रविवार, 26 जुलाई 2020

अमरुद

अमरुद मीडियम ऊंचाई का वृक्ष है. इसे घरों में भी लगाया जाता है. लगाने के 3 वर्ष के बाद इसमें फल आने लगते हैं. सामान्य अमरुद के पेड़ों में दो मौसम में फल आते हैं. एक बरसात के मौसम में और दुसरे जाड़े के मौसम में. जाड़े का मौसम का अमरुद अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है. बरसात का अमरुद थोड़ा कच्चा जिसे गद्दर या अधपका कहते हैं, खाना ठीक रहता है. ज़्यादा पकने और पीला पड़ने पर इसमें कीड़े पड़ जाते हैं.
अमरुद कब्ज़ की बड़ी दवा है. पक्का अमरुद खाने से कब्ज़ दूर होता है. इसके लिए बेहतर ये है की अमरुद पर काली मिर्च का पाउडर और थोड़ा सा नमक छिड़क कर खाया जाए.
कच्चे और अधपके अमरुद को खाने से बलगम बनता है और खांसी भी हो सकती है. लेकिन अजीब बात ये है की पक्का अमरुद अगर भूनकर खाया जाए तो खांसी में आराम मिलता है और बलगम आसानी से निकल जाता है.
अमरुद का नियमित इस्तेमाल पेट को साफ़ करता है. इसमें रक्त को डिटॉक्स करने के गुण हैं.
अमरुद के पत्ते भी दवा में इस्तेमाल होते हैं. अमरुद के पुराने, पक्के पत्ते 3 - 4 की मात्रा में, थोड़ी सी गेहूं के आटे की भूसी, 3 -4 काली मिर्च जिन्हें टुकड़ों में तोड़ लिया गया हो और एक चुटकी नमक, ये सब एक से डेढ़ ग्लास पानी में डालकर पकने रख दें. जब पानी आधा रह जाए तो छानकर गुनगुना पीने से ज़ुकाम में राहत मिलती है. ये बिना पैसे का जोशांदा / काढ़ा है.
अमरुद की कोंपल भी बड़े काम की चीज़ है. इसके नए छोटे पत्ते और कोंपल चबाने से दांत मज़बूत होते हैं. मुंह के अल्सर, मुंह में दाने/छाले  इससे ठीक हो जाते हैं. इसके पत्तों को कुचलकर काढ़ा बनाकर ठंडा करके कुल्ला / गार्गल करने से भी लाभ मिलता है.
एक बड़े हकीम ने मुंह के छालों का इलाज फ्री में बिना किसी दवा के किया था. मरीज़ मुंह के छालों से बहुत परेशान था और दवा खा खाकर तंग आ चूका था. हकीम ने कहा अमरुद के पत्ते, गुलाब की पत्ती, हरा धनिया मरीज़ के सरहाने रख दो. मरीज़ इन तीन चीज़ों में से किसी न किसी पत्ती को अपने मुंह में रखे, किसी समय भी मुंह खाली  नहीं रहना चाहिए.
मरीज़ ने ऐसा ही किया और बगैर दवा के ठीक हो गया.


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