रविवार, 30 मई 2021

अनार Pomegranate

अनार एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है.  ये बीज और कलम दोनों से लगाया जाता है और लगाने के तीन साल में फल देने लगता है. इसमें सुंदर लाल रंग के फूल खिलते है और प्रागण के बाद इन फूलों के पिछले भाग से अनार का फल विकसित होता है. इनके फूलों का पिछला भाग पहले से ही कुछ उभरा हुआ होता है जो अनार के फल में बदल जाता है.

अनार को कैसे उगाएं How to grow Pomegranate ?

ये एक ऐसा पौधा है जो बीज से आसानी से उगाया जा सकता है. पक्के अनार की बीज एक गमले में बो दीजिये और उसे किसी छाया दर स्थान पर रखिये. गमले में हलकी नमी बनी रहे इसके लिए समय समय पर पानी का छिड़काव करते रहें. बरसात के मौसम में अनार के पौधे बहुत आसानी से उगते हैं. अगर आपके घर में ज़मीन में अनार लगाने की जगह नहीं है तो उसे गमले में भी लगाया जा सकता है. इसके लिए 14 इंच का गमला ठीक रहता है. अगर गमला न हो तो प्लास्टिक की बाल्टी का प्रयोग किया जा सकता है. अनार में गमले में भी खूब फल आते हैं. 


 अनार के फल विटामिन और आयरन का स्रोत हैं इसीलिए इसके जूस को रक्त वर्धक माना जाता है. ऐसे लोगों को जो खून की कमी का शिकार हों अनार खाने या अनार का जूस पीने की सलाह दी जाती है. अनार को बीजों समेत खाया जाता है इसमें डाइट्री फाइबर अधिक मात्रा में होता है जो आंतों से मल निकालने की शक्ति को बढ़ाता है. 

अनार दस्तों को बंद कर देता है. ऐसे लोग जो आंतों की कमज़ोरी से दस्तों से परेशान हों  उनके लिए अनार का इस्तेमाल किसी चमत्कार से कम नहीं है. अनार की छिलके में भी यही गुण हैं. 

जिन लोगों को पहले ही कब्ज़ रहता हो उनके लिए अनार का इस्तेमाल कब्ज़ को बढ़ा देता है. इसके लिए अगर अनार के जूस के साथ मौसमी का जूस मिलाकर इस्तेमाल किया जाए तो इस समस्या से छुटकारा मिल जाता है और ये दोनों जूस एक अच्छे टॉनिक का काम करते हैं. 

अनार दिल की सेहत को दुरुस्त रखता है. ये खून को पतला करता है और खून में थक्का नहीं जमने देता. अनार का नियमित इस्तेमाल सेहत को दुरुस्त रखता है.  

स्किन के लिए अनार के जूस का इस्तेमाल Use of Pomegranate juice for skin

अनार का जूस स्किन को टाइट करने के लिए फायदेमंद है. अनार का जूस निकालने के लिए पके अनार के दानों को किसी साफ कपडे में लेकर निचोड़ लें. (ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया में कहीं भी अनार के जूस में लोहा न लगने पाये जैसे लोहे की छुरी आदि का इस्तेमाल न हो इससे अनार जूस काला पड़ जाता है और स्किन पर भी धब्बे पड़ जाते हैं.) इस जूस को सामान मात्रा में दूध की मलाई के साथ किसी कांच के बर्तन में अच्छी तरह मिक्स करलें. इस मिश्रण को चेहरे पर लगाकर एक घंटा छोड़ दें फिर पानी से साफ करलें. इस तरह नियमित इस्तेमाल करने से झुर्रियां मिट जाती हैं. 


रविवार, 23 मई 2021

नीम के तेल के फायदे Benefits of Neem Oil

 नीम का वृक्ष एक बहु उपयोगी वृक्ष है. इसे सब ही अच्छी तरह से जानते पहचानते हैं. इसके फल जिन्हें निमोली कहते हैं तेल का अच्छा स्रोत हैं. नीम का एक सामान्य वृक्ष साल में लगभग 30 से 50 किलो तक फल देता है. ये फल जमा कर लिए जाते हैं और फिर इनकी गुठली को गूदे और छिलके से अलग कर धोकर सुखा लिया जाता है. अब ये गुठली तेल निकालने के लिए तैयार हो जाती है. 

इन गुठलियों को मशीन के सहायता से दबाकर तेल निकाला जाता है. ये एक गाढ़ा तेल होता है जिसमें नीम के कड़वी गंध आती है और इसे आसानी से पहचाना जा सकता है. तेल निकालने के बाद जो नीम की खली बचती है वह अच्छी प्राकृतिक खाद के रूप में प्रयोग की जाती है. इसके इस्तेमाल से पौधों में कीड़ा भी नहीं लगता. 


नीम का तेल एंटीसेप्टिक है. ये जर्म्स को समाप्त करता है. फोड़े, फुंसी, घाव पर अकेला ही या फिर किसी अन्य दवा या तेल में साथ मिलकर लगाया जाता है. इसको पानी में मिलकर सर धोने से खुश्की और सर में खुजली, घाव आदि की समस्या दूर होती है. 

शैम्पू के साथ नीम के तेल का प्रयोग कैसे करें? How to use Neem Oil with Shampoo

शैम्पू के साथ नीम के तेल का प्रयोग करने के लिए जितना शैम्पू सर में लगाना हो अलग लेकर उसमें चार पांच बून्द नीम का तेल मिलकर अच्छी तरह मिक्स करलें और फिर उसे सर धोने में प्रयोग करें. इसीसे सर की खुजली, रुसी से छुटकारा मिलता है और बालों को पोषण मिलता है. 

नहाने में नीम के तेल का इस्तेमाल 

नहाने के लिए नीम के तेल का प्रयोग करने के लिए नीम के दस से पंद्रह बून्द तले को थोड़े से गर्म पानी में मिलाकर अच्छी तरह फेंट लें जिसे तेल पानी में मिल जाए. अब इस पानी को नहाने के पानी में मिलादें और इस्तेमाल करें. 


