गुरुवार, 23 जून 2016

बकायन

बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. फरवरी मार्च में  बकायन मे गुच्छेदार फूल आते हैं. ये फूल सफ़ेद रंग को होते हैं और इनकी पंखुड़ियां बैंगनी रंग की धारीदार होती हैं. फूल देखने में दो रंग का लगता है. 

बकायन एक बहुत जल्दी बढ़ने वाला पौधा है. ये आम तौर से सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसकी बढ़वार तेज़ी से होती है. जाड़े में इसके पत्ते जल्दी गिर जाते हैं. गर्मी में ये छायादार होता है. ये देखने में नीम की तरह लगता है. इसके पत्ते भी नीम के तरह होते है. लेकिन नीम के पत्तों से बड़े. इसकी छाल साफ़ सुथरी होती है. पेड़ देखने में सुन्दर लगता है. कुछ लोग इसे बड़ा नीम या भाषा को बिगाड़ कर बडनीमा भी  कहते हैं. 


बकायन  में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. 

नीम के फलो को निमोली या निम्बोली या निमकोली कहते हैं. नीम के फल पककर टपक जाते हैं. जून जुलाई तक नीम में एक भी फल नहीं रहता. 

लेकिन बकायन का मामला इससे उलट है. इसके फल पककर गिरते नहीं हैं. ये गुच्छों में लगे लगे सूख जाते हैं. नवम्बर और दिसंबर के दिनों में भी पेड़ पर इसके सूखे फल मिल जाते हैं. 

इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती  है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है. 

बकायन के फल की गिरी, नीम के फल की गिरी और सामान भाग रसौत मिलाकर पाउडर बनाकर चने के बराबर गोली बनाली जाती है. ये गोलियां एक से दो पानी के साथ सुबह दोपहर शाम लेने से बवासीर जड़ से समाप्त हो जाती है. 

बकायन की छोटी कोंपलों का रस निकालकर फ़िल्टर करके खरल में डालकर लगातार खरल करके सूखा लिया जाता है. ये एक तरह का सुरमा बन जाता है. इसे रात को आँख में लगाने से उतरता हुआ मोतिबिन्द भी ठीक हो जाता है. 

बकायन के हरे पत्ते पीस कर पेस्ट बनाकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर लगाने से खुजली में लाभ होता है. इसकी छाल घिसकर खुजली और गर्मी - बरसात के मौसम में निकलने वाले दानो पर लगाने से नीम की छाल के सामान ही फ़ायदा करती है. बकायन एक बहु उपयोगी वृक्ष है. लेकिन इसका प्रयोग या किसी भी जड़ी बूटी प्रयोग किसी हाकिम वैध या डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए. 
अजीब बात ये है की बकायन नीम की तरह कड़वा पौधा है. लेकिन इसके बीज हकीम हब्बुलबान के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. इसके बीज बिलकुल भी कड़वे नहीं होते. 



बुधवार, 22 जून 2016

सेमर

 सेमर को  सेमल, सैंभल भी कहते हैं. ये एक कांटों वाला पेड़ है. फरवरी में इसका पतझड़ हो जाता है और कलियाँ आने लगते हैं. मार्च और अप्रैल में सार पेड़ लाल रंग के बड़े बड़े फूलों से भर जाता है और दूर से पहचाना जाता है.
इन फूलों की अंखडी या निचला हिस्सा जिसमें फूलों की पंखुड़ियां लगती हैं सब्ज़ी बनाकर खाया जाता है.सेमर  एक  कांटे दार वृक्ष है. इसके कांटे पेड़ के तने उसकी सभी शाखाओं में होते हैं. इसके काँटों के कारण पेड़ पर चढ़ना मुश्किल होता है. सेमर एक बहुउपयोगी दवा है. हाकिम इसकी जड़ को कई बीमारियों में इस्तेमाल करते हैं. दो साल के पेड़ की जड़ निकाल कर टुकड़े करके सुखा ली जाती है. ये जड़ बाजार में सेमल मूसली ये सेमल मूसला या सैंभल मूसला के नाम से  मिल जाती है. शक्तिवर्धक और पुष्टकारी दवाओं में सेमल की जड़ प्रयोग  की जाती है.

