इमली भारत का जाना माना वृक्ष है. इसकी पत्तियां छोटी पत्तियों के समूह से बानी होती हैं. इसकी पत्तियां कम्बाइंड लीफ का उदहारण हैं. इमली को अरबी भाषा में तमर - हिन्दी यानि भारत की खजूर कहा जाता है. भारत इमली का बहुत बड़ा एक्सपोर्टर है. भारत के दक्षिणी राज्यों में इमली का प्रयोग खानों में बहुत किया जाता है. भारत के दक्षिण भाग से से एक्सपोर्ट होकर इमली अरब देशों में पहुंची. और अरबी से इसे तमर -हिन्दी, तमर -ए -हिन्द, तमर -इंडस, नाम मिला जो अंग्रेजी में बिगड़कर टैमराइन्ड हो गया. अब ये इसी नाम से दुनिया में जानी जाती है.
इमली अपने खट्टे स्वाद के कारण मशहूर है. इमली का फल पककर खटमिट्ठा हो जाता है. इसका गूदा मुलायम पड़ जाता है. इमली के बीज मजबूत होते हैं और आसानी से नहीं टूटते.
इमली पित्त पर गहरा असर करती है. ये पित्त को पतला रखती है जिससे पित्त में पथरी नहीं बनने पाती. दक्षिण भारत में ये दाल और सब्ज़ी का ज़रूरी भाग है. सांभर का ये विशेष घटक है. इमली का प्रयोग खून को भी पतला रखता है. ये बढे हुए ब्लड प्रेशर को कम करती है.
इमली को पानी में भिगोकर उसका शरबत बनाया जाता है. जिसे इमली का पन्ना, या इमली का पना भी कहते हैं. इमली का ये शरबत गर्मी में ठंडक देता है और लू लगने से बचाता है.
इमली को उत्तर भारत में खून को ख़राब करने वाली समझा जाता है. इसलिए उत्तर भारत में इमली प्रयोग तो होती है लेकिन इसका वह क्रेज़ नहीं है जितना दक्षिण भारत में है. इमली का अगर ठीक प्रकार से प्रयोग किया जाए तो ये खून की खराबी से होने वाली स्किन डिसीजेस को भी ठीक करती है.
रानी बीजा बाई के यहां एक हकीम इलाज करते थे. रानी की एक दासी के हाथ में बड़े बड़े छाले निकला करते थे हकीम साहब ने बीमारी की हिस्ट्री पूछी तो उसने बताया की जब से रानी के हाथी जिसका नाम "काला नाग" था, के गोबर से घर लीपा है हाथों में पानी भरे छाले निकलते हैं.
हकीम ने हाथी के महावत से पूछा कि हाथी को भिलवां तो नहीं खिलाया है. महावत ने कहा - हाथी को दो महीने से भिलवां खिलाया है. यहाँ यह बताना ज़रूरी है की भिलवां एक हर्बल दवा है जिसका प्रयोग हाथी को मोटा करने के लिए किया जाता है. भिलवां स्किन में सूजन और एलर्जी भी पैदा करता है. हकीम समझ गये की हाथों में एलर्जी भिलवां की वजह से है. उन्होंने इमली की अंतर छाल (वह छाल जो इमली की बाहरी छाल के हटाने पर अंदर से निकलती है ) को दही में पेस्ट बनाकर लगाने को कहा. इसके प्रयोग से एलर्जी ठीक हो गयी.
इमली इस प्रकार से एंटी- एलर्जिक दवा का काम भी करती है.
इमली में बहुत से टॉक्सिन की शरीर से बहार निकलने की छमता है. खून की खराबी, दाने फोड़े और फुंसी में विशेषकर ऐसे लोग जिन्हे कब्ज़ रहता हो, 10 ग्राम इमली और 10 ग्राम गुलकंद रात की एक गिलास पानी में भिगो देना चाहिए और सुबह स्मैश करके छानकर पीने से ये विकार ठीक हो जाता है.
जमीकंद को इमली के पत्तों या इमली के साथ उबलने से उसकी चरपराहट निकल जाती है. ऐसा जमींकन्द सब्ज़ी के रूप में खाने से नुकसान नहीं करता. ऐसी सभी सब्ज़ियां या जड़ी बूटियां जिनमें चरपराहट होती है और जो जीभ पर या मुंह में इरिटेशन पैदा करते हैं, जैसे अरवी या घुइयां, जमींकन्द, उन्हें इमली के साथ पकने से उनका दुष्प्रभाव कम हो जाता है.
इमली का बाहरी छिलका पीसकर खाने से दस्त बंद हो जाते हैं.
छिलका उतरे हुए इमली के बीजों का पाउडर बनाकर ३-५ ग्राम के मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से पुष्टकारी प्रभाव उत्पन्न करता है.
