शनिवार, 31 दिसंबर 2016

प्याज़

प्याज़ एक जानी मानी सब्ज़ी है. इसमें तेज़ झरप और गंध होती है जो काटने वाले को आंसू रुलाती है. कभी ये मंहगा हो जाता है और कभी सस्ता. हर हालात में न्यूज़ में रहता है और इस पर राजनीति  भी होती है.

ये एक गुणकारी दवा है. स्वाभाव से गर्म होता है. प्याज़ को आग पर गर्म करके फोड़ों पर बंधने से फोड़ों को पका  देता है जिससे पलौड़ा फूटकर पस बहने में मदद मिलती है. देहातों में कहावत थी की जिसने बरसात के मौसम में पांच सेर प्याज़ और पांच सेर गुड़ खालिया उसने पांच भैंसों का मक्खन खाने के बराबर शक्ति प्राप्त करली.
दो मीडियम साइज़ के प्याज़ को कुचलकर पानी निकल लिया जाए और उसमें दो चमच शहद मिलकर हलकी आंच पर इतना पकाया जाए कि प्लीज़ का पानी जलकर केवल शहद बाकी रहे, इसके सेवन से शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होती है.

प्याज़ खून को पतला करता है. गर्मी की मौसम में इसका सेवन लू से बचाता  है. प्याज़ का रस और कपूर के सेवन से कालरा नहीं होता.
प्याज़ बाल बढ़ाने और उगाने में लाभकारी है. बालखोरे पर कच्ची प्याज़ लगाने से बालखोर ठीक हो जाता है और फिरसे बाल  निकल आते हैं.
प्याज़ को काटकर धूप  में सुखा लिया जाए और फिर इसे पाउडर बना दिया जाए. प्याज़ का पाउडर, अश्वगंधा का पाउडर, शतावरी का पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर इस दावा का एक चमच सुबह और एक

चमच शाम दूध के साथ प्रयोग करने से टॉनिक का कार्य करता है और बीमारीयों से बचाता  है.
प्याज़ एक बहु उपयोगी सब्ज़ी ही नहीं ये एक बड़ी दावा है. सावधानी से इसका प्रयोग बहुत से बीमारियों से बचता है.


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

ज़मींकंद

ज़मींकंद का पौधा बरसात में उगता है और बरसात गुजरने के बाद सूख जाता है. इसका कंद ज़मीन में रह जाता है. ये एक प्रकार का ट्यूबर है जो गोलाई लिए टेढ़े मेढ़े आकर का होता है. इसका मज़ा बहुत तिक्त और मुंह में जलन डालने वाला होता है.   इसकी सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है. इसका स्वाद बहुत ज़्यादा जलन डालने वाला होता है. कि इसका इस्तेमाल करने से पहले इसके टुकड़ों को इमली के साथ उबाला जाता है जिससे इसका स्वाद ज़्यादा तेज़ न रहे. इमली न मिलने पर नीबू के साथ भी उबाल सकते हैं.

जमीकंद स्वाभाव से बहुत गर्म है. गर्म स्वाभाव के लोगों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे लोग जो चर्म रोगों से ग्रस्त हों उनको भी ये नुकसान करता है.
जमीकंद खून को पतला करता है. हार्ट के ऐसे मरीजों को जो खून का थक्का बनने की बीमारी से ग्रस्त हैं ये लाभकारी सिद्ध होता है. ब्लड फ्लो बढ़ाने के कारण ये मेंस्ट्रुएशन के दौरान और लाक्टेटिंग वीमेन को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
पेट के अल्सर से ग्रस्त मरीजों को भी ये अल्सर से ब्लीडिंग बढाकर नुकसान कर सकता है.
सर्दी से होने वाले रोगों जैसे अस्थमा, साँस फूलना, ब्लड का गाढ़ा होना, शरीर में वाइटल हीट के कमी में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी है.
ये कब्ज़ को दूर करता है. इसका प्रयोग गर्मी के मौसम में न करे. सर्दी के मौसम में भी इसका प्रयोग सावधानी से करने पर ये एक बहुत लाभकारी दवा है.

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

भृंगराज

 भृंगराज, एक औषधीय  पौधा है. आम लोग इसे भंगरा  भी कहते हैं. ये काला और सफ़ेद दो प्रकार का पाया जाता है. काले पौधे की शाखें काली होती हैं. इसका फूल सफ़ेद कुछ कालिमा लिए हुए होता है. बालों को बढ़ाने, लंबा और घना करने में इसका बहुत नाम है. आयुर्वेद में माह भृंगराज तैल बालों को बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है.
भंगरा एक जड़ी बूटी के रूप में खाली पड़ी जगहों पर घास फूस के दरम्यान उगता है. इसे पानी और नमी के ज़्यादा आवश्यकता होती है. इसलिए इसके पौधे नालियों के किनारे, ऐसे स्थानों पर जहाँ नमी रहती हो पाये जाते हैं.

इसके फूल छोटे छोटे सफ़ेद होते हैं. फूल सूख जानेपर इसके बारीक बीज गिर जाते हैं. इसके पौधे बरसात में आसानी से उगते हैं. वैसे ये साल भर मिल सकता है लेकिन जाड़ों में कमी के साथ पाया जाता है.
जहाँ से बाल उड़ गए हों और चिकने स्थान रह गए हों वहां पर इसके पत्तों को प्याज़ के साथ पीसकर लगाने से बाल दुबारा उग आते हैं. इसकी यही एक अजीब बात बहुत काम की है. भंगरा, आमला, जटामांसी, करि पत्ता और मेंहदी की पत्तियों के पाउडर को तेल में पकाकर उस तेल को छान कर बालों में लगाने से बाल बढ़ते और घने होते हैं.
भंगरा का प्रयोग आँख की दवाओं में भी होता है. इसका काजल बनाकर आँखों में लगाने से आँखें स्वस्थ रहती हैं. काजल बनाने का तरीका ये है कि भंगरा की पत्तियों का रस निकालकर उसमें मुलायम सूती कपडा भिगोकर लपेटकर बत्ती बना ली जाए. बत्तियों के सूख जाने पर उसे तिल  के तेल के दीपक में जलाया जाए और उसकी लौ के ऊपर एक साफ मिटटी का बर्तन इस प्रकार रखा जाए कि बत्ती जलती रहे और उसका धुआं मिटटी के बर्तन में कालक के रूप में जमा होता रहे. बाद में इसी कालक को लेकर थोड़ा सा घी मिलकर पेस्ट के रूप में काजल बनाया जाता है.


मूली

मूली एक सब्ज़ी है जिससे सभी लोग परिचित हैं. मूली के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है: सुबह की मूली अमृत, दिन की मूली मूली और रात की  शूली. मतलब यह है की सुबह को मूली खाना अमृत की तरह फायदेमंद है. दिन में मूली खाना भी गुणकारी है लेकिन रात मो मूली दर्द देने वाली होती है.
मूली खाने को पचाती है लेकिन खुद देर में पचती है. इस खराबी को दूर करने के लिए मूली के पत्ते भी साथ में खाना चाहिए. खाने में मूली और दही का साथ अच्छा नहीं माना जाता कुछ लोगों को पेट में दर्द हो जाता है. मूली का स्वाभाव ठंडा है. ठन्डे  स्वाभाव वालों को मूली का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए.
मूली का नमक या मूली खार  पेट के दर्द, गैस और गुर्दे की पथरी तोड़ने में कामयाब है.

मूली के पौधे में  खूबसूरत फूल खिलते हैं.  फूल चार पंखुड़ी का होता है. इसमें सरसों की  फलियों के तरह फलियां लगती हैं. ये फलियां सरसों की  फलियों से मोटी होती हैं. क्योंकि मूली का बीज सरसों के बीज से दोगुना बड़ा होता है. इसका बीज बिलकुल गोल नहीं होता बल्कि कुछ चपटा होता है. ये फलियां कच्ची अवस्था में सब्ज़ी बनाकर खायी जाती हैं. इनके फायदे भी वही हैं जो मूली के हैं.
मूली बवासीर में भी फायदा करती है. मूली को शकर लगाकर खाने से बाल मज़बूर होते हैं. और उनका गिरना बंद हो जाता है.
मूली को सिरके में डालकर पका  लिया  जाए तो ये बढे हुए जिगर और बढ़ी हुई तिल्ली के बड़ी दावा बन जाती है.
 मूली के सलाद पर काली मिर्च और नमक छिडककर दोपहर में खाने से बढ़ हुआ पेट काम हो जाता है. लेकिन इसका सेवन नियमित किया जाए और दोपहर के खाने के मात्रा आधी करदी जाए.
मूली जॉन्डिस में भी फायदा करती है. इसकी सब्ज़ी बनाकर खाने से बहुत लाभ होता है.   

