बुधवार, 2 नवंबर 2016

गलगल

गलगल एक बड़ा फल है. ये नीबू की जाति  का पौधा है. इसके फल बड़े बड़े होते है. पौधा बीज और कलम दोनों से  लगाया जाता है. मार्च अप्रैल में इसमें सुगंधित फूल खिलते हैं. कुछ लोगों ने इसका नाम खट्टा भी रखा हुआ है. खट्टे के फूलों की खुशबू बहुत अच्छी होती है. इसे तेलों में डाला जाता है. इके खिलने से सारा बाग़ महक  उठता है.

फूलों के बाद फल लगते हैं. जो कच्चे हरे और पककर पीले पड़ जाते हैं. इनका रंग ओरंज कलर का होता है. लेकिन बहुत खट्टे होते हैं और इनमें रस भी खूब होता है. इसका छिलका बहुत मोटा होता है. रस निचोड़ने के बाद छिलके का अचार बनाया जासकता है. छिलके दो छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर नमक लगाकर धूप में रखने से कुछ दिनों में अचार तैयार हो जाता है.
इसके रस में अजवाइन भिगोकर सुखाले और फिर काला नमक मिलाकर खाने से पेट का दर्द दूर होता है. इसके रस में दानेदार शकर मिलाकर एक अच्छा स्क्रब बन जाता है जो घुटनों और कोहनियों के कालेपन पर रगड़ने से कालापन दूर करता है.
गलगल में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसका अचार भी बनाया जाता है. अचार छिलके के साथ डाला जाता है और बरसों खराब नहीं होता.
नीबू के रस के जगह इसके रस का प्रयोग किया जासकता है. विशेष तौर से दवाओं को भावना देने में इसका प्रयोग किया जाता है.
गलगल का रस नीबू के जगह प्रयोग किया जाता है. इसका इस्तेमाल दांतों को मज़बूत करता है. नियमित इस्तेमाल नज़ला  ज़ुकाम  से बचाता है. इसमें कैंसर रोधी गुण भी हैं. नियमित इस्तेमाल से लिवर को सुरक्षित रखता है और कैंसर की कोशिकाओं को जन्म नहीं लेने देता.

सुगन्धित हेयर आयल बनाने के लिए धोए हुए तिलों को खट्टे के फूलों में बसाया जाता था. तिलों के एक लेयर कपडे पर डालकर उसपर खट्टे के फूलों के एक लेयर डाल दी जाती थी. फिर एक हलकी चादर ऊपर से डालकर तिलों के दूसरी लेयर फिर खट्टे के फूलों की लेयर. शाम को फूल अलग कर दिए जाते थे सुबह पुनः यही प्रक्रिया नए फूलों के साथ दोहराई जाती थी. तिलों के खूब सुगन्धित हो जाने के बाद उसका तेल निकल जाता था जो बहुत सुगन्धित और ठंडक देने वाला होता था.
घर पर सुगन्धित तेल बनाने के लिए तिलों का शुद्ध तेल लेकर एक कांच के जार में दाल दें और उसमे खट्टे के फूल दाल दें. दो दिन धूप  में रखने के बाद फ़िल्टर करके फूल निकाल दें. यही प्रक्रिया चार पांच बार दोहराये. तेल बहुत सुगन्धित बन जायेगा. ये तेल गर्मी जनित रोगों को दूर करता है. इसके लगाने से सर में शीतलता बानी रहती है. ठन्डे स्वाभाव के लोग इस्तेमाल न करें.

इसका छिलका मोटा होता है. छिलके का अचार भी बनाया जाता है. ये विटामिन सी से भरपूर होने के कारण सर्दी जुकाम नहीं होने देता. लेकिन खट्टे स्वाभाव के कारण जारी जुकाम में हानिकारक है.



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Popular Posts

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10...