लाशोरा, लहसोड़ा एक माध्यम ऊंचाई के वृक्ष का फल है. ये कुछ गोल आकर लिए 2 से ढाई सेंटीमीटर के व्यास का फल होता है. पकने पर ये प्याज़ी रंग का हो जाता है. इसके अंदर चिपचिपा गूदा होता है जो ग्लू की तरह होता है इसलिए इसे अंग्रेजी में ग्लू बेरी या चिपचिपा फल कहते हैं.
ये चिपचिपा फल बड़े काम की चीज़ है. इसी की नस्ल का एक और फल है जो आकार में छोटा और शेप में तिकोना नोकदार सा होता है जिसे लभेड़ा कहते हैं.
इसका अचार बनाया जाता है. इसके कच्चे फल को थोड़ा सा उबालकर सिरके में भी डालते हैं जो एक अच्छे हाज़मा करने वाले अचार का काम करता है.
इसका पक्का फल अपने चिचिपिन या लेसदार होने के कारण आंतो और आमाशय के अल्सर और जख्मों के लिए फायदेमंद है. इससे जख्म जल्दी भर जाते हैं.
इसका स्वभाव या मिज़ाज गर्म और तर है. धातु रोगी इसके पक्के फलों के सेवन से ठीक हो जाते हैं. स्त्रियों में श्वेत प्रदर या लियोकोरिया के लिए इसके पक्के फलों का नित्य सेवन बहुत लाभकारी होता है. इसके कच्चे फलों को सुखाकर पीसकर तीन से पांच ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन करने से भी यही लाभ होता है.
इसकी दूसरी वैरायटी जिसे लभेड़ा कहा जाता है, के सूखे फल दवा में बहुतायत से उपयोग किये जाते हैं. नज़ला जुकाम, खांसी में जोशांदे के रूप में इसका प्रयोग होता है.
लभेड़ा का प्रयोग देसी दवाओं में बहुतायत से किया जाता है. इसे सुखाकर दवाओं में प्रयोग करते हैं. इन दोनों फलों का मौसम मई जून का है. जून में इनके फल पक जाते हैं. और दोनों प्रकार के पहल पककर मीठे हो जाते हैं. इनका रंग हल्का सा गुलाबी होता है. इस रंग को प्याज़ के रंग से मिलने के कारण प्याज़ी रंग कहते हैं.