भुइं आमला एक खर पतवार है. ये बरसात के मौसम में उगता है और इसको लोग तवज्जो नहीं देते बल्कि घास समझकर उखाड़कर फ़ेंक देते हैं.
इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती होती हैं. पौधों की लम्बाई भी ज़्यादा नहीं होती. इसके पौधे कमजोर तने वाले एक से दो फुट ऊंचाई तक बढ़ते हैं. लेकिन इसकी एक खास बात ये है कि पौधा चाहे छोटा हो इसमें फल लगे होते हैं. ये फल पत्तियों के साथ छोटे आकार के दानों जैसे लगते हैं. इन्हें देखकर फल समझा भी नहीं जा सकता है. इनका आकार छोटे आमले जैसा होने के कारण इसे भुइं आमला या भूमि आमला कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम फाइलैंथस निरूरी है. ये इतना गुणकारी पौधा है कि इसे आयुर्वेद ने इस्तेमाल किया और इसके गुणों से परिचित होने पर होम्योपैथिक दवा के रूप में भी इस्तेमाल होता है. बाजार में फाइलैंथस निरूरी मदर टिंक्चर मिल जाता है.
भुइं आमला लिवर की बड़ी दवा है. लिवर का कोई भी रोग हो इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. चाहे लिवर में चर्बी बढ़ गयी हो, लिवर की खराबी से बिलरुबिन बढ़ गया हो, पीलिया हो गया हो, शरीर में सूजन आ गयी हो. इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है.
जलोधर के रोग में जिसमें प्लेट में पानी भर जाता है भुइं आमला बहुत कारगर है. इसके सब्ज़ी बनाकर थोड़ी मात्रा में खाने से पेट का पानी ठीक हो जाता है. अधिक सुरक्षित तरीका ये है की इसकी गोलियां जो देसी दवाई बनाने वाली कम्पनियां बेचती है लेकर इस्तेमाल करें या फिर ताज़ा पत्तियों का रस दो से चार चमच की मात्रा में पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार लें.
लिवर के आलावा गुर्दे पर भी इसका बड़ा प्रभाव है. ये गुर्दे की पथरी तोड़कर निकाल देता है. गुर्दे में आक्जलेट जमा नहीं होने देता जिसके कारन पथरियां बनती हैं. यदि मूत्र संसथान के रोग हों और क्रेटिनिन और यूरिया बढ़ गया हो, गुर्दे का कार्य कमज़ोर पड़ गया हो तो इस दवा से काम लें.
यदि होम्योपैथिक दवा के रूप में इस्तेमाल करना हो तो Phyllanthus Niruri Q के नाम से बाजार में मिल जाएगा. इस दवा के 10 से 15 बूंद थोड़े पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार प्रयोग करें. ये प्रयोग करने में भी आसान है और इसकी डोज़ ज़्यादा हो जाने का खतरा भी नहीं है.
इस दवा को होम्योपैथिक दवा के रूप में आप पुरानी पेचिश के रोग में, लिवर की खराबी में, गुर्दे के रोगों में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि किसी रोग का इलाज चल रहा है तो इलाज न छोड़ें और डाक्टर की सलाह से इस दवा को इस्तेमाल करें.
गांव के जानकार लोग जिगर के रोगों में इसकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. इसके साथ वह एक अन्य खर पतवार जिसे बिसखपरा कहते हैं मिलाकर इस्तेमाल करते हैं.
ये एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसकी लोगों ने क़द्र नहीं की.
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