कब्ज़ ऐसे भागेगा  जैसे कभी था ही नहीं.
ख़रबूज़े के बीज चहार मगज़ या चार बीज में से एक इंग्रेडिएंट हैं. ये बीज दिमाग को ताकत देते हैं और नींद लेन में सहायक होते हैं. जड़ों में चहार मगज़ के रूप में इस्तेमाल करने से शरीर को गर्म रखते और पुष्ट बनाते हैं. गर्मी में इन्हें घोटकर ठंडाई के रूप में प्रयोग किया जाता हैं.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

आम

आम एक बहुत आम पौधा है इसीलिए इसे आम कहते हैं. उत्तर भारत का ये एक मशहूर फल है. यूपी में मलिहाबाद इसकी तरह तरह की वैराइटी के लिए प्रसिद्ध है. बिहार और बंगाल के आम भी प्रसिद्ध हैं.
जनवरी आखिर से फरवरी के महीने में इसका पौधा बौर से भर जाता है. आम के फूल को बौर या मौर कहते हैं. ये भीनी भीने आम की खुशबु लिए होता है. कच्चे बौर को हाथों में मलने से हाथों में ऐसी तासीर आ जाती है जो बर्र या बिच्छू काटने पर बहुत काम करती है. हाथों को काटी हुई जगह पर रख देने से ठंडक पद जाती है और बिच्छू या बर्र का ज़हर नहीं चढ़ता. आम के बौर की ये अजीब बात एक जादू की तरह काम करती है. पुराने समय में जो लोग आम के बौर की इस तासीर से वाकिफ थे वह ऐसा जादुई हाथ बनाकर लोगों में प्रसिद्ध हो जाते थे. ऐसे लोगों को लोग संत और महात्मा कहा करते थे.
आम एक ऐसा पौधा है जो ज़िन्दगी की ज़रूरतों से जुड़ा है. आम को सुखाकर खटाई के रूप में मसाले की तरह साल भर प्रयोग किया जाता है. इसका अचार और मुरब्बा भी बनाया जाता है जो साल भर प्रयोग किया जाता है. कच्चा आम भूनकर उसका रास निकल कर शरबत बनाकर पिलाने से लू या सं स्ट्रोक में फायदा होता है. जिन दिनों में लू लगती है उन्हीं दिनों में कच्चा आम होता है. ये एक कुदरती दवा है. आम की गुठली की अंदर की गिरी जिसे बिजली और आम का बीज भी कहते हैं दांतों से खून आने और मसूढ़ों की सूजन में लाभ करती है. इसे कच्चा ही मुंह में डालकर चबाने से लाभ मिलता है. पक्के आम की गुठली को उबाल कर कुछ दिन बरसात में खुले में पड़ा रहने देते हैं. फिर इसको तोड़कर इसका बीज निकल कर खाने से पेट के रोग दूर होते हैं आँतों के घावों और दस्त के कारण जिन मरीज़ों के सेहत नहीं बनती उन्हें फ़ायदा करती है.

पक्के आम में शुगर की मात्रा बहुत होती  है. ये एक पौष्टिक फल है. जिनका वज़न काम हो आम के नियमित प्रयोग से उनका वज़न बढ़ जाता है. लेकिन डायबिटीज के मरीज़ों के लिए आम का प्रयोग घातक हो सकता है. उन्हें बहुत ही सावधानी से थोड़ा सा आम डाक्टर की सलाह के अनुसार खाना चाहिए.

आम की छाल को सुखाकर और उसक पाउडर बनाकर उसमें जामुन की छाल का पाउडर मिलकर दिन में दो से तीन  बार  पानी के साथ खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है. ये एक गुणकारी दवा है.




रविवार, 25 मार्च 2018

छोटा चांद

छोटा चांद एक ऐसी जड़ी बूटी है जो कई नामों से जानी जाती है. इसे चन्दभागा, छोटी चन्दन, असरौल, और सर्पगंधा कहते हैं. इसकी कच्ची जड़ों में सांप जैसी  गंध होती है. कुछ लोग ये भी मानते हैं की इसके पौधे के पास सांप नहीं आता. कुछ भी हो ये एक कमल की दवा है और पागलों के इलाज के लिए दुनिया भर में जानी जाती है.