सेमल जोड़ों के दर्दों में फ़ायदा करता है. ये स्तम्भन शक्ति को बढ़ता है. श्वेत प्रदर और स्पेर्मेटोरिया की दवा है. सेमल मूसली अन्य दवाओं के साथ मिलकर इसी प्रयोग में लायी  जाती है. फूल गिरने के बाद सेमल के बड़े बड़े फल लगते हैं. ये फल सूखकर फट जाते हैं और उनमें से सेमल की रूई निकलती है. ये रूई बहुत चिकनी, बारीक रेशे की होती है और आम रूई से ज़्यादा गर्माती है. ये गद्दों और लाइफ जैकेट में  प्रयोग की जाती है.
सेमल के बीज रूई में लिपटे होते हैं. ये बीज काले रंग के बिनौले या सामान्य रूई के बीजों जैसे होते हैं. बीज शक्तिवर्धक, याददाश्त को बढ़ाने वाले और दिमाग को ताकत देने वाले होते हैं. बीजों के प्रयोग से अफीम का ज़हर भी उतर जाता है. इसके पेड़ बीज से उगाए जाते हैं. सड़कों के किनारे और बागो में लगाए जाते हैं. इसकी रूई का व्यापारिक प्रयोग होता है. दवाओं में इसका बीज, जड़, और गोंद  काम आता है. सेमर के गोंड को मोचरस कहते हैं. मोचरस का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. मोचरस का ज़िक्र इसी ब्लॉग में किया जाएगा.





शनिवार, 18 जून 2016

बढ़ल का फल

बढ़ल एक बड़ा और खुरदुरे पत्तों वाला पेड़  है. इसके दुसरे नाम डहु, डहुआ, ढेयू और लकूचा हैं.  इसके पत्ते बड़े बड़े और रोएँदार होते हैं. इसका फूल मार्च अप्रैल में खिलता है. फूल में दुसरे फूलों की तरह पंखड़ी नहीं होती.  ये एक पाउच जैसा पीले रंग का आवरण होता है. इसपर भी मुलायम रोएँ होते हैं. इसके पत्ते चारे के रूप में जानवरों को खिलाते हैं.

बढ़ल   के पेड़ों  के नीचे ये पीले फूल गिरे पड़े रहते हैं. कुछ लोग इनकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. फूल का स्वाद खट्टा होता है. इसकी सब्ज़ी खट्टेपन के कारण स्वादिष्ट लगती है. फूल गिरने के बाद इसमें गोल आकर के टेढ़े मेढ़े फल लगते हैं. ये फल कच्चे पर हरे और पककर पीले और ऑरेंज रंग के हो जाते हैं. इनका स्वाद खट्टा मीठा होता है. इनका गूदा बहुत मुलायम और इसमें सफ़ेद रंग के बड़े बड़े बीज बीज झिल्ली में लिपटे हुए रहते  हैं.
बढ़ल के फल जून माह में पाक जाते हैं और पेड़ों से गिरने लगते हैं.

ये फल कभी कभी बाजार में भी मिल जाते हैं. इसे आम फलों की तरह बहुत चाव से नहीं खाया जाता. खट्टा पसंद करने वाले लोग ही इसे खाते हैं. कच्चे फलों की चटनी बनाई जाती है या फिर करी में खट्टे स्वाद के लिए प्रयोग करते हैं.  इसका कच्चा फल बहुत जल्दी कमरे के तापमान पर पकने लगता है. पहले ये पीला पड़ता है फिर गहरा नारंगी रंग लेने लगता है. ये रखे रखे पकता जाता है. इसका पकना रुकता नहीं है.
बढ़ल प्रकृति से गरम होता है. इसका गूदा लीवर को शक्ति देता है. इसका बीज कच्च खाने से कब्ज़ दूर करता और दस्त लाता  है. ये एक दूध वाल पौधा  है।  इसके दूध में भी कब्ज़ को दूर करने के शक्ति है. कच्चा फल खून को ख़राब करता है. भूक मार देता है और पौरुष शक्ति को कम करदेता है.  पक्के फल में  खून को साफ़ करने की छमता है. पेट के इन्फेक्शन को दूर करता है और पौरुष शक्ति को बढ़ाता है.  इसके कच्चे फलों का अचार भी बनाया जाता है जो बहुत स्वादिष्ट होता है. इसके फल को सुखाकर इमली की जगह खट्टेपन के लिए सब्ज़ी करी और दाल में भी प्रयोग करते हैं. इसके फल का इस्तेमाल कुपोषण को दूर करता है. ये ऐसा अजीब फल है जिसका इस्तेमाल बहुत सी बीमारियों से बचाता है.

