गुरुवार, 11 अगस्त 2022

अरंड Castor Oil Plant, Ricinus communis

 अरंड, अंडी, अंडौआ  एक मध्यम ऊंचाई के पौधे के नाम हैं जिसकी लकड़ी कमज़ोर और पत्ते पपीते के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. पपीते का पेड़ एक सीधे तने वाला होता है जिसमें गोलाई में चारों ओर पत्ते लगे होते हैं और इसके तने में फूल फल लगते हैं. इस पौधे का वानस्पतिक नाम Ricinus communis है. 


जबकि अरंड का पेड़ बहुत सी शाखाओं वाला एक झाड़ीदार पेड़ होता है. सितंबर, अक्टूबर में इसके फूल निकलते हैं और फिर फल लगते हैं जो एक कांटेदार आवरण में बंद होते हैं. ये कांटे मुलायम होते हैं और हाथ में नहीं चुभते. सूखने पर ये फल तीन भागों में फट जाता है और इसमें से बीज निकलते हैं. इन बीजों को अण्डी कहते हैं. 

अण्डी का छिलका कड़ा होता है. इसपर चित्तियां पड़ी होती हैं. अण्डी काले, भूरे रंग की होती है इसके अंदर मुलायम बीज होता है जो तेल से भरा होता है. इसको हाथ से मसलने पर हाथ में तेल लग जाता है. 

अरंड, या अण्डी के तेल को कैस्टर ऑयल कहते हैं. इसका प्रयोग हकीम, वैद्य और डाक्टर सभी करते हैं. ये बहुत कॉमन दवा है. इसका मुख्य प्रयोग कब्ज़ दूर करने के लिए किया जाता है. सोते समय एक सो दो चमच कैस्टर ऑयल दूध में मिलाकर पिला देते है इससे खुलकर पेट साफ़ हो जाता है. कैस्टर ऑयल काफी गाढ़ा होता है. इसमें एक विशेष गंध आती है जो अरंड की गंध है, इसलिए बहुत से लोगों को ये सूट नहीं करता. 

ये एक बहुत अजीब हर्ब है. इसका तेल चमड़े को नरम करने, जलाकर रौशनी करने, कई प्रकार के साबुन, और औद्योगिक कार्यों में प्रयोग होता है. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है. कैस्टर ऑयल में त्वचा को कांतिमय बनाने, झुर्रियां दूर करने, धूप के बुरे प्रभाव से बचाने के गुण हैं. इसका प्रयोग लिपस्टिक बनाने में भी होता है. इस ऑयल का प्रयोग त्वचा की कुदरती नमी बरक़रार रखता है. 

कैस्टर ऑयल को थोड़ा सा असली गुलाब जल मिलाकर त्वचा पर लगाने से एक अच्छे नमी कारक का कार्य करता है. इसके इस्तेमाल से बालों की रुसी जाती रहती है. 

इसके पौधे को बहुत देखभाल की आवश्यकता नहीं होती. ये बरसात में आसानी से बीज से लगाया जा सकता है. मार्च अप्रैल में इसके फल पककर तैयार हो जाते हैं. किसानों के लिए ये एक अच्छी फसल है. इसका पौधा दो-तीन वर्ष तक रह सकता है. दूसरे साल में इसमें अच्छी पैदावार होती है. तीन साल के बाद इसके पौधे पुराने हो जाते हैं. तब नए पौधे लगाने चाहिए. 


इसकी लकड़ी का कोयला बहुत हल्का होता है. इस कोयले से दांत साफ़ करने से दांत चमक जाते हैं. 

अजीब बात है कि इसका फल जिसे अण्डी कहते है एक खतरनाक ज़हर है. बच्चों को इससे दूर रखें. कई बार बच्चों ने गलती से अण्डी को खा लिया है जिससे गंभीर परिणाम उत्पन्न हुए हैं. 


सोमवार, 8 अगस्त 2022

कायफल Myrica esculenta

 कायफल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है जिसका घर हिमालय का क्षेत्र गढ़वाल, कुमाऊं नेपाल और भूटान है. ये पहाड़ों की ऊंचाई पर 1000 से 2000 फिट की ऊंचाई पर उगता है. ये उत्तराखंड का विशेष फल है और वहां बहुत चाव से खाया जाता है. इसे काफल कहते हैं. 

ये फल छोटे, गोल आकार के पकने  लाल रंग के हो जाते हैं. इन फलों का सीज़न अप्रैल, मई का होता है जब मार्केट में ये बहुतायत से मिलते हैं. 

लेकिन दवाओं में इसकी छाल का प्रयोग होता है. इसकी छाल कायफल के नाम से बाजार में मिलती है. जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों से मांगने पर कायफल की छाल ही मिलती है. इसके लिए अलग से कायफल की छाल कहने की आवश्यकता नहीं है. 

