अंजीर जंगली आम तौर से जंगलों और खाली पड़ी जगहों पर उगता है. इसके पत्ते बड़े बड़े कटे फटे और खुरदुरे होते हैं. इस पौधे में भी दूध पाया जाता है. इसलिए यह खराब और सूखे मौसम में भी बचा रहता है. इसके फल गूलर के आकर के लेकिन उससे छोटे होते हैं. कच्चे फल हरे और सूख कर बैंगनी रंग के हो जाते हैं. फलों के अंदर इसके बहुत बारीक बीज होते हैं. इस बीजों का आवरण सख्त होता है और खाने वाले के पेट में भी नहीं पचता है. यही कारण है की चिड़ियाँ इसे खाकर जहाँ कहीं बीट करती हैं, मौसम की उपयुक्त अवस्था पाकर पौध उग आता है.
अंजीर जंगली का पौधा
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बाज़ार में मिलने वाला अंजीर बड़ी वैराइटी का होता है. अंजीर जंगली हो या काश्त किया हुआ उसके गुण धर्म एक सामान होते हैं. अंजीर के दूध को कबायली तोग दाद पर लगाते हैं. कहते हैं इसके लगाने से दाद समूल नष्ट हो जाता है. जंगलों में जानवर चराने वाले अंजीर के पत्तों का दौना बनाकर इसमें दूध लेकर कुछ बूँदें अंजीर के दूध की मिला देते हैं तो थोड़ी देर में दूध दही की तरह जम जाता है.
अंजीर कब्ज़ को दूर करता है. सूखे अंजीर दो से चार की मात्र में पानी में भिगोकर खाने से कब्ज़ ठीक होता है. अंजीर और अखरोट साथ खाने पर जोड़ों का दर्द जाता रहता है. अंजीर का गन गर्म और तर है. गर्मी सोच समझकर करना चाहिए. इससे गर्म स्वाभ वाले लोगों को नुक्सान हो सकता है. जाड़े के मौसम में अंजीर का इस्तेमाल फायदेमंद है.