सोमवार, 17 मई 2021

करंज के पेड़ को सुखचैन भी कहते हैं Karanj, Pongamia pinnata

करंज के पेड़ को सुखचैन का पेड़ भी कहते हैं.  ये एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. ये सदैव हरा भरा रहता है. इसकी छाया घनी होती है. इसकी ठंडी छाया में गर्मी से झुलसे राहगीर को जो सुख मिलता है वह अतुल्य है इसीलिए इसे सुखचैन का पेड़ कहा जाता है. 

इसका वैज्ञानिक नाम पोनगामिया पिनाटा Pongamia pinnata है. इसी को  Millettia pinnata भी कहते हैं. आम भाषा में इसे Indian Beech Tree भी कहते हैं. 

इसे बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं. इन पत्तों पर जगह जगह पर सफ़ेद या क्रीम रंग के सूखे से  निशान पड़े होते हैं. ये इस पौधे की पतियों की एक बीमारी है जो लगभग सभी पौधों पर देखने में आती है. इन धब्बों या निशानों की वजह से इस पौधे की पहचान आसानी से की जा सकती है. अप्रैल और मई माह में इसमें गुच्छों में फूल आते हैं. ये फूल नीले, बैगनी रंग के होते हैं. ये फूल इतनी अधिक मात्रा में खिलते हैं की इसके पेड़ के नीचे इन फूलों की पंखुड़ियां गिरकर एक परत बना लेती हैं. 

इस पेड़ की लकड़ी कच्ची होती है. काटने पर अंदर से पीले रंग की निकलती है. इसे इमारती लकड़ी के रूप में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता क्योंकि सूखकर ये फट जाती है और इसमें दरारें पड़ जाती हैं. इसकी लकड़ी ईंधन के काम आती है. इसके फल जो फलियां या पॉड होते हैं छोटे आकार के होते हैं और हर फली में दो मोटे, बड़े आकार के बीज होते हैं जिनमें बहुत तेल होता है. इन बीजों को हाथ से मसलने पर ही हाथों में तेल की चिकनाहट लग जाती है. 

करंज का महत्व Importance of Pongamia Tree

इस पौधे को जानवर नहीं खाते इसलिए इसे सड़कों के किनारे और ऐसी जमीनों में जिन्हें हरा भरा बनाना हो लगाया जाता है. इसे बहुत अधिक पानी के आवश्यकता भी नहीं होती है. पौधा लगाने के एक साल तक इसकी देख भाल और पानी आदि का ध्यान रखने से ये बहुत तेज़ी से बढ़ता है. बहुत जल्दी भूमि हरी भरी हो जाती है और सड़क छायादार हो जाती है. 

इसके बीज तेल का बड़ा स्रोत हैं. बीजों का तेल करंज तेल या pongame oil कहते हैं. ये बाजार में आसानी से मिल जाता है. इसका छोटा पैक शीशी में और वयवसायक रूप में हज़ारों लीटर की मात्रा में मिल जाता है. 

करंज में एंटीसेप्टिक गुण हैं. इसका तेल साबुन बनाने में उपयोग होता है. ये नीम की तरह ही एंटीसेप्टिक है. नीम के तेल के स्थान पर करंज का तेल इस्तेमाल करने से साबुन में नीम की कड़वी गंध नहीं आती और ये साबुत बहुत अच्छा एंटीसेप्टिक और त्वचा के लिए लाभकारी होता है. करंज का तेल दाद, खाज खुजली, एक्ज़िमा, आदि पर लगाया जाता है. ये सर की रुसी और खुश्की को दूर करता है. करंज के तेल के चार पांच बूंदें किसी हेयर ऑयल में मिलाकर  सर में लगाने से सर की खुश्की दूर हो जाती है. 

करंज का तेल जोड़ों के दर्दों में भी फायदा करता है. इसकी मालिश करने से गठिया में भी लाभ हुआ है. 

पुराने ज़माने में करंज के तेल का प्रयोग रौशनी के लिए दीपक आदि जलाने में किया जाता था. चमड़ा उद्योग में चमड़े को सूखने से बचाने के लिए भी इस तेल का उपयोग करते थे. 

इसका तेल लगाने से मच्छर पास नहीं आते. 

करंज का तेल वर्तमान समय में बायो डीज़ल का एक बड़ा स्रोत है. इसे लुब्रिकेंट के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. 

करंज तेल का इस्तेमाल करते समय सावधानी रखें  की ये तेल खाने के काम में नहीं आता. इसमें ज़हरीले गुण होते हैं इसलिए इसे बच्चों के पहुंच से दूर रखें और केवल लगाने में ही प्रयोग करें. यदि इसके लगाने से त्वचा में खुजली, जलन, सूजन आदि लक्षण दिखाई दें तो तुरंत इसका इस्तेमाल बंद करके किसी अच्छे डाक्टर की सलाह लें. 

घर पर करंज का तेल कैसे निकालें  How to extract Karanj oil at home?

करंज के बीजों में इतना अधिक तेल होता है की इसे थोड़ी मात्रा में घर में भी निकाला जा सकता है. इसके लिए करंज के बीजों के छोटे टुकड़े कर लें और इन्हे किसी मज़बूत कपडे के थैले में भर कर किसी वज़नी चीज़ से दबाकर तेल निकाल लें. इस प्रकार थोड़ा सा तेल निकल आता है. 

गुरुवार, 13 मई 2021

सात टॉप हर्ब्स जो आपको गमलों में उगाने चाहिए 7 Top herbs you musto grow in pots

 हर्ब्स की दुनिया बहुत बड़ी है. इन को स्वयं उगाना दिल को ख़ुशी देने वाला कार्य है. किसी हर्ब्स के शौक़ीन ने अपने बगीचे के लिए एक माली लगा रखा था जो ठीक ठाक तनख्वाह लेता था. वह शख्स हर्ब्स का शौक़ीन था और माली के साथ खुद भी काम करता था. उसके बगीचे में आम सब्ज़ियों से लेकर दवाई और सजावटी हर्ब्स लगे थे. किसी ने कहा जितने पैसे तुम माली को देते हो उन पैसों की अगर बाजार से सब्ज़ी खरीदो तो बहुत सस्ती पड़ेगी  और रोज़ रोज़ का झंझट भी नहीं रहेगा. 