अरण्ड

एरण्ड, एरण्डी, अरण्ड, अण्डउआ एक बहु उपयोगी पेड़ है. इसके फल अरंडी या अंडी  कहलाते हैं. अंडी का तेल या कैस्टर आयल कब्ज़ दूर करने के लिए एलोपैथी में बहुतायत से उपयोग किया जाता है. इसके बीज का बाहरी सख्त छिलका ज़हरीला होता है. इसके बीज खाने से ज़हरीला प्रभाव हो सकता है. इसलिए अंडी को बच्चों के पहुँच से दूर रखें.
इसके पत्ते और जड़ जोड़ों के दर्दों में लाभकारी है. विशेषकर घुटने के दर्द में सरसों का तेल गुनगुना करके नामांक के साथ मालिश के जाए और बाद में अरंड का पत्ता आग पर गर्म करके ऊपर से रख कर गर्म पट्टी लपेट दी जाए तो दर्द ठीक हो जाता है.

जोड़ों के पुराने दर्द और गढ़िया के लिए अरंड की जड़ का पाउडर आम्बा हल्दी के पाउडर के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर और पन्नी के साथ पेस्ट बनाकर थोड़ा गर्म करके जोड़ों पार्क लगा दिया जाता है और ऊपर से पट्टी बांच दी जाती है. सुबह को यह लेप छुड़ा दिया जाए और किसी अच्छे दर्द निवारक तेल के मालिश के जाए तो घुटनों के दर्द में बहुत आराम मिलता है.
कब्ज़ के लिए एक से दो चमच अरंड का तेल गर्म दूध में मिलाकर रात को पीने से कब्ज़ दूर होता है.
अस्थमा के दौरे में अरंड के सूखे पत्तों को तम्बाकू के तरह पीने से आराम होता है.
ध्यान रहे के अरंड एक ज़हरीली दावा है इसलिए खाने पीने में इसका प्रयोग किसी जानकार वैध या हकीम के सलाह से ही करना चाहिए.
अरंड के आयल  में विटामिन ई आयल मिलकर त्वचा पर लगाने से झुर्रियां नहीं पड़ती.
अरंड के तेल में शहद के छत्ते वाला असली मोम गर्म करके मिला दें यह एक प्रकार की क्रीम बन जाएगी।  इसे फटी एड़ियों पर लगाने से एड़ियां ठीक हो जाती हैं. और मंहगी क्रीमों से छुटकारा मिल जाता है.

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

चिड़चिड़ा

चिड़चिड़ा, चिरचिरा, चिरचिटा, ओंगा, एक बहुतायत से पायी जाने वाली जड़ी बूटी के नाम हैं.  इसका दूसरा नाम लटजीरा भी है. इसे अपामार्ग भी कहते हैं. ये ज़हरों को मारने वाला पौधा है. बिच्छू के डांक मारने पर इसकी जड़ को पीसकर कागने से और इसकी पत्तियों का रास पिलाने से ज़हर का असर दूर होता है और दर्द और जलन में कमी आजाती है.
इसके बीज कांटेदार  होते हैं. एक लंबी शाखा पर बीज लगे होते हैं. ये बीज काँटों के कारण किसी भी जीव के जो इसके संपर्क में आता है चिपक जाते हैं. इस प्रकार ही इसके बीजों का फैलाव दूर दूर तक हो जाता है.

चिड़चिड़ा एक बहु उपयोगी पौधा है. गुर्दे के पथरी निकालने में इसका खार या नमक उपयोग किया जाता है. खार निकालने के लिए  पौधों को सुखाकर जलाकर राख बना ली जाती है. राख को पानी में घोलकर  पानी को छानकर आग पर सुखा लेते हैं तो बर्तन के तली  में खार बच जाता है. चिड़चिड़ा खार  जौखार, बेर पत्थर को बराबर मात्रा में लेकर मिश्रण बनाकर एक से तीन ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार प्रयोग करने से गुर्दे के पथरी टूटकर निकल जाती है. इसका प्रयोग किसी हकीम या वैदय  की सलाह से ही करना चाहिए. 
इसके बीजों को पीसकर और छानकर चावल के पानी के साथ प्रयोग करने पर खुनी बवासीर में लाभ होता है. चिड़चिड़े की दातून करने से दांत के रोग ठीक होते हैं. 

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

कुकरौन्दा

कुकरौन्दा, कुकरौंधा या कुकड़छिदि एक ही पौधे के नाम हैं. ये पौधा बरसात के दिनों में बहुतायत से उगता है. इसके पत्ते कासनी के पौधे से मिलते जुलते होते हैं. इसमें एक बहुत तेज़ गंध आती है. जो कुकरौंधे के विशेष गंध है. अपनी गंध की वजह से इसे आसानी से पहचान जा सकता है.
इसके पत्ते रोएंदार होते हैं. पत्तों का रंग गहरा हरा होता है जो कुछ कुछ डार्क ग्रीन रंग कहा जा सकता है. ये पौधा बरसात से जाड़ो भर रहता है. मार्च अप्रैल में सूख जाता है.

इसमें पीले फूल खिलते हैं. फूलों के बाद बीज रूई के रेशों के आकर में हवा में उड़ते हैं. मदार के बीज के रेशे बड़े होते हैं. इसके रेशे छोटे होते हैं. दोनों के बीजों का बिखराव हवा के द्वारा रेशों के सहायता से उड़ने से होता है.
यह पौधा बरसात में उगकर मार्च अप्रैल तक रहता है. गर्मी आने पर सूख जाता है और इसके बीज बिखर जाते हैं. यह बवासीर के बड़ी दवा  है. इसके पौधे को कुचलकर रस निकाल कर उसमें रसौत भिगो दें. रसौत के घुल जाने पर इसे धीमी आंच पर पकाएं और गोलियां बनाकर रख लें. ये गोलियां बवासीर में लाभकारी हैं.
बर्ड  फ्लू में भी कुकरौंदा लाभकारी है. इसके पत्ते पीसकर गोलियां बनाकर खिलाने से पक्षी ठीक हो जाते हैं.
घावों पर इसकी पत्तियों का रस लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं. ये एंटीसेप्टिक का कार्य करता है.




बुधवार, 2 नवंबर 2016

गलगल

गलगल एक बड़ा फल है. ये नीबू की जाति  का पौधा है. इसके फल बड़े बड़े होते है. पौधा बीज और कलम दोनों से  लगाया जाता है. मार्च अप्रैल में इसमें सुगंधित फूल खिलते हैं. कुछ लोगों ने इसका नाम खट्टा भी रखा हुआ है. खट्टे के फूलों की खुशबू बहुत अच्छी होती है. इसे तेलों में डाला जाता है. इके खिलने से सारा बाग़ महक  उठता है.

फूलों के बाद फल लगते हैं. जो कच्चे हरे और पककर पीले पड़ जाते हैं. इनका रंग ओरंज कलर का होता है. लेकिन बहुत खट्टे होते हैं और इनमें रस भी खूब होता है. इसका छिलका बहुत मोटा होता है. रस निचोड़ने के बाद छिलके का अचार बनाया जासकता है. छिलके दो छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर नमक लगाकर धूप में रखने से कुछ दिनों में अचार तैयार हो जाता है.
इसके रस में अजवाइन भिगोकर सुखाले और फिर काला नमक मिलाकर खाने से पेट का दर्द दूर होता है. इसके रस में दानेदार शकर मिलाकर एक अच्छा स्क्रब बन जाता है जो घुटनों और कोहनियों के कालेपन पर रगड़ने से कालापन दूर करता है.
गलगल में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसका अचार भी बनाया जाता है. अचार छिलके के साथ डाला जाता है और बरसों खराब नहीं होता.
नीबू के रस के जगह इसके रस का प्रयोग किया जासकता है. विशेष तौर से दवाओं को भावना देने में इसका प्रयोग किया जाता है.
गलगल का रस नीबू के जगह प्रयोग किया जाता है. इसका इस्तेमाल दांतों को मज़बूत करता है. नियमित इस्तेमाल नज़ला  ज़ुकाम  से बचाता है. इसमें कैंसर रोधी गुण भी हैं. नियमित इस्तेमाल से लिवर को सुरक्षित रखता है और कैंसर की कोशिकाओं को जन्म नहीं लेने देता.