इसका बीज आग में भूनकर खाने से कब्ज़ करता है लेकिन कच्चा बीन अच्छा परगेटिव /दस्तावर है.
बढ़ल के पेड़ बीज से लगाए जाते हैं. इसके बीज जो पेड़ों के नीचे गिर जाते हैं, बरसात में फूटने लगते हैं. और छोटे छोटे पौधे बन जाते हैं. इसका बीज अगर बना हो तो फल से निकालने के बाद जल्दी ही बो दिया जाए. ज़्यादा दिन रखे रहने से बीजों में जमने के शक्ति जाती रहती है.
क्योंकि ये दूध वाला पौधा है इसलिए इसकी कलम भी लगाई जाती है और बरसात में बहुत जल्दी जड़ पकड़ लेती है.

रविवार, 12 जून 2016

कनेर

कनेर सफ़ेद और लाल होता है. इसके पौधे बड़े शहरों में फुटपाथ पर खूबसूरती के लिए लगाए जाते हैं. रेलवे  स्टेशनों और बागों, पार्कों में भी आम तौर से मिल जाता है. इसकी एक वैराइटी पीले रंग की होती है.
ये एक दूध वाला पौधा है इसलिए बिना पानी के बहुत दिनों रह जाता है. फुटपाथों पर इसके लगाने की  वजह यही है की कम पानी में भी ज़िंदा रहे.
ये एक ज़हरीला पौधा है. जानवर इसे नहीं खाते और घोड़े के लिए तो ये घातक है. इसका दूध या लेटेक्स स्किन पर घाव और छाले पैदा करता है. इसके पत्तों के रस को सूंघने से छींकें आती हैं. इसका प्रयोग छींकें लाने के लिए करते हैं. हकीम लोग इसकी जड़ की छाल का इस्तेमाल तिला बनाने के दवाओं में करते हैं.

जामुन

जामुन एक बड़ा पेड़ है. इसे जामन, फलैंदा, कल जाम भी कहते हैं. छोटी नस्ल के जामुन को कथा जमन और बड़ी नस्ल के जामुन को फलैंदा कहते हैं. आम पर बौर आने के बाद इस पर बौर या फूल आता है. जून माह में जामुन पकने लगते हैं. बरसात होते ही ये फूलकर बड़े बड़े और रसीले हो जाते हैं. इनका रंग वॉयलेट, जामुनी या काला  होता है. अपने जामुनी रंग के कारण ही इसे जामुन कहते हैं.
जामुन की लकड़ी बहुत खरी या जल्दी टूटने वाली होती है. जामुन के पेड़ पर चढ़ना बहुत जोखिम भरा है. मोटी डालें भी टूट जाती हैं. आंधी में भी इसकी डालें जल्दी फट जाती हैं. आंधी में जामुन के पेड़ से दूर रहेँ
जामुन लीवर और पैनक्रियास  के लिए फायदेमंद है. ये शुगर लेवल को कंट्रोल करता है. लीवर को ताकत देता है. ये पाचन में सहायता करता है. आम खाने के बाद अगर कुछ जामुनें खाली जाएं तो आम आसानी से पच जाता है. जामुन की गुठली का पाउडर खाने से डायबेटिस में लाभ होता है. कुछ लोग जामुन के गुठली का पाउडर, गुड़मार बूटी का पाउडर और सदाबहार का पाउडर मिला कर डायबेटिस के लिए इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों को जामुन की गुठली सूट नहीं करती और पेट ख़राब हो जाता है.
जलने के बाद जो सफ़ेद दाग पद जाते हैं उनपर जामुन की अंतर छाल पानी में बारीक पीस कर लगाने से स्किन का रंग ठीक हो जाता है. लेकिन ये पुराने दागों में फ़ायदा नहीं करती.
जामुन में खून के बहाव को बंद करने का गुण है. इसकी छाल को पानी में पकाकर गारगल करने से दांत और मसूढ़े मज़बूत होते हैं और मुंह के छालों में आराम मिलता है.

