रविवार, 13 नवंबर 2022

कालीजीरी Centratherum anthelminticum

कालीजीरी एक पौधे के बीज हैं जो दवाओं में  काम आते हैं. इसे कुछ लोग गलती से काला जीरा समझ लेते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है. जीरा एक मसाला है जिसका प्रयोग अक्सर खाने में किया जाता है. इसकी विशेष गंध और स्वाद होता है. लेकिन कालीजीरी का स्वाद कड़वा होता है. इसे खाने की डिश में प्रयोग नहीं किया जाता. ये दवा के रूप में प्रयोग होती है. 


इसके कड़वे स्वाद और मतली, उलटी लाने के प्रभाव के कारण इसका प्रयोग एक बार में एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम की मात्रा में किया जाता है. दिन भर में इसकी एक ग्राम तक की मात्रा ली जा सकती है. इससे अधिक लेने पर इसके दुष्प्रभाव उतपन्न होते हैं जैसे जी मिचलाना, उलटी आना, पेट दर्द, शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना आदि. काली जीरी को कुछ लोग कड़वा जीरा भी कहते हैं. 

इसके वानस्पतिक नाम में anthelminticumशब्द जुड़ा है जो यह बताता है कि कालीजीरी एक ऐसे दवा समूह से सम्बन्ध रखती है जो कृमि नाशक है. ऐसी दवाएं बिना मरीज को नुकसान पहुंचाए कीड़े मार या कृमि नाशक का कार्य करती हैं. 

कालीजीरी नीम की तरह अच्छा एंटीसेप्टिक है. ये पेट के कीड़े भी मारकर निकाल देती है. इसके लिए एक ग्राम वायवडंग का पाउडर, ( यह एक प्रकार के काले भूरे बीज होते हैं, जिनका आकार काली मिर्च से मिलता जुलता होता है, यह भी पेट के कीड़े मारने के लिए प्रयोग की जाती है. ) आधा ग्राम कालीजीरी का पाउडर और थोड़ा सा गुड़ मिलाकर रात को सोते समय  खिलाया जाता है. इसका 2 से 3 दिन का इस्तेमाल पेट के कीड़ों से छुटकारा दिला देता है.  छोटे बच्चों को देना हो तो खुराक आधी करलें. 

कालीजीरी 10 ग्राम , अजवायन 20 ग्राम , मेथी 20 ग्राम और कुटकी 10 ग्राम का पाउडर बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी  के साथ सुबह शाम  लेने से मेटाबॉलिज़्म तेज़ होता है और मोटापा कम हो जाता है. लेकिन इस दवा का प्रयोग हकीम या वैद्य की निगरानी में करें. 

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

अरंड Castor Oil Plant, Ricinus communis

 अरंड, अंडी, अंडौआ  एक मध्यम ऊंचाई के पौधे के नाम हैं जिसकी लकड़ी कमज़ोर और पत्ते पपीते के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. पपीते का पेड़ एक सीधे तने वाला होता है जिसमें गोलाई में चारों ओर पत्ते लगे होते हैं और इसके तने में फूल फल लगते हैं. इस पौधे का वानस्पतिक नाम Ricinus communis है. 


जबकि अरंड का पेड़ बहुत सी शाखाओं वाला एक झाड़ीदार पेड़ होता है. सितंबर, अक्टूबर में इसके फूल निकलते हैं और फिर फल लगते हैं जो एक कांटेदार आवरण में बंद होते हैं. ये कांटे मुलायम होते हैं और हाथ में नहीं चुभते. सूखने पर ये फल तीन भागों में फट जाता है और इसमें से बीज निकलते हैं. इन बीजों को अण्डी कहते हैं. 

अण्डी का छिलका कड़ा होता है. इसपर चित्तियां पड़ी होती हैं. अण्डी काले, भूरे रंग की होती है इसके अंदर मुलायम बीज होता है जो तेल से भरा होता है. इसको हाथ से मसलने पर हाथ में तेल लग जाता है. 

अरंड, या अण्डी के तेल को कैस्टर ऑयल कहते हैं. इसका प्रयोग हकीम, वैद्य और डाक्टर सभी करते हैं. ये बहुत कॉमन दवा है. इसका मुख्य प्रयोग कब्ज़ दूर करने के लिए किया जाता है. सोते समय एक सो दो चमच कैस्टर ऑयल दूध में मिलाकर पिला देते है इससे खुलकर पेट साफ़ हो जाता है. कैस्टर ऑयल काफी गाढ़ा होता है. इसमें एक विशेष गंध आती है जो अरंड की गंध है, इसलिए बहुत से लोगों को ये सूट नहीं करता. 

ये एक बहुत अजीब हर्ब है. इसका तेल चमड़े को नरम करने, जलाकर रौशनी करने, कई प्रकार के साबुन, और औद्योगिक कार्यों में प्रयोग होता है. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है. कैस्टर ऑयल में त्वचा को कांतिमय बनाने, झुर्रियां दूर करने, धूप के बुरे प्रभाव से बचाने के गुण हैं. इसका प्रयोग लिपस्टिक बनाने में भी होता है. इस ऑयल का प्रयोग त्वचा की कुदरती नमी बरक़रार रखता है. 

कैस्टर ऑयल को थोड़ा सा असली गुलाब जल मिलाकर त्वचा पर लगाने से एक अच्छे नमी कारक का कार्य करता है. इसके इस्तेमाल से बालों की रुसी जाती रहती है. 

