हरड़ एक जानी मानी दवा है. ये तिरफला का अव्यव है. हरीतकी यानि हरड़, विभीतकी यानि बहेड़ा और अमालकी यानि अमला ये मिलकर तिरफला बनाते हैं.
अरबी हकीमो ने हलीलज, बलीलज और आमलज का नाम दिया तो बाद में यही नाम हलीला, बालीला और आमला हो गया. बाजार में हरड़ की तीन वैराइटी मिलती हैं. काली हरड़ वो हरड़ है जो छोटी और काले रंग की
होती है. ये हरड़ के अविकसित और छोटे फल हैं जो खुद हरड़ के पेड़ों से गिर जाते हैं या तोड़कर सूखा लिए जाते हैं. हरड़ की दूसरी और बहुत आम वैराइटी छोटी हरड़ है. यही आम तौर से दवा में प्रयोग होती है. इसी का मुरब्बा बनाया जाता है और तिरफले के अव्यव में प्रयोग होती है.
हरड़ का तीसरा प्रकार हलीला काबुली या बड़ी हरड़ कहलाता है. ये हरड़ के फल का पूर्ण विकसित रूप है. ये हरड़ उस समय पेड़ों से तोड़ी जाती है जब हरड़ पकने लगती है और पीली पड़ जाती है.
सूखने पर हरड़ के फलों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. ऐसे सूखे फल तीनो रूपों में बाजार में मिलते हैं. हरड़ का प्रयोग करने से पहले इसकी गुठली निकल दी जाती है और पीसकर पाउडर बना लिया जाता है.
हरड़ का स्वभाव कब्ज़ को दूर करने वाला है. तिरफला के रूप में कब्ज़ दूर करने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है. टैनिक एसिड और गैलिक एसिड होने के कारण हरड़ का प्रयोग दांतों को मज़बूत करता है. हलीला स्याह या काली हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से दांतो और मसूढ़ों के रोगों में लाभ होता है. मुंह की दुर्गन्ध जाती रहती है और मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है. हरड़ का नियमित इस्तेमाल आंतो के बहुत से रोगों और कैंसर से बचाता है.
तिरफला के रूप में हरड़ का इस्तेमाल आयु को बढ़ता है. जवानी को कायम रखता है. और सबसे बढ़कर यह कि रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है.
कब्ज़ के लिए रात को सोते समय एक या दो हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए. हरड़ का मुरब्बा बाजार में आसानी से मिल जाता है. घर पर भी सुखी हरड़ों को पानी में भिगोकर मुलायम होने पर शकर का पाग बनाकर मुरब्बा बनाया जाता है.
अजीब बात ये है की हरड़ कब्ज़ दूर करने वाली दवा है लेकिन दस्त बंद करने में भी इसका का प्रयोग किया जा सकता है. काली हरड़ को घी में भूनकर पाउडर बना लें और ठन्डे पानी के साथ इसका प्रयोग करे तो दस्त बंद हो जाते हैं.
अरबी हकीमो ने हलीलज, बलीलज और आमलज का नाम दिया तो बाद में यही नाम हलीला, बालीला और आमला हो गया. बाजार में हरड़ की तीन वैराइटी मिलती हैं. काली हरड़ वो हरड़ है जो छोटी और काले रंग की
होती है. ये हरड़ के अविकसित और छोटे फल हैं जो खुद हरड़ के पेड़ों से गिर जाते हैं या तोड़कर सूखा लिए जाते हैं. हरड़ की दूसरी और बहुत आम वैराइटी छोटी हरड़ है. यही आम तौर से दवा में प्रयोग होती है. इसी का मुरब्बा बनाया जाता है और तिरफले के अव्यव में प्रयोग होती है.
हरड़ का तीसरा प्रकार हलीला काबुली या बड़ी हरड़ कहलाता है. ये हरड़ के फल का पूर्ण विकसित रूप है. ये हरड़ उस समय पेड़ों से तोड़ी जाती है जब हरड़ पकने लगती है और पीली पड़ जाती है.
सूखने पर हरड़ के फलों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. ऐसे सूखे फल तीनो रूपों में बाजार में मिलते हैं. हरड़ का प्रयोग करने से पहले इसकी गुठली निकल दी जाती है और पीसकर पाउडर बना लिया जाता है.
हरड़ का स्वभाव कब्ज़ को दूर करने वाला है. तिरफला के रूप में कब्ज़ दूर करने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है. टैनिक एसिड और गैलिक एसिड होने के कारण हरड़ का प्रयोग दांतों को मज़बूत करता है. हलीला स्याह या काली हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से दांतो और मसूढ़ों के रोगों में लाभ होता है. मुंह की दुर्गन्ध जाती रहती है और मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है. हरड़ का नियमित इस्तेमाल आंतो के बहुत से रोगों और कैंसर से बचाता है.
तिरफला के रूप में हरड़ का इस्तेमाल आयु को बढ़ता है. जवानी को कायम रखता है. और सबसे बढ़कर यह कि रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है.
कब्ज़ के लिए रात को सोते समय एक या दो हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए. हरड़ का मुरब्बा बाजार में आसानी से मिल जाता है. घर पर भी सुखी हरड़ों को पानी में भिगोकर मुलायम होने पर शकर का पाग बनाकर मुरब्बा बनाया जाता है.
अजीब बात ये है की हरड़ कब्ज़ दूर करने वाली दवा है लेकिन दस्त बंद करने में भी इसका का प्रयोग किया जा सकता है. काली हरड़ को घी में भूनकर पाउडर बना लें और ठन्डे पानी के साथ इसका प्रयोग करे तो दस्त बंद हो जाते हैं.
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