महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिसके फूल, फल और बीज का प्रयोग खाने में किया जाता है. गांव के लोग इसके फूलों का प्रयोग करते हैं. इसके फूल अजीब होते हैं. ये अंगूर के आकर के सफ़ेद और मोटे दल वाले होते हैं. रात में खिलते हैं और सुबह को गिर जाते हैं. मार्च अप्रैल में महुए के पेड़ के नीचे सफ़ेद सफ़ेद अंगूर जैसे फूल पड़े होते हैं, इन्हे ही महुआ कहते हैं.
महुए स्वाद में मीठे होते हैं. इनमे मीठी मीठी एक अजीब सी गंध आती है जिसे हीक कहा जाता है.
यही महुए सुखा लिए जाते है. सूखने पर ये लाल भूरे रंग के हो जाते हैं. इनकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है. बहुत मीठा होने के कारण लोग इन्हे खाते भी हैं. इनका दवाई गुण ये है कि ये शरीर को पुष्ट बनाते हैं. बल को बढ़ाते है. ये रेप्रोडक्टिव सिस्टम को मज़बूत करते है. वीर्य की मात्रा और गाढ़ापन बढ़ाते हैं.
महुए का स्वभाव गर्म तर है. जिन्हे नज़ला ज़ुकाम रहता हो, जिनका शरीर दुर्बल हो, जिनके जोड़ों में चिकनाई की कमी हो उनके लिए ताज़े या सूखे महुए का सेवन कमाल का परिवर्तन लाता है. महुआ खाने वाले से ज़ुकाम और सर्दी दूर भागती है.
महुए का स्वभाव गर्म तर है. जिन्हे नज़ला ज़ुकाम रहता हो, जिनका शरीर दुर्बल हो, जिनके जोड़ों में चिकनाई की कमी हो उनके लिए ताज़े या सूखे महुए का सेवन कमाल का परिवर्तन लाता है. महुआ खाने वाले से ज़ुकाम और सर्दी दूर भागती है.
महुए ताज़े जो पेड़ों से गिरते हैं चाव से खाये जाते हैं. दूध में मिलकर इसकी खीर भी बनाई जाती है. सूखे महुए भी खाने में प्रयोग होते हैं. गरीब लोग महुए से पेट भरते है. रोटी के साथ खाते हैं. इसे मीठे की तरह प्रयोग करते हैं.
इनके फलो की सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है. कहीं इनके फलों को गुलहंदे भी कहते हैं.
महुए के बीज में बहुत तेल होता है. इसके तेल का प्रयोग साबुन बनाने में होता है. ये खाने के काम भी आता है. लेकिन इस तेल में भी मीठी गंध यानि हीक आती है. इसके लिए महुए के तेल को गर्म करके उसमें नीबू का रस डालकर पकाते हैं. उस तेल में फिर हीक नहीं आती और ये तेल पूड़ी पकवान बनाने के काम आता है.
महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिससे पेट भी भरता है। बीमारियां भी दूर होती हैं