शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

महुआ

महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिसके फूल, फल और बीज का प्रयोग खाने में किया जाता  है.  गांव के लोग  इसके फूलों का प्रयोग करते हैं. इसके फूल अजीब होते हैं. ये अंगूर के आकर के सफ़ेद और मोटे दल वाले होते हैं. रात में खिलते हैं और सुबह को गिर जाते हैं. मार्च अप्रैल में महुए के पेड़ के नीचे सफ़ेद सफ़ेद अंगूर जैसे फूल पड़े होते हैं, इन्हे ही महुआ कहते हैं.

महुए स्वाद में मीठे होते हैं. इनमे मीठी मीठी एक अजीब सी गंध आती है जिसे हीक कहा जाता है. 

यही महुए सुखा  लिए जाते है. सूखने पर ये लाल भूरे रंग के हो जाते हैं. इनकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है. बहुत मीठा होने के कारण लोग इन्हे खाते  भी हैं. इनका दवाई गुण ये है कि ये शरीर को पुष्ट बनाते हैं. बल को बढ़ाते है. ये रेप्रोडक्टिव सिस्टम को मज़बूत करते है. वीर्य की मात्रा और गाढ़ापन बढ़ाते हैं. 
महुए का स्वभाव गर्म तर है. जिन्हे नज़ला ज़ुकाम रहता हो, जिनका शरीर दुर्बल हो, जिनके जोड़ों में चिकनाई की कमी हो उनके लिए ताज़े या  सूखे महुए का सेवन कमाल का परिवर्तन लाता है. महुआ खाने वाले से ज़ुकाम और सर्दी दूर भागती है.


महुए ताज़े जो पेड़ों से गिरते हैं चाव से खाये जाते हैं. दूध में मिलकर इसकी खीर भी बनाई जाती है. सूखे महुए भी खाने में प्रयोग होते हैं. गरीब लोग महुए से पेट भरते है. रोटी के साथ खाते हैं. इसे मीठे की तरह प्रयोग करते हैं.
इनके फलो की सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है. कहीं इनके फलों को गुलहंदे भी कहते हैं.
महुए के बीज में बहुत तेल होता है. इसके तेल का प्रयोग साबुन बनाने में होता है. ये खाने के काम भी आता है. लेकिन इस तेल में भी मीठी गंध यानि हीक आती है. इसके लिए महुए के तेल को गर्म करके उसमें नीबू का रस डालकर पकाते हैं. उस तेल में फिर हीक नहीं आती और ये तेल पूड़ी पकवान बनाने के काम आता है.
महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिससे पेट भी भरता है। बीमारियां भी दूर होती  हैं 

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

मुलेठी एक झाड़ीदार पौधा है

मुलेठी एक झाड़ीदार पौधा है. इसे गर्म और तर जलवायु चाहिए. इसे आयुर्वेद में यष्टिमधु और हिंदी उर्दू में मुलेठी कहते हैं. इसका अंग्रेजी नाम लिकोरिस और साइंटिफिक नाम ग्लीसरहिज़ा ग्लाब्रा है. इसकी जड़ दवा के रूप में प्रयोग की जाती है.
 मुलेठी की जड़े पौधा लगाने के दो साल बाद निकालने के लिए तैयार हो जाती हैं. इन्हे खोदकर छोटे टुकड़ो में काटकर सुखा लिया जाता है. मुलेठी की जड़ो  का रंग पीला और स्वाद मीठा होता है.
मुलेठी का सबसे बड़ा फायदा इसकी बलगम निकालने का गुण है जिसे जड़ी बूटी से थोड़ा सा लगाव रखने वाले सभी लोग जानते हैं. इसलिए ये एक्सपेक्टोरेन्ट के रूप में प्रयोग की जाती है. देसी, आयुर्वेद और हकीमी दवाओं में ये खांसी की मुख्य दवा के रूप में इस्तेमाल होती  है. जोशांदे में जो नज़ला, ज़ुकाम और कफ के लिए प्रयोग किया जाता है मुलेठी की जड़ को कूटकर डाला जाता है और अन्य दवाओं के साथ उबालकर पिया जाता है.