सुगन्धित हेयर आयल बनाने के लिए धोए हुए तिलों को खट्टे के फूलों में बसाया जाता था. तिलों के एक लेयर कपडे पर डालकर उसपर खट्टे के फूलों के एक लेयर डाल दी जाती थी. फिर एक हलकी चादर ऊपर से डालकर तिलों के दूसरी लेयर फिर खट्टे के फूलों की लेयर. शाम को फूल अलग कर दिए जाते थे सुबह पुनः यही प्रक्रिया नए फूलों के साथ दोहराई जाती थी. तिलों के खूब सुगन्धित हो जाने के बाद उसका तेल निकल जाता था जो बहुत सुगन्धित और ठंडक देने वाला होता था.
घर पर सुगन्धित तेल बनाने के लिए तिलों का शुद्ध तेल लेकर एक कांच के जार में दाल दें और उसमे खट्टे के फूल दाल दें. दो दिन धूप  में रखने के बाद फ़िल्टर करके फूल निकाल दें. यही प्रक्रिया चार पांच बार दोहराये. तेल बहुत सुगन्धित बन जायेगा. ये तेल गर्मी जनित रोगों को दूर करता है. इसके लगाने से सर में शीतलता बानी रहती है. ठन्डे स्वाभाव के लोग इस्तेमाल न करें.

इसका छिलका मोटा होता है. छिलके का अचार भी बनाया जाता है. ये विटामिन सी से भरपूर होने के कारण सर्दी जुकाम नहीं होने देता. लेकिन खट्टे स्वाभाव के कारण जारी जुकाम में हानिकारक है.



मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

कन्फेडरेट गुलाब

कन्फेडरेट गुलाब या कॉटन गुलाब एक एक अजीब हर्ब है. ये सुन्दर सफ़ेद, गुलाबी और लाल रंग के बड़े बड़े गुलाब जैसे फूलों से पहचाना जाता है. इसके फूल रंग बदलते हैं. यही इसकी अजीब बात है. ये चीन का पौधा है और अब पूरी दुनिया में फैल चूका है. इसके पौधे का नाम अमेरिका की देन है. ये अमरीका की कॉन्फेडरेट स्टेट में बहुतायत से पाया जाता था. ये राज्य वे थे जो गुलाम थे और इन सात राज्यों ने मिलकर एक  कन्फेडरेशन बनाया था. ये सात गुलाम राज्य थे - साउथ  कारोलिना, मिसिसिपी, अलबामा, फ्लोरिडा, जार्जिया, लौसियाना और और टेक्सास. इन राज्यों ने नवम्बर 1860 में अमरीका से अलग होने की घोषणा की. इन राज्यो में काटन की खेती बहुतायत से होती थी. इस पौधे का नाम वहां से कन्फेडरेट गुलाब, और कॉटन गुलाब पड़ गया. ये हिबिस्कस फॅमिली का पौधा है. और हिबिस्कस मुटाबिलिस के नाम से जाना जाता है.

इसका फूल सफ़ेद  रंग में खिलता है. दोपहर तक गुलाबी रंग बदलता है और शाम तक लाल हो जाता है.

 एक ही पौधे में दो तीन तरह के फूल दिखाई देते हैं. इसके फूल आखिर सितम्बर में खिलने शुरू हो जाते हैं. इसके फूलों का खिलना जाड़ों के आने का संकेत देता है. ये पांच से पंद्रह फुट की ऊंचाई तक बढ़ सकता है. इसकी डालियाँ कमज़ोर होती हैं. फूल खिलने के बाद इसके गोल गोल बीज लगते हैं जो कवर में बंद होते हैं. इन बीजों से नये पौधे उगते हैं.
ये कलम से भी लगाया जा सकता है. इसके फूलों के जोशान्दे का इस्तेमाल खांसी और बलगम निकलने में किया जाता है. दवाई के रूप में अभी इसका ज़्यादा प्रचलन नहीं है. इसका स्वभाव ठंडा और तर है. इसका रस और म्यूसिलेज इजी पर्च्यूरीशन में प्रयोग होता है.
ये एक सुन्दर और फूलों का रंग बदलने के कारण अजीब पौधा है. बगीचों की सुंदरता बढ़ता है.

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

घृत कुमारी

एलोवेरा, घीग्वार, घृत कुमारी, एक चर्चित पौधे के नाम हैं. इस पौधे को आयुर्वेद और देसी जड़ी बूटी के नाम पर बिजिनेस  का धंधा बना लिया है. कोई ऐसा रोग नहीं है जो एलोवेरा के इस्तेमाल से ठीक न हो सके. ख़ास  तौर से सौंदर्य प्रोडक्ट में एलोवेरा के नाम पर खूब ठगी की जाती है. बालों के शैम्पू से लेकर फेस क्रीम और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों में एलोवेरा का नाम ही प्रोडक्ट के बिकने की गारंटी है.
एलोवेरा के नाम से बाज़ार में बहुत प्रोडक्ट मौजूद हैं. लगता है एक अकेली बूटी  ऐसी अचूक दवा है जिसके इस्तेमाल से न बुढ़ापा आता है, न त्वचा पर झुर्रियां पड़ती हैं और न डाईबेटिस होती है.
बस एलोवेरा जेल पीजिये और हमेशा जवान रहिये. एलोवेरा लगाइये और तमाम सौंदर्य प्रसाधन से छुटकारा पाइये.

कहने का मतलब ये है की एलोवेरा के नाम पर लोगों के पैसे की लूट की जा रही है. एलोवेरा जेल अच्छे भले चेंज निरोगी लोग पी रहे हैं. और अपनी गाढ़ी कमाई को लुटा रहे हैं.
ध्यान रखिए कोई जड़ी बूटी कितनी भी अच्छी क्यों न हो उसका बे वजह इस्तेमाल कई रोगों को जन्म दे सकता है. इसलिए बाजार में मिलने वाले एलोवेरा प्रोडक्ट का इस्तेमाल बिना ज़रुरत न करें.
ऐसा नहीं है की घीक्वार या एलोवेरा में गुण नहीं हैं. लेकिन इसके गुणों का लाभ दिखाकर बिजिनेस चलाई जा रही है और एलोवेरा को बदनाम किया जा रहा है.
एलोवेरा एक बदनाम पौधा बन चुका है.
एलोवेरा का स्वाभाव शुष्क है. इसके पत्ते मोटे होते हैं जिनके अंदर एक चिपचिपा सा गूदा या sap भरा होता है. इनको काटने पर रंगहीन और कुछ पीला रंग लिए चिपचिपा जेल निकलता है. इस जेल और गूदे में ही औषधीय गुण हैं. ये चिपचिपा पदार्थ खाने पर आँतों में फिसलन पैदा करता है जिससे बहुत से जीवाणु इस चिपचिपे पदार्थ में लिपटकर आँतों से बाहर निकल जाते हैं. लेकिन इसका ज़्यादा इस्तेमाल अपने शुष्क या सूखेपन के गुण के कारण आँतों में खुश्की और सूखापन पैदा करता है. समय गुजरने पर इससे पेट के कई रोग जन्म ले सकते हैं.
त्वचा पर लगाने से इसका चिपचिपा पदार्थ एक परत या layer बनकर त्वचा के बारीक छेदों को बंद कर देता है. ये परत एक कंडीशनर की  तरह काम करती है. त्वचा की झुर्रियां मिट जाती हैं. लेकिन शुष्क गुण होने के कारण समय गुजरने के साथ त्वचा रूखी हो जाती है और उसकी चमक जाती रहती है. ये तैलीय त्वचा के लिए लाभकारी हो सकता है.
बालों में लगाने के पर चिपचिपे और सूखे गुण के कारण एलोवेरा डैंड्रफ में लाभ करता है. लेकिन जिनकी त्वचा पहले ही खुश्क हो उन्हें बालों में खुजली और बाल गिरने की समस्या हो सकती है.
एलोवेरा जोड़ों के दर्द में लाभकारी है. इसके लिए एलोवेरा के पत्तों को छीलकर अंदर से मुलायम गूदा निकाल लिया जाता है. ध्यान रहे की एलोवेरा के पत्ते को काटने पर जो पीले रंग का चिपचिपा पानी निकलता है उसमें कुछ हानिकारक तत्व भी होते हैं जो न केवल एलोवेरा का कड़वापन बढ़ाते हैं बल्कि शरीर को नुकसान भी करते हैं. इसलिए खाने में एलोवेरा का प्रयोग करने पर इस पीले चिपचिपे पदार्थ को हटा देना चाहिए. एलोवेरा के गूदे को घी में भून लिया जाता है और फिर चीनी और चने का आटा मिलाकर हलवा बना लिया जाता है. इस हलवे का प्रयोग जोड़ों और रीढ़ के दर्द में लाभकारी है.