इसके पौधे को बहुत देखभाल की आवश्यकता नहीं होती. ये बरसात में आसानी से बीज से लगाया जा सकता है. मार्च अप्रैल में इसके फल पककर तैयार हो जाते हैं. किसानों के लिए ये एक अच्छी फसल है. इसका पौधा दो-तीन वर्ष तक रह सकता है. दूसरे साल में इसमें अच्छी पैदावार होती है. तीन साल के बाद इसके पौधे पुराने हो जाते हैं. तब नए पौधे लगाने चाहिए. 


इसकी लकड़ी का कोयला बहुत हल्का होता है. इस कोयले से दांत साफ़ करने से दांत चमक जाते हैं. 

अजीब बात है कि इसका फल जिसे अण्डी कहते है एक खतरनाक ज़हर है. बच्चों को इससे दूर रखें. कई बार बच्चों ने गलती से अण्डी को खा लिया है जिससे गंभीर परिणाम उत्पन्न हुए हैं. 


सोमवार, 8 अगस्त 2022

कायफल Myrica esculenta

 कायफल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है जिसका घर हिमालय का क्षेत्र गढ़वाल, कुमाऊं नेपाल और भूटान है. ये पहाड़ों की ऊंचाई पर 1000 से 2000 फिट की ऊंचाई पर उगता है. ये उत्तराखंड का विशेष फल है और वहां बहुत चाव से खाया जाता है. इसे काफल कहते हैं. 

ये फल छोटे, गोल आकार के पकने  लाल रंग के हो जाते हैं. इन फलों का सीज़न अप्रैल, मई का होता है जब मार्केट में ये बहुतायत से मिलते हैं. 

लेकिन दवाओं में इसकी छाल का प्रयोग होता है. इसकी छाल कायफल के नाम से बाजार में मिलती है. जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों से मांगने पर कायफल की छाल ही मिलती है. इसके लिए अलग से कायफल की छाल कहने की आवश्यकता नहीं है. 

कायफल की छाल का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. इसका स्वाद कड़वा होता है और इसका प्रभाव गर्म तर है. दांतों की समस्याएं, दांतों से खून पीप निकलना, मसूढ़ों की सूजन में इसकी छाल का काढ़ा बनाकर गार्गल करने से लाभ होता है. 

कायफल की छाल एंटीसेप्टिक का कार्य करती है. इसका पाउडर बनाकर घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भर जाते हैं और उनमें सड़न नहीं होती. 

एक आदमी बहुत पुराने नज़ला ज़ुकाम से परेशान था. दादी ने उसे कायफल की छाल का पाउडर बनाकर उसे एक पोटली में बांधकर दे दिया. उससे कहा की इस पोटली को हाथ में रखो और जब तब सूंघते रहो. उसने ऐसा ही किया. कायफल की छाल का पाउडर सूंघने से उसे बहुत छींकें आयीं और पुराना ज़ुकाम बह गया. फिर दादी ने उसे कुश्ता मरजान, खमीरा मरवारीद में मिलकर खाने को कहा. पुराना ज़ुकाम जो किसी दवा से नहीं जाता था, ठीक हो गया. 


कायफल की छाल से बना तेल जोड़ों के दर्दों के लिए भी लाभकारी है. इसे लगाकर सिंकाई करें और गर्म पट्टी बांधें. 

कायफल एक फल ही नहीं एक कमाल की दवा है. 

रविवार, 7 अगस्त 2022

हाथीसूँडी बूटी Heliotropium indicum

 हाथीसूँडी एक जड़ी बूटी है जो खली पड़े स्थानों, खेतों और सड़कों के किनारे उगती है. इसका मौसम जून जुलाई से अक्टूबर तक का है. इसमें लम्बी शाखाओं में गुच्छों में फूल लगते हैं. ये फूलों की शाखाएं हाथी की सूंड से मिलती जुलती होने के कारण इसे हाथीसूँडी बूटी कहते हैं. 

इसका प्रयोग पुराने हकीम चांदी की भस्म बनाने में करते थे. हकीम चांदी की भस्म को कुश्ता नुकरा कहते हैं. इसे शक्तिवर्धक और खून की कमी दूर करने में प्रयोग किया जाता है. इस बूटी के पत्तों को कुचल कर पेस्ट बनाकर उसमें चांदी के पतले टुकड़ों को जिसे चांदी का पत्रा कहते थे लपेटकर एक मिटटी के बर्तन में रखकर उसे अच्छी तरह कपड़मट करके सुखाने के बाद आग में फूँक लेते थे. इससे चांदी के बारीक़ पत्र खील खील हो जाते थे इसे ही चांदी का कुश्ता कहते थे. 


ये बूटी ताज़े घाव से खून को बंद करने और घाव को सुखाने में बहुत कारगर है. पुराने घाव भी इसके पत्तों का रस लगाने से ठीक हो जाते हैं. इसके स्वभाव गर्म-तर है. जिन महिलाओं को मासिक धर्म की समस्या हो, इसके पत्तों और जड़ का जोशांदा बनाकर पिलाने से मासिक खुलकर आता है. अधिक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं को गर्भपात हो जाता है. इसलिए इस बूटी को गर्भवती महिलाऐं इस्तेमाल ने करें. 

इसकी जड़ का जोशांदा खांसी और बुखार में भी लाभ करता है. कहते हैं कि बारी का ज्वर जिसे मलेरिया कहते हैं हाथीसूँडी के सामने टिक नहीं सकता. ये बूटी ऐसे मौसम में पैदा होती है जिस मौसम में मलेरिआ का प्रकोप होता है. पुराने जानकार इस बूटी के जोशांदे के साथ काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर इस्तेमाल करते थे और मलेरिआ छूमन्तर हो जाता था. 

आंखो की सूजन में इसके पत्तों को कुचलकर, आंख बंद करके ऊपर बांधने से आराम मिलता है. लेकिन ये ज़रूर देखलें की पत्ते साफ हों और उनमने गंदगी न हो. 

