बुधवार, 19 जनवरी 2022

हालिम Garden Cress Seeds

 हालिम एक बीज है जो दवाओं और घरेलू रेसिपी में इस्तेमाल होता है. ये लाल रंग के छोटे बीज होते हैं. बाज़ार में हालिम, हलीम, हालों, चैनसुर, चंद्रशूर के नाम से मिल जाते हैं. ये गार्डेन क्रिस के बीज हैं जो सलाद के लिए उगाया जाता है. इस पौधे की पत्तियों का स्वाद तीखा होता है. इसके  मिर्च जैसे  स्वाद के कारन इसे सलाद में और खाने की डिश में इस्तेमाल किया जाता है. 

हालिम के बीजों को अगर पानी में भिगोया जाए  तो ये फूल जाते हैं और लेसदार/चिपचिपे हो जाते हैं. बिलकुल इसी तरह जैसे पानी में भिगोने पर इसबगोल बीज या इसबगोल का सत चिपचिपा हो जाता है. हालिम के बीजों को इस्तेमाल करने से पहले इसे कुछ देर पानी में भिगो दिया जाता है और फिर इसे दूध में या पानी में मिलकर पिया जाता है. कहते हैं की इसमें इतने गुण हैं कि इसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है. एक बार में हालिम के बीज एक से दो चमच तक इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ये कैल्शियम का खज़ाना है. इसमने बहुत से मिनरल और आइरन है. अनेकों विटामिन हैं. इसके इस्तेमाल से खून की कमी दूर होती है. शरीर को बल मिलता है. हालिम का स्वभाव गर्म है. प्रसूता महिलाओं को इस्तेमाल कराने  से शरीर की अच्छी सफाई कर देता है और प्रसूत की बीमारियां नहीं होतीं. गर्भवती महिलाओं को इसके प्रयोग से नुक्सान हो सकता है. 


सर्दी के दिनों में गर्म दूध के साथ हालिम का इस्तेमाल रात  को सोते समय करने से सर्दी को रोगों, ज़ुकाम, खांसी से बचाव रहता है. लेकिन हालिम के बीज को पहले पानी या दूध में लगभग एक घंटा भिगोकर इस्तेमाल करें. कभी भी इस दवा को सूखा नहीं खाना  चाहिए. 

अपने चिपचिपे स्वाभाव के कारण हालिम आंतों की खुश्की दूर कर देता है. कब्ज़ में  भी राहत दिलाता है. बच्चों को देने से लम्बाई बढ़ने में मददगार साबित होता है. 

इसका सलाद भी स्वादिष्ट होता है. लेकिन इसे मिर्च की तरह ही कम मात्रा में खाना चाहिए. अधिक इस्तेमाल से पेट में जलन पड़ सकती है और स्किन की बीमारियां हो सकती हैं. 

हालिम का प्रयोग केवल खाने में ही नहीं किया जाता. ये लगाने की भी दवा है. मोच आने पर ये हड्डी में बाल पड़ जाने पर हालिम, हल्दी और चूने का पेस्ट बनाकर, उसमें थोड़ा सा साबुन मिलाकर पकाएं और मोच/ चोट  की जगह हल्का गर्म लगाकर पट्टी बांध दें. कहते हैं यदि हड्डी को सेट करके ये प्रयोग किया जाए तो टूटी हड्डी भी जुड़ जाती है.  


रविवार, 16 जनवरी 2022

सुदाब या तितली का पौधा

तितली का पौधा रबी की फसल में गेहूं के खेतों में उगता है. इसकी पत्तियां छोटी इमली के पत्तों से मिलती जुलती लेकिन आगे से गोलाई लिए होती हैं. इसमें पीले रंग की फूल खिलते हैं. इसके बीज कवर के अंदर बंद होते हैं. बीज सूखने पर चटक कर  बीज गिर जाते हैं और अगले साल जमने के लिए ज़मीं इन्हें सुरक्षित रख लेती है. 