रविवार, 11 सितंबर 2016

करी पत्ता

करी पत्ता और मीठा नीम एक ही पौधे के नाम हैं.  इसका प्रयोग मसालों में और दाल या करी में छौंक लगाने के लिए किया जाता है. उत्तर भारत से ज़्यादा ये दक्षिण भारत में प्रयोग होता है. इसे नमकीन स्नैक्स में भी मिलाया जाता है. ये एक छोटा पौधा है जो देखने में नीम जैसा होता है. इसकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार के खुश्बू होती है. कुछ लोगों को इसकी महक अच्छी नहीं लगती.

ये नीम की तरह कड़वा नहीं होता. इसीलिए इसे मीठा नीं कहते हैं. इसमें नीम की तरह फूल आता है और बाद में नीम के फलों से मिलते जुलते फल लगते हैं जो पककर नीले या बैगनी रंग के हो जाते हैं.
इसका प्रयोग न केवल मसाले के रूप में करी या दाल में छौंक लगाने के लिए बल्कि बालों को बढ़ने के लिए भी किया जाता है.
इसके पत्तों को साये में सुखाकर पीस कर पाउडर बनालें फिर उस पाउडर को एरंड के तेल castor oil में डालकर पकालें और ठंडा होने पर छानकर रखलें. बालों में रोज़ रात को इसका प्रयोग बालों को बढ़ता, मज़बूत  करता और काला  रखता है.
करी पत्ते का पेस्ट बनाकर मेंहदी में गुड़हल के फूल के साथ मिलाकर लगाने से न सिर्फ मेंहदी का रंग अच्छा आता है बाल घने भी होते हैं.
 इसकी शाखा की दातून दांतों को साफ़ रखती और बीमारियों से बचाती है.
तुलसी की पत्तियों के साथ बराबर मात्रा में इसकी पत्तियों के प्रयोग से बुखार ठीक हो जाता है.

शनिवार, 3 सितंबर 2016

लाल गुलाब

लाल गुलाब कई शेड में पाया जाता है. लेकिन यहाँ पर जड़ी बूटी के रूप में जिस गुलाब को इस्तेमाल किया जाता है वो लाल देसी गुलाब है. गुलाब की हाइब्रिड वैराइटी बहुत हैं. इसे खूबसूरती के लिए लगाया जाता है. लाल देसी गुलाब और सफ़ेद देसी गुलाब ही जड़ी बूटी के रूप में प्रयोग किया जाता है.

देसी गुलाब का फूल मीडियम साइज़ का और उसकी पंखुड़ियां मुलायम होती हैं. ये हाइब्रिड गुलाब की तरह सख्त या कठोर पंखुड़ियों वाला नहीं होता. न इसका फूल बड़े साइज़ का होता है. न इसका फूल लंबे समय तक रहता है. गुलाब हर मौसम में खिलता है. लेकिन सर्दी के मौसम से बहार के मौसम तक ये खूब खिलता है. इसकी कलम लगायी जाती है.

जड़ी बूटी के रूप में लाल देसी गुलाब ज़्यादा इस्तेमाल होता है. सफ़ेद देसी गुलाब भी काम में आता है. सफ़ेद गुलाब को गुले सेवती भी कहते हैं.
गुलाब को मुख्य रूप से गुलकंद बनाने में किया जाता है. गुलकंद ज़्यादातर लाल देसी गुलाब के फूल की पंखुड़ियों से बनाया जाता है. पंखुड़ियों को शकर के साथ मिलाकर और मसलकर धुप में रख दिया जाता है. शकर के साथ पंखुड़ियां पेस्ट के तरह हो जाती हैं. ये गुलकंद गर्मी के रोगों को दूर करता हैं और कब्ज़ में फ़ायेदेमंद है.
सफ़ेद गुलाब के फूल के गुलकंद को गुलकंद सेवती कहते हैं. ये भी गर्मी जनित रोगों में फायदेमंद है. कहते हैं की सेवती का गुलकंद दिल की बीमारियों जैसे दिल धड़कना, चक्कर आना में लाभकारी है.

गुलाब के फूलों का अर्क जिसे गुलाब जल भी कहते हैं, डिस्टिलेशन प्रॉसेस से निकाला जाता है. गुलाब को फूलों को पानी में उबालकर भाप को ठंडा किया जाता है. यही भाप गुलाब जल के रूप में ठंडी हो जाती है. इसमें गुलाब की अच्छी खुश्बू होती है. गुलाब जल चेहरे पर ग्लिसरीन के साथ लगाने पर चेहरे की मुहासों और झुर्रियों को दूर करता है. पानी में मिलकर नहाने से त्वचा कांतिमय हो जाती है.
गुलाब जल शरबत में मिलाकर पिया भी जाता है. ये दिल के रोगों में लाभ करता है. लेकिन गुलाब जल असली होना चाहिए. आजकल मार्किट में मिलने वाले गुलाब जल पर भरोसा नहीं किया जासकता. गुलाब की खुशबु वाला सिंथेटिक गुलाब जल बहुतायत से उपलब्ध है.


शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

हिबिसकस

 हिबिसकस को  चाइना रोज़ और गुड़हल के नाम से भी जाना जाता है. इसके फूल जो आम तौर से पाए जाते हैं लाल रंग के  होते हैं. वैसे हिबिस्कस कई रंगों में पाया जाता है. इसके फूल के भी कई वैराइटी होती हैं. सिंगल पांच पंखुड़ी का फूल, और बहुत से पंखुड़ियों वाला फूल जो गुलाब के फूल जैसा दिखाई देता है.

हिबिस्कस का स्वाभाव ठंडा और तर है. इसके फूल और पत्तों में लेसदार चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है. इसका फूल खाने में फीका और चिपचिपा होता है. गर्मी जनित रोगों और उच्च रक्तचाप में इसका फूल सेवन करने से लाभ होता है.
हिबिस्कस के फूल कई रंगों में पाए जाते हैं. आम तौर से मिलने वाला फूल लाल रंग का है. यही जड़ी बूटी के रूप में काम आता है. इसके अन्य रंग हल्का गुलाबी, पीला, सफ़ेद आदि होते हैं.