बच्चो के दांत निकलने के ज़माने में मुलेठी की जड़ को पानी में भिगोकर कुछ नरम करके बच्चे के हाथ में पकड़ा देते हैं जिससे बच्चा उसे बेबी टीथर की तरह चूसता रहे. इसके न सिर्फ दांत आसानी से निकल आते हैं, बच्चो को खांसी, ज़ुकाम और पेट की तकलीफे भी नहीं होती हैं.
मुलेठी पेट की भी अच्छी दवा है. ये आंतो को शक्ति देती है. दस्तों को बंद करती है, पेचिश में फायदेमंद है. इसका विशेष अजीब गुण ये है की ये कब्ज़ में भी लाभकारी है.
मुलेठी नर्वस सिस्टम की भी बड़ी दवा है. इसके पाउडर को दूध के साथ नियमित प्रयोग करने से नर्वस सिस्टम मज़बूत हो जाता है. डिप्रेशन जाता रहता है. शरीर की मांस पेशियां भी शक्तिशाली बनती हैं. इसके लिए मुलेठी को इमाम दस्ते (हावन दस्ते) में अच्छी तरह कूटकर पाउडर बनाले. और छानकर इसके रेशे निकाल दें. ये पाउडर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ रोज़ 3 से 4 महीने इस्तेमाल करने से निश्चित ही लाभ होता है.
मुलेठी का स्वाभाव गर्म खुश्क है. ये शरीर में खुश्की पैदा करती है. तर या गीली खुजली और स्किन की बीमारियों में भी लाभदायक है.
मुलेठी की जड़ के ऊपरी छिलके  में कुछ ऐसे तत्व है जो सेहत के लिए लाभदायक नहीं हैं. इसलिए हकीम लोग इसकी ऊपरी छाल को हटाकर अंदर की लकड़ी प्रयोग करते हैं.

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

पेठा एक जाना माना फल है

पेठा एक जाना माना फल है. इसे कुम्हड़ा और कुम्हड़ा भी कहते हैं. इसका नाम कुष्मांडा भी है लोग पेठे का प्रयोग मिठाई के रूप में करते हैं. इसकी मिठाई बनायीं जाती है जो स्वादिष्ट होती है. इसकी सूखी मिठाई बहुत दिनों तक सुरक्षित रह सकती है.
उड़द दाल के साथ पेठा मिलाकर बड़ियाँ भी बनायीं जाती है. जो सब्ज़ी के रूप में प्रयोग की जाती हैं. और खाने में स्वादिष्ट लगती हैं.
पेठे में पानी के मात्रा अधिक होती है. इसका गूदा मुलायम होता है लेकिन इसके रेशे कड़े होते है. जो खाने में करकर बोलते हैं. इस डाइटरी फाइबर के कारण ही पेठा आंतो में जमी गंदगी निकल देता है. इसका डाइटरी फाइबर ही इसका विशेष गुण है. पेठे का स्वाभाव ठंडा और तर है. गर्मी के दिनों में इसके मिठाई का इस्तेमाल गर्मी के दुष्प्रभाव से बचता है और सर को ठंडा रखता है. पेठा लू लगने से बचाता है. इसमें मिनरल पाये  जाते है जो शरीर को बहुत सी बीमारियों से बचाते हैं. पेठे के सब्ज़ी बनाकर खाने से शरीर को ताकत तो मिलती है लेकिन वज़न कंट्रोल में रहता है.
जिन लोगों का मिज़ाज ठंडा है उनके लिए पेठा फायदेमंद नहीं है. जो लोग डायबेटीस का शिकार हैं वे भी पेठे की मिठाई खाने से बचें क्योंकि इसमें बहुत मात्रा में शकर का प्रयोग किया जाता है.