हाथीसूँडी जोड़ों के दर्द में भी लाभकारी है. इसका तेल बनाकर या फिर जड़ को पीसकर दर्द वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है. 


शनिवार, 6 अगस्त 2022

अश्वगंधा Withania somnifera

अश्वगंधा एक छोटा हर्ब है. इसे दवाई के लिए उगाया भी जाता है और ये जंगली पौधों की तरह भी उगता है. इसके फल या बीज पककर लाल रंग के हो जाते हैं और रसभरी की तरह एक कवर में बंद होते हैं. इनका आकार मकोय के बराबर होता है. इन फांफ में छोटे बीज भरे होते हैं. 

इसकी जड़ों को दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी ताज़ी जड़ों से घोड़े की गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या घोड़े की गंध वाली बूटी कहते हैं. इस पौधे से पुराने वैद्य खूब वाकिफ थे और वे ही इसे दवाई के रूप में प्रयोग करते थे. फिर इस दवा को हकीमों ने इस्तेमाल करना शुरू किया और वे भी इसके गुणों से परिचित हो गये और उन्होंने माना की अश्वगंधा कमाल की दवा है. 

इसे हकीमों ने असगंध कहा और यही नाम प्रचलित हो गया. नागौर के इलाके की अश्वगंधा बहुत कारगर मानी जाती है इसलिए हकीम इसे असगंध नागौरी लिखते हैं. 

बाजार में ये छोटी लकड़ियों के रूप में मिलती है. ये इसकी सुखी जड़ें होती हैं. इनका रंग क्रीम, भूरा होता है. पीसने पर आसानी से पिस कर पाउडर बन जाती हैं. इनमें रेशे भी नहीं होते. बाजार में इसका पाउडर भी मिलता है जिससे कूटने पीसने के झंझट से छुटकारा मिल जाता है. 

अश्वगंधा का इस्तेमाल घोड़े की तरह बल उतपन्न करता है. इसका पाउडर 1 से 3 ग्राम की मात्रा तक उपयोग किया जा सकता है. ये रक्त में हीमोग्लोबिन को बढ़ाता है और मांस पेशियों को मज़बूत करता है. 

जो लोग नींद की कमी, बेचैनी, घबराहट, डिप्रेशन का शिकार हैं अश्वगंधा उनके लिए बहुत लाभकारी टॉनिक का काम कर सकता है. 

इसके इस्तेमाल से दिल की ही नहीं, दिमाग की सेहत भी दुरुस्त रहती है. ये पुरुषों में कामोद्दीपन करने में सक्षम है. इससे टेस्टोस्टेरोन की मात्रा बढ़ती है और ज़िंदगी जीने की इच्छा बलवती होती है. जो लोग ज़िंदगी से मायूस हो चुके हों अश्वगंधा उनका बेहतरीन साथी है. ये मूड को फ्रेश करता है और अच्छी नींद लाने में मदद करता है. 

ये जोड़ों के दर्दों, कमर दर्द, स्त्रियों के श्वेत प्रदर, की अचूक दवा है. अश्वगंधा और सुरंजान का चूर्ण समान मात्रा में मिलकर खाने से जोड़ों और कमर के दर्द से छुटकारा मिल जाता है. 

ये लिवर के लिए भी अच्छी दवा है. शरीर से ज़हरीले माद्दे निकलकर शरीर को डिटॉक्स कर देता है. 

होम्योपैथी वाले भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. अश्वगंधा मदर टिंक्चर में बाजार में मिलता है. 

अजीब बात है कि अश्वगंधा की जड़ों में बहुत गुण हैं लेकिन इसके फल और बीज अगर खाए जाएं तो बहुत नुक्सान करते हैं. उलटी और पेट में दर्द शुरू हो जाता है. 

अश्वगंधा को किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में ही इस्तेमाल करें.  

सोमवार, 1 अगस्त 2022

समुद्र फल Indian Oak, Barringtonia acutangula

समुद्र फल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. ये नदियों की किनारे पाया जाता था इसलिए इसका नाम समुद्र फल या सिंधु फल पड़ा. इसे भारतीय शाह बलूत या इंडियन ओक भी कहते हैं. इसका एक नाम हिज्जाल भी है. हकीम इसे जोज़-अल-कै भी कहते हैं. 

इसके पेड़ में गुच्छो में लम्बी शाखों में लाल रंग की खूबसूरत फूल लगते हैं. फूलों की लम्बी शाखाओं की वजह से ये आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके दवाई गुण बहुत लाभकारी हैं. लेकिन इसका इस्तेमाल करना हर किसी के बस की बात नहीं है. इसका सबसे बड़ा गुण उल्टी लाने का है. इसके इस्तेमाल से बहुत ज़ोर की मिचली और उलटी आती है. बहुत थोड़ी मात्रा में इसका प्रयोग वैद्य लोग बलगम निकालने और खांसी दूर करने में करते हैं. 


ये सूजन को घटाता है इसलिए फेफड़ों की शोथ, न्यूमोनिया, कफ और पुरानी खांसी, दमा रोग में फायदेमंद है लेकिन प्रयोग फिर सावधानी चाहता है और काबिल वैद्य या हकीम की निगरानी में ही इस्तेमाल किया जा सकता है. 

समुद्र फल कैंसर रोधी है. ये ट्यूमर को घटाकर कम कर देता है. इसके अतिरिक्त ये मूत्र की मात्रा को बढ़ा देता है. शरीर में पानी पड़ जाने और उसकी वजह से सूजन आ जाने में फायदा करता है. 