बालों के लिए हिबिस्कस एक उपयोगी जड़ी बूटी है. इसके फूल को पीस कर और अंडे के साथ मिला कर लगाने से बाल मज़बूत होते हैं.
मेंहदी के साथ पीस कर सर में लगाने से न केवल बालों के खुश्की / रूसी को दूर करता है, बल्कि मेंहदी का रंग भी अच्छा आता है.
बालों को असमय सफ़ेद होने से बचाने के लिए हिबिस्कस के फूल और पत्ते बराबर मात्रा में तिल के तेल में कुचलकर दाल दें उन्हें  बारह घंटे भीगा रहने दें. फिर तेल को हलकी आंच पर पकाएं अब तेल को ठंडा होने दें. छानकर फूल पत्तियां निकाल दें और तेल को इस्तेमाल करें. इसका नियमित इस्तेमाल बालों को काला रखता है.
हिबिस्कस की अजीब बात इसका ठंडा शरबत है. इसका रंग बहुत खूबसूरत होता है. ये नेचुरल कलर है और कोई नुकसान नहीं करता. गर्मी में इसका शरबत बनाने के  लिए हिबिस्कस के चार पांच फूल एक कांच के बर्तन में पानी में भिगो दें और उसमें एक नीबू का रास निचोड़ दें.  पांच - छ घंटे बाद देखेंगे की हिबिस्कस का रंग पानी में आ गया है. चीनी मिलाकर  शरबत बनालें  ये शरबत गर्मी में बहुत फ़ायदा करता हैं और बहुत से बाज़ारी शर्बतों से बेहतर है.
अगर इस शरबत को बनाकर रखना हो तो फूलों को ज़्यादा मात्रा में कई नीबुओं के रस के साथ कांच के बर्तन में भिगो दें  पानी में रंग निकल आने पर इसे शकर के साथ पकाकर शरबत बनालें और फ्रिज में सुरक्षित रखलें.
हिबिस्कस गर्मी जनित रोगों में फायदेमंद है. ये यूट्रस को शक्ति प्रदान करता है और स्त्रियों के श्वेतप्रदर  में लाभकारी है. इसके लिए इसके फूलों को शकर के साथ पकाकर प्रयोग करना चाहिए.
इसका गुलकंद भी बनाया जाता है. शकर के साथ मिलकर धूप  में रख देने से गुलकंद तैयार हो जाता है. ये गुलकंद चिपचिपा होता है. ये न केवल कब्ज़ दूर करता है बल्कि एसिडिटी में भी लाभकारी है. पेट की जलन को दूर करता है.
लाल हिबिस्कस एक बहु उपयोगी पौधा है. ये ने केवल सुन्दर लगता है. इसमें सुन्दर गुण भी हैं. लेकिन  स्वाभाव से ये ठंडा है. इसलिए हिबिस्कस को वो लोग इस्तेमाल न करें जिनका स्वाभाव ठंडा है, खांसी बुखार सरदर्द नज़ला ज़ुकाम से पीड़ित हैं. उन्हें बजाये फायदे के नुक्सान हो सकता है.
उपयोग से पहले  हकीम, वैध की सलाह अवश्य लें.

बुधवार, 31 अगस्त 2016

थूहड़

थूहड़ या सेंहुड़, डंडा थूहड़ आम तौर से पाया जाने वाला पौधा है. ये बाग़ बगीचों में बाढ़ के रूप में लगाया जाता है. इसका तन बेलनाकार और पत्ते लम्बे, आगे से गोलाई लिए चमच के आकर के होते हैं. ये कैक्टस के पौधों की वैराइटी का है. इसमें दूध या लैटेक्स पाया जाता है. काम पानी में भी ज़िंदा रह सकता है.
वर्षों से लोग इसके दूध को रेचक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. दूध में कब्ज़ को दूर करने का गुण है. इसका  दो से पांच बूँद दूध भुने चने के पाउडर में मिला कर गोली सी बना कर खाने से कब्ज़ दूर हो जाता है. दूध के प्रयोग के अन्य तरीके भी हैं. लेकिन कभी भी इसका ताज़ा दूध सीधे ज़बान पर नहीं डालना चाहिए. तेज़ स्वाभाव के कारण ये दाने और छाले पैदा कर सकता है. दूध त्वचा पर लग जाने से त्वचा पर घाव हो सकते हैं, लाल पड़ जाती है, दाने निकल आते हैं.

दूध का प्रयोग तेल में मिला कर और उस तेल को पाक कर और छान कर एक्ज़िमा त्वचा पर दाद, सोराइसिस पर लगाने में करते हैं. इससे त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं.
कान के दर्द में इसके पत्तों  को आग पर गर्म करके, जब पत्ते कुम्हला जाते हैं और मुलायम पद जाते हैं, उनका पानी या रास निचोड़ कर दो तीन बूँद कान में डालने से आराम होता है.
कच्चे फोड़ों को पकाने के लिए इसका पत्ता सरसों का तेल लगाकर, आग पर गर्म करके फोड़े पर बाँधने से फोड़े पाक कर फूट जाता है.
जाड़ों में एड़ियां फट  जाने पर  जब उनमें क्रैक पड़ जाते हैं. थोहड़ के गूदे /सैप को सरसों के तेल में पकाकर, और गूदे को तेल में अच्छी तरह मिक्स करके लगाने से लाभ होता है.
इसको बगीचों के बाढ़ पर लगाने से काँटों के कारण सांप आने का खतरा नहीं रहता. इसलिए इसे common milk hedge भी कहते हैं. 

रविवार, 28 अगस्त 2016

केबू का पौधा

केबू का पौधा वार्षिक पौधों की श्रेणी में आता है. इसके नये पौधे कंद से निकलते हैं. गर्मी के मौसम मई - जून में नमी मिलने पर कंद से इसका पौधा निकलता है. इसकी पत्तिया चक्राकार में व्यवस्थित होती हैं. इसमें सफ़ेद रंग के फूल आते हैं जो घंटी के आकर के होते हैं लेकिन मुड़े हुए होते हैं जैसे घंटी को किसी ने बीच में से मोड़ दिया हो.

इसका स्वाभाव गर्म है. ज़्यादातर इसकी जड़ प्रयोग की जाती है. हमोराइड के रोग को दूर करने में इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है. ये अत्यंत तीखे स्वाभाव की होने के कारण बिना चबाये पानी से बहुत काम मात्रा में निगल ली जाती है. लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले किसी हकीम, वैद्य की सलाह लेना ज़रूरी है.

जड़ अपने तेज़ स्वाभाव के कारण पेट के कीड़ों को मारकर निकल देती है. कुछ लोग इसकी जड़ या कंद को उबाल कर खाते भी हैं. लेकिन इसका प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है. 

शनिवार, 27 अगस्त 2016

तुलसी का पौधा

तुलसी का पौधा एक वार्षिक हर्ब है. ये काली और सफ़ेद दो वैराइटी में पायी जाती है. इसकी गंध दूर से ही पहचान में आ जाती है. इसे holy basil या पवित्र तुलसी का नाम दिया गया है.
ये बुखारों के लिए फायदेमंद है. इसमें जर्मस को दूर करने की शक्ति है. गले का दर्द, गले की खराश, गाला बैठ जाना, ज़ुकाम और बुखार में इसकी पत्तियों को पानी में उबाल कर पीते हैं. कुछ लोग इसे चाय के साथ भी मिला कर पीते हैं जिससे चाय सुगन्धित हो जाती है.

तुलसी के पत्तों को काली मिर्च के साथ पीसकर खाने से पुराने बुखारों में भी लाभ होता है. कीड़े पतिंगे आदि के काटने पर इसकी पत्तियों को काटे हुए स्थान पर रगड़ने से लाभ होता है और शरीर में सूजन नहीं आती.
इसके बीज बहुत बारीक होते हैं. तुलसी मूत्र विकारों और गुर्दे की पथरी में भी लाभकारी है. अपने diuretic गुण के कारण ये गुर्दे की सफाई करती है और यूरिक एसिड से छुटकारा दिलाती है.
इसकी पत्तियां चबाने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है और जीवाणुओं को मारने के गुण के कारण दांतों और मसूढ़ों की सेहत को बेहतर बनाती है.
इसके बीज डिसेंट्री में लाभ करते हैं.

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

गुलाबास

 गुले अब्बास  को  आम  भाषा में गुलाबास भी कहते हैं. अंग्रेजी भाषा में इसका नाम clavillia और साइंटिफिक नाम  Mirabilis jalapa  है. ये एक खूबसूरत फूल है. कई रंगों में पाया जाता है.  दोपहर बाद चार बजे खिलने के कारण इसे फोर ओ क्लाक फ्लावर भी कहते हैं.

इसकी जड़ या कंद ज़मीन में सुरक्षित रहता है. वैसे तो ये मौसमी फूल है. इसके पौधे बीज से या फिर कंद से उगते हैं. अगस्त, सितंबर  से इसमें फूल आने लगते हैं और जाड़ों भर फूलता रहता है. जाड़ों के बाद पौधा सूख जाता है और ज़मीन में कंद रह जाता है जिससे बरसात में पौधे निकलते हैं.

इसके कंद को उबाल कर सिरके में डाल देते हैं. जिससे वह खाने के लिए सुरक्षित रहता है. इसके अंदर जीवाणुओं और वायरस और फफूंद को नष्ट करने की शक्ति है. बरसों से इसका इस्तेमाल पेट के रोगों को दूर करने में किया जा रहा है. ये दस्त और पेशाब लाने वाली बूटी है. पेट को साफ़ करने में इसका प्रयोग होता है. स्वाभाव से ये गर्म है. इसके खाने से अबॉर्शन होने का खतरा है. इसका इस्तेमाल सोच समझ कर करना चाहिए.