इसका दूसरा नाम सुदाब है. इसका पंचांग बर्गे सुदाब के नाम से देसी दवा के रूप में मिल जाता है. इसको अंग्रेजी भाषा में  Common Rue कहते हैं. इसका साइंटिफिक नाम Ruta Graveolens है.  

Ruta Graveolens को होम्योपैथी में भी इस्तेमाल किया जाता है. इसको हकीम बर्गे  सुदाब  जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हकीमों के लिए ये आम तौर से इस्तेमाल होने वाली दवा है. जोड़ों के दर्द, खासकर कलाई और उंगलियों के दर्दों में बहुत कारगर है. इसका स्वभाव गर्म है. गर्म मिज़ाज होने के कारण  इसके प्रयोग से रुका हुआ मासिक खुल जाता है. गर्भवती महिलाओं को इसके प्रयोग से बचना चाहिए. 

देहाती लोग बरसों से इसके दर्द निवारक प्रयोग से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वह इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर शहद के साथ, थोड़ा सा गर्म करके जोड़ों पर लगाते  हैं जिससे दर्दों में बहुत आराम मिलता है. इसके पंचांग को तेल  में जलाकर , छानकर   प्रयोग करने से भी दर्द ठीक हो जाता है 

कहते हैं की चेहरे को लकवा  मार जाए तो ताज़ा सुदाब की पत्तियों का रस निकलकर नाक में दो बून्द टपकाने  से लकवा रोग में फ़ायदा होता है। 

सुदाब त्वचा पर खराब असर दाल सकता है. कभी इसके प्रयोग से एलर्जी हो जाती है. त्वचा पर छाले  पड़  जाते हैं. इसलिए सुदाब या तितली के पौधे को  मामूली पौधा न समझें. इसका  प्रयोग हकीम  की निगरानी में ही करे तभी  नुकसान से बचे रहेंगे. 

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

कुसुम Safflower Plant

 कुसुम एक सुंदर पौधा है जिसकी खेती इसके बीजों के लिए मुख्य रूप से की जाती है. कुसुम के फूल भी पीला / लाल रंग बनाने के लिए प्रयोग होते हैं. ये कुदरती लाल और पीला रंग देता है जिसे खाने और कपडे आदि रंगने में बरसों से प्रयोग किया जा रहा है. 

कुसुम को कड़ भी कहते हैं. कुछ स्थानों पर इसे कुसुम्भ, कुसमा भी कहा जाता है. हकीम इसे कर्तुम कहते हैं और इसे बीजों को तुख्मे कर्तुम के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. 

तुख्मे कर्तुम या कड़ के बीज सफ़ेद रंग के बीज होते हैं जो सूरजमुखी के बीजों से मिलते जुलते होते हैं. दोनों में फर्क ये है की सूरजमुखी के बीज काले रंग के होते हैं जबकि कुसुम के बीज सफ़ेद होते हैं. इसके आलावा सूरजमुखी की बीज कुछ चपटापन लिए होते हैं जबकि कुसुम के बीज कुछ उभरे हुए से होते हैं. इन बीजों से तेल निकला जाता है जो रंगहीन और गंधहीन होने के कारन न केवल खाने के काम में बल्कि सकमेटिक बनाने, क्रीम और दवाओं के रूप में प्रयोग होता है. 


कुसुम के पौधे को अधिक पानी की ज़रूरत नहीं होती इसलिए ये शुष्क ज़मीनों के लिए अच्छी फसल है. इसके किसान को लाभ होता है. रंग के कारण इसे नकली केसर भी कहा जाता है. 

कुसुम का स्वभाव गर्म है. इसके बीजों को हकीम काढ़े के रूप में अन्य दवाओं के साथ मिलकर महिलाओं के रोगों में देते हैं. ऐसे महिलाएं जो मासिक धर्म की खराबियों, समय से मासिक न होना आदि से ग्रसित है कुसुम के बीजों का काढ़ा लाभ करता है. 