अजीब बात है कि मछलियों की लिए ये एक घातक विष है. मछुआरे इसकी छाल पीसकर पानी में डाल देते हैं जिससे मछलियां मर जाती हैं. दूसरी अजीब बात ये है कि इसके फल रीठे की तरह कपडे धोने में काम आते हैं. कपड़ों के लिए ये एक डिटर्जेंट का काम करता है. 

समुद्र फल का इस्तेमाल न करें. ये खतरनाक हो सकता है.  


आम के बीज से पौधा उगना Mango Seed Germination

आम की गुठली जिसे आम का बीज भी कहते हैं आम का पौधा बहुत आसानी से जमाया जा सकता है. घूरे कूड़े पर पड़ी आम की गुठलियां बरसात का पानी पाकर उनसे पौधे निकलते हैं. लेकिन उचित देख रेख न मिलने या फिर बरसात के बाद पानी न मिलने से सूख जाते हैं.  

आम की गुठली मोटी और सख्त होती है. बीज को जमने के लिए इतने पानी की ज़रूरत होती है जिससे अंदर का बीज फूल जाए, उसमें जड़ निकले और वह बहरी कवर को फाड़कर बाहर निकल सके. इसके लिए कुदरत ने आम के बीज में रेशे बनाए हैं जो पानी सोख लेते हैं और गुठली नरम हो जाती है. आम के बीज को जमने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान की ज़रूरत होती है. इसके अलावा इसे गर्म और नम मौसम चाहिए. उत्तरी भारत में ये सभी आवश्यकताएं बरसात के मौसम में आसानी से पूरी हो जाती हैं इसलिए आम के बीज आसानी से फूट जाते हैं और इनसे नए पौधे निकलते हैं. 

आम की गुठली को एक गमले में बगीचे की मिटटी में लगा दीजिये. इसे हल्का पानी दीजिये जिससे इसमें नमी बनी रहे. गुठली से सबसे पहले जड़ निकलती है. जड़ एक छोटे छेद से निकलती है जहाँ पुर कुदरत ने गुठली को थोड़ा सा कमज़ोर रखा होता है. जड़ पानी लेकर अंदर के बीज को देती है जिससे बीज फूल जाता है और उसके फूलने से गुठली फट जाती है. अब इस गुठली से नन्ही छोटी पत्तियां निकलती हैं जिनका रंग बैगनी होता है. ये आम में मौजूद टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की वजह से होता है. 

गुठली पर धुप पड़ने से वह भी हरे रंग में बदल जाती है और क्लोरोफिल के कारण कुछ भोजन बनाकर नयी पत्तियों को देती है. गुठली में भी इस नये पौधे के लिए भोजन पहले ही मौजूद होता है. लेकिन कुदरत इसका पोषण दो तरह से करती है. 

गुठली से पौधा दो सप्ताह में निकल आता है. दो सप्ताह के पौधे का फोटो ये है. 


पौधा धीरे धीरे डेवलप होता है. इसकी पत्तियां अभी हरी नहीं होतीं. अगले एक सप्ताह के बाद पौधा कुछ इस तरह का लगता है. 


अगले एक सो दो सप्ताह में पौधा लम्बाई में बढ़ जाता है. इसके पत्ते भी बड़े हो जाते हैं और जड़ गहराई में पहुंच जाती है. चार सप्ताह के पौधे का चित्र ये है:


पांच से छः सप्ताह में पौधे की पत्तियां और बड़ी हो जाती हैं. इस पौधे का चित्र ये हैं:


आम का नया पौधा सितंबर तक बढ़ता है. लेकिन ये एक डेढ़ फुट से ज़्यादा नहीं बढ़ता. अब क्योंकि पतझड़ का मौसम आ जाता है और आम के पौधे सुप्तावस्था में चले जाते हैं. 

इन नये पौधों को सर्दी के मौसम में सर्दी और पाले की मार से बचाना ज़रूरी है. नहीं तो पौधा मर जाता है. फरवरी में ये पौधे फिर जागते हैं और इनमें नयी पत्तियां निकलती हैं. 

दो या तीन वर्ष के पौधों को नयी जगह पर लगाया जा सकता है. बीज से बने आम के पौधे में फल आने में सात से दस वर्ष लगते हैं. 

बुधवार, 20 जुलाई 2022

लेमन ग्रास और सिट्रोनेला Cymbopogon citratus & Cymbopogon nardus

लेमन ग्रास एक माध्यम ऊंचाई  का पौधा है. घास की तरह ही इसकी पत्तियां जड़ों से निकलती हैं. ये पत्तियां पतली, लम्बी और और नाज़ुक होती हैं इसलिए ये अगले हिस्से में मुड़कर नीचे की तरफ पलट जाती हैं. कुछ बीच में से टूट जाती हैं. इसमें नीबू की खुशबु आती है. इसीलिए इसे लेमन ग्रास या नीबू घास कहते हैं. इसका वनास्पतिक नाम Cymbopogon citratus है. 

लेमन ग्रास कमाल का पौधा है. इसे नरसरी से आसानी से खरीदा जा सकता है. इसे गमले में लगाकर इनडोर भी रख सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि इसे खिड़की के पास की थोड़ी धूप मिलना ज़रूरी है. 

लेमन ग्रास में जीवाणुओं और फफूंद को नष्ट करने के गुण हैं. इसके पास मच्छर और कीड़े मकोड़े नहीं आते. मच्छरों को भगाने के लिए लेमन ग्रास से अधिक प्रभावशाली सिट्रोनेला है. ये भी इसी कुल का पौधा है. इसकी बनावट और इसकी पत्तियां भी लेमन ग्रास की तरह होती हैं. लेकिन सिट्रोनेला के पौधे की पत्तियों के डंठल लाल गुलाबी रंग लिए होते हैं और इसकी गंध बहुत तेज़ होती है. 


