मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

काला बिछुआ या बघनखी

बघनखी या बाघनखी या बाघनख एक पौधा है जो बरसात में उगता है और सर्दी आते आते सूख जाता है. इसके फल सूख कर चटक जाते हैं और उनमे से एक काले या भूरे रंग का बड़ा सा बीज निकलता है. इस बीज की शकल बाघ के मुड़े हुए नाखूनों जैसी होती है. इसलिए इसे बघनखी या बाघनखी या बाघनख कहते हैं.
इसके पत्ते बड़े और रोएंदार होते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को हाथाजोड़ी, हथजोड़ी का पौधा कहकर भ्रम फैला रहे हैं. हथजोड़ी के नाम से जो चीज़ बाजार में महंगे दामों बेची जा रही थी वह मॉनिटर लिज़र्ड का जननांग था और इस पर जब वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके ये बताया कि  मॉनिटर लिज़र्ड इस हथजोड़ी के चक्कर में मारी जा रही है और जंगली जन्तुओं का नाश हो रहा है तो इसका बेचना बंद कर दिया गया. भ्रम फैलाने वाले कहते थे कि असली हथजोड़ी विंध्याचल के जंगलों में मिलती है. कोई इसे हिमालय में बताता था. कोई कहता था की पेड़ की जड़ है और कोई फल बताता था. हथजोड़ी के मामले में भ्रम फैलाने वालों की अब भी कमी नहीं है.
बघनखी के पौधे को अंग्रेजी भाषा में  डेविल्स क्ला (शैतानी पंजा) कहते है. इसका वैज्ञानिक नाम मार्टिनिया एनुआ  है. देसी भाषाओं में कहीं इसे उलट कांटा भी कहते हैं. इसके मुड़े हुए कांटो की वजह से इसे बिच्छू फल या काला बिछुआ भी कहते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को बिच्छू झाडी समझते हैं. जबकि बिच्छू झाड़ी एक अलग ही पौधा है.
कुछ लोगों ने ये भ्रम भी पाल रखा है की ये पौधा वहीँ उगता है जहां बिच्छू रहते हैं. और ये बिच्छू काटे की अच्छी दवा है.
इसके कई नाम होने के कारण अन्य पौधों की नामों में भ्रम हो जाता है. ये पौधा ही ऐसा है.
ये पौधा सूजन और दर्द को दूर करता है. इसमें रक्त शोधक गुण हैं. सूजन और दर्द को दूर करने के गुणों के कारण  इसे गठिया रोग में इस्तेमाल किया जाता है. इसके पत्तों को सरसों के तेल में पकाकर ये तेल जोड़ो के दर्द में मालिश करने से बहुत आराम मिलता है. इसके सूखे फलों को कूटकर भी तेल में पका सकते हैं. ये एक अच्छा दर्द निवारक तेल बन जाता है.
इसके फलो का तेल बालों में लगाने से बाल जल्दी सफ़ेद नहीं होते.
इसकी जड़ का पाउडर एक से दो ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा का पाउडर सामान मात्रा में मिलाकर शहद के साथ सुबह शाम इस्तेमाल करने से गठिया रोग में राहत मिलती है.
कुछ लोगों को इसके इस्तेमाल से एलर्जी हो जाती है. इसका प्रयोग करने से पहले किसी काबिल हकीम या वैद्य की सलाह अवश्य लें.


बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

लपेटुआ

लपेटुआ का वैज्ञानिक नाम यूरेना लोबाटा है. इस पौधे के बीज रोएंदार होते हैं और इस लिए ये किसी भी व्यक्ति या जानवर के आसानी से चिपक जाते हैं और दूर दूर पहुंच जाते हैं. बरसात में इन बीजों से लपेटुआ के नये पौधे निकलते हैं. ये पौधा खेत खलिहानो में और खाली पड़ी ज़मीनो में उगता है.  
इसका रेशा मज़बूत होता है. जूट के पौधों की तरह ही इसके रेशे भी निकाले जाते हैं और उनकी रस्सी बनायी जाती है या फिर इन रेशो को बुनकर कैनवास जैसा कपडा बनाया जाता है.  ये मालवेसी कुल का  पौधा है. इसे अंग्रेजी में सीज़र -वीड, कांगो-जूट, और मडगास्कर-जूट भी कहते हैं.
इसके बीज पानी में भीगकर लेसदार हो जाते हैं. बीजों का ये म्यूसिलेज, या चिपचिपा पदार्थ पेट के रोगों में फ़ायदा करता है.
इसका स्वाभाव गर्म है. इसकी जड़  को पानी में उबालकर पिलाने  से शिशु-जन्म आसानी से हो जाता है.
फूलों को सुखाकर  रख लिया जाता है. इन फूलो को पानी में पकाकर पीने से खांसी में आराम मिलता है और जमा हुआ बलगम निकल जाता है.
बीजों को पानी में पकाकर पीने से पेट के कीडे मर कर निकल जाते हैं.

