बुधवार, 6 सितंबर 2023

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10 सेंटीमीटर के लगभग होती है. इस पौधे की कुछ रों पत्तियां सूखी होती हैं  कुछ हरी। इस पौधे का फैलाव इसकी जड़ों से होता है. स्पोर्स भी इसके फैलाओ में सहायक होते हैं जो हवा के साथ उड़कर दूर तक पहुंच जाते हैं और उचित वातावरण मिलने पर नए पौधे बनाते हैं. 

हिन्दी में इसे कुछ लोग मयूर शिखा भी कहते हैं क्योंकि इसके पत्ते कटे किनारीदार होते हैं. लेकिन मयूर शिखा का नाम कन्फूज़न पैदा करता है.  मुर्गा केस cocks comb celosia flower को भी मयूर शिखा उसके फूलों की वजह से कहा जाता है. 

ऊंची दीवारों और महलों के कंगरों पर उगने के कारण इसका नाम महल कंघी पड़ा है जो उचित है और इसके मिजाज से मिलता है. 

इसके पौधे सितंबर अक्तूबर में सूखने लगते हैं और दीवारों पर सूखे गुच्छे से रह जाते हैं. बरसात आने पर नए पौधे पुरानी जड़ों से फूट निकलते हैं. 

इसका प्रयोग वर्षों से देसी और घरेलू दवाओं में किया जा रहा है. इस पौधे में घाव को भरने की शक्ति है. इसलिए इसको पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं. ये एक कीटाणुनाशक का कार्य भी करता है. 

इसका स्वभाव ठंडा और तर है. इसलिए मुंह के छालों में कत्थे के साथ इसकी पत्तियां चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं. ल्यूकोरिया में इसकी चार पांच पत्तियों को पीसकर दूध के साथ दिन में दो बार लेने से आराम होता है. 

इसके आलावा भी इस पौधे को बच्चों के पेट के कीड़े मारने के लिए भी प्रयोग किया जाता है. पत्तियों का पेस्ट बनाकर चीनी के साथ बच्चे की आयु के अनुसार दो से चार ग्राम की मात्रा में खिलाया जाता है. ये खुराक दो से तीन दिन तक दी जाती है. इस दौरान ये देखा जाता है की बच्चे का पेट ठीक रहे और उसे कब्ज़ न हो. आवश्यकतानुसार रेचक दवा भी दी जाती है जिससे पेट के कीड़े मरकर बाहर निकल जाते हैं. 

जड़ी बूटी कोई भी हो और कितनी ही लाभदायक हो उसका प्रयोग किसी काबिल हकीम ये वैध की निगरानी में ही करें क्योंकि कई बार पौधे को पहचानने में गलतियां हुई हैं और कई बार मरीज के मिजाज से विपरीत होने के कारण गंभीर परिणाम उत्पन्न हुए हैं. 

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मंगलवार, 8 अगस्त 2023

कनक चम्पा / मुचकुन्द का वृक्ष

 कनक चम्पा , मुचकुन्द  एक बड़ा वृक्ष है. इसके पत्ते बड़े और कटे किनारों वाले, मैपल के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. बड़े होने के कारण इसके पत्ते टहनियों में इस प्रकार लटकते हैं की मुरझाये हुए से लगते हैं.


फरवरी से लेकर जुलाई महीने तक इसमें बड़े बड़े हलके पीले रंग के फूल खिलते हैं. ये फूल पीली चमेली जिसे आम तौर से चंपा कहा जाता है के फूलों के सामान होने के कारण ही इसका नाम कनक चम्पा पड़ा है. 

वैसे इसका नाम संस्कृत पुस्तकों में मुचकुन्द है. ये सारे भारत में पाया जाने वाला पौधा है और विविध पर्यावरण में आसानी से लग जाता है. इसकी लकड़ी का रंग लाल होता है. इसे इमारती लकड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है. 


बुधवार, 12 जुलाई 2023

बारिश के दिनों में बाढ़ की स्थिति और पेड़ पौधे.

थोड़ी सी बारिश होते ही बड़े शहरों में  जैसे दिल्ली, मुंबई आदि में  सड़कों पर जल भराव की खबरे आती हैं. बारिश में शहर की सड़कें तालाब बन जाती हैं और अंडर पास भी पानी से भर जाते हैं जिससे दुर्घटना होने की सम्भावना बनी रहती है. 

शहरों में जल भराव का मुख्य कारण पानी की ठीक प्रकार से निकासी न होना, बहुत अधिक शहरीकरण, पेड़ पौधों का अंधाधुन्द कटान, कच्ची जमीन का आभाव और खर-पतवार, घास फूस को नष्ट करना है. नेचर का एक सिस्टम है जिसके द्वारा वह पानी के चक्र को बैलेंस रखती है. 


गाँवो में जो पानी बरसता है या जो पानी खेतों और जंगलों में गिरता है उसको रोकने में घास-फूस और पेड़ पौधे, कच्ची जमीने बहुत बड़ा रोल अदा करती हैं. कच्ची जमीन में बरसा हुआ पानी जमीन सोख लेती है, जंगलों में यह पानी पौधों की सूखी पत्तियां जो जमीन पर इकठ्ठा होकर एक मोटी परत बना लेती हैं, में ठहर जाता है. पेड़ पौधे भी इस पानी का एक बड़ा भाग रोक लेते हैं. 