कायफल की छाल का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. इसका स्वाद कड़वा होता है और इसका प्रभाव गर्म तर है. दांतों की समस्याएं, दांतों से खून पीप निकलना, मसूढ़ों की सूजन में इसकी छाल का काढ़ा बनाकर गार्गल करने से लाभ होता है. 

कायफल की छाल एंटीसेप्टिक का कार्य करती है. इसका पाउडर बनाकर घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भर जाते हैं और उनमें सड़न नहीं होती. 

एक आदमी बहुत पुराने नज़ला ज़ुकाम से परेशान था. दादी ने उसे कायफल की छाल का पाउडर बनाकर उसे एक पोटली में बांधकर दे दिया. उससे कहा की इस पोटली को हाथ में रखो और जब तब सूंघते रहो. उसने ऐसा ही किया. कायफल की छाल का पाउडर सूंघने से उसे बहुत छींकें आयीं और पुराना ज़ुकाम बह गया. फिर दादी ने उसे कुश्ता मरजान, खमीरा मरवारीद में मिलकर खाने को कहा. पुराना ज़ुकाम जो किसी दवा से नहीं जाता था, ठीक हो गया. 


कायफल की छाल से बना तेल जोड़ों के दर्दों के लिए भी लाभकारी है. इसे लगाकर सिंकाई करें और गर्म पट्टी बांधें. 

कायफल एक फल ही नहीं एक कमाल की दवा है. 

रविवार, 7 अगस्त 2022

हाथीसूँडी बूटी Heliotropium indicum

 हाथीसूँडी एक जड़ी बूटी है जो खली पड़े स्थानों, खेतों और सड़कों के किनारे उगती है. इसका मौसम जून जुलाई से अक्टूबर तक का है. इसमें लम्बी शाखाओं में गुच्छों में फूल लगते हैं. ये फूलों की शाखाएं हाथी की सूंड से मिलती जुलती होने के कारण इसे हाथीसूँडी बूटी कहते हैं. 

इसका प्रयोग पुराने हकीम चांदी की भस्म बनाने में करते थे. हकीम चांदी की भस्म को कुश्ता नुकरा कहते हैं. इसे शक्तिवर्धक और खून की कमी दूर करने में प्रयोग किया जाता है. इस बूटी के पत्तों को कुचल कर पेस्ट बनाकर उसमें चांदी के पतले टुकड़ों को जिसे चांदी का पत्रा कहते थे लपेटकर एक मिटटी के बर्तन में रखकर उसे अच्छी तरह कपड़मट करके सुखाने के बाद आग में फूँक लेते थे. इससे चांदी के बारीक़ पत्र खील खील हो जाते थे इसे ही चांदी का कुश्ता कहते थे. 


ये बूटी ताज़े घाव से खून को बंद करने और घाव को सुखाने में बहुत कारगर है. पुराने घाव भी इसके पत्तों का रस लगाने से ठीक हो जाते हैं. इसके स्वभाव गर्म-तर है. जिन महिलाओं को मासिक धर्म की समस्या हो, इसके पत्तों और जड़ का जोशांदा बनाकर पिलाने से मासिक खुलकर आता है. अधिक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं को गर्भपात हो जाता है. इसलिए इस बूटी को गर्भवती महिलाऐं इस्तेमाल ने करें. 

इसकी जड़ का जोशांदा खांसी और बुखार में भी लाभ करता है. कहते हैं कि बारी का ज्वर जिसे मलेरिया कहते हैं हाथीसूँडी के सामने टिक नहीं सकता. ये बूटी ऐसे मौसम में पैदा होती है जिस मौसम में मलेरिआ का प्रकोप होता है. पुराने जानकार इस बूटी के जोशांदे के साथ काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर इस्तेमाल करते थे और मलेरिआ छूमन्तर हो जाता था. 

आंखो की सूजन में इसके पत्तों को कुचलकर, आंख बंद करके ऊपर बांधने से आराम मिलता है. लेकिन ये ज़रूर देखलें की पत्ते साफ हों और उनमने गंदगी न हो. 

हाथीसूँडी जोड़ों के दर्द में भी लाभकारी है. इसका तेल बनाकर या फिर जड़ को पीसकर दर्द वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है. 


शनिवार, 6 अगस्त 2022

अश्वगंधा Withania somnifera

अश्वगंधा एक छोटा हर्ब है. इसे दवाई के लिए उगाया भी जाता है और ये जंगली पौधों की तरह भी उगता है. इसके फल या बीज पककर लाल रंग के हो जाते हैं और रसभरी की तरह एक कवर में बंद होते हैं. इनका आकार मकोय के बराबर होता है. इन फांफ में छोटे बीज भरे होते हैं. 