लेमन ग्रास की चाय जो थोड़ी पत्तियों को पानी में पकाकर बनायी जाती है शुगर घटाने, मोटापा कम करने और लिपिड घटाने के लिए कारगर है. इस जड़ी बूटी में शोथ या सूजन घटाने के भी गुण हैं. 

लेमन ग्रास का प्रयोग बहुत थोड़ी मात्रा में सलाद में, चटनी में और खाने में किया जाता है. लेकिन कुछ लोगों को इसके प्रयोग से एलर्जी हो सकती है. जी मिचलाना, त्वचा पर दाने निकलना, खुजली, पेट की खराबी, दस्त आदि हो जाते हैं. इसलिए इसका प्रयोग खाने में हितकर नहीं है. 

सिट्रोनेला का वनास्पतिक नाम  Cymbopogon nardus है. ये भी लेमन ग्रास कुल का पौधा है. कुछ लोग लेमन ग्रास को ही सिट्रोनेला समझ लेते हैं. सिट्रोनेला अपने एसेंशियल ऑयल की वजह से मशहूर है. श्री लंका का सिट्रोनेला ऑयल बहुत अच्छा माना जाता है. इसका प्रयोग सुगंध के रूप में, कमरे को सुगन्धित रखने, कपड़ों में, सर दर्द को आराम देने और मूड को फ्रेश रखने के लिए किया जाता है. पानी में डालकर नहाने से दाने खुजली और फफूंद जनक रोग नष्ट हो जाते हैं. 

मच्छरों को दूर रखने के लिए सिट्रोनेला ऑयल, यूक्लिप्टिस ऑयल को  वाइट ऑयल में मिलाकर या फिर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से मच्छर पास नहीं आते. सिट्रोनेला ऑयल मिलाकर मोमबत्ती भी बनायी जाती है जिसको जलाने से मच्छर भागते हैं. 

मार्केट में सिट्रोनेला एसेंशियल ऑयल आसानी से मिल जाता है. लेकिन इसे कदापि खाने में प्रयोग न करें और बच्चों की पहुंच से दूर रखें. 

अजीब बात है की सिट्रोनेला के पौधों को जानवर नहीं खाते. इनका स्वाद गंध और ऑयल की वजह से अच्छा नहीं होता. कहते हैं जानवर चाहे भूखा मर जाए सिट्रोनेला नहीं खाएगा। इसलिए जो लोग बगीचे में जानवरों से परेशान हैं उन्हें किनारों पर सिट्रोनेला लगाना चाहिए. 


मंगलवार, 12 जुलाई 2022

सजावटी पौधे

 बरसात में पौधों को उगाना आसान होता है. घरेलु बगीचों में सुंदरता के लिए पौधे लगाए जाते हैं.  जिन घरों में जगह कम हो वहां छत पर या बालकनी में भी पौधे लगाए जाते हैं. कुछ बेलें ऐसे होती हैं जो किसी कोने, किनारे में भी लग जाती हैं. 

मनी प्लांट 
घरों के लिए ऐसे पौधे अच्छे हैं जिन्हें ज़्यादा देख भाल की ज़रूरत न हो. मनी प्लांट एक ऐसा ही पौधा है जो आसानी से लग जाता है.  मनी प्लांट को Pothos, Epipremnum aureum, Devil's Ivy  भी कहते हैं. ये किसी गमले, किसी बोतल में या फिर ज़मीन में उगाया जा सकता है. इसे लगाना बहुत आसान है. बस इसकी एक छोटी शाखा हासिल कर लीजिए और उसे किसी गमले में लगा दीजिए. बरसात के मौसम में ये बहुत जल्दी जड़ पकड़ लेता है और बेल की तरह बढ़ने लगता है. 

अधिक सुंदर दिखने के लिए इसके गमले में मॉस स्टिक लगाकर इस बेल को उसपर चढ़ा दीजिए. इससे इसके पत्ते बड़े हो जाते हैं क्योंकि इसकी हवाई जड़ें मॉस स्टिक से भी नमी लेती हैं और डबल न्यूट्रीशन से इसके पत्ते खूब बढ़ते हैं. 

यदि इसे किसी बड़े वृक्ष पर चढ़ा दिया जाए तो इसके पत्ते एक से डेढ़ फुट के आकार तक बड़े हो जाते हैं. मैंने अपलने घर में मनी प्लांट को आम के वृक्ष पर चढ़ा रखा था. देखने वाले इसे मनी प्लांट के बजाय कोई और पौधा समझते थे. क्योंकि पत्तों का आकार बहुत बड़ा, बेल बहुत मोटी और रंग बहुत खिलता हुआ था. मनी प्लांट को पोथोस भी कहते हैं. 

सिंगोनियम
बेल की शक्ल में एक खूबसूरत पौधा और है जिसे सिंगोनियम कहते हैं. इसे एरोहेड प्लांट भी कहते हैं. इसके पत्ते तीर की तरह नुकीले होते हैं. ये भी आसानी से लग जाता है. बस इसका एक टुकड़ा काफी है जो गमले में लगा दिया जाए. इसे भी मॉस स्टिक पर चढ़ाना चाहिए. ये पौधा बहुत छोट पत्ते, मीडियम पत्ते और बड़े पत्तों के आकर वाला होता है. जैसे जगह हो वैसा पौधा लगाएं. 

कोलियस

कोलियस ऐसा पौधा है जिसे बरसात में लगाना चाहिए. ये कटिंग से लगाया जाता है. वैसे इसके बीज भी होते हैं लेकिन बीजों से उगना थोड़ा कठिन काम है. इसके पौधों को बरसात में लगाएं. आसानी से लग जाता है. इसके रंग बहुत खूबसूरत होते हैं.