उस आदमी ने कहा बात तो तुम ठीक कहते हो लेकिन इन हर्ब्स के उगाने से मुझे जो ख़ुशी और सुकून मिलता है उसका तुम्हें अंदाज़ा नहीं है. बीज बोने के बाद मैं पौधों को उगते, उन्हें बढ़ते और फलते फूलते देखता हूँ तो मेरा मन ख़ुशी से भर जाता है. इसके कारण मैं बीमारियों से दूर रहता हूँ और माली को जो तनख्वाह देता हूँ उससे उस गरीब के घर का खर्च भी चल जाता है. 

7 ऐसे आवश्यक हर्ब्स हैं जो आपको खुद अपने घर में उगना चाहिए. घर छोटा हो या बड़ा इससे फर्क नहीं पड़ता. आप इन्हे पॉट में उगा सकते हैं. प्लास्टिक या लकड़ी के ट्रे में ऊगा सकते हैं. इसे टैरेस पर, खिड़की में या फिर छत पर रखा जा सकता है. 

इनका उगाना भी आसान है. बीज, कटिंग, या, बल्ब से आसानी से उगाया जा सकता है. घर में मिलने वाले बीज से ही शुरुआत कर सकते हैं. अगर चाहें तो बाजार से भी बहुत आसानी से बीज खरीद सकते हैं. 

आइए करते हैं शुरुआत:

1. प्याज़ Onion

प्याज़ उगाने के दो तरीके हैं. आम तौर से प्याज़ बीज से उगायी जाती है. लेकिन अगर आप किचन गार्डेनिंग शुरू कर रहे हैं तो आप के लिए प्याज़ को बल्ब से उगना ठीक रहेगा. इसके लिए कहीं जाने की भी ज़रुरत नहीं है. घर में इस्तेमाल होने वाले प्याज़ के बल्ब को गमले या ट्रे में लगा दीजिए. प्याज़ के बल्ब में जुलाई अगस्त में पत्तियां निकलने लगती हैं. यही सही समय है जब प्याज़ के बल्ब को लगाया जाए. 

इसके लिए खेत या बाग़ की आम मिट्टी तीन भाग, बालू या नदी की रेत एक भाग, गोबर की कम्पोस्ट एक भाग मिलाकर गमले में भर दें. उसमें प्याज़ का बल्ब लगा दें.  इसकी पत्तियां जब बढ़ती हैं तो ये बहुत सुन्दर लगती हैं. इन पत्तियों को जो बेलनाकार और अंदर से खोखली होती हैं सब्ज़ी और सलाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. घर में ही इस्तेमाल के लिए प्याज़ की पत्तियां मिल जाएंगी और गार्डेनिंग का शौक भी पूरा होगा. 


यदि इसे बढ़ने दिया जाए और पत्तियां न काटी जाएं तो तीन से चार महीने में प्याज़ का बल्ब विकसित होकर तीन चार बल्ब बना देता है. और इन्हे निकालने पर एक प्याज़ के बल्ब से तीन चार बल्ब मिल जाते हैं. 

बीज से प्याज़ उगाना व्यवसायिक काम है. इसके लिए प्याज़ के छोटे पौधे जिन्हें बेड़ या पेड़ी कहते हैं प्याज़ किसानों या वैज नर्सरी से अक्टूबर नवंबर तक मिल जाते हैं उन्हें लाकर गमले में लगाया जा सकता है. प्रत्येक पौधे से प्याज़ का एक बल्ब मिलता है. 

2 . लहसुन Garlic

लहसुन का बल्ब बहुत से छोटे जवां का समूह होता है. इन जवो को cloves भी कहा जाता है. इन cloves को ही बोया जाता है और प्रत्येक cloves से एक लहसुन का बल्ब विकसित होता है. इसके बोने का समय भी बरसात के बाद अक्टूबर, नवंबर है. गमले की मिट्टी तैयार कर एक एक जवे को मिट्टी में लगा दें. 

लहसुन का बीज तलाश करने के लिए कहीं भी जाने की ज़रुरत नहीं है. घर में इस्तेमाल होने वाला लहसुन जो बाजार से लाया हो, वही गमले में बो देना चाहिए. इसमें भी लम्बी पत्तियां निकलती हैं लेकिन प्याज़ की पत्तियों की तरह ये अंदर से खोखली और बेलनाकार नहीं होतीं. ये एक चपटी या flat पत्ती होती है. इन पत्तियों को भी सलाद के रूप में और चटनी बनाकर खाया जाता है. 


सर्दी के मौसम में शरीर में रक्त का प्रवाह सुस्त पड़ जाता है इसी कारण उम्रदार लोगों old age people में ब्लड प्रेशर और हार्ट से सम्बंधित समस्याएं सर्दी के मौसम में बढ़ जाती हैं. लहसुन की हरी पत्तियों की चटनी या सलाद या सब्ज़ी में थोड़ी मात्रा में इस्तेमाल करने से रक्त पतला रहता है और हार्ट में अचानक होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है. 

फरवरी, मार्च तक लहसुन के बल्ब तैयार हो जाते हैं. इनकी पत्तियां सूख जाती हैं. प्रत्येक पौधे से एक लहसुन का बल्ब मिलता है. 

3. धनिया coriander

धनिया coriander को बीज से उगाया जाता है. धनिया पत्ती जिसे हरा धनिया भी कहते हैं बहुत सी डिशों में प्रयोग की जाती है. इसकी सुगंध सभी को पसंद है. सूखा धनिया साबुत और धनिया पाउडर भी खाना बनाने में काम आता है. 

ग्रोसरी स्टोर से लाया गया साबुत धनिया, यदि वह पुराना न हो बोया जा सकता है. बीज की दुकानों से धनिया का बीज भी लिया जा सकता है. 

