बुधवार, 20 जून 2018

नागफनी

नागफनी एक कांटेदार पौधा है. ये कैक्टस पौधों  के परिवार से सम्बन्ध रखता है. खली पड़े स्थानों और बंजर और सूखी जगहों पर पाया जाता है. इसे बाग - बगीचों के बाढ़ के तौर पर भी लगाया जाता है.
इसके तने पर जो पत्तियों के आकर का दिखाई देता है गुच्छो में कांटे होते हैं. कुछ कांटे बड़े बड़े और कुछ कांटे बहुत बारीक़ होते हैं जो शरीर में चुभ कर घाव पैदा कर देते हैं. अकाल के ज़माने में जब खाने को कुछ नहीं रहता था लोग इसके फलों को खाकर पेट भरते थे.

 नागफनी स्वभाव से गर्म और खुश्क है. शरीर की चोट और सूजन में इसके पत्तों को कांटे दूर करके, बीच में से फाड़ कर उसमे हल्दी का पाउडर छिड़क कर और थोड़े सरसों के तेल के साथ गर्म करके बांधने से न सिर्फ गुम  चोट का दर्द ठीक  हो जाता है बल्कि अर्थराइटिस के कारण आयी जोड़ो की सूजन और दर्द में भी आराम मिलता है.
इसके फल पक कर गहरे बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इनका मज़ा मीठा हो जाता है. इन फलों का रस शकर के साथ पकाकर, सीरप की तरह इस्तेमाल करने से पुरानी  खांसी और अस्थमा के रोग में लाभ मिलता है.
कुछ लोगों को नागफ़नी के पौधे के अंशों को अंदरूनी इस्तेमाल से जी मिचलाना, उलटी होना और अन्य प्रकार  के साइड इफेक्ट हो सकते हैं. इसलिए इसका अंदरूनी इस्तेमाल किसी काबिल हकीम या वैध की देख रेख और सलाह से  ही करना चाहिए.

रविवार, 17 जून 2018

बंदा

बांदा या बंदा एक पैरासाइट हर्ब है. ये आम, बबूल, बरगद, आदि के वृक्षों पर पाया जाता है. ये जिस पेड़ पर होता है उसे के गुण इसमें आ जाते हैं.

आम तौर से बंदा को हड्डी टूटने और हड्डी की चोट में प्रयोग करते हैं. इसकी पत्तियों को पीसकर तेल में पकाकर चोट के स्थान पर लगाने से और हड्डी को सहारा देकर ठीक प्रकार से बांध देने से हड्डी जल्दी जुड़ जाती है.
हड्डी की चोट में और हड्डियों को ताकत देने के लिए बाँदा को पीस कर इसका पाउडर एक से तीन ग्राम की मात्रा में दिन में एक से दो बार दूध के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है. इसका अंदरूनी प्रयोग कभी कभी ज़हरीले प्रभाव भी उत्पन्न करता है. इसलिए इसका प्रयोग काबिल हकीम या वैध की निगरानी में ही करना चाहिए.
बांदा में खून  को बंद करने का गुण है. ये मासिक धर्म के अत्यधिक रक्त प्रवाह को नियमित करता है.
बांदा डायूरेटिक है इसका प्रयोग गुर्दे की पथरी को तोड़कर निकल देता है. 

ख़रबूज़ा

ख़रबूज़ा एक मौसमी फल है. अप्रैल और मई में ख़रबूज़े की फसल होती है. इसे पालेज या फालेज़ की फसल भी कहते हैं. ख़रबूज़े की कई वैराइटी हैं. उत्तर प्रदेश में लखनऊ और फर्रुखाबाद की ख़रबूज़े मशहूर हैं. ख़रबूज़े की विशेष सुगंध होती है.
ये एक सस्ता फल और गरीबों के लिए पेट भरने का साधन था. लेकिन मार्केटिंग के इस दौर में ख़रबूज़े भी महंगे हो गए है इसलिए अब ये पेट भरने का साधन नहीं रह गया है.