रविवार, 8 सितंबर 2019

बेरी और झड़बेरी

 बेर के पेड़ को बेरी कहते हैं. बेर एक बहुत आम पौधा है. ये कांटेदार होता है. आसानी से उग आता है. इसे शुष्क ज़मीन और शुष्क मौसम पसंद है. इसलिए रेगिस्तानी इलाको और चट्टानी जगहों पर हो जाता है. इसको बरसात के अलावा पानी के भी ज़्यादा ज़रुरत नहीं है. बरसात गुजरने के बाद इसमें छोटे छोटे फूल गुच्छो में लगते हैं. जिन्हे बेरी के खिचड़ी कहा जाता है. उसके बाद ये पौधा फलों से भर जाता है. ये फल जाड़े के मौसम में पक जाते है. इन फलों को बेर कहते हैं.
बेरी की बहुत सी किस्में हैं. बेरी के छोटे आकर के झाड़ीनुमा पौधों को झड़बेरी कहते हैं. ये पौधे रेलवे लाइनों और सड़कों के किनारे और खली पड़े शुष्क स्थानों पर उग आते हैं. इनमें छोटे आकर के गोल या अंडाकार फल लगते हैं जो पकने पर गहरे लाल  रंग के हो जाते हैं. यही फल झड़बेरी के बेर कहलाते हैं.
कलमी बेर बड़े आकर के होते हैं. सेब के आकर के बड़े बड़े बेर भी बाजार में मिलते हैं. ये बेर काफी बड़े होते हैं.
बेर के पौधे के कम पानी चाहिए होता है. हे सूखे स्थानों में आसानी से हो जाता है. इसके लिए बरसात का पानी ही काफी है.
बेरी के पत्ते पीसकर सर में लगाने से झड़ते बालों के समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके लिए बेरी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर शैम्पू के तरह बालों को धोया जाता है. बेर में बहुत से खनिज जैसे लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम, ज़िंक आदि पाया जाता है. ये दांतो और हड्डियों के लिए फायदेमंद है. रक्त के प्रवाह को बढ़ता है और रक्त में धक्का नहीं बनने देता.
बेर में चिपचिपापन होता है. इस कारन ये आँतों के लिए फायदेमंद है. जिनको कब्ज़ रहता हो वे लोग सीज़न में पक्के बेरों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
बेर खाने और बेर के पक्के फलों को पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा कांतिमान बनता है.


मंगलवार, 30 जुलाई 2019

पुनर्नवा या सांठ

पुनर्नवा का मतलब है फिर से नया करना. ये एक जड़ी बूटी का नाम है जो बरसात में तेज़ी से सड़कों के किनारे और खली पड़े स्थानों पर उगती है. इसकी लम्बी लम्बी शाखें ज़मीन में फैलती चली जाती हैं. ये रेलवे लाइनों के किनारे भी मिल जाती है. ये एक ज़मीन पर फैलने वाला पौधा है. इसके पत्ते कुछ गोल, अंडाकार से होते हैं. इसमें बैगनी रंग के या फिर सफ़ेद फूल खिलते हैं.
इसकी शाखाए भी बैगनी या लाल रंग लिए हुए होती हैं. इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है.
इसको अंग्रेजी भाषा में हॉगवीड  और वैज्ञानिक नाम बोर्हाविआ डिफ़युसा है. कहते हैं के शरीर को पुनः जीवन दान करने और नया बनाने के कारन ही इसका नाम पुनर्नवा पड़ा है. या फिर इसलिए की तेज़ गर्मी के दिनों में इसका पौधा सूख जाता है और बरसात आने पर फिर उग आता है. इसलिए भी इसे पुनर्नवा कहते हैं. कहीं कहीं इसे बिसखपड़ा और इटसिट  भी कहते हैं. लेकिन बिसखपड़ा के नाम से एक और पौधा भी जाना जाता है. जो खेतों में बरसात में खर पतवार के रूप में उगता है. इसलिए पुनर्नवा को अन्य पौधों से अलग पहचानना ज़रूरी है. कई बार एक नाम से भिन्न भिन्न जड़ी बूटियां अलग अलग स्थानों पर जानी जाती हैं. उनकी विशेष पहचान के लिए ही जड़ी बूटी का फोटो इस ब्लॉग में दिया जाता है.
पुनर्नवा का एक नाम सांठ भी है.

