नीम के फलों को निबोली, निबौरी, निमकौली आदि कहते हैं. ये फल छोटे होते हैं. नीम का स्वाद कड़वा होता है इसलिए ये फल भी कच्चे होने पर कड़वे होते हैं. लेकिन पकने के बाद इनके फलों में कुछ मिठास आ जाती है. ये मीठापन भी थोड़ी सी कड़वाहट लिए होता है. लेकिन इन्हें आसानी से खाया जा सकता है.
इन फलों को कौवे और अन्य चिड़ियाँ भी चाव से खाती हैं. चमगादड़ भी इन फलों को खाते हैं. ये परिंदे फल खाकर गुठलियां इधर उधर गिरा देते हैं और इस प्रकार नीम के बीजों का बिखराव होता है जो प्रकृति का नियम है. नेचर ने बीजों के बिखराव के लिए बहुत से साधन बनाये हैं. इनमे मनुष्य और जानवर मुख्य रूप से फलों को खाकर उनके बीज फेंक देते हैं और उचित समय आने पर इन बीजों से पौधे जमते हैं.
ऐसे ही नीम का एक पौधा मेरे बंगले के में गेट के पास रास्ते के किनारे उगा. ये किनारे की ईंटों की पट्टी से सटा हुआ था और जब बड़ा हुआ तो कई बार पैरों से कुचला गया. लेकिन जब तक बरसात का सीज़न रहा इस पौधे में बार बार नए पत्ते निकल आते थे. बरसात समाप्त होने पर ये पौधा साइड की दीवार से लगा रहा. इसकी बढ़वार रुक चुकी थी.
इस प्रकार तीन चार साल गुज़रे. जब बरसात आती पौधा बढ़ना शुरू कर देता. लेकिन बार बार कभी पैरों से कुचला जाता और कभी माली उसे काट देता. इस नीम के पौधे को किसी ने कोई अहमियत नहीं दी. नीम उत्तर प्रदेश में बहुतायत से पाया जाता है. एक समय जब घर बड़े बड़े होते थे हर घर में नीम का पेड़ ज़रूर होता था.
कुछ साल बाद बंगले के मुख्य रस्ते को चौड़ा करने का नंबर आया. ये भी बरसात का मौसम था. नीम का पौधा फिर से बढ़ने लगा था. इतने सालों में उसकी जड़ मोटी हो चुकी थी. नीम की जड़ें बहुत गहराई तक जाती हैं. इस पौधे ने अपनी जड़ें रस्ते की ईंटों की नीचे गहराई तक फैला ली थीं.
जब मज़दूरों ने रस्ते को चौड़ा करने के लिए साइड की ईंटें उखाड़ीं तो मैंने कहा इस नीम के पौधे को न काटना. मैंने शौच कि तीन चार साल से ये नीम का पौधा ज़िंदा रहने और बढ़ने की कोशिश कर रहा है. इसे काटना ठीक नहीं होगा. क्यों न इसे बंगले में किसी ठीक जगह पर लगा दिया जाए.
शाम को जब मज़दूर चले गये तो मैंने इस नीम के पौधे को निकालकर दूसरी जगह शिफ्ट करने का इरादा किया. मैंने खुरपी की सहायता से उसकी जड़ निकालने के लिए गहरा गढ़ा किया. मेरा विचार था की छोटा सा पौधा है इसकी जड़ ज़्यादा गहरे में नहीं होगी. गढ़ा काफी गहरा खोदने पर भी उसकी जड़ और ज़्यादा गहराई में दिखाई दी जो रस्ते की ईंटो के नीचे दबी हुई थी.
कोशिश करने पर इस पौधे के पूरी मेन जड़ नहीं निकल पायी और टूट गयी.
नीम ऐसा पौधा है जो अपनी मुख्य जड़ सीधी गहराई तक फैलता है. जितना नीम ऊपर होता है उसकी जड़ दो गुनी अंदर होती है.
मैंने जड़ टूट जाने के दुःख के साथ इस नीम के पौधे को बंगले की बाउंड्री वाल के पास लगा दिया. इस पर मेरी जीवन संगनी ने एतराज़ भी किया: यहाँ कहाँ नीम लगा रहे हो ये कोई ठीक जगह नहीं है.
मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और नीम का पौधा लगाकर उसकी जड़ में थोड़ा सा पानी डाल दिया और नतीजे का इंतज़ार करने लगा कि नीम का पौधा जिसकी जड़ टूट चुकी है सर्वाइव करता है या नहीं.
पहले तो इस पौधे को एक झटका लगा उसके पत्ते मुरझाने लगे,. लेकिन कुछ दिन के बाद उसमें नये पत्ते निकले और पौधा जो रास्ते के किनारे तीन चार साल से सर्वाइव करने की जद्दो -जेहद कर रहा था तेज़ी से बढ़ने लगा.
दो महीने में पौधा खूब बढ़ गया अब वह बंगले की बाउंड्री वाल से लगभग एक फुट ऊंचा हो गया था और दूर से दिखाई देने लगा था.
एक दिन जब सुबह 6 बजे मैं और मेरी पत्नी लान में लगे पौधों को निहार रहे थे किसी महिला ने बाउंड्री वाल के उस तरफ से नीम के पौधे को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया. मेरी पत्नी ने पूछा क्या है ?
वह औरत बोली नीम की दातुन तोडना है.
उसने कहा इस पौधे में एक ही तो टहनी है वह भी तोड़ लोगी तो इसमें क्या बचेगा और ये पौधा कैसे बढ़ेगा.
औरत चली गयी. यदि हम लोग उसे न देखते तो उसने नीम के पौधे का सत्यानाश कर दिया होता.
अब मैंने इस पौधे को दोबारा गहरी खुदाई करके निकला कि इसे दूसरी जगह लगाया जाए. अब नीम के जड़ें और गहरी पहुंच चुकी थीं. गहरी खुदाई करने के बाद भी जड़ फिर से पूरी नहीं निकल सकी और टूट गयी.
उस पौधे के अब बंगले के पिछले हिस्से में लगा दिया. बरसात गुज़र चुकी थी. दोबारा स्थान बदलने से उसे फिर झटका लगा और पौधा मुरझा गया. सर्दी का मौसम आया. उस पौधे के सब पत्ते झाड़ चुके थे. टहनियां सूखी लग रहीं थीं. हमने सोचा पौधा सूख गया है.
फरवरी मार्च में पौधे में फिर से नयी पत्तियां निकलीं. वह पौधा फिर से हरा भरा हो गया. हम लोग बहुत खुश हुए.
इस तरह दो साल गुज़रे. पौधे ने फिर से बढ़वार पकड़ ली थी. हमें उम्मीद थी की आने वाले तीन चार साल में वह एक छोटा वृक्ष बन जाएगा.
लेकिन! इसी अप्रैल की बात है. मेरे बंगले के पीछे वाले क्वार्टर में माली ने सूखे पत्ते इकठ्ठा किये और उनमें आग लगा दी. ये पत्ते नीम के पौधे के करीब में थे. और जिस क्यारी में ये नीम का पौधा लगा है उसमें भी सूखे पत्ते जमा थे. माली आग लगाकर चला गया. आग को बिना देखे भाले छोड़ना बहुत नुकसानदेह होता है. पत्ते जलते जलते आग नीम के पौधे तक पहुंच गयी और क्यारी में बहुत से पौधे जल गए.
अब ये नीम का पौधा झुलसा खड़ा है. बरसात आने वाली है. देखते हैं ये फिरसे हरा भरा होता है या नहीं.
इस नीम के पौधे का जीवन संघर्ष भरा है.
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