गुरुवार, 17 जनवरी 2019

स्वर्णक्षीरी

स्वर्णक्षीरी, सत्यानाशी, सत्यानासी, पीला कटीला एक कांटेदार पौधा है जो बरसात में उगता है. ये खाली पड़े स्थानों, बंजर ज़मीनो और सड़क के किनारे बहुतायत से पाया जाता है. कहते हैं की रोगों को जड़ से मिटाने और उनका सत्यानाश करने के कारण ही इसका नाम सत्यानाशी रखा गया है. जिन लोगों के खेतों को इस पौधे ने बहुतायत से उगकर सत्यानाश किया है उन्होने भी इसका नाम सत्यानासी रख दिया था.
इसमें पीले रंग के कटोरी नुमा फूल खिलते हैं. कुछ पौधों के फूल क्रीम रंग के या सफेदी लिए भी होते हैं. इसके तने को तोड़ने पर पीले रंग का दूध निकलता है. इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी या सोने जैसे दूध वाली बूटी भी कहते हैं. इसका दूध बड़ी काम की चीज़ है. ये लगाने पर एंटीसेप्टिक का कार्य करता है. इसकी जड़ की भस्म शहद के साथ इस्तेमाल करने से मिर्गी का रोग जाता रहता है.
लेकिन इस पौधे की गिनती ज़हरीले पौधों में होती है. इसका प्रयोग केवल काबिल हकीम और वैध ही कर सकते हैं. यदि इसे समझदारी से इस्तेमाल किया जाए तो बहुत से रोगों के लिए ये लाभकारी है. लापरवाई और जानकारी के आभाव में इसके इस्तेमाल से गंभीर नुकसान हो सकते हैं.
इसकी फलियां मोटी और छोटी होती हैं. इनमें काले रंग के बहुत से बीज निकलते हैं. इन बीजों में बहुत तेल होता है. कुछ लोगों ने इसके बीजों के मिलावट सरसों के तेल में की है जिससे लोगों को जोड़ों के सूजन, गुर्दे फेल होना और आँखों की  गंभीर बीमारियां हुई हैं.


मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

अमरबेल

अमरबेल को आकाश बेल, अकास बोंग, और स्वर्ण लता भी कहते हैं. ये पीले रंग की लम्बे लम्बे धागों की शक्ल में पेड़ो पर लटकती हैं. ये एक परजीवी पौधा है. ये बबूल, आम, बेर आदि के पौधों पर चढ़ जाती है. इसका पौधा ज़मीन में बीज से उगता है. लेकिन जल्दी ही ये ज़मीन से नाता तोड़ कर किसी पास के पौधे से लिपट जाती है. इसकी जेड पौधे के तने और शाखाओं में धंस जाती हैं और पौधे का रस और पोषक पदार्थ चूस कर ये परवान चढ़ती है.
कहते हैं इसके शाखा तोड़कर किसी पौधे पर डाल दी जाए तो भी ये पनप जाती है. पौधे इसके असर से सूख जाते हैं. इसमें बहुत छोटे फूल खिलते हैं और बाद में बीज बन जाते हैं. ये बीज ज़मीन में 7 -8 वर्षों तक भी पड़े रह सकते हैं और अनुकूल वातावरण मिलने पर फूटते हैं.
अमरबेल वर्षों से देसी दवाओं में प्रयोग की जा रही है. बालों को उगने और बढ़ने में ये बहुत उपयोगी है. इसका तेल बनाकर सर में लगाने से बालो का झड़ना रूक जाता है. नए बालों के उगने में ये मदद करती है.
पीलिया रोग में ये उपयोगी है. इसका काढ़ा बनाकर पीने से पीलिया जाता रहता है.
मिर्गी और शरीर के कांपने में भी ये एक उपयोगी दवा है.


शनिवार, 17 नवंबर 2018

सरकंडा

सरकंडा को काना भी कहते हैं. इसका एक नाम बान भी है. ये एक घनी झाड़ीदार घास है. बरसात में खूब बढ़ती है. अक्टूबर आते आते इसमें सफ़ेद फूल खिलते हैं. इसकी पत्तियां लम्बी लम्बी धारदार होती हैं. जिनको हाथ लगाने से हाथ कट जाता है.
इसकी वह टहनियां जिन में फूल खिलते हैं पत्तियों को मोटे कवर से ढकी होती हैं. इस कवर को उतार कर, कूटकर उसके रेशे को बारीक करके बान बनाया जाता है जिससे चारपाई बुनी जाती है. इसे मूँज भी कहते हैं.
सरकंडे में बांस की तरह कुछ दूरी पर गांठे होती हैं. इनसे छप्पर बनाने का काम लिया जाता है. और फर्नीचर भी बनाया जाता है.

