गुरुवार, 23 अगस्त 2018

कुटकी

कुटकी एक प्रकार की जड़ है जो काले -भूरे रंग की कुछ ऐंठी हुई सी होती है. इसका पौधा पहाड़ो पर उगता है. इसे ऊंचाई और ठंडक दोनो चाहिए होते हैं. इस पौधे के जड़ ही दवा के रूप में प्रयोग की जाती है. इसका स्वाद कडुवा होता है और इसके कड़वे या कटु स्वाद के कारण ही इसका नाम कटुकी या कुटकी पड़ा.

कुटकी बरसों से लिवर के इलाज में प्रयोग की जा रही है. इसे लिवर टॉनिक माना जाता है. ये लिवर के कार्यों को दुरुस्त रखती है. कुटकी का प्रयोग अधिकतर शहद के साथ मिलकर  किया जाता है. शहद केवल इसके स्वाद को ही नहीं बल्कि इसके दुष्प्रभाव को भी काम कर देता है.
पीलिया रोग में कुटकी का एक ग्राम से तीन ग्राम की मात्रा में चूर्ण शहद के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है. ये लिवर के एंजाइम को दुरुस्त रखती है और लिवर सिर्रोसिस में बहुत लाभकारी है.
कुटकी के प्रयोग से आंतों का फंक्शन तेज़ हो जाता है जिससे भूख लगने लगती है और कब्ज़ भी दूर हो जाता है.
पेट और लिवर का फंक्शन ठीक होने से शरीर पर जो प्रभाव पड़ता है उससे रोगों से लड़ने की शक्ति यानि इम्युनिटी बढ़ जाती है और शरीर चुस्त दुरुस्त रहने लगता है.
कुटकी जोड़ो के दर्द में भी लाभकारी है. इसका नियमित प्रयोग शरीर से टॉक्सिन निकाल देता है. यूरिक एसिड की समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके लिए कुटकी को अश्वगंधा के साथ मिलकर प्रयोग किया जाता है.
कुटकी बुखार में भी लाभकारी है. बुखार में इसका पाउडर काली मिर्च के पाउडर और  शहद या शकर के साथ  खाया जाता है.
लेकिन कोई भी दवा जो फायदा करती है कुछ लोगों को नुकसान भी कर सकती है. इसलिए किसी भी जड़ी बूटी और दवा का प्रयोग करने से पहले हकीम या वैद्य की सलाह ज़रूर लेना चाहिए.

बुधवार, 8 अगस्त 2018

नीम

नीम के पेड़ को सभी जानते हैं. ये एक बड़ा वृक्ष है. इसकी पत्तियां, फल और छाल सभी कड़वी होती हैं. मार्च के महीने में नीम में सफ़ेद रंग के छोटे छोटे फूल आते हैं. 

 नीम का पतझड़ होने के बाद जब नई पत्तियां निकलती हैं के साथ ही नीम में फूल भी लगते हैं. फूल गुच्छो में लगते हैं. नीम के फल को निबोरी, निमोली, निमकौली, कहते हैं. ये फल भी कड़वे होते हैं लेकिन पकने के बाद कुछ मीठे हो जाते हैं लेकिन कड़वापन फिर भी बाकी रहता है.
नीम की नयी पत्तियां जिन्हे कोंपल भी कहते हैं मार्च में महीने में इस प्रकार सेवन की जाती हैं कि ढाई पत्तियां नीम की और ढाई काली मिर्च चबा कर सुबह बिना कुछ खाये तीन दिन तक खाई जाती है. इन तीन दिनों में खाने में बेसन की रोटी देशी घी लगाकर खायी जाती है. इसके अलावा सब चीज़ का परहेज़ रहता है. कहते हैं कि ये नुस्खा बेहतरीन ब्लड प्यूरीफायर है और इससे साल भर त्वचा के रोग नहीं होते.
इसी प्रकार ब्लड प्यूरीफिकेशन के लिए नीम की अंतर छाल यानि नीम की ऊपरी छाल को हटाकर नीचे जो गीली छाल निकलती है, का प्रयोग मार्च के महीने से जून के महीने तक किया जाता है. इस अंतर छाल का तीन से चार इंच के टुकड़े को सुबह एक गिलास पानी में भिगो दिया जाता है. शाम को खली पेट चार बजे ये पानी कुछ महीनो पीने से शरीर का सभी टॉक्सिन निकल जाता है और बहुत से रोगो के होने का खतरा टल जाता है.
यदि शरीर से  टॉक्सिन समय समय पर निकलते रहे तो भयंकर बीमारियों के होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. इसकी अंतर-छाल को पानी में भिगोकर पीने से रक्त ही साफ़ नहीं होता होता  त्वचा भी  कांतिमय हो जाती है और चेहरा दमकने लगता है.
नीम का तेल एंटी सेप्टिक है. बाजार में आसानी से मिल जाता है. थोड़ी मात्रा में नीम के बीज से घर पर भी निकला जा सकता है. इसके लिए नीम के बीजों को पीस लिया जाता है और थोड़े पानी में मिलकर आग पर गर्म करते हैं. तेल ऊपर आजाता है जिसे अलग कर लिया जाता है. 
नीम एक बहु-उपयोगी पौधा है. इसे नीम या आधा हकीम कहते हैं.  बरसात के दिनों में निलकने वाले फोड़े और फुंसी में नीम की बाहरी छाल पानी में घिसकर लगाने से लाभ होता है.
नीम के पके फल दिन में तीन से पांच की मात्रा में खाने से त्वचा के बीमारियां नहीं होतीं. इनका  प्रयोग लगातार 3 से 4  सप्ताह करना चाहिए.