जून के दिन थे. एक परिवार की बहु पागलों जैसे हरकतें करने लगी थी. उस का बहुत दवा इलाज किया गया. आखिर में डाक्टरों ने बिजली के झटके से इलाज की बात कही. परिवार वाले इसके लिए तैयार नहीं थे.
एक दोपहर उनके दरवाज़े के बेल बज उठी. देखा तो एक बहुत मशहूर हाकिम जी खड़े थे. हकीमजी के इस परिवार से पुराने संबंध थे. उन्हें अंदर बुलाया और पूछा हकीमजी इस वक्त कैसे. हकीमजी ने कहा मुझे लखनऊ जाना था इधर से गुज़र रहा था. आपका ध्यान आया तो मैं कुछ देर रुकने के लिए चला आया.
परिवार वालो ने सोचा ऐसे में हकीमजी का आना ईश्वर की इच्छा  है. परिवार वालो ने ने हकीमजी से कहा हम लोग आजकल  बहुत परेशान  हैं. हमारी बहु जिसकी शादी हुए अभी कुछ महीने ही बीते हैं पागलों जैसे हरकते करने लगी है. हकीमजी ने मरीज़ की नब्ज़ देखी और उसके हालत मालूम किये. फिर कलम निकाला और एक पर्चे पर असरौल का नाम लिख दिया. कहा. ये एक जड़ी बूटी है. जड़ी बूटियां बेचने वाले पंसारी या अत्तार की दुकान पर मिल जायेगी. इसे लाकर हावनदस्ते/इमामदस्ते  में खूब कूटकर पाउडर बना लेना. इस दवा का एक चुटकी पाउडर सेब के मुरब्बे पर छिड़ककर मरीज़ को सुबह शाम खिला देना. अगर मरीज़ खाने से  इनकार करे तो इस दवा को उसके होंठो पर लगा देना
सर्पगंधा के इस प्रयोग से वह मरीज़ ठीक हो गया.
ये जड़ी बूटी पागलो की दवा होने के अलावा ब्लड प्रेशर घटाती है और उसे कंट्रोल में रखती है. इसके अलावा नींद न आने के बीमारी में भी कारगर है. इसका अन्य दवाओं के साथ उचित प्रयोग नींद लाने  में सहायता करता है.


गुरुवार, 8 मार्च 2018

गुलखैरा

तुख्मे-खत्मी एक मौसमी पौधे के बीज हैं जो हकीमी दवाओं में इस्तेमाल किये जाते हैं.  इस पौधे को बगीचों में सुंदरता के लिए लगाया जाता है. इसे हॉलीहॉक के नाम से आम तौर से लोग जानते हैं. गुलखैरा के नाम से भी प्रसिद्ध है. यह मैलो परिवार का पौधा है. हकीम इसकी एक वैराइटी को खत्मी कहते हैं और इसके बीज तुख्मे-खत्मी और जड़ को रेशा-ए -खत्मी के नाम से इस्तेमाल करते हैं.

इसके फूल कई रंग के होते हैं. अजीब बात ये है कि इस पौधे में आम तौर से कोई शाखा नहीं निकलती और सारे फूल इसके तने में लगते हैं. कुछ पौधों में शाखाएं भी निकलती हैं लेकिन ऐसा कम होता है.  पौधा सीधा बढ़ता जाता है और तने में कलियां आती रहती हैं जो बारी  बारी खिलती रहती हैं.
तुख्मे-खत्मी नज़ला, ज़ुकाम और खांसी में कारगर है. बरसों से हकीम इसके बीजों को अन्य दवाओं के साथ जोशांदे में इस्तेमाल कर रहे हैं. तुख्मे-खत्मी नज़ला और खांसी में आराम देता हैं. इसका जोशांदा जिसे तुख्मे-खत्मी की चाय या काढ़ा भी कहते हैं खांसी से राहत दिलाता है.

ये गले की खराश में भी फायदा करता है. इसके बीजों और जड़ में म्यूसिलेज या चिपचिपा पदार्थ होता है. ये म्यूसिलेज आंतों में फिसलन पैदा करता है जिससे डिसेन्ट्री के जर्म्स उसमें लिपट कर निकल जाते हैं. इसकी जड़ को पेचिश के इलाज में प्रयोग किया जाता है.
हॉलीहॉक एक सजावटी पौधा ही नहीं एक बड़ी और कारगर दवा है.
कहा जाता है की मेडिकल आइकन के तौर पर जिस निशान का प्रयोग किया जाता है जिसमें एक छड़ी पर एक सांप लिपटा होता है वह गुलखैरे की लकड़ी है.
दवाई गुण के कारण ही गुलखैरे को इतनी अहमियत दी गई है. 

शनिवार, 3 मार्च 2018

गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल

गुले-लाला को गार्डन पॉपी कहते हैं. इस पौधे की पत्तियां पॉपी या अफीम के पौधे से मिलती जुलती होती हैं. इसमें पॉपी की तरह ही फूल खिलता है. गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल का रंग आम तौर से लाल रंग का होता है. लेकिन लाल रंग के अलावा इसके अन्य रंगों  जैसे पीले और सफ़ेद रंग  के  फूल भी पाये जाते हैं. दवाओं और जड़ी बूटी के रूप में पुराने समय से लाल रंग के गुले लाला का प्रयोग ही किया जाता है.

