रविवार, 25 मार्च 2018

छोटा चांद

छोटा चांद एक ऐसी जड़ी बूटी है जो कई नामों से जानी जाती है. इसे चन्दभागा, छोटी चन्दन, असरौल, और सर्पगंधा कहते हैं. इसकी कच्ची जड़ों में सांप जैसी  गंध होती है. कुछ लोग ये भी मानते हैं की इसके पौधे के पास सांप नहीं आता. कुछ भी हो ये एक कमल की दवा है और पागलों के इलाज के लिए दुनिया भर में जानी जाती है.

जून के दिन थे. एक परिवार की बहु पागलों जैसे हरकतें करने लगी थी. उस का बहुत दवा इलाज किया गया. आखिर में डाक्टरों ने बिजली के झटके से इलाज की बात कही. परिवार वाले इसके लिए तैयार नहीं थे.
एक दोपहर उनके दरवाज़े के बेल बज उठी. देखा तो एक बहुत मशहूर हाकिम जी खड़े थे. हकीमजी के इस परिवार से पुराने संबंध थे. उन्हें अंदर बुलाया और पूछा हकीमजी इस वक्त कैसे. हकीमजी ने कहा मुझे लखनऊ जाना था इधर से गुज़र रहा था. आपका ध्यान आया तो मैं कुछ देर रुकने के लिए चला आया.
परिवार वालो ने सोचा ऐसे में हकीमजी का आना ईश्वर की इच्छा  है. परिवार वालो ने ने हकीमजी से कहा हम लोग आजकल  बहुत परेशान  हैं. हमारी बहु जिसकी शादी हुए अभी कुछ महीने ही बीते हैं पागलों जैसे हरकते करने लगी है. हकीमजी ने मरीज़ की नब्ज़ देखी और उसके हालत मालूम किये. फिर कलम निकाला और एक पर्चे पर असरौल का नाम लिख दिया. कहा. ये एक जड़ी बूटी है. जड़ी बूटियां बेचने वाले पंसारी या अत्तार की दुकान पर मिल जायेगी. इसे लाकर हावनदस्ते/इमामदस्ते  में खूब कूटकर पाउडर बना लेना. इस दवा का एक चुटकी पाउडर सेब के मुरब्बे पर छिड़ककर मरीज़ को सुबह शाम खिला देना. अगर मरीज़ खाने से  इनकार करे तो इस दवा को उसके होंठो पर लगा देना
सर्पगंधा के इस प्रयोग से वह मरीज़ ठीक हो गया.
ये जड़ी बूटी पागलो की दवा होने के अलावा ब्लड प्रेशर घटाती है और उसे कंट्रोल में रखती है. इसके अलावा नींद न आने के बीमारी में भी कारगर है. इसका अन्य दवाओं के साथ उचित प्रयोग नींद लाने  में सहायता करता है.


गुरुवार, 8 मार्च 2018

गुलखैरा

तुख्मे-खत्मी एक मौसमी पौधे के बीज हैं जो हकीमी दवाओं में इस्तेमाल किये जाते हैं.  इस पौधे को बगीचों में सुंदरता के लिए लगाया जाता है. इसे हॉलीहॉक के नाम से आम तौर से लोग जानते हैं. गुलखैरा के नाम से भी प्रसिद्ध है. यह मैलो परिवार का पौधा है. हकीम इसकी एक वैराइटी को खत्मी कहते हैं और इसके बीज तुख्मे-खत्मी और जड़ को रेशा-ए -खत्मी के नाम से इस्तेमाल करते हैं.

इसके फूल कई रंग के होते हैं. अजीब बात ये है कि इस पौधे में आम तौर से कोई शाखा नहीं निकलती और सारे फूल इसके तने में लगते हैं. कुछ पौधों में शाखाएं भी निकलती हैं लेकिन ऐसा कम होता है.  पौधा सीधा बढ़ता जाता है और तने में कलियां आती रहती हैं जो बारी  बारी खिलती रहती हैं.
तुख्मे-खत्मी नज़ला, ज़ुकाम और खांसी में कारगर है. बरसों से हकीम इसके बीजों को अन्य दवाओं के साथ जोशांदे में इस्तेमाल कर रहे हैं. तुख्मे-खत्मी नज़ला और खांसी में आराम देता हैं. इसका जोशांदा जिसे तुख्मे-खत्मी की चाय या काढ़ा भी कहते हैं खांसी से राहत दिलाता है.

ये गले की खराश में भी फायदा करता है. इसके बीजों और जड़ में म्यूसिलेज या चिपचिपा पदार्थ होता है. ये म्यूसिलेज आंतों में फिसलन पैदा करता है जिससे डिसेन्ट्री के जर्म्स उसमें लिपट कर निकल जाते हैं. इसकी जड़ को पेचिश के इलाज में प्रयोग किया जाता है.
हॉलीहॉक एक सजावटी पौधा ही नहीं एक बड़ी और कारगर दवा है.
कहा जाता है की मेडिकल आइकन के तौर पर जिस निशान का प्रयोग किया जाता है जिसमें एक छड़ी पर एक सांप लिपटा होता है वह गुलखैरे की लकड़ी है.
दवाई गुण के कारण ही गुलखैरे को इतनी अहमियत दी गई है. 

