रविवार, 17 जून 2018

ख़रबूज़ा

ख़रबूज़ा एक मौसमी फल है. अप्रैल और मई में ख़रबूज़े की फसल होती है. इसे पालेज या फालेज़ की फसल भी कहते हैं. ख़रबूज़े की कई वैराइटी हैं. उत्तर प्रदेश में लखनऊ और फर्रुखाबाद की ख़रबूज़े मशहूर हैं. ख़रबूज़े की विशेष सुगंध होती है.
ये एक सस्ता फल और गरीबों के लिए पेट भरने का साधन था. लेकिन मार्केटिंग के इस दौर में ख़रबूज़े भी महंगे हो गए है इसलिए अब ये पेट भरने का साधन नहीं रह गया है.

ख़रबूज़ा पेशाब लाता है ये डायूरेटिक है. यही इसकी अजीब बात और बहुत बड़ा गुण है. नवाबी के ज़माने में फर्रुखाबाद में हकीम मसीहउल्ला खान बड़े मार्के का इलाज किया करते थे. वह गरीबों का इलाज मुफ्त करते लेकिन अमीरों से एडवांस पैसे लिया करते थे. एक दिन फर्रुखाबाद के सेठ का पेशाब बंद हो गया. बहुत इलाज किया लेकिन लाभ नहीं मिला. शाम तक सेठ जी की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. मुनीम जी को हकीम मसीहउल्ला खान का ध्यान आया की उन्हें दिखाया जाए. मुनीम जी घोडा गाड़ी लेकर हकीम जी के घर पहुंचे और सेठ  जी की बीमारी के बारे में बताया. हकीम जी ने कहा की चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन मुआवज़ा क्या दिया जाएगा. मुनीम जी बोले जो आप कहें. हकीम जी ने एक हज़ार रुपये तय किये और मुनीम जी के साथ चल दिए. घर जाकर सेठ जी की नब्ज़ देखी  और कहा ख़रबूज़े के छिलके मंगवाओ.
गर्मी का मौसम था. ख़रबूज़े की बहुतायत थी. ख़रबूज़े के छिलके पीसे गये और पानी में मिलकर सेठ जी को पिला  दिए गए. थोड़ी देर बाद सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ.
हकीम जी को पांच सौ रूपये दिए गये और पांच सौ रूपये बाद में देने का वादा करके हकीम जी को घर भेज दिया गया. हकीम जी ने कई बार रुपयों का तकादा किया लेकिन सेठ जी ने टाल मटोल की और रूपये नहीं दिये हकीम जी भी शांत बैठ गए.
सेठ जी ख़रबूज़े के छिलकों से इलाज देख चुके थे. इसलिए सीज़न में ख़रबूज़े के बहुत से छिलके सुखाकर रख लिए की दुःख दर्द में काम आएंगे.
जाड़ों का का मौसम आया. सेठ जी का पेशाब फिर बंद हो गया. ख़रबूज़े के छिलके पीसकर पिलाये गये लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बार बार पिलाने से सेठ जी का पेट फूल गया और तकलीफ बढ़ गयी.
फिर मुनीम जी रूपये लेकर हकीम जी के पास गए और उन्हें सेठ जी की बीमारी बतायी हकीम जी ने कहा चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन पैसे सब एडवांस लूँगा. क्योंकि तुम पहले वादा खिलाफी कर चुके हो इसलिए 500 पिछले और 1000 रूपये अभी के यानि 1500 रूपये हवाले करो तो मैं चलूँ.
मुनीम जी ने फ़ौरन 1500 रूपये निकल कर दिये हकीम जी ने सेठ जी को जाकर देखा. कहने लगे ख़रबूज़े का मौसम तो है नहीं. कहीं छिलके मिलें तो मंगवाओ.
घर वालों ने कहा वही छिलके तो हम कई बार पीसकर पीला चुके  हैं  उससे तो और तकलीफ बढ़ गयी है.
हकीम जी बोले इसका इलाज तो वही है.
फिर छिलके पीसे गए और पानी में घोले गए. हकीम जी ने कहा अब इस घोल को गर्म करलो और सेठ जी को गर्म गर्म पिला दो.
गर्म घोल पिलाने से सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ और सभी घर वाले खुश हो गए.
हकीम जी ने तीन खुराकें किसी माजून की दीं और कहा अब ये तकलीफ दोबारा  नहीं होगी.
मुनीम जी बोले अगर इतनी सी बात पता चल जाती कि  गर्मियों में ठंडा और जाड़ों में गर्म ख़रबूज़े के छिलकों का घोल पेशाब की रुकावट में दिया जाता है तो डेढ़ हज़ार रूपये का नुकसान नहीं होता.
सेठ जी ने कहा जिसका काम उसी को साझे.
ख़रबूज़ा कब्ज़ के लिए घरेलु दवा है. एक मरीज़ कब्ज़ से बहुत परेशान था. हकीम जी को दिखाया, हकीम जी ने कहा - खाने के साथ ख़रबूज़ा खाया करो. एक कौर खाने का और एक कौर ख़रबूज़े का, कब्ज़ ऐसे भागेगा  जैसे कभी था ही नहीं.
ख़रबूज़े के बीज चहार मगज़ या चार बीज में से एक इंग्रेडिएंट हैं. ये बीज दिमाग को ताकत देते हैं और नींद लेन में सहायक होते हैं. जड़ों में चहार मगज़ के रूप में इस्तेमाल करने से शरीर को गर्म रखते और पुष्ट बनाते हैं. गर्मी में इन्हें घोटकर ठंडाई के रूप में प्रयोग किया जाता हैं.

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