बुधवार, 11 मार्च 2020

लभेड़ा

लभेड़ा एक आम माध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. इसकी आम तौर से दो किस्में पायी जाती हैं. एक पेड़ जिसके फल पूरी तरह गोलाई लिए हुए नहीं होते, ये कुछ चपटे से, आगे से नुकीले होते हैं. इसके फल बरसात के मौसम में पक जाते हैं. इनका रंग पकने पर प्याज़ी हो जाता है. खाने में ये मीठे और चिपचिपे होते हैं. इसके अंदर चिपचिपा गूदा भरा होता है. इसे ही लभेड़ा कहते हैं.


इसकी दूसरी किस्म वह है जिसके फल बड़े और गोलाई लिए होते हैं. इसे लाशोरा, लहसोड़ा, लसोड़ा, कहते हैं. इसके फल गर्मी, बरसात के मौसम में कच्चे, हरे सब्ज़ी बाजार में भी मिल जाते हैं. इन्हें सिरके में डाला जाता है और अचार के रूप में प्रयोग किया जाता है.


लभेड़ा और लहसोड़ा दोनों के गुण सामान हैं. लेकिन हकीमी दवाओं में लभेड़ा बहुतायत से प्रयोग होता है. नज़ले जुकाम के जोशांदे का ये मुख्य अव्यव है. खांसी के लिए विशेष दवा है. हकीमी दवाओं में सूखा लभेड़ा प्रयोग किया जाता है - इसे सपिस्तां कहा जाता है. सूखे लभेड़े का प्रयोग जोशांदे के आलावा, खांसी के नुस्खों, एसिडिटी कम करने की दवाओं और दवाओं की खुश्की  कम करने में भी होता है. जैसा की ऊपर लिखा जा चूका है इसकी एक बड़ी वैराइटी भी होती है जिसे लहसोड़ा, लाशोरा, लसोड़ा कहते हैं. इसलिए कुछ लोग इस छोटी वैराइटी को लसोड़ियां भी कहते हैं. लेकिन इसका मुख्य नाम लभेड़ा है. 
लभेड़े के पक्के फल खाने से एसिडिटी की समस्या दूर हो जाती है. 


लभेड़े का स्वभाव गर्म-तर है. ये बलगम को निकालता है. बार बार खांसी आने और सुखी खांसी में विशेष रूप से लाभ करता है. कब्ज़ में भी फायदा करता है.
लभेड़े  के पत्ते, अमरुद के पत्ते, गेहूं के आटे की भूसी (जो आटा  छानने से निकलती है) और थोड़ा सा नमक डालकर दो कप पानी में पकाएं. जब पानी आधा रह जाए तो छानकर पीने से नज़ला ज़ुकाम में बहुत लाभ होता है.
स्पर्मेटोरिया में लभेड़े के पक्के फल रोज़ाना सुबह शाम खाने से बहुत लाभ मिलता है. इसके लिए लहसोड़े के पक्के फल लभेड़े के फलों ज़्यादा लाभकारी हैं. 

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