गार्डन पॉपी एक सीज़नल हर्ब है. इसके पौधे सर्दियों में लगाए जाते हैं. इसके फूल आखिर  जनवरी से मार्च महीने तक खिलते हैं. अजीब बात है की इसकी कलियां  नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं और फूल खिलने पर फूल ऊपर की तरफ मुंह कर लेता हैं. 
गार्डन पॉपी के फूल के बीच में गहरे रंग का स्पॉट होता है. शायरों ने गुले  लाला को बहार के मौसम का पौधा माना है. इसके फूल बहार आने का संकेत देते हैं. 
गार्डन पॉपी के लाल रंग के फूलों की पंखुड़ियों को सुखाकर बहुत पुराने समय से दवाओं को रंग देने के लिए, कफ सीरप और वाइन को लाल रंग का बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. इस पौधे में दर्द और सूजन को दूर करने की शक्ति है. इसमें पॉपी या अफीम के पौधे की तरह तेज़ नशे वाले अल्कलॉइड नहीं हैं. इसका प्रयोग बच्चों के लिए भी सुरक्षित है. गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूलों का काढ़ा इस्तेमाल करने से नींद न आने की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है. 
इसके फूलों का काढ़ा गले की सूजन में राहत  देता है. नज़ला, ज़ुकाम, टांसिल, गले की सूजन, खांसी में इसके सूखे फूलो की पत्तियों को तुख्मे खतमी और गुल बनफ्शा के साथ काढ़ा बनाकर इस्तेमाल किया जाता है.
गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल ही दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं. अजीब बात है की इस पौधे के  फूल और बीज ही दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं. इसके अलावा  पौधे के अन्य अंगों में ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो नुकसान करते हैं.   

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

बथुआ कमाल का पौधा है

बथुआ रबी की फसल का पौधा है. अक्सर ये गेहूं और आलू की फसल के साथ खर-पतवार के रूप में उगता है. इसे गरीबो का साग भी कहा जाता है. बहुत पुराने समय से इसे सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इसकी पत्तियों को दाल के साथ, या अकेला ही, या फिर आलू के साथ मिलाकर सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है.
बथुआ का स्वाभाव गर्म है. ये सर्दियों में शरीर को गर्म रखता है. नज़ला ज़ुकाम और खांसी से बचता है. दाल के साथ सब्ज़ी बनाने पर ये दालों की खुश्की काम कर देता है. इससे दाल ज़्यादा पाचक  बन जाती है और नुकसान नहीं करती.
मार्केटिंग के इस युग में बथुए को बहुत अहमियत दी जा रही है. सोशल फंक्शन और रेस्तरां में इसके पूड़ी पराठे भी परोसे जाते हैं. अब इसे भोज्य पदार्थ के रूप में कई तरह से प्रयोग किया जा रहा है. बथुआ के फायदे देखते हुए अब बाजार में ये ऊंचे दामों बेचा जा रहा है और इसकी खेती भी की जाने लगी है.
इसमें रेचक गुण है, ये पेट को ढीला करता  है.  बथुए में पाए जाने वाले आवशय मिनरल विशेषकर लोहा नया खून बनाने में मदद करता है. बथुए की सब्ज़ी एक सम्पूर्ण भोजन है. इसके रेशे आंतो की सफाई कर देते हैं. जिन लोगों को पुराने कब्ज़ की समस्या है वह अगर बथुए का नियमित इस्तेमाल करें तो कब्ज़ की समस्या से छुटकारा मिल सकता है.
बथुआ ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है. जिनका ब्लड प्रेशर काम रहता है उनके लिए अच्छी दवा है. सर्दियों में इसका नियमित इस्तेमाल हार्ट-अटैक  के खतरे से बचाता  है.
जो लोग ल्यूकोडर्मा या सफ़ेद दाग की समस्या से परेशान  हैं उनके लिए बथुआ एक अजीब हर्ब है. बताए गए तरीके से इसका नियमित इस्तेमाल सफ़ेद दाग से जड़ से छुटकारा दिला देता है. ऐसे मरीज़ नियमित 3 से 6 माह तक केवल बथुए की सब्ज़ी हल्का सा नमक और काली मिर्च  डालकर बेसन की रोटी के साथ इस्तेमाल करें. और सफ़ेद दागों पर दिन में तीन बार बथुए के पत्तों को पीसकर उनका लेप लगाएं तो सफ़ेद दागों से छुटकारा मिल जाता है.