ख़रबूज़ा पेशाब लाता है ये डायूरेटिक है. यही इसकी अजीब बात और बहुत बड़ा गुण है. नवाबी के ज़माने में फर्रुखाबाद में हकीम मसीहउल्ला खान बड़े मार्के का इलाज किया करते थे. वह गरीबों का इलाज मुफ्त करते लेकिन अमीरों से एडवांस पैसे लिया करते थे. एक दिन फर्रुखाबाद के सेठ का पेशाब बंद हो गया. बहुत इलाज किया लेकिन लाभ नहीं मिला. शाम तक सेठ जी की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. मुनीम जी को हकीम मसीहउल्ला खान का ध्यान आया की उन्हें दिखाया जाए. मुनीम जी घोडा गाड़ी लेकर हकीम जी के घर पहुंचे और सेठ  जी की बीमारी के बारे में बताया. हकीम जी ने कहा की चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन मुआवज़ा क्या दिया जाएगा. मुनीम जी बोले जो आप कहें. हकीम जी ने एक हज़ार रुपये तय किये और मुनीम जी के साथ चल दिए. घर जाकर सेठ जी की नब्ज़ देखी  और कहा ख़रबूज़े के छिलके मंगवाओ.
गर्मी का मौसम था. ख़रबूज़े की बहुतायत थी. ख़रबूज़े के छिलके पीसे गये और पानी में मिलकर सेठ जी को पिला  दिए गए. थोड़ी देर बाद सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ.
हकीम जी को पांच सौ रूपये दिए गये और पांच सौ रूपये बाद में देने का वादा करके हकीम जी को घर भेज दिया गया. हकीम जी ने कई बार रुपयों का तकादा किया लेकिन सेठ जी ने टाल मटोल की और रूपये नहीं दिये हकीम जी भी शांत बैठ गए.
सेठ जी ख़रबूज़े के छिलकों से इलाज देख चुके थे. इसलिए सीज़न में ख़रबूज़े के बहुत से छिलके सुखाकर रख लिए की दुःख दर्द में काम आएंगे.
जाड़ों का का मौसम आया. सेठ जी का पेशाब फिर बंद हो गया. ख़रबूज़े के छिलके पीसकर पिलाये गये लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बार बार पिलाने से सेठ जी का पेट फूल गया और तकलीफ बढ़ गयी.
फिर मुनीम जी रूपये लेकर हकीम जी के पास गए और उन्हें सेठ जी की बीमारी बतायी हकीम जी ने कहा चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन पैसे सब एडवांस लूँगा. क्योंकि तुम पहले वादा खिलाफी कर चुके हो इसलिए 500 पिछले और 1000 रूपये अभी के यानि 1500 रूपये हवाले करो तो मैं चलूँ.
मुनीम जी ने फ़ौरन 1500 रूपये निकल कर दिये हकीम जी ने सेठ जी को जाकर देखा. कहने लगे ख़रबूज़े का मौसम तो है नहीं. कहीं छिलके मिलें तो मंगवाओ.
घर वालों ने कहा वही छिलके तो हम कई बार पीसकर पीला चुके  हैं  उससे तो और तकलीफ बढ़ गयी है.
हकीम जी बोले इसका इलाज तो वही है.
फिर छिलके पीसे गए और पानी में घोले गए. हकीम जी ने कहा अब इस घोल को गर्म करलो और सेठ जी को गर्म गर्म पिला दो.
गर्म घोल पिलाने से सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ और सभी घर वाले खुश हो गए.
हकीम जी ने तीन खुराकें किसी माजून की दीं और कहा अब ये तकलीफ दोबारा  नहीं होगी.
मुनीम जी बोले अगर इतनी सी बात पता चल जाती कि  गर्मियों में ठंडा और जाड़ों में गर्म ख़रबूज़े के छिलकों का घोल पेशाब की रुकावट में दिया जाता है तो डेढ़ हज़ार रूपये का नुकसान नहीं होता.
सेठ जी ने कहा जिसका काम उसी को साझे.
ख़रबूज़ा कब्ज़ के लिए घरेलु दवा है. एक मरीज़ कब्ज़ से बहुत परेशान था. हकीम जी को दिखाया, हकीम जी ने कहा - खाने के साथ ख़रबूज़ा खाया करो. एक कौर खाने का और एक कौर ख़रबूज़े का, कब्ज़ ऐसे भागेगा  जैसे कभी था ही नहीं.
ख़रबूज़े के बीज चहार मगज़ या चार बीज में से एक इंग्रेडिएंट हैं. ये बीज दिमाग को ताकत देते हैं और नींद लेन में सहायक होते हैं. जड़ों में चहार मगज़ के रूप में इस्तेमाल करने से शरीर को गर्म रखते और पुष्ट बनाते हैं. गर्मी में इन्हें घोटकर ठंडाई के रूप में प्रयोग किया जाता हैं.

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