कालीजीरी एक पौधे के बीज हैं जो दवाओं में काम आते हैं. इसे कुछ लोग गलती से काला जीरा समझ लेते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है. जीरा एक मसाला है जिसका प्रयोग अक्सर खाने में किया जाता है. इसकी विशेष गंध और स्वाद होता है. लेकिन कालीजीरी का स्वाद कड़वा होता है. इसे खाने की डिश में प्रयोग नहीं किया जाता. ये दवा के रूप में प्रयोग होती है.
इसके कड़वे स्वाद और मतली, उलटी लाने के प्रभाव के कारण इसका प्रयोग एक बार में एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम की मात्रा में किया जाता है. दिन भर में इसकी एक ग्राम तक की मात्रा ली जा सकती है. इससे अधिक लेने पर इसके दुष्प्रभाव उतपन्न होते हैं जैसे जी मिचलाना, उलटी आना, पेट दर्द, शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना आदि. काली जीरी को कुछ लोग कड़वा जीरा भी कहते हैं.
इसके वानस्पतिक नाम में anthelminticumशब्द जुड़ा है जो यह बताता है कि कालीजीरी एक ऐसे दवा समूह से सम्बन्ध रखती है जो कृमि नाशक है. ऐसी दवाएं बिना मरीज को नुकसान पहुंचाए कीड़े मार या कृमि नाशक का कार्य करती हैं.
कालीजीरी नीम की तरह अच्छा एंटीसेप्टिक है. ये पेट के कीड़े भी मारकर निकाल देती है. इसके लिए एक ग्राम वायवडंग का पाउडर, ( यह एक प्रकार के काले भूरे बीज होते हैं, जिनका आकार काली मिर्च से मिलता जुलता होता है, यह भी पेट के कीड़े मारने के लिए प्रयोग की जाती है. ) आधा ग्राम कालीजीरी का पाउडर और थोड़ा सा गुड़ मिलाकर रात को सोते समय खिलाया जाता है. इसका 2 से 3 दिन का इस्तेमाल पेट के कीड़ों से छुटकारा दिला देता है. छोटे बच्चों को देना हो तो खुराक आधी करलें.
कालीजीरी 10 ग्राम , अजवायन 20 ग्राम , मेथी 20 ग्राम और कुटकी 10 ग्राम का पाउडर बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सुबह शाम लेने से मेटाबॉलिज़्म तेज़ होता है और मोटापा कम हो जाता है. लेकिन इस दवा का प्रयोग हकीम या वैद्य की निगरानी में करें.
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