रविवार, 18 फ़रवरी 2018

रीठा एक नेचुरल साबुन है

रीठा एक पौधे का गोल फल है. इसे अंग्रेजी में सोपनट कहते हैं.  इसकी ऊपरी सतह सुकड़ी हुई होती है. इसका रंग कला, भूरा और कुछ पीलापन लिए होता है. बाजार में इसका सूखा फल मिलता है और यही प्रयोग किया जाता है.
रीठा एक नेचुरल साबुन है. इसमें बहुत झाग होता है. पानी के साथ मिलकर इसका ऊपरी छिलका झाग बनता है. इसे बहुतायत से बालों को धोने यानि हेयर वाश और शैम्पू की तरह इस्तेमाल किया जाता है. रीठा अकेला या फिर शीकाकाई के साथ मिलकर शैम्पू की तरह इस्तेमाल होता है.
रीठा बालों के रंग को हल्का कर देता है. रीठे से बाल धोने से कुछ दिनों के बाद बाल काले से भूरे पड़ जाते हैं. आजकल भूरे और सुनहरे बालों का चलन है इसके लिए किसी भी अन्य प्रोडक्ट से बालों को सुनहरा और भूरा करने के लिए रीठा सबसे बेहतर दवा है. रीठा उन लोगों के लिए अच्छा है जिनके बालों में चिपचिपापन रहता हो या जिनके सर की त्वचा तैलीय हो. रीठा इस्तेमाल करने से बाल रूखे हो जाते हैं.
फलों और सब्ज़ियों से पेस्टीसाइड का प्रभाव हटाने के लिए भी इन्हे रीठे के पानी से धोया जाता है. रीठा नेचुरल तरीके से पॉइज़न और टॉक्सिन हटाने का काम करता है. इसलिए सभी फलों और सब्ज़ियों को प्रयोग से पहले रीठे के घोल से धो लेना चाहिए.
सोने - चांदी  के आभूषण साफ़ करने के लिए भी रीठे के घोल का प्रयोग किया जाता है. रीठे का ऊपरी छिलका उतारकर उसे मोटा मोटा कूट लें. फिर उसे पानी मिलकर भिगो दें. छिलका पानी में गल  जाए तो उसके घोल को छान कर उसमे आभूषण डालकर मुलायम ब्रश से साफ़ कर लें.
कम मात्रा में रीठा दवा के रूप में खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. ये शरीर से टॉक्सिन निकाल देता है. इसके प्रभाव से रक्त पतला हो जाता है. रीठा हैमराईड को जड़ से ख़त्म कर देता है.
लेकिन रीठे के अंदरूनी इस्तेमाल से उल्टियां भी आ सकती हैं. इसका अधिक मात्रा में प्रयोग हानिकारक हो सकता है. इसलिए हमेशा ये ज़रूरी है की देसी जड़ी बूटियों और पेड़ पौधों के अंगों का प्रयोग काबिल और समझदार हाकिम या वैद्य के सलाह और देख रेख में ही होना चाहिए. ये लेख केवल आम जानकारी बढ़ने के लिए हैं.
अजीब बात है की यदि किसी को सांप ने काटा हो उसे रीठे का पाउडर 5 - 10 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ पिलाने से उल्टियां आती है और डायरिया हो जाता है. समय समय पर रीठे का इस प्रकार 3  - 4 बार का इस्तेमाल सारे ज़हर को उलटी और दस्त के रस्ते निकल बाहर करता है. लेकिन इसका प्रयोग काबिल हाकिम या वैद्य के देखरेख में होना चाहिए.