इसके बीजों में ज़हरीला पदार्थ पाया जाता है. बीज खाने के काम नहीं आते. अजीब बात ये है कि इसका एक बीज अगर भूनकर खाया जाए तो खांसी में बहुत लाभ करता है. इसका बीज गर्म राख में डालने से भूनकर चटक जाता है और छिटककर दूर जा गिरता है. बीज भूनने में सावधानी बरतें. भुनने के बाद बीज के अंदर की गिरी पॉपकार्न के तरह फूल जाती है और टेस्टी हो जाती है.
बच्चों को जाड़ों में रात को उठने वाली खांसी इससे ठीक हो जाती है. लेकिन केवल एक बीज भुना हुआ रोज़ रात को काफी है. ये बूढ़ों के बलगमी खांसी में भी फायदेमंद है.

मुर्गा केस cocks comb celosia flower

मुर्गा केस को अंग्रेजी भाषा में सेलोसिया कहते हैं. इसकी कई वराइटी हैं जिनके अलग अलग साइंटिफिक नाम हैं. जैसे सेलोसिया अर्जेन्टिया और सेलोसिया स्पीकत आदि. आम भाषा में इसे मुर्गा केस और आम अंग्रेजी में कॉकसकुम (cocks comb ) कहते हैं. इसका ये नाम इसके फूलों के मुर्गे के केस या कलगी के सामान होने से पड़ा है. लाल रंग का मुर्गा केस बहुतायत से पाया जाता है. इसके दूसरी वैराइटी सफ़ेद या सिल्वर और पीली भी होती हैं. ये पौधा घरों और बगीचों में सुंदरता के लिए लगाया जाता है. लेकिन इसकी एक वैराइटी खेतों में जंगली पौधों और खर पतवार के रूप में भी उगती है. इसके पत्तों में लाल रंग के स्पॉट या तो होते नहीं या बहुत कम होते हैं. इसे सिलयारी, सिलयारा, आदि कहते हैं. इसके बीज भी दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. फायदे के लिहाज़ से दोनों के गुण समान हैं. अजीब बात ये है कि इसका पौधा जब छोटा होता है तब इसके पत्तों पर लाल रंग के स्पॉट अधिक होते हैं इससे पौधा सुन्दर लगता है. जैसे जैसे ये बढ़ता है ये लाल निशान कम होते जाते है और कभी कभी पत्तियां बिलकुल सदी रह जाती हैं.

ये एक सीज़नल या मौसमी पौधा है. इसके बीज बहुत बारीक होते हैं. इनका रंग काल और इनमें बहुत चमक होती है. इसके  बरसात के महीनों जून जुलाई में बोये जाते हैं. इसकी  पौध अगस्त तक लगा देनी चाहिए. सितम्बर से लेकर दिसंबर तक इसमें खूबसूरत फूल आते हैं जो मुर्गे की कलगी के तरह होते हैं. खेतों में खर पतवार के रूप में जमने वाली सिलयारी गेहूं के खेतों में भी जमती है. कहीं कहीं ये इतनी अधिक मात्रा में उगता है कि गेहूं की फसल को खराब कर देता है. इसका पौधा फरवरी, मार्च तक रह जाता है. उसके बाद ये सूख जाता है और इसके बारीक़ बीज गिर जाते हैं. कुछ पौधों में फूल के रूप में मुर्गे की कलगी के स्थान पर केवल एक लम्बी सी डंडी में फूल लगते हैं. ऐसा जंगली पौधों में अधिक होता है.

इसका पौधा जो खेतों में खर पतवार के रूप में उगता है, का साग खाया जाता है. इसे पालक के तरह उपयोग करते हैं. इसका स्वभाव ठंडा है. नकसीर में इसके पत्तों का रास या बीजों का काढ़ा नाक में डालने से आराम होता है. अपने ठन्डे गुण के कारण इसके पत्तों का लेप गर्मी से होने वाले सर दर्द में माथे पर लगाने से फ़ायदा होता है.
बीजों का इस्तेमाल श्वेत प्रदर में किया जाता है. पुरुषों की बीमारियों के लिए फायदेमंद है. हकीम  दवा में इसके बीज इस्तेमाल करते हैं. इसके बीज बिना कूटे - पीसे साबुत ही इस्तेमाल किये जाते हैं. ये पौधा डिसेन्टरी और हेमोरॉइड की ब्लीडिंग में लाभ करता है.
इसका एक नाम वेलवेट फ्लावर या मखमली फूल भी है. इसका साग खाने से मन प्रसन्न होता है. ये डिप्रेशन को घटाता है. इसीलिए कहा जाता है के इसके  खाने और घर में लगाने से ख़ुशी मिलती है.

बुधवार, 20 जुलाई 2016

शकर कंदी

शकर कंदी या शकर कंद एक बेलदार पौधा है. जून माह में इसकी बेल की कटिंग लगाई जाती है. बरसात में ये खूब बढ़ती है. इसकी बेल तोड़ने पर दूध निकलता है. नए पौधे शकर कन्द को बोन से पैदा होते हैं और फिर उनकी कटिंग लगाई  जाती है.

सितम्बर अक्टूबर तक शकर कन्द तैयार हो जाती है. ये आलू की तरह ट्यूबर है इसलिए अंग्रेजी में इसे स्वीट पोटैटो या मीठा आलू कहते हैं.
शकर कन्द में बहुत गन हैं. इसमें रेशा पाया जाता है जो पेट को साफ़ करता है. शकर कन्द खाने से दिल के दौरे का खतरा काम हो जाता है. इसका यही एक अजीब गुण बहुत कारगर है. ये खून बनता है, दांतों और हड्डियों को मज़बूत करता है.
जाड़ों में इसका इस्तेमाल शरीर को गर्म रखता है. ठण्ड लगने से बचाता है. ये बच्चों के लिए भी अच्छा भोजन है. दूध पिलाने वाली माँ के लिए आयरन और विटामिन का अच्छा स्रोत है.


गुरुवार, 14 जुलाई 2016

छोटी दुधी

छोटी दुधी एक बूटी है जो ज़मीन पर बिछी हुई होती है. इसकी शाखाएं लाल  पत्तियां बहुत छोटी छोटी और गहरे हरे या काही रंग की होती हैं. ये बरसात के दिनों में खूब फलती फूलती है.  लेकिन ये हर मौसम में मिल जाती है. इसको तोड़ने से दूध निकलता है इसी लिए इसे दुधि बूटी कहते हैं.

दुधी  पेचिश में काम आती है. इसका पेस्ट बनकर पिलाने से आराम होता है. ये एक आम तौर से पाया जाने वाला पौधा है. दुधी एक अजीब हर्ब है. ऐसे मरीज़ जो डायबिटीज के शिकार हों और इन्सुलिन का प्रयोग कर रहे हों उनसे लिए छोटी दुधी बहुत कारगर इलाज है. 

छोटी दुधी को जड़ से उखाड़कर छाया में सूखालें. सूखने पर इसका पाउडर बनाकर 3 से 5 ग्राम की मात्रा में सादे पानी के साथ  दिन में दो बार इस्तेमाल करने से डायबिटीज में बहुत लाभ होता है. लेकिन किसी भी जड़ी बूटी का प्रयोग चिकित्सक के राय से ही करें. 

लोनिया

लोनिया का साग, नोनिया, कुलफा जंगली, खुरफा, आदि के नामों से मशहूर एक छोटी पत्ती का पौधा है जो जून जुलाई के माह में खेतों में, सड़कों के किनारे, खाली पड़ी जगहों पर जमता है. इसकी शाखें लाल, पत्तियां छोटी छोटी और मांसल होती हैं. इसकी बड़ी वैराइटी कुलफा के साग के नाम से बाज़ारों में मिलती है. लोग इस जंगली  वैराइटी को भी खाने में इस्तेमाल करते हैं. इसका मज़ा खट्टापन लिए होता है. इसके पालक से अधिक अकजेलिक एसिड पाया जाता है. गुर्दे की पथरी के मरीजों को इसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

ये स्वभाव से ठंडा होता है और जिगर को शक्ति देता है. इसका इस्तेमाल हाथों पैरों के कम्पन में फायदेमंद है. लोनिया में पीले फूल खिलते हैं. ध्यान रहे के इस पौधे को लुनिया के पौधे से कन्फ्यूज़ न करें जो घरों में अपने विभिन्न रंगों के फूलों के लिए लगाया जाता है.
लोनिा बाज़ार  वाले कुलफा के साग की छोटी और जंगली नस्ल है. ये गरीबों का खान है. देहात में इसका साग बड़े चाव से खाया जाता है.
सूजन की जगह इसकी पत्तियों को पीस कर  लगाने से ठंडक पड़ जाती है. फोड़ा अगर हो तो बैठ जाता है या फिर पककर फूट जाता है.
सर दर्द जो गर्मी से हो में इसके पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से फायेदा होता है.