शहरीकरण की सनक ने कच्ची ज़मीन के एक बड़े भाग को नष्ट कर दिया है. हर मकान पक्का है, छत पक्की है, घर और सड़क की नालियां, नाले, सड़कें  सब पक्की हैं. जो भी पानी बरसता है  उसका 90% भाग बह कर नाले में जाता है जो अंततः या तो जल भराव के रूप में जमा होता है या फिर नदियों में जाकर बाढ़ लाता है. 

दूर पर्वतों पर हो रहे जंगलों का कटान, दूर के जंगलों का नष्ट होना, खेती का छेत्रफल कम होना, अत्यधिक कालोनियों का बनाना, औद्योगीकरण, प्रदूषण, आदि के कारण पहाड़ों और जंगलों में हुई वर्षा का पानी भी जमीन में समाने के बजाए नदियों से  होता हुआ बडे शहरों का रुख करता है.  उत्तराखंड  में हुई बारिश भी दिल्ली को प्रभावित करती है. क्योंकि वहां पर जंगलों के कट जाने और पहाड़ों में अत्यधिक खनन के कारण पर्यावरण प्रभावित हुआ है. 

बाढ़ को रोकने और पानी के सही इस्तेमाल के लिए क्या उपाय करें?

बड़े जलाशयों/ रिजर्वायर में पानी इकठा करना 

पानी को बचाने के लिए आवश्यक है की बारिश के पानी को बेकार न जाने दिया जाए. ये एक बड़ा प्रोजेक्ट है जिसपर सरकार कार्य कर सकती है और इस दिशा में कुछ काम हुआ भी है. नदियों की किनारे बड़े जलाशय विकसित किये जाएं जिसमें बारिश की दिनों में नदियों का पानी जमा किया जाए. इससे बाढ़ की स्थिति भी नहीं बनेगी. और ये पानी सिंचाई के आलावा साफ़ करके पीने और घरेलू तथा औद्योगिक कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है. 

रेन हार्वेस्टिंग आवश्यक है 

पानी को बचाने और उसे वापस पृथ्वी में पहुँचाने के लिए रेन हार्वेस्टिंग एक कारगर उपाय है. पानी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अगर रेन हार्वेस्टिंग पर ध्यान न दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब पानी की एक एक बून्द के लिए तरसना पड़ेगा.  रेन वाटर हार्वेस्टिंग एक बड़ा प्रोजेक्ट है जिससे बड़े बोरवेल, ग्राउंड वाटर के स्रोत और तालाब आदि में पानी इकठ्ठा किया जा सकता है. 

ऐसे घरों में जहाँ कच्चा स्थान उपलब्ध है, या कोई बाग़ बगीचा, लॉन आदि मौजूद है वहां छोटे पैमाने पर बारिश का पानी ग्राउंड वाटर को स्रोत को रिचार्ज करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है. इसके लिए लॉन, बागीचे के बीच में एक से दो मीटर व्यास का एक गड्ढा बना लें जिसकी गहराई भी एक से दो मीटर हो. इस गड्ढे को गिट्टी, कंक्रीट आदि भर के एक सोख्ता गड्ढे की तरह बनाएं. इसको एक सीमेंट के कवर से ढक दें जिससे किसी का पैर इसमें न जाए. इस कवर में एक इंच व्यास के छेद एक से दो इंच की दूरी पर रखें. लॉन, बगीचे की सतह से यह कुछ नीचा हो जिससे बरसात का पानी इसमें छनकर नीचे ज़मीन में चला जाए. 

आप की यह छोटी सी कोशिश भूमिगत जल को समाप्त होने से बचाएगी. 

जमीन में ग्राउंड वाटर का स्तर लगाताएक र गिर रहा है. इसे सुधारना ज़रूरी है. प्रत्येक घर में रेन हार्वेस्टिंग का इंतिज़ाम होना ज़रूरी है. 

जमीन को कच्चा रखना 

जहाँ तक मुमकिन हो जमीन का कुछ भाग कच्चा रखें जिससे पानी को जमीन में जाने का रास्ता मिले और जल स्तर ें बढ़ौतरी हो. 

खर पतवार को नष्ट न करें 

खर पतवार भी आवश्यक है. ये नेचर का एक आवश्यक भाग है. 

अधिक पेड़ पौधे लगाएं. 

यदि सुखी जीवन चाहिए है तो पेड़ ज़रूर लगाएं. बाजार ने प्लास्टिक के पौधे बेचना शुरू कर दिए हैं. जो उपभोक्तावाद की निशानी हैं जिनसे कुछ नहीं मिलता. 


उपभोक्तावाद से बाहर निकलें. घरों के अंदर लगाने के लिए इनडोर प्लांट उपलब्ध हैं. इनकी देख भाल करें. जगह हो तो बड़े पेड़ भी लगाएं. 



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