धनिया को बीज से उगाने से पहले धनिया के बीजों को फर्श या किसी सख्त सतह पर डालकर कटोरी की पेंदी या ऐसी ही किसी बराबर सतह वाली चीज़ से थोड़ा सा रगड़ दे जिससे धनिया का प्रत्येक बीज दो भागों में बंट जाए जैसे दालों के बीज दो भागों में बंटे होते हैं. बीज को कुचलना नहीं है, बस सख्त सतह पर किसी चीज से रगड़ना है जिससे ये बीज दो टुकड़ों में बंट जाएं. 

अजीब बात है की धनिये के एक बीज से जो आधा भाग होता है धनिया का एक पौधा जमता है. इसी बीज कम लगता है और उसका जमाव भी अच्छा होता है. यदि साबुत धनिया का बीज भी बो दिया जाए तो वह भी उगेगा लेकिन उसके स्फुटित होने में अधिक समय लगता है. 

धनिया का बीज स्फुटित होने में लगभग आठ से दस दिन का समय लेता है. इसलिए बीज बोने के बाद धैर्य रखें. अगर आपने अच्छा बीज मंगवाया है तो वह ज़रूर जमेगा. 

बीज बोने के एक माह बाद धनिया की पत्ती किसी तेज़ धार वाली छुरी/चाकू से काटकर प्रयोग की जा सकती है. इसे धनिये के पौधे से इस प्रकार काटे कि नीचे से पौधा लगभग एक इंच बचा रहे. इस पौधे में दोबारा पत्तियां निकल आती हैं और इस प्रकार सर्दी के सारे सीज़न बार बार पत्तिया काटी जा सकती हैं. 

इसके लिए बेहतर तरीका यह है की चार पाँच गमलों में धनिया इस प्रकार बोएं की एक गमले में धनिया डालने के बाद दूसरे गमले में एक सप्ताह बाद बीज लगाएं. इसी प्रकार हर हफ्ते बोने से धनिया इस प्रकार बढ़ेगा की हमेशा धनिया की हरी पत्ती मिलती रहेगी. 

जनवरी फरवरी में धनिया में फूल आने लगता है. इसके बाद धनिया का बीज विकसित होता है. सीज़न समाप्त होने पर इन पौधों से धनिया का बीज प्राप्त होता है. 

4. पोदीना Mint

पोदीना उगाना बहुत आसान है. ये कटिंग से उगाया जाता है. कटिंग खोजने के लिए किसी नर्सरी या किसी ऑनलाइन स्टोर से सम्पर्क करने की ज़रुरत नहीं है. बाजार जाइए और हरा ताज़ा साफ सुथरा पोदीना खरीद लाइए. यही पोदीने की कटिंग है. अब इसे ऊपर बताये गये तरीके से तैयार गमले में या ट्रे में लगा दीजिये. आप देखेंगे की ये कटिंग कुछ दिनों में ही जड़ पकड़ लेगी. गमला पोदीने से भर जाएगा. 


इस पॉट से लेकर पोदीने को जब चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे पौधे की निचले भाग को एक इंच के लगभग छोड़ कर काट लीजिए. पौधा घना होता रहेगा और उसमें नयी पत्तियां निकलती रहेंगी. 

खुली जगह में लगा पोदीना बरसात का पानी भरने से नष्ट हो जाता है. सर्दी में भी इसकी बढ़वार अच्छी नहीं होती. अगर आपने इन दो सीज़न में पोदीने की देख भाल की तो यह साल भर रह सकता है. 

यदि सर्दी में पोदीना समाप्त भी हो जाए तब भी आप उसके पॉट को सूखने न दें. उसे एक आध हफ्ते के बाद हलकी नमी देते रहें. सुबह की धूप  दिखाते रहें. पोदीने की जड़ें पॉट में सुप्तावस्था में रह जाती हैं और अगले सीज़न गर्मी का मौसम आने पर उसमें से फिर नये पौधे निकलते हैं. 

5. अदरक Ginger

अदरक Ginger भी बहुत आसानी से उगायी जा सकती है. इसके लिए भी अदरक का बीज ढूंढ़ने की ज़रुरत नहीं है. इसके लगाने का सही समय फरवरी, मार्च का है. बाजार से अदरक खरीद लाएं , ध्यान रहे ये अदरक इस प्रकार की हो जिसका छिलका बिना कटा फटा, साफ़ सुथरा हो. फरवरी माह में ऐसी अदरक बाजार में आसानी से मिल जाती है. नवंबर, दिसंबर में मिलने वाली अदरक का छिलका पतला होता है और दुकानदार उसे रगड़ कर उतार देते हैं जिससे अदरक अधिक आकर्षक दिखाई देती है. इस प्रकार की अदरक बोने के काम नहीं आती, ये खराब हो जाती है और इसमें से अंकुर नहीं निकलता.


इस अदरक को आप गमले में बो दें और इंतज़ार करें. मिट्टी में हलकी नमी रहना चाहिए. एक दो माह के बाद अदरक अंकुरित होने लगती है और ये अंकुर बढ़कर अदरक के पौधे बन जाते हैं. 

अदरक के पौधे बहुत सुंदर होते हैं. इन्हें कमरे में इंडोर प्लांट की तरह भी रखा जा सकता है. लेकिन इनको खुली हवा और धूप मिलने का प्रबंध भी करना चाहिए. पॉट में समय समय पर गुड़ाई करते रहें और अदरक के पौधों पर थोड़ी सी मिटटी चढ़ा दें इससे पौधे गिरने से भी बचे रहते हैं और उसमें अदरक भी अधिक मात्रा में विकसित होती है. 

सितंबर अक्टूबर में अदरक तैयार हो जाती है. इसकी पहचान ये है की अदरक के पौधे पीले पड़कर सूखने लगते हैं. अब इन पौधों को काट दीजिए और मिटटी खोदकर अदरक निकाल लीजिए. 