गुरुवार, 9 जून 2016

शहतूत जंगली

शहतूत जंगली मध्य ऊंचाई का पौध है. ये बीज से उगता है. इसकी लकड़ी बहुत लचीली होती है. छोटी शाखा को एक रिंग की तरह मोड़ा जा सकता है और वो टूटती नहीं है. इसमें ज़्यादातर दो तरह के शहतूत लगते हैं. एक वैराइटी में सफ़ेद और दूसरी में लाल जो पककर काले हो जाते हैं.
जंगली शहतूत छोटे छोटे होते हैं. बागों में बोया जाने वाला शहतूत जिस पर रेशम के कीड़े भी पाले जाते हैं, लम्बा होता है और बहुत मीठा भी होता है. फरवरी माह में पतझड़ के बाद जंगली शहतूत लगने लगते हैं. मार्च अप्रैल में ये पाक जाते हैं. और खाने के काबिल हो जाते हैं. स्वाद कुछ खट्टा कुछ मीठा होता है.
शहतूत जंगली हो या काश्त किया हुआ दोनों के गुण लगभग सामान हैं. शहतूत प्रकृति से ठंडा होता है. इसका सीरप गले के दर्द में आराम पहुंचता है. शहतूत का सेवन त्वचा को चमक  देता है.और  त्वचा से झुर्रियों को दूर करता  है. इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो एजिंग प्रोसेस पर कंट्रोल करते हैं और असमय बुढ़ापे से बचाते हैं. ये पेट की गर्मी को शांत करता है और एसीडिटी में फायदा पहुंचाता है. इसका रस होटों पर लगाने  से होंटों की नरमी और  सुंदरता बनी रहती है. 

रविवार, 5 जून 2016

आड़ू के फायदे

आड़ू एक मौसमी फल है. फरवरी - मार्च में इसका पौधा खूबसूरत कलियों और फूलों से लद जाता है. उस समय पेड़ में पतझड़ हो चुका  है. पेड़ में फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
आड़ू के फल मई जून में पक़ जाते हैं. ये थोड़ी कच्ची अवस्था में ही खाने के लायक होते हैं. बरसात में ज़्यादा पके आड़ू के फल खराब हो जाते हैं. इनमें कीड़े पद जाते हैं और खाने के लायक नहीं रहते.
आड़ू रक्त को साफ़ करता है. यह पेट के लिए फायदेमंद है. आड़ू दिल को ताकत देता है और ब्लॅड प्रेशर को कम करता है. इसके पत्तों का काढ़ा पेट के कीड़े मारता है. लेकिन खाली पेट आड़ू का सेवन गैस बनता है. कभी कभी इसके खाने से एसीडिटी भी हो जाती है. 
आड़ू का पौध मीडियम ऊंचाई का होता है. इसे बीज या फिर कटिंग से उगाया जाता है. तीन साल में ये फल देने लगता है. लेकिन आड़ू के पौधे की आयु ज़्यादा नहीं होती फल देने के आठ दस सालों बाद ये ख़राब हो जाता है. इसलिए इसके नए पौधे ही अच्छे होते हैं और उनमें  फल भी ज़्यादा आते हैं. 



बुधवार, 1 जून 2016

अंजीर जंगली

अंजीर
अंजीर जंगली आम तौर से जंगलों और खाली पड़ी जगहों पर उगता है. इसके पत्ते बड़े बड़े कटे फटे और खुरदुरे होते हैं. इस पौधे में भी दूध पाया जाता है. इसलिए यह खराब और सूखे मौसम में भी बचा रहता है. इसके फल गूलर के आकर के लेकिन उससे छोटे होते हैं. कच्चे फल हरे और सूख कर बैंगनी रंग के हो जाते हैं. फलों के अंदर इसके बहुत बारीक बीज होते हैं. इस बीजों का आवरण सख्त होता है और खाने वाले के पेट में भी नहीं पचता है. यही कारण है की चिड़ियाँ इसे खाकर जहाँ कहीं बीट करती हैं, मौसम की उपयुक्त अवस्था पाकर पौध उग आता है. 
अंजीर जंगली का पौधा 

बाज़ार में मिलने वाला अंजीर बड़ी वैराइटी का होता है. अंजीर जंगली हो या काश्त किया हुआ उसके गुण धर्म एक सामान होते हैं. अंजीर के दूध को कबायली तोग दाद पर लगाते हैं. कहते हैं इसके लगाने से दाद समूल नष्ट हो जाता है. जंगलों में जानवर चराने वाले अंजीर के पत्तों का दौना बनाकर इसमें दूध लेकर कुछ बूँदें अंजीर के दूध की मिला देते हैं तो थोड़ी देर में दूध दही की तरह जम  जाता है. 
अंजीर कब्ज़ को दूर करता है. सूखे अंजीर दो से चार की मात्र में  पानी में भिगोकर खाने से कब्ज़ ठीक होता है. अंजीर और अखरोट साथ खाने पर जोड़ों का दर्द जाता रहता है. अंजीर का गन गर्म और तर है. गर्मी   सोच समझकर करना चाहिए. इससे गर्म स्वाभ वाले लोगों को नुक्सान हो सकता है. जाड़े के मौसम में अंजीर का इस्तेमाल फायदेमंद है. 

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