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

कुकरमुत्ता

कुकरमुत्ता को टोडस्टूल और  मशरूम कहते हैं. ये एक प्रकार की फफूंद या फंगस है. गीले और नम स्थानों में उगता है. बरसात में कूड़े कचरे के ढेरों और पेड़ो की  छाल पर उगता है. बरसात में ये बहुतायत से पाया जाता है.

 बाजार मेंमशरूम के नाम से मिलता है. इसका सबसे प्रसिद्ध प्रकार बटन मशरूम है जो बहुतायत से सब्ज़ी के रूप में खाया जाता है. सब्ज़ी खाने वाले इसे सब्ज़ी - खोरों का मीट कहते हैं. लेकिन न ये मीट है न सब्ज़ी बल्कि ये एक फफूंद है.
बरसात में लोग जंगलों और खाली पड़े स्थानों पर मशरूम की तलाश में निकल जाते हैं. इसका एक प्रकार खुम्बी  या भुइं -फोड़ भी है. खुम्बी मशरूम की शाखा लम्बी और कैप गोल छोटी सी, घुण्डीदार होती है. ये भी बरसात में सब्ज़ी की दुकानों पर मिल जाती है. ये मशरूम ज़मीन को फोड़ कर उगता है. लोगों में भ्रान्ति है की जब बरसात में बिजली कड़कती है तो ये मशरूम पैदा होता है. लेकिन ये केवल भ्रान्ति ही है. सभी मशरूम बहुत सूक्ष्म बीज या स्पोर से उत्पन्न होते हैं.
मशरूम का सेवन डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभकारी है. मशरूम ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखता है. ये दिल को रोगो के लिए भी लाभकारी है.
शरीर का कांपना, स्नायु तंत्र की कमज़ोरी, धमनियों का मोटा पड़ना, और भूलने के बीमारी में मशरूम का नियमित इस्तेमाल लाभ करता  है.
मशरूम के इस्तेमाल से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ये कैंसर से बचाव करता है.
इसकी बहुत सी वैराइटी खायी जा सकती हैं. जो लोग जंगलों में मशरूम की खोज करते हैं वे कभी कभी जानकारी न होने के कारण  ज़हरीले मशरूम भी ले आते हैं. ऐसे मशरूम को खाकर भयानक बीमारियां हुई हैं और कभी कभी जान भी चली गयी है.
ये भी कहा जाता है की मशरूम देखने में जितना रंगीला, ख़ूबसूरत और चटकीले रंग वाला, चित्तीदार, या बहुत भयानक आकर, प्रकार का होता है उतना ही ज़हरीला होता है. बिना जाने समझे मशरूम का सेवन जानलेवा साबित हो सकता है.
बाजार में मिलने वाले मशरूम भी कभी कभी फ़ूड पॉइज़निंग का कारण बन जाते हैं. कुछ लोगों को मशरूम से एलर्जी होती है. ऐसे लोगों को मशरूम का सेवन उचित नहीं.

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