6. मेथी Fenugreek

मेथी Fenugreek बहुत आसानी से उगती है. घरों में इस्तेमाल की जाने वाली साबुत मेथी whole fenugreek seed को गमले में बोया जा सकता है. इसके बोने का सही समय बरसात के बाद सितंबर और अक्टूबर का महीना है. इसे साग के रूप में सब्ज़ी बनाकर खाया जाता है. यदि घर में इस्तेमाल की जाने वाली मेथी पुरानी हो और उसका अंकुरण ठीक से न हो तो बाजार से सब्ज़ी के बीज बेचने वालों से या फिर ऑनलाइन इसका बीज मंगवाया जा सकता है. 

ये एक ऐसा पौधा है की इसे बिना मिट्टी के भी पानी में उगाया जाता है. सब्ज़ी के लिए ये विधि अच्छी रहती है. मेथी की बीज को आठ से दस घंटों के लिए पानी में भिगो दें. फिर उन्हे पानी से निकाल कर किसी प्लास्टिक की डलिया में जिसमें बारीक जाली हो बराबर से बिछा दें और ऊपर से एक सूती कपडा ढक दें. कपडे को ऊपर से हल्का सा गीला रखे और देखते रहे की मेथी के बीजों में अंकुरण होने लगा है. 


जब बीज अंकुरित होने लगें तो ऊपर से कपडा हटा दें और इस प्लास्टिक की डलिया को एक ऐसे बर्तन के ऊपर रखें जिसमें पानी भरा हो. इसका परपज़ ये है की जब मेथी की जड़ें निकलें तो वह पानी को छूती रहे और उन्हें पानी मिलता रहे. 

कुछ दिन बाद मेथी के पौधे बड़े हो जाएंगे और अब उनकी जड़े हटाकर सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस विधि में किसी खाद की ज़रूरत नहीं है. बीज में जो भोजन होता है वही पौधों को बड़ा करने में सहायक होता है. लेकिन इस विधि से पौधे ज़्यादा बड़े नहीं किये जा सकते. 

आवश्यक चेतावनी 

बोने के लिए जो बीज बाजार में बेचे जाते हैं उनको कीड़ों और फंगस से बचाने के लिए उन पर पेस्टीसाइड लगाया जाता है. आप देखेंगे ये बीज हरे, लाल आदि रंग में रंगे होते हैं. ये बीज ज़हरीले होते है. और खाने के काम में नहीं आते. इन्हें बच्चों की और पालतू जानवरों की पहुंच से दूर रखें. इनको छूने के बाद भी हाथों को ठीक प्रकार से साबुन से धो लें. ध्यान रहे बीजों पर लगा पायज़न नुकसान कर सकता है. 

7. मूली white radish

मूली बहुत आसानी से उगती है. लेकिन इसके लिए बीज बाजार से लेना पड़ेगा. इन बीजों को गमले में एक दूसरे से लगभग चार इंच की दुरी पर बो दें. हलकी सिंचाई करें. तीन से चार दिन में मूली का बीज अंकुरित हो जाता है और इसके पौधे की देख भाल करने पर लगभग एक माह में मूली तैयार हो जाती है. 


बुधवार, 12 मई 2021

रिंगनी के बीज कहाँ मिलते हैं. Where I get seeds of Ringni plant ?

 रिंगनी को छोटी कटाई भी कहते हैं. ये एक छोटा सा ज़मीन पर फैलने वाला कांटेदार पौधा है. मार्च अप्रैल के महीनों में ये खेतों के किनारे, बलुई मिट्टी में उगा हुआ मिल जाता है. इसमें बैगनी रंग के फूल खिलते हैं और छोटे गोल फल लगते हैं जो सूखकर पीले पड़ जाते हैं. कुछ लोग इसे कटीला, कटाई, छोटी कटाई, कटाई खुर्द और  कंटकारी भी कहते हैं. देसी और आम लोगों के द्वारा इसे दवा के रूप में बरसों से प्रयोग किया जा रहा है. 

Ringni seeds are available online

इसके बीज अब ऑनलाइन मार्केट के द्वारा उपलब्ध हैं. लेकिन इन बीजों पर ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है. कई बार बीज जमते नहीं हैं. क्योंकि वे बहुत समय तक रखे रहने से अंकुरित होने की छमता खो देते हैं. 

Collect Ringni seeds in April, May

इसलिए बेहतर यही है की इसके बीजों को अप्रैल, मई के महीनों में स्वयं तलाश किया जाए. गांव के लोगों से पूछा जा सकता है जो इस पौधे को भली भांति जानते पहचानते हैं. 

जड़ी बूटियों और पर्यावरण से दिलचस्पी रखने वालों के लिए पौधों को खुद तलाश करना चाहिए और उनकी पहचान करना चाहिए. इससे न सिर्फ उनकी पौधों से दिलचस्पी बढ़ेगी बल्कि पर्यावरण का भी भला होगा. बहुत से पौधे जो नष्ट हो रहे हैं वे भी नष्ट होने से बच सकेंगे. 

छोटी कटाई का ये पौधा कमाल की दवा है. इसका फल ही दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. हकीमों का कहना है की इसके सूखे फल की बारीक चूर्ण की नसवार देने से मिर्गी का रोग ठीक हो जाता है. नसवार का मतलब है थोड़ा सा चूर्ण लेकर नाक में सांस के द्वारा खींचना. लेकिन इससे बहुत छींके आती हैं और आँखों से पानी बहता है. इसलिए इस प्रयोग को स्वयं नहीं करना चाहिए. इसके लिए किसी जानकर हकीम या वैद्य की सलाह ज़रूरी है. कोई भी जड़ी बूटी कितनी भी लाभकारी क्यों न हो उसका प्रयोग बिना सोचे समझे करना या स्वयं प्रयोग करना नुकसानदेह हो सकता है. 


सोमवार, 10 मई 2021

एक नीम के पौधे की कहानी Story of an Azadirachta indica sapling


 नीम के फलों को निबोली, निबौरी, निमकौली आदि कहते हैं. ये फल छोटे होते हैं. नीम का स्वाद कड़वा होता है इसलिए ये फल भी कच्चे होने पर कड़वे होते हैं. लेकिन पकने के बाद इनके फलों में कुछ मिठास आ जाती है. ये मीठापन भी थोड़ी सी कड़वाहट लिए होता है. लेकिन इन्हें आसानी से खाया जा सकता है. 