इमली का स्वभाव ठंडा है. जो लोग गले के रोगों जैसे गले के खराश, टांसिल, ज़ुकाम, से पीड़ित हैं उन्हें इमली का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
जो लोग एसिडिटी का शिकार हैं, पित्त विकार से ग्रसित हैं या जिनका लिवर कमज़ोर है वह भी इमली के प्रयोग से बचें.
अजीब बात यह है के आँतों की खुश्की से खांसी आती हो तो इमली के इस्तेमाल से ऐसी खांसी दूर हो जाती है.
इमली अपने खट्टे स्वाद के कारण मशहूर है. इमली का फल पककर खटमिट्ठा हो जाता है. इसका गूदा मुलायम पड़ जाता है. इमली के बीज मजबूत होते हैं और आसानी से नहीं टूटते.
इमली पित्त पर गहरा असर करती है. ये पित्त को पतला रखती है जिससे पित्त में पथरी नहीं बनने पाती. दक्षिण भारत में ये दाल और सब्ज़ी का ज़रूरी भाग है. सांभर का ये विशेष घटक है. इमली का प्रयोग खून को भी पतला रखता है. ये बढे हुए ब्लड प्रेशर को कम करती है.
इमली को पानी में भिगोकर उसका शरबत बनाया जाता है. जिसे इमली का पन्ना, या इमली का पना भी कहते हैं. इमली का ये शरबत गर्मी में ठंडक देता है और लू लगने से बचाता है.
इमली को उत्तर भारत में खून को ख़राब करने वाली समझा जाता है. इसलिए उत्तर भारत में इमली प्रयोग तो होती है लेकिन इसका वह क्रेज़ नहीं है जितना दक्षिण भारत में है. इमली का अगर ठीक प्रकार से प्रयोग किया जाए तो ये खून की खराबी से होने वाली स्किन डिसीजेस को भी ठीक करती है.
रानी बीजा बाई के यहां एक हकीम इलाज करते थे. रानी की एक दासी के हाथ में बड़े बड़े छाले निकला करते थे हकीम साहब ने बीमारी की हिस्ट्री पूछी तो उसने बताया की जब से रानी के हाथी जिसका नाम "काला नाग" था, के गोबर से घर लीपा है हाथों में पानी भरे छाले निकलते हैं.
हकीम ने हाथी के महावत से पूछा कि हाथी को भिलवां तो नहीं खिलाया है. महावत ने कहा - हाथी को दो महीने से भिलवां खिलाया है. यहाँ यह बताना ज़रूरी है की भिलवां एक हर्बल दवा है जिसका प्रयोग हाथी को मोटा करने के लिए किया जाता है. भिलवां स्किन में सूजन और एलर्जी भी पैदा करता है. हकीम समझ गये की हाथों में एलर्जी भिलवां की वजह से है. उन्होंने इमली की अंतर छाल (वह छाल जो इमली की बाहरी छाल के हटाने पर अंदर से निकलती है ) को दही में पेस्ट बनाकर लगाने को कहा. इसके प्रयोग से एलर्जी ठीक हो गयी.
इमली इस प्रकार से एंटी- एलर्जिक दवा का काम भी करती है.
इमली में बहुत से टॉक्सिन की शरीर से बहार निकलने की छमता है. खून की खराबी, दाने फोड़े और फुंसी में विशेषकर ऐसे लोग जिन्हे कब्ज़ रहता हो, 10 ग्राम इमली और 10 ग्राम गुलकंद रात की एक गिलास पानी में भिगो देना चाहिए और सुबह स्मैश करके छानकर पीने से ये विकार ठीक हो जाता है.
जमीकंद को इमली के पत्तों या इमली के साथ उबलने से उसकी चरपराहट निकल जाती है. ऐसा जमींकन्द सब्ज़ी के रूप में खाने से नुकसान नहीं करता. ऐसी सभी सब्ज़ियां या जड़ी बूटियां जिनमें चरपराहट होती है और जो जीभ पर या मुंह में इरिटेशन पैदा करते हैं, जैसे अरवी या घुइयां, जमींकन्द, उन्हें इमली के साथ पकने से उनका दुष्प्रभाव कम हो जाता है.
इमली का बाहरी छिलका पीसकर खाने से दस्त बंद हो जाते हैं.
छिलका उतरे हुए इमली के बीजों का पाउडर बनाकर ३-५ ग्राम के मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से पुष्टकारी प्रभाव उत्पन्न करता है.
इमली का स्वभाव ठंडा है. जो लोग गले के रोगों जैसे गले के खराश, टांसिल, ज़ुकाम, से पीड़ित हैं उन्हें इमली का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
जो लोग एसिडिटी का शिकार हैं, पित्त विकार से ग्रसित हैं या जिनका लिवर कमज़ोर है वह भी इमली के प्रयोग से बचें.
अजीब बात यह है के आँतों की खुश्की से खांसी आती हो तो इमली के इस्तेमाल से ऐसी खांसी दूर हो जाती है.
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