रविवार, 7 मई 2017

बेल

बेल या बलागुंड, बिल्व फल एक सख्त छिलके वाला पहल है. इसका पौधा बड़ा होता है. इसके पौधे में बड़े बड़े कांटे होते हैं. अप्रैल मई में इसमें पतझड़ होकर नए पत्ते आते हैं और उसके साथ ही फूल भी आते हैं. इसका फल फरवरी मार्च में पकने लगता है.
इसके पत्तों का स्वाद कड़वा होता है. पत्तियों को थोड़ी मात्रा में पीसकर पानी में मिलकर पीने से डायबेटिस में लाभ होता है. शुगर को घटाने में ये प्रयोग मददगार साबित हुआ है.
बेल का फल पेट के लिए फायदेमंद है. ये डिसेंट्री को दूर करता है. इसका गूदा खाने में चिपचिपा होता है. इसका यही चिपचिपापन आँतों में जर्मस को लपेटकर शरीर के बाहर निकल देता है. बेल का मुरब्बा भी बनाया जाता है. इसे सुखाकर भी दवाओं में प्रयोग किया जाता है.
अपने रेचक स्वाभाव के कारण ये आंतो में जमे मल की निकलने और कब्ज़ को दूर करने में सहायक होता है. इसमें नेचुरल फाइबर पाया जाता है. ये नेचुरल फाइबर आँतों के सफाई करता है. गर्मी के मौसम में इसका प्रयोग बहुत सी पेट के बीमारियों से बचाता  है.
इसके स्वाद में कुदरती कड़वापन होता है. बीज एक गाढ़े चिपचिपे पदार्थ से लिपटे होते हैं. फल बेचने वाले कच्चे बेल को केमिकल के सहायता से पकाते हैं जिससे इसका कड़वापन और बढ़ जाता है और स्वाद अच्छा नहीं लगता.
इसका इस्तेमाल शरीर के अंदरूनी भागों से होने वाले खून के रिसाव को भी बंद करता है.

चौलाई

चौलाई  दो प्रकार की होती है. एक बिना काँटों की और दूसरी कांटेदार चौलाई. जंगली या खुद बी खुद उगने वाली चौलाई सब्ज़ी के रूप में प्रयोग की जाती है. खेतों में बोई जाने वाली चौलाई के पत्ते और पौधे जंगली चौलाई से बड़े होते हैं. इनके पत्तों का रंग ऊपर से हरा और नीचे लाल होता है. एक प्रकार की चौलाई जो बगीचों में सजावटी पौधों के रूप में लगाई जाती है, गहरे लाल या बैगनी रंग की होती है.
चौलाई के सभी वैराइटी खाई जा सकती हैं. लेकिन दो प्रकार की चौलाई ही आम तौर से खाई जाती है. बाजार में मिलने वाली खेतों में उगाई चौलाई और खुद उगने वाली जंगली चौलाई.

चौलाई के पत्तियों का शाक खाया जाता है. इसका मज़ा सीठा फीका होता है. कुछ लोगों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता. चौलाई खून साफ़ करती है. शरीर से विभिन्न प्रकार के विष और हानिकारक पदार्थों को निकल देती है. ये गुर्दों की सेल को री - जनरेट करती है. जिगर को विषैले पदार्थों से साफ़ करती है.
चौलाई डायूरेटिक या पेशाबआवर है. इसका इस्तेमाल स्किन को कांतिमय बनाता  है.
चौलाई खली पड़ी स्थानों और घास फूस के साथ अप्रैल- मई से लेकर अगस्त-सितम्बर तक पायी जाती है. बरसात में ये खूब फूलती फलती  है. बरसात के दिनों में ये गरीब लोगों का भोजन है. इसमें मिनरल्स और विटामिन की सूक्ष्म मात्रा है. ये किसी भी व्यक्ति या मरीज़ को नुकसान नहीं करती. इसका प्रयोग बिना किसी हिचकिचाहट के किया जा सकता है.  

मंगलवार, 2 मई 2017

सदाबहार

सदाबहार, सदाफूल और सदाफूली एक बहुतायत से पाए जाने वाले पौधे के नाम हैं. ये पौधा बाग़ बगीचों और घरों में सुन्दर फूलों के लिए लगाया जाता है. इसमें हर मौसम में फूल आते हैं. इसलिए इसका नाम सदाबहार पड़ा. इस पौधे को जानवर नहीं खाते इसलिए भी ये बगीचों के किनारे की कियारिओं में लगाया जाता है. इसके फूल आम तौर से दो रंगों के पाए जाते हैं. बैगनी रंग के फूलों वाला सदाबहार और सफ़ेद रंग के फूलों वाला सदाबहार. अंग्रेजी में इस पौधे को पेरीविंकल कहते हैं. ये पौधा एक या बहु वर्षीय होता है. इसको बीज या कटिंग से उगाया जाता है.

डायबेटीस की ये अचूक दवा है. इसमें पाए जाने वाले अल्कलॉइड शुगर को घटाने में मददगार साबित होते है. सदाबहार की सूखी पत्तियां, सूखा करेला, सूखी जामुन की गुठली, मेथी और गुड़मार को बराबर मात्रा में पाउडर बनाकर मिलाकर एक छूटा चमच दिन में तीन बार पानी के साथ लेने से शुगर का लेवल घट  जाता है. साथ में उचित परहेज़ करने से बहुत लाभ होता है.  सदाबहार ब्लड प्रेशर को कम करने में भी लाभकारी है. इस मामले में इसके गुण छोटी चन्दन या राउलफिआ सर्पेन्टीना से मिलते हैं. बेचैनी और ह्यपरटेन्शन को काम करने और ऐसे मरीज़ों में नींद लाने के लिए राउलफिआ सर्पेन्टीना का प्रयोग किया जाता है. राउलफिआ सर्पेन्टीना को पागलों के इलाज के लिए देसी दवा के
रूप में वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है. सदाबहार भी ब्लड प्रेशर काम करने और बेचैनी दूर करने में सहायक है.
सदाबहार कैंसर-रोधी भी माना जाता है. इसका काढ़ा कैंसर में लाभकारी होता है. कुछ मरीज़ों में इसके लाभकारी गुण देखे गए हैं.
ज़्यादा मात्रा में इसका इस्तेमाल मिचली, जी घबराना, ब्लड प्रेशर लो होना के लक्षण उत्पन्न कर सकता है. क्योंकि इसमें ब्लड प्रेशर घटाने के गुण  हैं इसलिए कभी कभी इसका अधिक इस्तेमाल ब्लड प्रेशर को बहुत काम कर देता है. जड़ी बूटी होते हुए भी ये ऐसी दवा नहीं है जिसका प्रयोग बिना सोचे समझे  किया जा सके. इसलिए इसका इस्तेमाल किसी जानकार हकीम या वैद्य की निगरानी में होना चाहिए. 

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