कोलियस के पौधे के आखिरी सिरे पर लम्बे गुच्छो में फूल आते हैं जिनमें बीज बनते हैं. अगर पौधे के खूबसूरती बरकरार रखना है तो इन फूलों को कटर से काटकर अलग करदें. क्योंकि फूलों के आने और बीज बनने से पौधे की पत्तियों में खूबसूरती बाकी नहीं रहती. 

ये पौधा न सिर्फ सुंदर पतियों की वजह से जाना जाता है बल्कि आसानी से लग जाता है. थोड़ा ध्यान रखा जाए तो कोलियस बाजार से एक बार खरीदने  के बाद हमेशा रहता है. कोलियस बहुत से रंगों में उपलब्ध है. इसकी खूबसूरत पत्तियां ही इसकी पहचान हैं. ये साल भर रह सकता है अगर इसकी अच्छी देखभाल  की जाए. इसे अधिक पानी और बहुत देखभाल की आवश्यकता नहीं है. इसके गमले में गोबर की खाद डालने से पौधा अच्छी तरह बढ़ता है. 

अगर इसे लगाकर इसकी अच्छी प्रूनिंग कर पौधा बढ़िया शक्ल में बनाया जाए तो अक्टूबर, नवंबर में इस पौधे पर शबाब होता है. जाड़ों में इसके रंग और खूबसूरत लगते हैं. ये पौधा साल दो साल रह सकता है. लेकिन अच्छे परिणाम के लिए हर साल इसके नए पौधे लगाएं. 

अगावे

अगर आप चाहते हैं की पौधे की कम देख भाल करना पड़े तो सकलेंट किस्म के पौधे लगाएं. इस प्रकार का एक पौधा अगावे है जो कई वैराइटी में मिलता है. इसे कम पानी चाहिए. ज़्यादा पानी में इसकी जड़ें सड़ जाती हैं.


बरसात में इसे वाटर लाग्गिंग से बचाएं. इसकी पत्ती के सिरे पर एक कांटा होता है. इससे भी बचाव रखें. कभी ये गमले की देख भाल करते समय आंख में भी चुभ गया है. बच्चों को भी इससे दूर रखें. 

गुले फानूस 

गुले फानूस एक बहुत खूबसूरत झड़ी नुमा पौधा है. इसे Lagerstroemia Indica, Crepe myrtle भी कहते हैं. इसके फूल फानूस के आकार के होते हैं. ये गुलाबी और सफ़ेद रंग में मिलता है. ये पौधा बीज से उगाया जाता है. इसके पौधे में बहुत बीज लगते हैं जिनसे आसानी से पौधे उग आते हैं. ये अप्रेल, मई में खिलना शुरू हो जाता है और गुच्छेदार फूलों से भर जाता है. इसके फूल सितंबर अक्टूबर तक खिलते रहते हैं. इसे बंगलों के गेट पर लगाने से बहुत सुंदर दृश्य उत्पन्न होता है. 



बुधवार, 18 मई 2022

खोकली (Acalypha indica)

 खोकली एक जाना माना हर्ब है जो जंगलों, खेतों और बागीचों में उगता है. इसके उगने और फलने फूलने का समय अप्रैल से सितंबर, अक्टूबर तक है. इसके पत्तों का रंग हरा, खिलता हुआ होता है और ऊपर से देखने पर इसका पौधा छत्तेदार या छतरी के आकर में दिखाई देता है. 


इसके छोटे फूल और छोटे फल जिसमें बीज होते हैं पौधे के तने पर निचली तरफ लगते हैं. इस पौधे की पत्तियां कुछ लोग सब्ज़ी के रूप में खाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसके पौधे में साइनाइड का अंश भी होता है इसलिए इसका इस्तेमाल सोच समझकर करना चाहिए. 
खोकली का आम इस्तेमाल फेफड़ों से खून आने में रोकने के लिए किया जाता है. इस पौधे की गुणवत्ता देखते हुए होम्योपैथी में भी इसकी दवा बनायी गयी जो एकलिएक देसी दवा कंपनी में फा इंडिका के नाम से प्रसिद्ध है. सुखी खांसी, फेफड़ों से खून आना, दुबला होते जाना, सुबह उठने पर शरीर में ताकत न महसूस होना आदि इसके लक्षण हैं. 
इस लक्षणों के कारण इसे टीबी के इलाज में प्रसिद्धि मिली. डाक्टर की  सलाह से अन्य दवाओं के साथ इस दवा के मदर टिंक्चर का इस्तेमाल टीबी के इलाज में कारगर साबित हुआ है. ये दवा मदर टिंक्चर के आलावा पोटेंसी में 10 एम तक उपलब्ध है. 
देसी इलाज में त्वचा को रोगों में जैसे खुजली, दाद, खुश्की आदि में इसके पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ मिलता है. पत्तों को पीसकर सर में लगाने से बालों की खुश्की/रुसी जाती रहती है. 
इसके पत्तों का सावधानीपूर्ण इस्तेमाल कैंसर जैसे भयानक रोग से बचा सकता है, इसमें कैंसररोधी, शोथरोधी और रक्तस्राव को रोकने के गुण हैं. 
ये एक अजीब हर्ब है. इसकी सूखी जड़ों की ओर बिल्ली उसी तरह आकर्षित होती है जैसे बिलाइलोटन नाम के हर्ब पर बिल्ली लोटती है. 

बुधवार, 19 जनवरी 2022

हालिम Garden Cress Seeds

 हालिम एक बीज है जो दवाओं और घरेलू रेसिपी में इस्तेमाल होता है. ये लाल रंग के छोटे बीज होते हैं. बाज़ार में हालिम, हलीम, हालों, चैनसुर, चंद्रशूर के नाम से मिल जाते हैं. ये गार्डेन क्रिस के बीज हैं जो सलाद के लिए उगाया जाता है. इस पौधे की पत्तियों का स्वाद तीखा होता है. इसके  मिर्च जैसे  स्वाद के कारन इसे सलाद में और खाने की डिश में इस्तेमाल किया जाता है. 