सरकंडा एक बहु उपयोगी पौधा है. इसकी जड़ें  गुच्छेदार होती हैं. ये भूमि के कटान को रोकता है. इसके पौधे बरसात में भूमि-छरण  नहीं होने देते. इसके पौधों को पतेल भी कहते हैं.
गर्मी आते आते इसके पौधे सूखने लगते हैं. सरकंडे पीले रंग के हो जाते हैं. किसान इन पौधों को काटकर विभिन्न प्रकार से प्रयोग में लाते हैं. जेड रह जाती हैं जिनमे आग लगाकर जला दिया जाता है. खेतो के किनारे सरकंडे की जली हुई जड़े दिखाई देती हैं.
अजीब बात है की इन जाली जड़ो से बरसात आते ही नए पौधे फूट निकलते हैं. इसकी अंदरूनी जड़ों तक आग नहीं पहुंचती।
सरकंडा पेशाब की जलन को दूर करता है. इसकी पत्तियों का पानी पेट के कीड़े मार कर निकाल देता है.
इसकी जड़ो को सुखाकर कूटकर थोड़ी सी हल्दी, सोंठ और गुड़ के साथ पकाकर पेस्ट बना लिया जाता है. सुबह शाम दूध के साथ एक चमच इस्तेमाल करने से टूटी हड्डी भी जुड़ जाती है.
 सरकंडा-2 
सरकंडा पर बहुत से पाठकों ने कमेंट्स किये हैं. आप सबका बहुत धन्यवाद. कुछ लोगों ने पूछा है की इसके छोटे पौधे की पहचान कैसे करें. इसका छोटा पौधा घास के सामान होता है. लेकिन इसकी पत्तियां घास से लम्बी, मोटी और किनारे से धारदार होती हैं. इनको हाथ लगाने से धार से हाथ कट जाता है. इसके नए पौधे बरसात के मौसम में निकलते हैं. पुरानी जड़ों से इसके पौधे भी बरसात में बढ़ते हैं. शुरू से ही इसका पौधा जड़ के पास से ही गुच्छे दार और घना होता है. खेतों के किनारे, सड़कों के किनारे, खाली पड़े स्थानों पर, नदी के किनारे, रेत में इसके पौधे मिल जाते हैं. बरसात में ये तेज़ी से बढ़कर सितम्बर अक्टूबर तक 2 - 3 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं. अक्टूबर में इसमें फूल खिलने लगते हैं. जड़ों से फूलों के लिए लम्बी शाखा निकलती है जिसपर पत्तियां आवरण के रूप में लिपटी होती हैं. इस शाखा में ऐसी गांठें होती हैं जैसे बांस में होती हैं. यही सरकंडा, सेठा, सेंटा, काना कहलाता है. इसके ऊपरी सिरे पर 1 - 2 फुट लम्बा गुच्छे दार फूल लगता है. जो दूर से सफ़ेद, चमकदार पहचाना जा सकता है.
सरकंडे का कुटीर उद्योग में बड़ा महत्त्व है. इसकी पत्तियों का उपयोग छप्पर बनाने, खपरैल बनाने में किया जाता है. सरकंडे का ऊपरी कवर उतार कर हरे लाल रंग से रंगकर डलियां बुनी जाती हैं. यही कवर सुखाकर पानी में भिगोकर मुगरी या लकड़ी से कूटकर रेशों में बदल जाता है. इसे ही मूंज कहते हैं. इन रेशों से घर पोतने के लिए कूची /ब्रश बनायी जाती है. इसी मूंज को बटकर बान बनाये जाते हैं जिससे चारपाई बुनी जाती है. मूंज की रस्सी भी बनायीं जाती है.
सरकंडे से बैठने के लिए कुर्सी, मोढ़ा बनाया जाता है. इस प्रकार की कुर्सियां आपने अक्सर देखी  होंगी. घरेलु दस्तकारी, सजावटी सामान बनाने, पंखों की डंडियां बनाने में सरकंडे का उपयोग होता है. पुराने ज़माने में बच्चे सरकंडे का प्रयोग कलम के रूप में करते थे. इसी सरकंडे से हलके और छोटे बाण भी बनाये जाते थे.
इस पौधे के विभिन्न अंगों के नाम और उनके उपयोग से जो शब्द बने हैं वह आप ऊपर पढ़ चुके हैं. वह शब्द ये हैं. सरकंडा, सेंटा,  काना, पतेल, मूंज, बाण, बान.
सरकंडा, सेंटा,  काना पौधे का एक भाग है लेकिन पुरे पौधे का भी यही नाम लोग जानते हैं.
बाण वही सरकंडा है लेकिन बाण के रूप में प्रयुक्त होता है.
बाण से बान बना है लेकिन ये मूंज  की पतली बटी हुई डोरी है जिससे चारपाई बुनी जाती है. लेकिन पूरे पौधे को भी इसी नाम से जाना जाता है.
सरकंडा कमाल का पौधा है.

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