नीम के पेड़ को सभी जानते हैं. ये एक बड़ा वृक्ष है. इसकी पत्तियां, फल और छाल सभी कड़वी होती हैं. मार्च के महीने में नीम में सफ़ेद रंग के छोटे छोटे फूल आते हैं.
नीम का पतझड़ होने के बाद जब नई पत्तियां निकलती हैं के साथ ही नीम में फूल भी लगते हैं. फूल गुच्छो में लगते हैं. नीम के फल को निबोरी, निमोली, निमकौली, कहते हैं. ये फल भी कड़वे होते हैं लेकिन पकने के बाद कुछ मीठे हो जाते हैं लेकिन कड़वापन फिर भी बाकी रहता है.
नीम की नयी पत्तियां जिन्हे कोंपल भी कहते हैं मार्च में महीने में इस प्रकार सेवन की जाती हैं कि ढाई पत्तियां नीम की और ढाई काली मिर्च चबा कर सुबह बिना कुछ खाये तीन दिन तक खाई जाती है. इन तीन दिनों में खाने में बेसन की रोटी देशी घी लगाकर खायी जाती है. इसके अलावा सब चीज़ का परहेज़ रहता है. कहते हैं कि ये नुस्खा बेहतरीन ब्लड प्यूरीफायर है और इससे साल भर त्वचा के रोग नहीं होते.
इसी प्रकार ब्लड प्यूरीफिकेशन के लिए नीम की अंतर छाल यानि नीम की ऊपरी छाल को हटाकर नीचे जो गीली छाल निकलती है, का प्रयोग मार्च के महीने से जून के महीने तक किया जाता है. इस अंतर छाल का तीन से चार इंच के टुकड़े को सुबह एक गिलास पानी में भिगो दिया जाता है. शाम को खली पेट चार बजे ये पानी कुछ महीनो पीने से शरीर का सभी टॉक्सिन निकल जाता है और बहुत से रोगो के होने का खतरा टल जाता है.
यदि शरीर से टॉक्सिन समय समय पर निकलते रहे तो भयंकर बीमारियों के होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. इसकी अंतर-छाल को पानी में भिगोकर पीने से रक्त ही साफ़ नहीं होता होता त्वचा भी कांतिमय हो जाती है और चेहरा दमकने लगता है.
नीम का तेल एंटी सेप्टिक है. बाजार में आसानी से मिल जाता है. थोड़ी मात्रा में नीम के बीज से घर पर भी निकला जा सकता है. इसके लिए नीम के बीजों को पीस लिया जाता है और थोड़े पानी में मिलकर आग पर गर्म करते हैं. तेल ऊपर आजाता है जिसे अलग कर लिया जाता है.
नीम एक बहु-उपयोगी पौधा है. इसे नीम या आधा हकीम कहते हैं. बरसात के दिनों में निलकने वाले फोड़े और फुंसी में नीम की बाहरी छाल पानी में घिसकर लगाने से लाभ होता है.नीम की नयी पत्तियां जिन्हे कोंपल भी कहते हैं मार्च में महीने में इस प्रकार सेवन की जाती हैं कि ढाई पत्तियां नीम की और ढाई काली मिर्च चबा कर सुबह बिना कुछ खाये तीन दिन तक खाई जाती है. इन तीन दिनों में खाने में बेसन की रोटी देशी घी लगाकर खायी जाती है. इसके अलावा सब चीज़ का परहेज़ रहता है. कहते हैं कि ये नुस्खा बेहतरीन ब्लड प्यूरीफायर है और इससे साल भर त्वचा के रोग नहीं होते.
इसी प्रकार ब्लड प्यूरीफिकेशन के लिए नीम की अंतर छाल यानि नीम की ऊपरी छाल को हटाकर नीचे जो गीली छाल निकलती है, का प्रयोग मार्च के महीने से जून के महीने तक किया जाता है. इस अंतर छाल का तीन से चार इंच के टुकड़े को सुबह एक गिलास पानी में भिगो दिया जाता है. शाम को खली पेट चार बजे ये पानी कुछ महीनो पीने से शरीर का सभी टॉक्सिन निकल जाता है और बहुत से रोगो के होने का खतरा टल जाता है.
यदि शरीर से टॉक्सिन समय समय पर निकलते रहे तो भयंकर बीमारियों के होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है. इसकी अंतर-छाल को पानी में भिगोकर पीने से रक्त ही साफ़ नहीं होता होता त्वचा भी कांतिमय हो जाती है और चेहरा दमकने लगता है.
नीम का तेल एंटी सेप्टिक है. बाजार में आसानी से मिल जाता है. थोड़ी मात्रा में नीम के बीज से घर पर भी निकला जा सकता है. इसके लिए नीम के बीजों को पीस लिया जाता है और थोड़े पानी में मिलकर आग पर गर्म करते हैं. तेल ऊपर आजाता है जिसे अलग कर लिया जाता है.
नीम के पके फल दिन में तीन से पांच की मात्रा में खाने से त्वचा के बीमारियां नहीं होतीं. इनका प्रयोग लगातार 3 से 4 सप्ताह करना चाहिए.
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