गुरुवार, 23 जून 2016

बकायन

बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. फरवरी मार्च में  बकायन मे गुच्छेदार फूल आते हैं. ये फूल सफ़ेद रंग को होते हैं और इनकी पंखुड़ियां बैंगनी रंग की धारीदार होती हैं. फूल देखने में दो रंग का लगता है. 

बकायन एक बहुत जल्दी बढ़ने वाला पौधा है. ये आम तौर से सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसकी बढ़वार तेज़ी से होती है. जाड़े में इसके पत्ते जल्दी गिर जाते हैं. गर्मी में ये छायादार होता है. ये देखने में नीम की तरह लगता है. इसके पत्ते भी नीम के तरह होते है. लेकिन नीम के पत्तों से बड़े. इसकी छाल साफ़ सुथरी होती है. पेड़ देखने में सुन्दर लगता है. कुछ लोग इसे बड़ा नीम या भाषा को बिगाड़ कर बडनीमा भी  कहते हैं. 


बकायन  में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. 

नीम के फलो को निमोली या निम्बोली या निमकोली कहते हैं. नीम के फल पककर टपक जाते हैं. जून जुलाई तक नीम में एक भी फल नहीं रहता. 

लेकिन बकायन का मामला इससे उलट है. इसके फल पककर गिरते नहीं हैं. ये गुच्छों में लगे लगे सूख जाते हैं. नवम्बर और दिसंबर के दिनों में भी पेड़ पर इसके सूखे फल मिल जाते हैं. 

इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती  है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है. 

बकायन के फल की गिरी, नीम के फल की गिरी और सामान भाग रसौत मिलाकर पाउडर बनाकर चने के बराबर गोली बनाली जाती है. ये गोलियां एक से दो पानी के साथ सुबह दोपहर शाम लेने से बवासीर जड़ से समाप्त हो जाती है. 

बकायन की छोटी कोंपलों का रस निकालकर फ़िल्टर करके खरल में डालकर लगातार खरल करके सूखा लिया जाता है. ये एक तरह का सुरमा बन जाता है. इसे रात को आँख में लगाने से उतरता हुआ मोतिबिन्द भी ठीक हो जाता है. 

बकायन के हरे पत्ते पीस कर पेस्ट बनाकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर लगाने से खुजली में लाभ होता है. इसकी छाल घिसकर खुजली और गर्मी - बरसात के मौसम में निकलने वाले दानो पर लगाने से नीम की छाल के सामान ही फ़ायदा करती है. बकायन एक बहु उपयोगी वृक्ष है. लेकिन इसका प्रयोग या किसी भी जड़ी बूटी प्रयोग किसी हाकिम वैध या डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए. 
अजीब बात ये है की बकायन नीम की तरह कड़वा पौधा है. लेकिन इसके बीज हकीम हब्बुलबान के नाम से दवाओं में प्रयोग करते हैं. इसके बीज बिलकुल भी कड़वे नहीं होते. 



बुधवार, 22 जून 2016

सेमर

 सेमर को  सेमल, सैंभल भी कहते हैं. ये एक कांटों वाला पेड़ है. फरवरी में इसका पतझड़ हो जाता है और कलियाँ आने लगते हैं. मार्च और अप्रैल में सार पेड़ लाल रंग के बड़े बड़े फूलों से भर जाता है और दूर से पहचाना जाता है.
इन फूलों की अंखडी या निचला हिस्सा जिसमें फूलों की पंखुड़ियां लगती हैं सब्ज़ी बनाकर खाया जाता है.सेमर  एक  कांटे दार वृक्ष है. इसके कांटे पेड़ के तने उसकी सभी शाखाओं में होते हैं. इसके काँटों के कारण पेड़ पर चढ़ना मुश्किल होता है. सेमर एक बहुउपयोगी दवा है. हाकिम इसकी जड़ को कई बीमारियों में इस्तेमाल करते हैं. दो साल के पेड़ की जड़ निकाल कर टुकड़े करके सुखा ली जाती है. ये जड़ बाजार में सेमल मूसली ये सेमल मूसला या सैंभल मूसला के नाम से  मिल जाती है. शक्तिवर्धक और पुष्टकारी दवाओं में सेमल की जड़ प्रयोग  की जाती है.

सेमल जोड़ों के दर्दों में फ़ायदा करता है. ये स्तम्भन शक्ति को बढ़ता है. श्वेत प्रदर और स्पेर्मेटोरिया की दवा है. सेमल मूसली अन्य दवाओं के साथ मिलकर इसी प्रयोग में लायी  जाती है. फूल गिरने के बाद सेमल के बड़े बड़े फल लगते हैं. ये फल सूखकर फट जाते हैं और उनमें से सेमल की रूई निकलती है. ये रूई बहुत चिकनी, बारीक रेशे की होती है और आम रूई से ज़्यादा गर्माती है. ये गद्दों और लाइफ जैकेट में  प्रयोग की जाती है.
सेमल के बीज रूई में लिपटे होते हैं. ये बीज काले रंग के बिनौले या सामान्य रूई के बीजों जैसे होते हैं. बीज शक्तिवर्धक, याददाश्त को बढ़ाने वाले और दिमाग को ताकत देने वाले होते हैं. बीजों के प्रयोग से अफीम का ज़हर भी उतर जाता है. इसके पेड़ बीज से उगाए जाते हैं. सड़कों के किनारे और बागो में लगाए जाते हैं. इसकी रूई का व्यापारिक प्रयोग होता है. दवाओं में इसका बीज, जड़, और गोंद  काम आता है. सेमर के गोंड को मोचरस कहते हैं. मोचरस का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. मोचरस का ज़िक्र इसी ब्लॉग में किया जाएगा.





शनिवार, 18 जून 2016

बढ़ल का फल

बढ़ल एक बड़ा और खुरदुरे पत्तों वाला पेड़  है. इसके दुसरे नाम डहु, डहुआ, ढेयू और लकूचा हैं.  इसके पत्ते बड़े बड़े और रोएँदार होते हैं. इसका फूल मार्च अप्रैल में खिलता है. फूल में दुसरे फूलों की तरह पंखड़ी नहीं होती.  ये एक पाउच जैसा पीले रंग का आवरण होता है. इसपर भी मुलायम रोएँ होते हैं. इसके पत्ते चारे के रूप में जानवरों को खिलाते हैं.

बढ़ल   के पेड़ों  के नीचे ये पीले फूल गिरे पड़े रहते हैं. कुछ लोग इनकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. फूल का स्वाद खट्टा होता है. इसकी सब्ज़ी खट्टेपन के कारण स्वादिष्ट लगती है. फूल गिरने के बाद इसमें गोल आकर के टेढ़े मेढ़े फल लगते हैं. ये फल कच्चे पर हरे और पककर पीले और ऑरेंज रंग के हो जाते हैं. इनका स्वाद खट्टा मीठा होता है. इनका गूदा बहुत मुलायम और इसमें सफ़ेद रंग के बड़े बड़े बीज बीज झिल्ली में लिपटे हुए रहते  हैं.
बढ़ल के फल जून माह में पाक जाते हैं और पेड़ों से गिरने लगते हैं.