इन फलों को कौवे और अन्य चिड़ियाँ भी चाव से खाती हैं. चमगादड़ भी इन फलों को खाते हैं. ये परिंदे फल खाकर गुठलियां इधर उधर गिरा देते हैं और इस प्रकार नीम के बीजों का बिखराव होता है जो प्रकृति का नियम है. नेचर ने बीजों के बिखराव के लिए बहुत से साधन बनाये हैं. इनमे मनुष्य और जानवर मुख्य रूप से फलों को खाकर उनके बीज फेंक देते हैं और उचित समय आने पर इन बीजों से पौधे जमते हैं. 

ऐसे ही नीम का एक पौधा मेरे बंगले के में गेट के पास रास्ते के किनारे उगा. ये किनारे की ईंटों की पट्टी से सटा हुआ था और जब बड़ा हुआ तो कई बार पैरों से कुचला गया. लेकिन जब तक बरसात का सीज़न रहा इस पौधे में बार बार नए पत्ते निकल आते थे. बरसात समाप्त होने पर ये पौधा साइड की दीवार से लगा रहा. इसकी बढ़वार रुक चुकी थी. 

इस प्रकार तीन चार साल गुज़रे. जब बरसात आती पौधा बढ़ना शुरू कर देता. लेकिन बार बार कभी पैरों से कुचला जाता और कभी माली उसे काट देता. इस नीम के पौधे को किसी ने कोई अहमियत नहीं दी. नीम उत्तर प्रदेश में बहुतायत से पाया जाता है. एक समय जब घर बड़े बड़े होते थे हर घर में नीम का पेड़ ज़रूर होता था. 

कुछ साल बाद बंगले के मुख्य रस्ते को चौड़ा करने का नंबर आया. ये भी बरसात का मौसम था. नीम का पौधा फिर से बढ़ने लगा था. इतने सालों में उसकी जड़ मोटी हो चुकी थी. नीम की जड़ें बहुत गहराई तक जाती हैं. इस पौधे ने अपनी जड़ें रस्ते की ईंटों की नीचे गहराई तक फैला ली थीं. 

जब मज़दूरों ने रस्ते को चौड़ा करने के लिए साइड की ईंटें उखाड़ीं तो मैंने कहा इस नीम के पौधे को न काटना. मैंने शौच कि तीन चार साल से ये नीम का पौधा ज़िंदा रहने और बढ़ने की कोशिश कर रहा है. इसे काटना ठीक नहीं होगा. क्यों न इसे बंगले में किसी ठीक जगह पर लगा दिया जाए. 

शाम को जब मज़दूर चले गये तो मैंने इस नीम के पौधे को निकालकर दूसरी जगह शिफ्ट करने का इरादा किया. मैंने खुरपी की सहायता से उसकी जड़ निकालने के लिए गहरा गढ़ा किया. मेरा विचार था की छोटा सा पौधा है इसकी जड़ ज़्यादा गहरे में नहीं होगी. गढ़ा काफी गहरा खोदने पर भी उसकी जड़ और ज़्यादा गहराई में दिखाई दी जो रस्ते की ईंटो के नीचे दबी हुई थी. 

कोशिश करने पर इस पौधे के पूरी मेन जड़ नहीं निकल पायी और टूट गयी. 

नीम ऐसा पौधा है जो अपनी मुख्य जड़ सीधी गहराई तक फैलता है. जितना नीम ऊपर होता है उसकी जड़ दो गुनी अंदर होती है. 

मैंने जड़ टूट जाने के दुःख के साथ इस नीम के पौधे को बंगले की बाउंड्री वाल के पास लगा दिया. इस पर मेरी जीवन संगनी ने एतराज़ भी किया: यहाँ कहाँ नीम लगा रहे हो ये कोई ठीक जगह नहीं है. 

मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और नीम का पौधा लगाकर उसकी जड़ में थोड़ा सा पानी डाल दिया और नतीजे का इंतज़ार करने लगा कि नीम का पौधा जिसकी जड़ टूट चुकी है सर्वाइव करता है या नहीं. 

पहले तो इस पौधे को एक झटका लगा उसके पत्ते मुरझाने लगे,. लेकिन कुछ दिन के बाद उसमें नये पत्ते निकले और पौधा जो रास्ते के किनारे तीन चार साल से सर्वाइव करने की जद्दो -जेहद कर रहा था तेज़ी से बढ़ने लगा. 

दो महीने में पौधा खूब बढ़ गया अब वह बंगले की बाउंड्री वाल से लगभग एक फुट ऊंचा हो गया था और दूर से दिखाई देने लगा था. 

एक दिन जब सुबह 6 बजे मैं और मेरी पत्नी लान में लगे पौधों को निहार रहे थे किसी महिला ने बाउंड्री वाल के उस तरफ से नीम के पौधे को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया. मेरी पत्नी ने पूछा क्या है ?

वह औरत बोली नीम की दातुन तोडना है. 

उसने  कहा इस पौधे में  एक ही तो टहनी है वह भी तोड़ लोगी तो इसमें क्या बचेगा और ये पौधा कैसे बढ़ेगा. 

औरत चली गयी. यदि हम लोग उसे न देखते तो उसने नीम के पौधे का सत्यानाश कर दिया होता. 

अब मैंने इस पौधे को दोबारा गहरी खुदाई करके निकला कि इसे दूसरी जगह लगाया जाए. अब नीम के जड़ें और गहरी पहुंच चुकी थीं. गहरी खुदाई करने के बाद भी जड़ फिर से पूरी नहीं निकल सकी और टूट गयी. 

उस पौधे के अब बंगले के पिछले हिस्से में लगा दिया. बरसात गुज़र चुकी थी. दोबारा स्थान बदलने से उसे फिर झटका लगा और पौधा मुरझा गया. सर्दी का मौसम आया. उस पौधे के सब पत्ते झाड़ चुके थे. टहनियां सूखी लग रहीं थीं. हमने सोचा पौधा सूख गया है. 