हालिम के बीजों को अगर पानी में भिगोया जाए  तो ये फूल जाते हैं और लेसदार/चिपचिपे हो जाते हैं. बिलकुल इसी तरह जैसे पानी में भिगोने पर इसबगोल बीज या इसबगोल का सत चिपचिपा हो जाता है. हालिम के बीजों को इस्तेमाल करने से पहले इसे कुछ देर पानी में भिगो दिया जाता है और फिर इसे दूध में या पानी में मिलकर पिया जाता है. कहते हैं की इसमें इतने गुण हैं कि इसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है. एक बार में हालिम के बीज एक से दो चमच तक इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ये कैल्शियम का खज़ाना है. इसमने बहुत से मिनरल और आइरन है. अनेकों विटामिन हैं. इसके इस्तेमाल से खून की कमी दूर होती है. शरीर को बल मिलता है. हालिम का स्वभाव गर्म है. प्रसूता महिलाओं को इस्तेमाल कराने  से शरीर की अच्छी सफाई कर देता है और प्रसूत की बीमारियां नहीं होतीं. गर्भवती महिलाओं को इसके प्रयोग से नुक्सान हो सकता है. 


सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ हालिम का इस्तेमाल रात  को सोते समय करने से सर्दी को रोगों, ज़ुकाम, खांसी से बचाव रहता है. लेकिन हालिम के बीज को पहले पानी या दूध में लगभग एक घंटा भिगोकर इस्तेमाल करें. कभी भी इस दवा को सूखा नहीं खाना  चाहिए. 

अपने चिपचिपे स्वाभाव के कारण हालिम आंतों की खुश्की दूर कर देता है. कब्ज़ में  भी राहत दिलाता है. बच्चों को देने से लम्बाई बढ़ने में मददगार साबित होता है. 

इसका सलाद भी स्वादिष्ट होता है. लेकिन इसे मिर्च की तरह ही कम मात्रा में खाना चाहिए. अधिक इस्तेमाल से पेट में जलन पड़ सकती है और स्किन की बीमारियां हो सकती हैं. 

हालिम का प्रयोग केवल खाने में ही नहीं किया जाता. ये लगाने की भी दवा है. मोच आने पर ये हड्डी में बाल पड़ जाने पर हालिम, हल्दी और चूने का पेस्ट बनाकर, उसमें थोड़ा सा साबुन मिलाकर पकाएं और मोच/ चोट  की जगह हल्का गर्म लगाकर पट्टी बांध दें. कहते हैं यदि हड्डी को सेट करके ये प्रयोग किया जाए तो टूटी हड्डी भी जुड़ जाती है.  


रविवार, 16 जनवरी 2022

सुदाब या तितली का पौधा

तितली का पौधा रबी की फसल में गेहूं के खेतों में उगता है. इसकी पत्तियां छोटी इमली के पत्तों से मिलती जुलती लेकिन आगे से गोलाई लिए होती हैं. इसमें पीले रंग की फूल खिलते हैं. इसके बीज कवर के अंदर बंद होते हैं. बीज सूखने पर चटक कर  बीज गिर जाते हैं और अगले साल जमने के लिए ज़मीं इन्हें सुरक्षित रख लेती है. 

इसका दूसरा नाम सुदाब है. इसका पंचांग बर्गे सुदाब के नाम से देसी दवा के रूप में मिल जाता है. इसको अंग्रेजी भाषा में  Common Rue कहते हैं. इसका साइंटिफिक नाम Ruta Graveolens है.  

Ruta Graveolens को होम्योपैथी में भी इस्तेमाल किया जाता है. इसको हकीम बर्गे  सुदाब  जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हकीमों के लिए ये आम तौर से इस्तेमाल होने वाली दवा है. जोड़ों के दर्द, खासकर कलाई और उंगलियों के दर्दों में बहुत कारगर है. इसका स्वभाव गर्म है. गर्म मिज़ाज होने के कारण  इसके प्रयोग से रुका हुआ मासिक खुल जाता है. गर्भवती महिलाओं को इसके प्रयोग से बचना चाहिए. 

देहाती लोग बरसों से इसके दर्द निवारक प्रयोग से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वह इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर शहद के साथ, थोड़ा सा गर्म करके जोड़ों पर लगाते  हैं जिससे दर्दों में बहुत आराम मिलता है. इसके पंचांग को तेल  में जलाकर , छानकर   प्रयोग करने से भी दर्द ठीक हो जाता है 

कहते हैं की चेहरे को लकवा  मार जाए तो ताज़ा सुदाब की पत्तियों का रस निकलकर नाक में दो बून्द टपकाने  से लकवा रोग में फ़ायदा होता है। 

सुदाब त्वचा पर खराब असर दाल सकता है. कभी इसके प्रयोग से एलर्जी हो जाती है. त्वचा पर छाले  पड़  जाते हैं. इसलिए सुदाब या तितली के पौधे को  मामूली पौधा न समझें. इसका  प्रयोग हकीम  की निगरानी में ही करे तभी  नुकसान से बचे रहेंगे. 

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

कुसुम Safflower Plant

 कुसुम एक सुंदर पौधा है जिसकी खेती इसके बीजों के लिए मुख्य रूप से की जाती है. कुसुम के फूल भी पीला / लाल रंग बनाने के लिए प्रयोग होते हैं. ये कुदरती लाल और पीला रंग देता है जिसे खाने और कपडे आदि रंगने में बरसों से प्रयोग किया जा रहा है. 