ये फल कभी कभी बाजार में भी मिल जाते हैं. इसे आम फलों की तरह बहुत चाव से नहीं खाया जाता. खट्टा पसंद करने वाले लोग ही इसे खाते हैं. कच्चे फलों की चटनी बनाई जाती है या फिर करी में खट्टे स्वाद के लिए प्रयोग करते हैं.  इसका कच्चा फल बहुत जल्दी कमरे के तापमान पर पकने लगता है. पहले ये पीला पड़ता है फिर गहरा नारंगी रंग लेने लगता है. ये रखे रखे पकता जाता है. इसका पकना रुकता नहीं है.
बढ़ल प्रकृति से गरम होता है. इसका गूदा लीवर को शक्ति देता है. इसका बीज कच्च खाने से कब्ज़ दूर करता और दस्त लाता  है. ये एक दूध वाल पौधा  है।  इसके दूध में भी कब्ज़ को दूर करने के शक्ति है. कच्चा फल खून को ख़राब करता है. भूक मार देता है और पौरुष शक्ति को कम करदेता है.  पक्के फल में  खून को साफ़ करने की छमता है. पेट के इन्फेक्शन को दूर करता है और पौरुष शक्ति को बढ़ाता है.  इसके कच्चे फलों का अचार भी बनाया जाता है जो बहुत स्वादिष्ट होता है. इसके फल को सुखाकर इमली की जगह खट्टेपन के लिए सब्ज़ी करी और दाल में भी प्रयोग करते हैं. इसके फल का इस्तेमाल कुपोषण को दूर करता है. ये ऐसा अजीब फल है जिसका इस्तेमाल बहुत सी बीमारियों से बचाता है.

इसका बीज आग में भूनकर खाने से कब्ज़ करता है लेकिन कच्चा बीन अच्छा परगेटिव /दस्तावर है.
बढ़ल के पेड़ बीज से लगाए जाते हैं. इसके बीज जो पेड़ों के नीचे गिर जाते हैं, बरसात में फूटने लगते हैं. और छोटे छोटे पौधे बन जाते हैं. इसका बीज अगर बना हो तो फल से निकालने के बाद जल्दी ही बो दिया जाए. ज़्यादा दिन रखे रहने से बीजों में जमने के शक्ति जाती रहती है.
क्योंकि ये दूध वाला पौधा है इसलिए इसकी कलम भी लगाई जाती है और बरसात में बहुत जल्दी जड़ पकड़ लेती है.

रविवार, 12 जून 2016

कनेर

कनेर सफ़ेद और लाल होता है. इसके पौधे बड़े शहरों में फुटपाथ पर खूबसूरती के लिए लगाए जाते हैं. रेलवे  स्टेशनों और बागों, पार्कों में भी आम तौर से मिल जाता है. इसकी एक वैराइटी पीले रंग की होती है.
ये एक दूध वाला पौधा है इसलिए बिना पानी के बहुत दिनों रह जाता है. फुटपाथों पर इसके लगाने की  वजह यही है की कम पानी में भी ज़िंदा रहे.
ये एक ज़हरीला पौधा है. जानवर इसे नहीं खाते और घोड़े के लिए तो ये घातक है. इसका दूध या लेटेक्स स्किन पर घाव और छाले पैदा करता है. इसके पत्तों के रस को सूंघने से छींकें आती हैं. इसका प्रयोग छींकें लाने के लिए करते हैं. हकीम लोग इसकी जड़ की छाल का इस्तेमाल तिला बनाने के दवाओं में करते हैं.

जामुन

जामुन एक बड़ा पेड़ है. इसे जामन, फलैंदा, कल जाम भी कहते हैं. छोटी नस्ल के जामुन को कथा जमन और बड़ी नस्ल के जामुन को फलैंदा कहते हैं. आम पर बौर आने के बाद इस पर बौर या फूल आता है. जून माह में जामुन पकने लगते हैं. बरसात होते ही ये फूलकर बड़े बड़े और रसीले हो जाते हैं. इनका रंग वॉयलेट, जामुनी या काला  होता है. अपने जामुनी रंग के कारण ही इसे जामुन कहते हैं.
जामुन की लकड़ी बहुत खरी या जल्दी टूटने वाली होती है. जामुन के पेड़ पर चढ़ना बहुत जोखिम भरा है. मोटी डालें भी टूट जाती हैं. आंधी में भी इसकी डालें जल्दी फट जाती हैं. आंधी में जामुन के पेड़ से दूर रहेँ
जामुन लीवर और पैनक्रियास  के लिए फायदेमंद है. ये शुगर लेवल को कंट्रोल करता है. लीवर को ताकत देता है. ये पाचन में सहायता करता है. आम खाने के बाद अगर कुछ जामुनें खाली जाएं तो आम आसानी से पच जाता है. जामुन की गुठली का पाउडर खाने से डायबेटिस में लाभ होता है. कुछ लोग जामुन के गुठली का पाउडर, गुड़मार बूटी का पाउडर और सदाबहार का पाउडर मिला कर डायबेटिस के लिए इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों को जामुन की गुठली सूट नहीं करती और पेट ख़राब हो जाता है.
जलने के बाद जो सफ़ेद दाग पद जाते हैं उनपर जामुन की अंतर छाल पानी में बारीक पीस कर लगाने से स्किन का रंग ठीक हो जाता है. लेकिन ये पुराने दागों में फ़ायदा नहीं करती.
जामुन में खून के बहाव को बंद करने का गुण है. इसकी छाल को पानी में पकाकर गारगल करने से दांत और मसूढ़े मज़बूत होते हैं और मुंह के छालों में आराम मिलता है.

गुरुवार, 9 जून 2016

शहतूत जंगली

शहतूत जंगली मध्य ऊंचाई का पौध है. ये बीज से उगता है. इसकी लकड़ी बहुत लचीली होती है. छोटी शाखा को एक रिंग की तरह मोड़ा जा सकता है और वो टूटती नहीं है. इसमें ज़्यादातर दो तरह के शहतूत लगते हैं. एक वैराइटी में सफ़ेद और दूसरी में लाल जो पककर काले हो जाते हैं.
जंगली शहतूत छोटे छोटे होते हैं. बागों में बोया जाने वाला शहतूत जिस पर रेशम के कीड़े भी पाले जाते हैं, लम्बा होता है और बहुत मीठा भी होता है. फरवरी माह में पतझड़ के बाद जंगली शहतूत लगने लगते हैं. मार्च अप्रैल में ये पाक जाते हैं. और खाने के काबिल हो जाते हैं. स्वाद कुछ खट्टा कुछ मीठा होता है.
शहतूत जंगली हो या काश्त किया हुआ दोनों के गुण लगभग सामान हैं. शहतूत प्रकृति से ठंडा होता है. इसका सीरप गले के दर्द में आराम पहुंचता है. शहतूत का सेवन त्वचा को चमक  देता है.और  त्वचा से झुर्रियों को दूर करता  है. इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो एजिंग प्रोसेस पर कंट्रोल करते हैं और असमय बुढ़ापे से बचाते हैं. ये पेट की गर्मी को शांत करता है और एसीडिटी में फायदा पहुंचाता है. इसका रस होटों पर लगाने  से होंटों की नरमी और  सुंदरता बनी रहती है. 

रविवार, 5 जून 2016

आड़ू के फायदे

आड़ू एक मौसमी फल है. फरवरी - मार्च में इसका पौधा खूबसूरत कलियों और फूलों से लद जाता है. उस समय पेड़ में पतझड़ हो चुका  है. पेड़ में फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
आड़ू के फल मई जून में पक़ जाते हैं. ये थोड़ी कच्ची अवस्था में ही खाने के लायक होते हैं. बरसात में ज़्यादा पके आड़ू के फल खराब हो जाते हैं. इनमें कीड़े पद जाते हैं और खाने के लायक नहीं रहते.
आड़ू रक्त को साफ़ करता है. यह पेट के लिए फायदेमंद है. आड़ू दिल को ताकत देता है और ब्लॅड प्रेशर को कम करता है. इसके पत्तों का काढ़ा पेट के कीड़े मारता है. लेकिन खाली पेट आड़ू का सेवन गैस बनता है. कभी कभी इसके खाने से एसीडिटी भी हो जाती है. 
आड़ू का पौध मीडियम ऊंचाई का होता है. इसे बीज या फिर कटिंग से उगाया जाता है. तीन साल में ये फल देने लगता है. लेकिन आड़ू के पौधे की आयु ज़्यादा नहीं होती फल देने के आठ दस सालों बाद ये ख़राब हो जाता है. इसलिए इसके नए पौधे ही अच्छे होते हैं और उनमें  फल भी ज़्यादा आते हैं. 



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