फरवरी मार्च में पौधे में फिर से नयी पत्तियां निकलीं. वह पौधा फिर से हरा भरा हो गया. हम लोग बहुत खुश हुए. 

इस तरह दो साल गुज़रे. पौधे ने फिर से बढ़वार पकड़ ली थी. हमें उम्मीद थी की आने वाले तीन चार साल में वह एक छोटा वृक्ष बन जाएगा. 

लेकिन! इसी अप्रैल की बात है. मेरे बंगले के पीछे वाले क्वार्टर में माली ने सूखे पत्ते इकठ्ठा किये और उनमें आग लगा दी. ये पत्ते नीम के पौधे के करीब में थे. और जिस क्यारी में ये नीम का पौधा लगा है उसमें भी सूखे पत्ते जमा थे. माली आग लगाकर चला गया. आग को बिना देखे भाले छोड़ना बहुत नुकसानदेह होता है. पत्ते जलते जलते आग नीम के पौधे तक पहुंच गयी और क्यारी में बहुत से पौधे जल गए. 

अब ये नीम का पौधा झुलसा खड़ा है. बरसात आने वाली है. देखते हैं ये फिरसे हरा भरा होता है या नहीं. 

इस नीम के पौधे का जीवन संघर्ष भरा है. 

 

नरकचूर Long Zedoary

हैं  नरकचूर दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसको हकीम  ज़रम्बाद कहते हैं. आम लोग इसे सफ़ेद हल्दी के नाम से भी जानते हैं. कुछ लोग ज़रम्बाद को काली हल्दी समझते हैं. काली हल्दी एक अन्य पौधा है. नरकचूर की गांठे  अदरक से मिलती जुलती होती हैं. इसे मुख्यत: पेट की दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Curcuma zedoaria है. इसे Long Zedoary भी कहते हैं. 

ये पौधा हल्दी की तरह दिखाई  है. इसके कंद को दवा में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे में छोटी और बड़ी दो तरह की कंद पायी जाती हैं. छोटी कंद को साबुत उबालकर और बड़ी कंद को टुकड़ों में काटकर उबालकर सूखा लिया जाता है और यही बाजार में नरकचूर, मादा कचूर, कपूर कचरी, और  ज़रम्बाद  के नाम से मिलती है. दवाई गुण छोटे और बड़े दोनों कंद के सामान हैं और इनमें कोई फर्क नहीं है. 

इसको बदहज़मी, और पाचन शक्ति बढ़ाने में प्रयोग किया जाता है. ये जिगर के लिए टॉनिक है. जॉन्डिस में इसका पाउडर 2 - 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में 3 बार इस्तेमाल करने से फायदा होता है. डिसेंट्री में भी इसका उपयोग बेहतर काम करता है. इसके इस्तेमाल से पुरानी डिसेंट्री ठीक हो जाती है. 


नरकचूर फेफड़ों में जमे बलगम को निकालता है. त्वचा को निखारता  है. इसके पाउडर को दूध और बेसन के साथ पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाने से दाग धब्बे मिट जाते हैं और त्वचा की झाइयां भी ठीक हो जाती हैं. 


शनिवार, 8 मई 2021

जरिश्क zarishk

जरिश्क किशमिश से मिलता जुलता भूरे, काले रंग का एक फल है जिसका प्रयोग यूनानी दवाओं में किया जाता है.  इसका पौधा  बर्बेरेडेसी (Berberidaceae) कुल का पौधा है. इस पौधे की लगभग 500 जातियां पायी जाती हैं. 

जरिश्क, BERBERIS ARISTATA पौधे से प्राप्त की जाती है. इसके पौधे को दारुहल्दी या दारहल्द का पौधा भी कहते हैं. इसकी लकड़ी पीले रंग की होती है. इसके टुकड़े सुखी अवस्था में मार्किट में दारहल्द के नाम से मिल जाते हैं. हल्दी से इसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है. केवल इसके पीले रंग के कारण इसे दारहल्द कहते हैं. दार का अर्थ फ़ारसी भाषा में  लकड़ी होता है. इसी नाम को लोगों ने दारुहल्दी कर दिया है. 

दारहल्द को पानी में भिगोकर और उबालकर उसका सत निकला जाता है. जिसे आग पर सुखाकर गाढ़ा कर लिया जाता है. इस सत को जो मार्किट में टुकड़ों की शक्ल में मिलता है रसौत कहते हैं. 

ये पौधा अमरीका से लेकर ईरान, भारत के पहाड़ी इलाकों, नेपाल में पाया जाता है. लेकिन देसी और यूनानी दवाओं में जिस जरिश्क का उपयोग होता है उसका मुख्य स्रोत ईरान है. ईरान में खुरासान का इलाका जरिश्क की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है और यहीं से प्रत्येक वर्ष जरिश्क दुनिया की अन्य भागों में सप्लाई किया जाता है. 


इसका पौधा एक कांटोंदार झड़ी है जो पहाड़ी ढलानों पर उगती है और इसे सुंदरता के लिए बागों के किनारे भी लगाया जाता है. इसके फूल पिले रंग के गुच्छों में खिलते हैं. इसके गुच्छे अमलतास के फूलों के गुच्छो की तरह लटकते हैं. उसके बाद इसमें फल लगते है जो पककर लाल हो जाते है और सूख क्र भूरे, काले हो जाते हैं. इसे पहाड़ी किशमिश या काली किशमिश भी कहा जाता है. 

जरिश्क  का उपयोग दवाओं के आलावा खाने की डिश में किया जाता है. ईरान में ये मसालों की तरह प्रयोग किया जाता है. जरिश्क पुलाव एक मशहूर डिश है जिसमें चावल, चिकेन के साथ जरिश्क का प्रयोग होता है. जरिश्क का मज़ा खट मिट्ठा होता है. 

जरिश्क जिगर की गर्मी को शांत करता है और इसमें पित्त ज्वर नाश करने की शक्ति है. इसलिए हकीम जरिश्क को बुखार दूर करने की दवाओं में शामिल करते हैं. 