पुनर्नवा लिवर या जिगर के अच्छी दवा है. शराब पीने से ख़राब होने वाला लिवर इससे ठीक हो जाता है. लेकिन पहले शराब का छोड़ना ज़रूरी है. इसके लिए पुनर्नवा के पत्तों की सब्ज़ी बनाकर खाना चाहिए. पुनर्नवा शरीर सो टॉक्सिन यानि ज़हरीले पदार्थ निकाल देता है. ये पेशाब लाने वाली जड़ी है. गुर्दे के रोगों में फ़ायदा करती है. कहते हैं कि इसके इस्तेमाल से गुर्दे के रोगों में आराम मिलता है.
पुनर्नवा ब्लड प्रेशर घटाता है. शरीर और दिमाग को शांत करता और ठंडा रखता है.
पुनर्नवा दिल की सेहत को बनाये रखता है. इसका इस्तेमाल कोलेस्ट्रॉल का सही स्तर  बनाये रखता है. जो लोग स्वस्थ हैं वे अगर कभी कभी पुनर्नवा को सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल करते रहें तो बहुत से रोगों से बच सकते हैं.
पुनर्नवा ड्रॉप्सी के बीमारी जिसमें जिगर की खराबी के कारण पेट में पानी भर जाता है, के लिए उपयोगी है. इसके अलावा ये सूजन को दूर करता है. जिनका शरीर जिगर की  खराबी से सूज गया हो उन्हें नियमित पुनर्नवा के सब्ज़ी इस्तेमाल करनी चाहिए.
पुनर्नवा का नियमित इस्तेमाल शरीर और पेट के मोटापे को घटाता है. जो लोग मोटापे का शिकार हैं उन्हें इसकी सब्ज़ी खाना  चाहिए।
इसकी जड़ का पाउडर पेट के कीड़े मारकर निकल देता है.
पुनर्नवा एक सुरक्षित दवा है. एक ऐसी जड़ी हैं जिसकी जितनी भी प्रशंसा की  जाए कम  है. 



रविवार, 26 मई 2019

जंगल जलेबी

जंगल जलेबी एक बड़ा और कांटेदार वृक्ष है. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इस पौधे के इनवेसिव पौधों की श्रेणी में रखा गया है. ये खुद-ब - खुद बीजो की सहायता से उग आता है और दूर दूर तक जंगल जलेबी का जंगल फैल जाता है.
इसकी लकड़ी का रेशा ऐंठा हुआ होता है. इसलिए इसके पेड़ सीधे नहीं होते. टेढ़े, तिरछे होते हैं. इसका तना भी ऊबड़ खाबड़ होता है. ये सूखी जलवायु को आराम से झेल लेता है. रेगिस्तानों और कम पानी वाली ज़मीनो में आराम से लग जाता है.
इसकी फलियां लम्बी लेकिन चक्रदार होती हैं. इसी लिए इसे जंगल जलेबी कहते हैं. जलेबी का आकार और मीठी होने की वजह से इसे ये नाम मिला हैं. कुछ लोग इसे मीठी इमली भी कहते हैं. इसकी फलियां पककर लाल हो जाती हैं  अंदर का गूदा फलियां फट जाने से बाहर दिखने लगता है. इस गूदे में काले काले बीज होते है. इन बीजों का आवरण चिकना और मज़बूत होता है. शुष्क ज़मीनो में ये कई साल तक पड़े रह सकते हैं. और आवश्यक नमी मिलने पर नए पौधे उग आते हैं.
जंगल जलेबी का स्वाभाव ठंडा और तर है. ये पेट के ढीलेपन को दूर करती है. पेचिश और दस्तों के मरीज़ों के लिए फायदेमंद है.
जंगल जलेबी के पेड़ की छल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है. इसकी छल का पाउडर सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से पुराने दस्त रुक जाते हैं.
जंगल जलेबी की दातुन करने से दांत मज़बूत होते हैं और उनसे खून आना बंद हो जाता है. 