शनिवार, 3 मार्च 2018

गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल

गुले-लाला को गार्डन पॉपी कहते हैं. इस पौधे की पत्तियां पॉपी या अफीम के पौधे से मिलती जुलती होती हैं. इसमें पॉपी की तरह ही फूल खिलता है. गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल का रंग आम तौर से लाल रंग का होता है. लेकिन लाल रंग के अलावा इसके अन्य रंगों  जैसे पीले और सफ़ेद रंग  के  फूल भी पाये जाते हैं. दवाओं और जड़ी बूटी के रूप में पुराने समय से लाल रंग के गुले लाला का प्रयोग ही किया जाता है.

गार्डन पॉपी एक सीज़नल हर्ब है. इसके पौधे सर्दियों में लगाए जाते हैं. इसके फूल आखिर  जनवरी से मार्च महीने तक खिलते हैं. अजीब बात है की इसकी कलियां  नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं और फूल खिलने पर फूल ऊपर की तरफ मुंह कर लेता हैं. 
गार्डन पॉपी के फूल के बीच में गहरे रंग का स्पॉट होता है. शायरों ने गुले  लाला को बहार के मौसम का पौधा माना है. इसके फूल बहार आने का संकेत देते हैं. 
गार्डन पॉपी के लाल रंग के फूलों की पंखुड़ियों को सुखाकर बहुत पुराने समय से दवाओं को रंग देने के लिए, कफ सीरप और वाइन को लाल रंग का बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. इस पौधे में दर्द और सूजन को दूर करने की शक्ति है. इसमें पॉपी या अफीम के पौधे की तरह तेज़ नशे वाले अल्कलॉइड नहीं हैं. इसका प्रयोग बच्चों के लिए भी सुरक्षित है. गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूलों का काढ़ा इस्तेमाल करने से नींद न आने की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है. 
इसके फूलों का काढ़ा गले की सूजन में राहत  देता है. नज़ला, ज़ुकाम, टांसिल, गले की सूजन, खांसी में इसके सूखे फूलो की पत्तियों को तुख्मे खतमी और गुल बनफ्शा के साथ काढ़ा बनाकर इस्तेमाल किया जाता है.
गुले लाला या गार्डन पॉपी के फूल ही दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं. अजीब बात है की इस पौधे के  फूल और बीज ही दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं. इसके अलावा  पौधे के अन्य अंगों में ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो नुकसान करते हैं.   

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

बथुआ कमाल का पौधा है

बथुआ रबी की फसल का पौधा है. अक्सर ये गेहूं और आलू की फसल के साथ खर-पतवार के रूप में उगता है. इसे गरीबो का साग भी कहा जाता है. बहुत पुराने समय से इसे सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इसकी पत्तियों को दाल के साथ, या अकेला ही, या फिर आलू के साथ मिलाकर सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है.
बथुआ का स्वाभाव गर्म है. ये सर्दियों में शरीर को गर्म रखता है. नज़ला ज़ुकाम और खांसी से बचता है. दाल के साथ सब्ज़ी बनाने पर ये दालों की खुश्की काम कर देता है. इससे दाल ज़्यादा पाचक  बन जाती है और नुकसान नहीं करती.
मार्केटिंग के इस युग में बथुए को बहुत अहमियत दी जा रही है. सोशल फंक्शन और रेस्तरां में इसके पूड़ी पराठे भी परोसे जाते हैं. अब इसे भोज्य पदार्थ के रूप में कई तरह से प्रयोग किया जा रहा है. बथुआ के फायदे देखते हुए अब बाजार में ये ऊंचे दामों बेचा जा रहा है और इसकी खेती भी की जाने लगी है.
इसमें रेचक गुण है, ये पेट को ढीला करता  है.  बथुए में पाए जाने वाले आवशय मिनरल विशेषकर लोहा नया खून बनाने में मदद करता है. बथुए की सब्ज़ी एक सम्पूर्ण भोजन है. इसके रेशे आंतो की सफाई कर देते हैं. जिन लोगों को पुराने कब्ज़ की समस्या है वह अगर बथुए का नियमित इस्तेमाल करें तो कब्ज़ की समस्या से छुटकारा मिल सकता है.
बथुआ ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है. जिनका ब्लड प्रेशर काम रहता है उनके लिए अच्छी दवा है. सर्दियों में इसका नियमित इस्तेमाल हार्ट-अटैक  के खतरे से बचाता  है.
जो लोग ल्यूकोडर्मा या सफ़ेद दाग की समस्या से परेशान  हैं उनके लिए बथुआ एक अजीब हर्ब है. बताए गए तरीके से इसका नियमित इस्तेमाल सफ़ेद दाग से जड़ से छुटकारा दिला देता है. ऐसे मरीज़ नियमित 3 से 6 माह तक केवल बथुए की सब्ज़ी हल्का सा नमक और काली मिर्च  डालकर बेसन की रोटी के साथ इस्तेमाल करें. और सफ़ेद दागों पर दिन में तीन बार बथुए के पत्तों को पीसकर उनका लेप लगाएं तो सफ़ेद दागों से छुटकारा मिल जाता है.


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