 इसके दूसरी वैराइटी जिसे BERBERIS VULGARIS कहते हैं मुख्यत: यूरोप, अमरीका का पौधा है. इसका टिंक्चर होम्योपैथी में गुर्दे और पित्ताशय की पथरी निकलने में किया जाता है.  

बुधवार, 5 मई 2021

यूरोशलम आर्टिचोक Jerusalem Artichoke

यूरोशलम आर्टिचोक को साधारण हिन्दी में हाथीचक के नाम से जाना जाता है. ये पौधा मूल रूप से अमेरिका और मैक्सिको में पाया जाता है. यूरोशलम आर्टिचोक, काहू, ग्लोब आर्टिचोक और सूरजमुखी सब एक ही क्म्पोजिटी कुल के पौधे हैं. इसके फूल भी सूरजमुखी से मिलते जुलते होते हैं. लेकिन ये फूल आकार में छोटे होते हैं जबकि सूरजमुखी का फूल बड़ा होता है. इसका पौधा भी सूरजमुखी की तरह दिखता है, इसकी जड़ में कंद पैदा होते हैं जो आलू से मिलते जुलते, टेढ़े, मेढ़े होते हैं. इन्हीं कंदों को लोग हाथीचक के नाम से जानते हैं. ये कंद बाजार में अक्टूबर से लेकेर जनवरी तक मिल जाते हैं. इन्हें खाने में सब्जी की तरह प्रयोग किया  जाता है. 

यूरोशलम आर्टिचोक को कैसे उगाएं  How to propagate Jerusalem Artichoke.


यूरोशलम आर्टिचोक को उगाना बहुत आसान है. इसके फूल भी सुंदर होते हैं इसलिए इसे फूलों के लिए भी उगाया जाता है. बाद में इसके कंद को खाने में प्रयोग क्र सकते हैं. बाजार में मिलने वाले 
यूरोशलम आर्टिचोक के कंद लाकर उन्हें गमले या ज़मीन में लगाया जा सकता है. इन कंदों को फरवरी, मार्च तक लगा देना चाहिए। अप्रैल के अंत में या मई के शुरू में इन कंदों से पौधे निकलना शुरू हो जाते हैं. इसके पौधे देखने में सूरज मुखी की पौधों जैसे लगते हैं. इनके तने और शाखों पर रूआं या बारीक़ रेशे होते हैं. बरसात में इसके पौधे खूब बढ़ते हैं लेकिन इनमें पानी का जमाव न होने पाए. इनके पौधों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है जिसे पौधे गिरने नहीं पाते और उनमने कंद भी खूब विकसित होते हैं. 

यूरोशलम आर्टिचोक के फायदे  (  Jerusalem Artichoke Benefits )

यह  मूत्रवर्धक, शुक्राणुजनन, पाचन और टॉनिक है, यरूशलेम आटिचोक मधुमेह और गठिया का एक लोक उपचार है. इसमें लोहा, पोटैशियम, तांबा, फास्फोरस और बहुत से खनिज पाए जाते हैं. कहते हैं की इसमें केले से ज़्यादा पोटैशियम होता है. आलू की तरह ये कार्बोहइड्रेट का अच्छा स्रोत है लेकिन अजीब बात ये है की ये डायबेटिस के मरीज़ों के लिए लाभकारी है और अन्य कंदों जैसे आलू, अरवी आदि की तरह नुकसान नहीं करता. इसका एक यही गुण बहुत से गुणों पर भरी है. 

Artichoke flowers

ये दिल की सेहत को दुरुस्त रखता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल में रखता है. इसमें ब्लड प्रेशर घटाने और उसे ठीक रखने के गुण हैं. ये धमनियों में रक्त प्रवाह को ठीक रखता है. इसके मिनरल और विटामिन हड्डियों को मज़बूती प्रदान करते हैं. इसके प्रयोग से हड्डियां कमज़ोर और भंगुर नहीं होतीं इस प्रकार ऑस्टिओपोरोसिस का खतरा नहीं रहता. 

इसको खाने में आलू की तरह ही भूनकर, उबालकर या आलू की तरह किसी सब्ज़ी के साथ पकाकर इस्तेमाल किया जाता है. इसको हल्का उबालकर सिरके में डालकरधूप में कुछ दिन रखने से बढ़िया अचार बन जाता है जिसे सब्ज़ी, दाल, चावल की डिश के साथ खाया जा सकता है. इस प्रकार इसका इस्तेमाल पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है. 

शनिवार, 1 मई 2021

तुख्मे खत्मी

 तुख्मे खत्मी काले रंग के चपटे से गोल आकार के बीज हैं जो देसी दवाओं में प्रयोग किये जाते हैं. ये मैलो परिवार का पौधा है. इसे कुछ लोग गुल खैरु और गुल खैरा भी कहते हैं. बागों में जो कॉमन होलीहॉक लगाया जाता है वह भी मैलौ जाति का पौधा है और इसलिए उसके बीज भी बिलकुल तुख्मे खत्मी जैसे होते हैं. इन बीजों में होलीहॉक के बीजों की मिलावट की जाती है. 

तुख्मे खत्मी नज़ले ज़ुकाम के लिए लाभकारी है. इसका प्रयोग जोशांदे में किया जाता है. इसके पौधे में एक कुदरती चिपचिपापन होता है इस गुण के कारण तुख्मे खत्मी फेफड़ों में जमे कफ को निकालने में कारगर है. ये खांसी में फायदा करता है और छाती में जमे कफ के निकाल  देता है. 


इस पौधे के बीजों के आलावा इसकी जड़ भी दवाओं में प्रयोग की जाती है. इसे रेशा खत्मी कहते हैं. इसमें बहुत अधिक चिपचिपा पदार्थ या म्यूसिलेज होता है अपने इस गुण के कारण इसे डिसेंट्री में प्रयोग किया जाता है. जड़ों को पानी में भिगोकर उसका चिपचिपा पदार्थ निकालकर थोड़ी शकर मिलाकर पिलाने से डिसेंट्री में लाभ होता है.  


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