कुसुम का तेल त्वचा के लिए एक अच्छी क्रीम का काम करता है. इसके इस्तेमाल से त्वचा कांतिमय बनी रहती है. त्वचा की खुश्की और यदि सर में लगाया जाए तो रुसी भी ख़त्म हो जाती है. एड़ियों में मधुमखी के असली  मोम के साथ मिलकर लगाने से एड़ियों का फटना रुक जाता है. 

बुधवार, 12 जनवरी 2022

भुइं आमला Phyllanthus Niruri Plant

भुइं आमला एक खर पतवार है. ये बरसात के मौसम में उगता है और इसको लोग तवज्जो नहीं देते बल्कि घास समझकर उखाड़कर फ़ेंक देते हैं. 

इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती होती हैं. पौधों की लम्बाई भी ज़्यादा नहीं होती. इसके पौधे कमजोर तने वाले एक से दो फुट ऊंचाई तक बढ़ते हैं. लेकिन इसकी एक खास बात ये है कि पौधा चाहे छोटा हो इसमें फल लगे होते हैं. ये फल पत्तियों के साथ छोटे आकार के दानों जैसे लगते हैं. इन्हें देखकर फल समझा भी नहीं जा सकता है. इनका आकार छोटे आमले जैसा होने के कारण इसे भुइं आमला या भूमि आमला कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम फाइलैंथस निरूरी है. ये इतना गुणकारी पौधा है कि इसे आयुर्वेद ने इस्तेमाल किया और इसके गुणों से परिचित होने पर होम्योपैथिक दवा के रूप में भी इस्तेमाल होता है. बाजार में  फाइलैंथस निरूरी मदर टिंक्चर मिल जाता है.  


भुइं आमला लिवर की बड़ी दवा है. लिवर का कोई भी रोग हो इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. चाहे लिवर में चर्बी बढ़ गयी हो, लिवर की खराबी से बिलरुबिन बढ़ गया हो, पीलिया हो गया हो, शरीर में सूजन आ गयी हो. इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. 
जलोधर के रोग में जिसमें प्लेट में पानी भर जाता है भुइं आमला बहुत कारगर है. इसके सब्ज़ी बनाकर थोड़ी मात्रा में खाने से पेट का पानी ठीक हो जाता है. अधिक सुरक्षित तरीका ये है की इसकी गोलियां जो देसी दवाई बनाने वाली कम्पनियां बेचती है लेकर इस्तेमाल करें या फिर ताज़ा पत्तियों का रस दो से चार चमच की मात्रा में पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार लें. 
लिवर के आलावा गुर्दे पर भी इसका बड़ा प्रभाव है. ये गुर्दे की पथरी तोड़कर निकाल देता है. गुर्दे में आक्जलेट जमा नहीं होने देता जिसके कारन पथरियां बनती हैं. यदि मूत्र संसथान के रोग हों और क्रेटिनिन और यूरिया बढ़ गया हो, गुर्दे का कार्य कमज़ोर पड़ गया हो तो इस दवा से काम लें. 
यदि होम्योपैथिक दवा के रूप में इस्तेमाल करना हो तो Phyllanthus Niruri Q के नाम से बाजार में मिल  जाएगा. इस दवा के 10 से 15 बूंद थोड़े पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार प्रयोग करें. ये प्रयोग करने में भी आसान है और इसकी डोज़ ज़्यादा हो जाने का खतरा भी नहीं है. 
इस दवा को होम्योपैथिक दवा के रूप में आप पुरानी पेचिश के रोग में, लिवर की खराबी में, गुर्दे के रोगों में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि किसी रोग का इलाज चल रहा है तो इलाज न छोड़ें और डाक्टर की सलाह से इस दवा को इस्तेमाल करें. 
गांव के जानकार लोग जिगर के रोगों में इसकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. इसके साथ वह एक अन्य खर पतवार जिसे बिसखपरा कहते हैं मिलाकर इस्तेमाल करते हैं. 
ये एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसकी लोगों ने क़द्र नहीं की. 


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