इसकी जड़ों को दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी ताज़ी जड़ों से घोड़े की गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या घोड़े की गंध वाली बूटी कहते हैं. इस पौधे से पुराने वैद्य खूब वाकिफ थे और वे ही इसे दवाई के रूप में प्रयोग करते थे. फिर इस दवा को हकीमों ने इस्तेमाल करना शुरू किया और वे भी इसके गुणों से परिचित हो गये और उन्होंने माना की अश्वगंधा कमाल की दवा है. 

इसे हकीमों ने असगंध कहा और यही नाम प्रचलित हो गया. नागौर के इलाके की अश्वगंधा बहुत कारगर मानी जाती है इसलिए हकीम इसे असगंध नागौरी लिखते हैं. 

बाजार में ये छोटी लकड़ियों के रूप में मिलती है. ये इसकी सुखी जड़ें होती हैं. इनका रंग क्रीम, भूरा होता है. पीसने पर आसानी से पिस कर पाउडर बन जाती हैं. इनमें रेशे भी नहीं होते. बाजार में इसका पाउडर भी मिलता है जिससे कूटने पीसने के झंझट से छुटकारा मिल जाता है. 

अश्वगंधा का इस्तेमाल घोड़े की तरह बल उतपन्न करता है. इसका पाउडर 1 से 3 ग्राम की मात्रा तक उपयोग किया जा सकता है. ये रक्त में हीमोग्लोबिन को बढ़ाता है और मांस पेशियों को मज़बूत करता है. 

जो लोग नींद की कमी, बेचैनी, घबराहट, डिप्रेशन का शिकार हैं अश्वगंधा उनके लिए बहुत लाभकारी टॉनिक का काम कर सकता है. 

इसके इस्तेमाल से दिल की ही नहीं, दिमाग की सेहत भी दुरुस्त रहती है. ये पुरुषों में कामोद्दीपन करने में सक्षम है. इससे टेस्टोस्टेरोन की मात्रा बढ़ती है और ज़िंदगी जीने की इच्छा बलवती होती है. जो लोग ज़िंदगी से मायूस हो चुके हों अश्वगंधा उनका बेहतरीन साथी है. ये मूड को फ्रेश करता है और अच्छी नींद लाने में मदद करता है. 

ये जोड़ों के दर्दों, कमर दर्द, स्त्रियों के श्वेत प्रदर, की अचूक दवा है. अश्वगंधा और सुरंजान का चूर्ण समान मात्रा में मिलकर खाने से जोड़ों और कमर के दर्द से छुटकारा मिल जाता है. 

ये लिवर के लिए भी अच्छी दवा है. शरीर से ज़हरीले माद्दे निकलकर शरीर को डिटॉक्स कर देता है. 

होम्योपैथी वाले भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. अश्वगंधा मदर टिंक्चर में बाजार में मिलता है. 

अजीब बात है कि अश्वगंधा की जड़ों में बहुत गुण हैं लेकिन इसके फल और बीज अगर खाए जाएं तो बहुत नुक्सान करते हैं. उलटी और पेट में दर्द शुरू हो जाता है. 

अश्वगंधा को किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में ही इस्तेमाल करें.  

सोमवार, 1 अगस्त 2022

समुद्र फल Indian Oak, Barringtonia acutangula

समुद्र फल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. ये नदियों की किनारे पाया जाता था इसलिए इसका नाम समुद्र फल या सिंधु फल पड़ा. इसे भारतीय शाह बलूत या इंडियन ओक भी कहते हैं. इसका एक नाम हिज्जाल भी है. हकीम इसे जोज़-अल-कै भी कहते हैं. 

इसके पेड़ में गुच्छो में लम्बी शाखों में लाल रंग की खूबसूरत फूल लगते हैं. फूलों की लम्बी शाखाओं की वजह से ये आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके दवाई गुण बहुत लाभकारी हैं. लेकिन इसका इस्तेमाल करना हर किसी के बस की बात नहीं है. इसका सबसे बड़ा गुण उल्टी लाने का है. इसके इस्तेमाल से बहुत ज़ोर की मिचली और उलटी आती है. बहुत थोड़ी मात्रा में इसका प्रयोग वैद्य लोग बलगम निकालने और खांसी दूर करने में करते हैं. 


ये सूजन को घटाता है इसलिए फेफड़ों की शोथ, न्यूमोनिया, कफ और पुरानी खांसी, दमा रोग में फायदेमंद है लेकिन प्रयोग फिर सावधानी चाहता है और काबिल वैद्य या हकीम की निगरानी में ही इस्तेमाल किया जा सकता है. 