शनिवार, 4 मई 2019

बोया पेड़ बबूल का

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाओगे. ये एक कहावत है जिसका मतलब है कि बुराई करोगे तो बुराई ही मिलेगी. लेकिन जड़ी बूटी विज्ञानं में बबूल का अपना बड़ा महत्त्व है. ये एक कांटेदार पेड़ है. इसकी कई जातियां है. बबूल का पेड़ बारीक पत्तियों वाला और कांटे दर होता है. इसमें बहुत कांटे होते हैं. इसलिए  खेतो और बागो की बाढ़ों पर लगाया जाता है.
ये शुष्क और रेगिस्तानी इलाकों का पेड़ हैं. इसे आम तौर से गोंद के लिए जाना जाता है. जंगलों से इसका गोंद इकठ्ठा किया जाता है. जो टेढ़ी मेढ़ी डलियो / टुकड़ो में होता है. इसका रंग सफ़ेद, हल्का पीला और डार्क ब्राउन भी होता है. ये गोंद चिपकाने के काम में आता हैं. अब स्टेशनरी के लिए बहुत से एडहेसिव का चलन होने की वजह से बबूल का गोंद चिपकाने के काम में काम इस्तेमाल होता है.
बबूल के  गोंद का दूसरा बड़ा प्रयोग दवाई के रूप में और घरेलू डिश में खाने के काम में होता है. ये स्वाभाव से शुष्क और गर्म होता है. इसलिए  इसका प्रयोग सर्दी के दिनों में घी में भूनकर किया जाता है. घी में भूनने से ये फूल जाता है. तब इसे पीस लिया जाता है और दवाओं या फिर घरेलू डिश जैसे हलवे आदि में मिलाया जाता है. ये जोड़ो के दर्दो को दूर करता है. जोड़ो को शक्ति देता है. प्रसव के बाद बबूल के  गोंद का हलवा खिलने से प्रसूता को बहुत सी बीमारियों से लाभ मिलता है.
बबूल की कच्ची फली जिसमे अभी बीज पका  न हो सुखाकर पाउडर बना लिया जाता है. इन फलियों का पाउडर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सामान मात्रा में कच्ची शकर से साथ सुबह शाम इस्तेमाल करने से स्त्रियों के श्वेत प्रदर में विशेष लाभकारी है. पुरुषों के लिए स्तम्भनकारी है.
बबूल की कच्ची फलियां जिनका बीज अभी पका न हो, सुखाकर रख ली जाती हैं. यही फलियां दवा में काम आती हैं. ये दवा की दुकान और पंसारी की दुकान से भी मिल सकती हैं (जिन दुकानों पर देसी दवाएं बिकती हैं. ) सूखी फलियों का पाउडर बनाकर शकर या मिश्री के साथ सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी या दूध के साथ इस्तेमाल करने से जोड़ों के दर्द में बहुत लाभ मिलता हैं. ये न केवल सूजन घटती हैं, कैल्सियम बढाती हैं, हड्डियों में लचक पैदा करती है और जोड़ मज़बूत होते हैं.
किसी भी देसी जड़ी बूटी  के इस्तेमाल में जो रहस्य है उसका जानना ज़रूरी है. दवा के रूप में बबूल की वही फली प्रयोग होगी जिसका बीज कच्चा हो. बीज पड़ने के बाद पहली का छिलका मोटा हो जाता है. और बीज पक्का होकर फली फट जाती है और बीज बिखर जाते हैं. ये पके बीज और पका छिलका दवाई के काम का नहीं है.
बबूल की दातून करने से दांतो की बीमारियां दूर होती हैं. दांतो से खून आना बंद हो जाता है. यही काम बबूल की पत्तियां और छाल भी करती हैं. बबूल की छाल का नित्य प्रयोग करने से दांत मज़बूत हो जाते हैं.
कांटो को शूल कहा जाता है. बबूल के शूल पेट शूल के लिए लाभदायक हैं. जो लोग पेट शूल यानि पेट दर्द की समस्या से ग्रस्त हैं. वे बीस ग्राम बबूल के कांटे और बीस ग्राम काला  नमक एक लीटर पानी में भिगो दें फिर उस पानी को हलकी आंच पर इतना पकाएं की पानी आधा रह जाए. इस पानी को ठंडा करके बोतल में रख लें. खाने के बाद दोनों समय इस पानी को दो चमच की मात्रा में इस्तेमाल करने से पेट शूल के पुराने मर्ज़ से निजात मिल जाती है. 

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