कुसुम को कड़ भी कहते हैं. कुछ स्थानों पर इसे कुसुम्भ, कुसमा भी कहा जाता है. हकीम इसे कर्तुम कहते हैं और इसे बीजों को तुख्मे कर्तुम के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. 

तुख्मे कर्तुम या कड़ के बीज सफ़ेद रंग के बीज होते हैं जो सूरजमुखी के बीजों से मिलते जुलते होते हैं. दोनों में फर्क ये है की सूरजमुखी के बीज काले रंग के होते हैं जबकि कुसुम के बीज सफ़ेद होते हैं. इसके आलावा सूरजमुखी की बीज कुछ चपटापन लिए होते हैं जबकि कुसुम के बीज कुछ उभरे हुए से होते हैं. इन बीजों से तेल निकला जाता है जो रंगहीन और गंधहीन होने के कारन न केवल खाने के काम में बल्कि सकमेटिक बनाने, क्रीम और दवाओं के रूप में प्रयोग होता है. 


कुसुम के पौधे को अधिक पानी की ज़रूरत नहीं होती इसलिए ये शुष्क ज़मीनों के लिए अच्छी फसल है. इसके किसान को लाभ होता है. रंग के कारण इसे नकली केसर भी कहा जाता है. 

कुसुम का स्वभाव गर्म है. इसके बीजों को हकीम काढ़े के रूप में अन्य दवाओं के साथ मिलकर महिलाओं के रोगों में देते हैं. ऐसे महिलाएं जो मासिक धर्म की खराबियों, समय से मासिक न होना आदि से ग्रसित है कुसुम के बीजों का काढ़ा लाभ करता है. 


कुसुम का तेल त्वचा के लिए एक अच्छी क्रीम का काम करता है. इसके इस्तेमाल से त्वचा कांतिमय बनी रहती है. त्वचा की खुश्की और यदि सर में लगाया जाए तो रुसी भी ख़त्म हो जाती है. एड़ियों में मधुमखी के असली  मोम के साथ मिलकर लगाने से एड़ियों का फटना रुक जाता है. 

बुधवार, 12 जनवरी 2022

भुइं आमला Phyllanthus Niruri Plant

भुइं आमला एक खर पतवार है. ये बरसात के मौसम में उगता है और इसको लोग तवज्जो नहीं देते बल्कि घास समझकर उखाड़कर फ़ेंक देते हैं. 

इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती होती हैं. पौधों की लम्बाई भी ज़्यादा नहीं होती. इसके पौधे कमजोर तने वाले एक से दो फुट ऊंचाई तक बढ़ते हैं. लेकिन इसकी एक खास बात ये है कि पौधा चाहे छोटा हो इसमें फल लगे होते हैं. ये फल पत्तियों के साथ छोटे आकार के दानों जैसे लगते हैं. इन्हें देखकर फल समझा भी नहीं जा सकता है. इनका आकार छोटे आमले जैसा होने के कारण इसे भुइं आमला या भूमि आमला कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम फाइलैंथस निरूरी है. ये इतना गुणकारी पौधा है कि इसे आयुर्वेद ने इस्तेमाल किया और इसके गुणों से परिचित होने पर होम्योपैथिक दवा के रूप में भी इस्तेमाल होता है. बाजार में  फाइलैंथस निरूरी मदर टिंक्चर मिल जाता है.  


भुइं आमला लिवर की बड़ी दवा है. लिवर का कोई भी रोग हो इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. चाहे लिवर में चर्बी बढ़ गयी हो, लिवर की खराबी से बिलरुबिन बढ़ गया हो, पीलिया हो गया हो, शरीर में सूजन आ गयी हो. इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. 
जलोधर के रोग में जिसमें प्लेट में पानी भर जाता है भुइं आमला बहुत कारगर है. इसके सब्ज़ी बनाकर थोड़ी मात्रा में खाने से पेट का पानी ठीक हो जाता है. अधिक सुरक्षित तरीका ये है की इसकी गोलियां जो देसी दवाई बनाने वाली कम्पनियां बेचती है लेकर इस्तेमाल करें या फिर ताज़ा पत्तियों का रस दो से चार चमच की मात्रा में पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार लें. 
लिवर के आलावा गुर्दे पर भी इसका बड़ा प्रभाव है. ये गुर्दे की पथरी तोड़कर निकाल देता है. गुर्दे में आक्जलेट जमा नहीं होने देता जिसके कारन पथरियां बनती हैं. यदि मूत्र संसथान के रोग हों और क्रेटिनिन और यूरिया बढ़ गया हो, गुर्दे का कार्य कमज़ोर पड़ गया हो तो इस दवा से काम लें. 
यदि होम्योपैथिक दवा के रूप में इस्तेमाल करना हो तो Phyllanthus Niruri Q के नाम से बाजार में मिल  जाएगा. इस दवा के 10 से 15 बूंद थोड़े पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार प्रयोग करें. ये प्रयोग करने में भी आसान है और इसकी डोज़ ज़्यादा हो जाने का खतरा भी नहीं है. 
इस दवा को होम्योपैथिक दवा के रूप में आप पुरानी पेचिश के रोग में, लिवर की खराबी में, गुर्दे के रोगों में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि किसी रोग का इलाज चल रहा है तो इलाज न छोड़ें और डाक्टर की सलाह से इस दवा को इस्तेमाल करें. 
गांव के जानकार लोग जिगर के रोगों में इसकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. इसके साथ वह एक अन्य खर पतवार जिसे बिसखपरा कहते हैं मिलाकर इस्तेमाल करते हैं. 
ये एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसकी लोगों ने क़द्र नहीं की. 


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