समुद्र फल कैंसर रोधी है. ये ट्यूमर को घटाकर कम कर देता है. इसके अतिरिक्त ये मूत्र की मात्रा को बढ़ा देता है. शरीर में पानी पड़ जाने और उसकी वजह से सूजन आ जाने में फायदा करता है. 

अजीब बात है कि मछलियों की लिए ये एक घातक विष है. मछुआरे इसकी छाल पीसकर पानी में डाल देते हैं जिससे मछलियां मर जाती हैं. दूसरी अजीब बात ये है कि इसके फल रीठे की तरह कपडे धोने में काम आते हैं. कपड़ों के लिए ये एक डिटर्जेंट का काम करता है. 

समुद्र फल का इस्तेमाल न करें. ये खतरनाक हो सकता है.  


आम के बीज से पौधा उगना Mango Seed Germination

आम की गुठली जिसे आम का बीज भी कहते हैं आम का पौधा बहुत आसानी से जमाया जा सकता है. घूरे कूड़े पर पड़ी आम की गुठलियां बरसात का पानी पाकर उनसे पौधे निकलते हैं. लेकिन उचित देख रेख न मिलने या फिर बरसात के बाद पानी न मिलने से सूख जाते हैं.  

आम की गुठली मोटी और सख्त होती है. बीज को जमने के लिए इतने पानी की ज़रूरत होती है जिससे अंदर का बीज फूल जाए, उसमें जड़ निकले और वह बहरी कवर को फाड़कर बाहर निकल सके. इसके लिए कुदरत ने आम के बीज में रेशे बनाए हैं जो पानी सोख लेते हैं और गुठली नरम हो जाती है. आम के बीज को जमने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान की ज़रूरत होती है. इसके अलावा इसे गर्म और नम मौसम चाहिए. उत्तरी भारत में ये सभी आवश्यकताएं बरसात के मौसम में आसानी से पूरी हो जाती हैं इसलिए आम के बीज आसानी से फूट जाते हैं और इनसे नए पौधे निकलते हैं. 

आम की गुठली को एक गमले में बगीचे की मिटटी में लगा दीजिये. इसे हल्का पानी दीजिये जिससे इसमें नमी बनी रहे. गुठली से सबसे पहले जड़ निकलती है. जड़ एक छोटे छेद से निकलती है जहाँ पुर कुदरत ने गुठली को थोड़ा सा कमज़ोर रखा होता है. जड़ पानी लेकर अंदर के बीज को देती है जिससे बीज फूल जाता है और उसके फूलने से गुठली फट जाती है. अब इस गुठली से नन्ही छोटी पत्तियां निकलती हैं जिनका रंग बैगनी होता है. ये आम में मौजूद टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की वजह से होता है. 

गुठली पर धुप पड़ने से वह भी हरे रंग में बदल जाती है और क्लोरोफिल के कारण कुछ भोजन बनाकर नयी पत्तियों को देती है. गुठली में भी इस नये पौधे के लिए भोजन पहले ही मौजूद होता है. लेकिन कुदरत इसका पोषण दो तरह से करती है. 

गुठली से पौधा दो सप्ताह में निकल आता है. दो सप्ताह के पौधे का फोटो ये है. 


पौधा धीरे धीरे डेवलप होता है. इसकी पत्तियां अभी हरी नहीं होतीं. अगले एक सप्ताह के बाद पौधा कुछ इस तरह का लगता है. 


अगले एक सो दो सप्ताह में पौधा लम्बाई में बढ़ जाता है. इसके पत्ते भी बड़े हो जाते हैं और जड़ गहराई में पहुंच जाती है. चार सप्ताह के पौधे का चित्र ये है:


पांच से छः सप्ताह में पौधे की पत्तियां और बड़ी हो जाती हैं. इस पौधे का चित्र ये हैं:


आम का नया पौधा सितंबर तक बढ़ता है. लेकिन ये एक डेढ़ फुट से ज़्यादा नहीं बढ़ता. अब क्योंकि पतझड़ का मौसम आ जाता है और आम के पौधे सुप्तावस्था में चले जाते हैं. 

इन नये पौधों को सर्दी के मौसम में सर्दी और पाले की मार से बचाना ज़रूरी है. नहीं तो पौधा मर जाता है. फरवरी में ये पौधे फिर जागते हैं और इनमें नयी पत्तियां निकलती हैं. 

दो या तीन वर्ष के पौधों को नयी जगह पर लगाया जा सकता है. बीज से बने आम के पौधे में फल आने में सात से दस वर्ष लगते हैं. 

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