बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. फरवरी मार्च में बकायन मे गुच्छेदार फूल आते हैं. ये फूल सफ़ेद रंग को होते हैं और इनकी पंखुड़ियां बैंगनी रंग की धारीदार होती हैं. फूल देखने में दो रंग का लगता है.
बकायन एक बहुत जल्दी बढ़ने वाला पौधा है. ये आम तौर से सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसकी बढ़वार तेज़ी से होती है. जाड़े में इसके पत्ते जल्दी गिर जाते हैं. गर्मी में ये छायादार होता है. ये देखने में नीम की तरह लगता है. इसके पत्ते भी नीम के तरह होते है. लेकिन नीम के पत्तों से बड़े. इसकी छाल साफ़ सुथरी होती है. पेड़ देखने में सुन्दर लगता है. कुछ लोग इसे बड़ा नीम या भाषा को बिगाड़ कर बडनीमा भी कहते हैं.
बकायन में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं.
नीम के फलो को निमोली या निम्बोली या निमकोली कहते हैं. नीम के फल पककर टपक जाते हैं. जून जुलाई तक नीम में एक भी फल नहीं रहता.
लेकिन बकायन का मामला इससे उलट है. इसके फल पककर गिरते नहीं हैं. ये गुच्छों में लगे लगे सूख जाते हैं. नवम्बर और दिसंबर के दिनों में भी पेड़ पर इसके सूखे फल मिल जाते हैं.
इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है.
बकायन के फल की गिरी, नीम के फल की गिरी और सामान भाग रसौत मिलाकर पाउडर बनाकर चने के बराबर गोली बनाली जाती है. ये गोलियां एक से दो पानी के साथ सुबह दोपहर शाम लेने से बवासीर जड़ से समाप्त हो जाती है.
बकायन की छोटी कोंपलों का रस निकालकर फ़िल्टर करके खरल में डालकर लगातार खरल करके सूखा लिया जाता है. ये एक तरह का सुरमा बन जाता है. इसे रात को आँख में लगाने से उतरता हुआ मोतिबिन्द भी ठीक हो जाता है.
बकायन के हरे पत्ते पीस कर पेस्ट बनाकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर लगाने से खुजली में लाभ होता है. इसकी छाल घिसकर खुजली और गर्मी - बरसात के मौसम में निकलने वाले दानो पर लगाने से नीम की छाल के सामान ही फ़ायदा करती है. बकायन एक बहु उपयोगी वृक्ष है. लेकिन इसका प्रयोग या किसी भी जड़ी बूटी प्रयोग किसी हाकिम वैध या डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए.
अजीब बात ये है की बकायन नीम की तरह कड़वा पौधा है. लेकिन इसके बीज हकीम हब्बुलबान के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. इसके बीज बिलकुल भी कड़वे नहीं होते.
नीम के फलो को निमोली या निम्बोली या निमकोली कहते हैं. नीम के फल पककर टपक जाते हैं. जून जुलाई तक नीम में एक भी फल नहीं रहता.
लेकिन बकायन का मामला इससे उलट है. इसके फल पककर गिरते नहीं हैं. ये गुच्छों में लगे लगे सूख जाते हैं. नवम्बर और दिसंबर के दिनों में भी पेड़ पर इसके सूखे फल मिल जाते हैं.
इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है.
बकायन के फल की गिरी, नीम के फल की गिरी और सामान भाग रसौत मिलाकर पाउडर बनाकर चने के बराबर गोली बनाली जाती है. ये गोलियां एक से दो पानी के साथ सुबह दोपहर शाम लेने से बवासीर जड़ से समाप्त हो जाती है.
बकायन की छोटी कोंपलों का रस निकालकर फ़िल्टर करके खरल में डालकर लगातार खरल करके सूखा लिया जाता है. ये एक तरह का सुरमा बन जाता है. इसे रात को आँख में लगाने से उतरता हुआ मोतिबिन्द भी ठीक हो जाता है.
बकायन के हरे पत्ते पीस कर पेस्ट बनाकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर लगाने से खुजली में लाभ होता है. इसकी छाल घिसकर खुजली और गर्मी - बरसात के मौसम में निकलने वाले दानो पर लगाने से नीम की छाल के सामान ही फ़ायदा करती है. बकायन एक बहु उपयोगी वृक्ष है. लेकिन इसका प्रयोग या किसी भी जड़ी बूटी प्रयोग किसी हाकिम वैध या डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए.
अजीब बात ये है की बकायन नीम की तरह कड़वा पौधा है. लेकिन इसके बीज हकीम हब्बुलबान के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. इसके बीज बिलकुल भी कड़वे नहीं होते.