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

शीकाकाई - एक नेचुरल माउथ वाश

शीकाकाई एक कांटेदार पौधा है. इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती  हैं. इसकी फलियां बीज के स्थान पर फूली हुई होती हैं. शीकाकाई की फलियां प्राकृतिक साबुन और बालों को धोने के लिए शैम्पू की तरह प्रयोग की जाती हैं. इसकी पत्तियां स्वाद में इमली की पत्तियों की तरह खट्टी होती हैं.
शीकाकाई की फलियों से बीज निकाल कर उनका पाउडर बना लिया जाता है. इस पाउडर को पानी में भिगोकर इसे हिलाकर झाग पैदा करके बालों में शैम्पू की तरह लगाया जाता है. शीकाकाई के साथ सामान मात्रा में रीठा या सोपनट का पाउडर, और आमला का पाउडर मिलकर पानी में पेस्ट बनाकर बालों में लगाने से न केवल अच्छे शैम्पू का काम करता है बल्कि बालों को कला और चमकदार भी बनाता है.
शीकाकाई पानी में भिगोने से हल्का झाग देती है. सोपनट या रीठा में ज़्यादा झाग होता है. इन दोनों को मिलकर या अकेला गर्म कपडे धोने के काम में लाया जाता है. शीकाकाई और रीठा दोनों ऊनी और रेशमी कपड़ो को धोने  के लिए बेहतरीन हलके प्राकृतिक  डिटर्जेंट हैं. ये कपडे के रेशे ख़राब नहीं करते.
देसी दवाओं में शीकाकाई का प्रयोग अंदरूनी तौर पर 2 - 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में तीन बार इस्तेमाल करने से पीलिया रोग में लाभ करती हैं.  ये ब्लड में से टॉक्सिन निकाल देती है.
शीकाकाई की पत्तियां खट्टी होती हैं. इनकी चटनी बनाकर प्रयोग की जाती है. इसकी चटनी को भी लिवर के रोगों में लाभकारी माना  जाता है.
शीकाकाई स्किन के घाव को भर देती है. दाग धब्बे दूर करती है. शीकाकाई को हल्के गर्म  पानी में भिगोकर छान कर इस पानी से गारगल करने से दांतो और मसूढ़ों की बीमारियों में लाभ होता है. ये एक प्राकृतिक  माउथ वाश है.
इस पौधे के फूल और पत्तियां सब्ज़ी के रूप में भी प्रयोग की जाती हैं. भोजन को खट्टापन देने के लिए भी इसकी पत्तियों का प्रयोग होता है.
इस हर्ब की अजीब बात ये है कि  इसे तालाबों में मछली पकड़ने के लिए डाला जाता है और तब ये जड़ी बूटी विष का कार्य करती है.



गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

जटामांसी

जटामांसी को बालछड़  भी कहते हैं. इस जड़ी बूटी का प्रयोग पुराने ज़माने से आयुर्वेद  और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है. इसका पौधा हिमालय के पहाड़ों में पैदा होता है. इसकी जड़ को दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. इसकी जड़ के बारीक रेशे बालों के समान होते हैं. इसीलिए इसे बाल - छड़ या बालों की छड़ी और जटामांसी यानि मनुष्य के बाल कहते हैं.

ये अपनी आकृति के अनुरूप बालों को बढ़ाने   वाली, उन्हें कला, घना और मुलायम रखने वाली जड़ी बूटी है. इसकी जड़ का प्रयोग पाउडर के रूप में बालों को धोने, और शैम्पू के अव्यव के रूप में होता हैं. इसका तेल बालों को घना बनाता  है.
ये दिमाग को शक्ति देती है. उलझन, घबराहट, उदासी दूर करती है. इसका इस्तेमाल एपिलेप्सी या मिर्गी के रोग में किया जाता है.
बालछड़ को यूनानी हकीम पेशाबआवर यानि डाययुरेटिक और दर्द निवारक दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. हकीमों के अनुसार ये जिगर यानि लिवर को ताकत देती है. पेट की बीमारीयों में लाभकारी है. यूनानी दवाओं में बालछड़ पेट की बीमारियों की दवाओं का एक आवशयक अव्यव है.
बालछड़ लिवर को शक्ति देता है. ये पीलिया रोग और लिवर के बढ़ जाने में इस्तेमाल किया जाता है.
बालछड़ चेहरे के दाग धब्बे मिटाता है. इसके लिए बालछड़ को बारीक पीसकर उसका पाउडर और सफ़ेद चन्दन का बुरादा समान मात्रा में  दूध में मिलाकर, पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाया जाता है और जब ये लेप सूखा जाए तो पानी से धोकर साफ कर दिया जाता है. कुछ दिन में चेहरे के दाग धब्बे मिट जाते हैं.


  

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

हल्दी

हल्दी या टर्मरिक एक साल भर में पैदा होने वाली फसल है. इसका प्रयोग बहुतायत से मसालों में किया जाता है. इसका रंग खिलता हुआ पीला होता है. हल्दी को राइज़ोम से उगाया जाता है. यह राइज़ोम मार्च के महीने से मई तक लगा दिए जाते हैं. बारिश के पानी से इनसे हल्दी के पौधे निकलते हैं. ये बारिश में बढ़ने वाली फसल है. बरसात में यह खूब बढ़ती है. इसकी जड़ों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है. उसमें ही हल्दी के ट्यूबर  या राइज़ोम पैदा होते हैं.

हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली  जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद  इस मिश्रण को  फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी  हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया  और मिर्च  मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.  
 

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