जंगलों को बचाने की जो कवायद थी उसमें सारी दुनिया के देश फेल हो रहे हैं. पिछले पांच वर्षों में केवल भारत में जंगलों का क्षेत्र लगभग साढ़े छ लाख हेक्टेयर कम हुआ है. ये ब्राज़ील के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा जंगलों के क्षेत्र का नुकसान है.
बढ़ती शहरी आबादी, तेज़ी से होता औद्योगीकरण सबसे पहले शहरी क्षेत्र और गांव की ज़मीनो और खेतों को खाते हैं. सिमटते हैं और उनकी जगह पर कालोनियां, सड़कें, हाइवे और फैक्ट्रियां लगती हैं. उसके बाद गांव की जनता का पलायन शुरू होता है. जब खेती किसानी खत्म हो जाती है. बाग़ बगीचे नहीं रहते तो गांव का किसान या तो मज़दूरी करने शहर का रुख करता है या फिर अपनी बची खुची ज़मीन बेचकर बाहर निकल जाता है. इससे न केवल शहरो पर अनावश्यक बोझ पड़ता है, उनकी आबादी तेज़ी से बढ़ती है. पानी के संसाधनों पर दबाव पड़ता है और जल संकट की समस्या भी पैदा होती है.
जंगलों के इस कटान ने पर्यावरण को भी बहुत नुकसान पहुंचाया है. इसकी वजह से बारिशें कम हुई हैं. हरियाली खत्म हो जाने से बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पाता और फालतू बह जाता है जिससे न केवल बाढ़ की समस्या पैदा होती है बल्कि भूगर्भ जल संकट की समस्या भी पैदा होती है.
पानी की अत्यधिक दोहन से, जमीन से ज़्यादा पानी निखोदे कालने से भूगर्भ जल संकट गहरा रहा है. पानी का लेवल कम होता जा रहा है. पानी के ओवर हेड टैंक के लिये ज़्यादा गहरे बोरवेल बनाये जा रहे हैं. ज़मीन के अंदर का पानी खत्म हो जाने के बाद पानी के साधन बहुत कम रह जाएंगे.
इसलिए जंगल बचाने की बहुत ज़रूरत है.
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