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

गुंजा, गुंजा, रत्ती, रत्ती

रत्ती और गुंजा एक बेल के बीज हैं. इस बेल को और इसके बीजों को रत्ती, रतियां, घुंघची, घुमची, गुंजा आदि कहा जाता है. आम तौर से लाल और काले रंग की रत्ती मिलती है. इस बीज का आधे से ज़्यादा भाग लाल होता है और आधे से कुछ कम  भाग काला होता है. देखने में ये बीज मोती जैसे लगते हैं.
इन बीजों से सुनार सोना तोलते थे. लाल - काली रत्ती लगभग समान आकार और वज़न की होती है. इसे एक रत्ती भार के बराबर माना जाता
रत्ती के बेल के पत्ते इमली के सामान होते हैं. ये एक पतली और नाज़ुक से बेल होती है. इसके फलने - फूलने का समय बरसात का है. जाड़े आते आते रत्ती के बीज सूख जाते हैं और फलियां चटक जाती हैं. जिनमे से बीज बिखर जाते हैं.
रत्ती की एक वैराइटी सफ़ेद होती है जिसका बहुत थोड़ा सा भाग कला होता है. इसे सफ़ेद रत्ती कहते हैं. एक अन्य प्रकार की रत्ती सफ़ेद और ब्राउन रंग की होती है. ये रत्तियां काली लाल रत्तियों से आकर में बड़ी होती हैं और इस लिए इन्हे सोना तोलने के काम में नहीं लाया जाता.

रत्ती एक बहुत ज़हरीला पौधा है. दवाई के रूप में इसकी पत्तिया, जड़ और बीज का प्रयोग किया जाता है. पत्तियां और जड़ में कम विष होता है. अजीब बात हैं की इसके बीज बहुत विषाक्त होते हैं. इसका प्रयोग केवल लगाने की दवाई के रूप में किया जाता है. लेकिन भूलकर भी ये जड़ी बूटी खुले घाव वाले स्थान पर न लगायी जाय.  और इसका प्रयोग केवल  काबिल हकीम और वैद्य की निगरानी में ही किया जाए.
किसी खाने की दवा  में अगर रत्ती का  इस्तेमाल लिखा हो तो ऐसे नुस्खे का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि रत्ती या गुंजा खतरनाक ज़हर है. 

फूल के ऊपर पत्ता

फूल के ऊपर पत्ता गोमा जड़ी बूटी की विशेष पहचान है. गोमा को गुम्मा घास, और द्रोण पुष्पी भी कहा जाता है. इसमें सफ़ेद रंग के फूल खिलते हैं.
गोमा को सर्प दंश की अचूक दवा माना जाता है. गोमा को खिलाने और काटे हुए स्थान पर लगाने से सांप का विष दूर हो जाता है. एक हकीम ने जंगल में देखा की एक सांप और नेवला लड़ रहे हैं. सांप नेवले को कई बार काटता है और नेवला भागकर एक बूटी के पत्ते खाकर लड़ाई के लिए फिर आ जाता है. वह ये सब देखते रहे. जब नेवले ने सांप को मार  लिया और उसी बूटी के पत्ते खाकर चला गया तो उनहोंने उस बूटी को जड़ से उखाड़कर अपने झोले में डाल लिया और पास के रेलवे स्टेशन से अपने गांव जाने के लिए गाड़ी पकड़ ली.
उस ट्रेन में उन्हें एक मरीज़ मिला जिसके शरीर के हर भाग से खून बह  रहा था. पूछने पर पता लगा की इस आदमी को सांप ने काटा था. दवा से मरने से तो बच गया लेकिन ज़हर के असर से शरीर का खून इतना पतला हो चुका  है की त्वचा के छिद्रों से बह रहा है. इसे  डाक्टर को शहर में दिखाने ले गए थे.  उन्होंने कहा इसका कोई इलाज नहीं.
हकीम ने थैले में हाथ डाला और गोमा बूटी को रगड़कर गोली से बना दी. और ऐसी तीन गोलियां मरीज़ को देदी. कहा कि एक अभी खालो, एक तीन घंटे बाद और एक उसके तीन घंटे बाद खा लेना. रास्ते में उनका गांव आ गया और उनहोंने उतरने से पहले हकीम का पता ले लिया.
 तीसरे दिन हकीम अपनी दुकान पर बैठे थे कि एक आदमी आया और उनके पैरों पर गिर पड़ा. ये वही मरीज़ था. बिलकुल ठीक हो चुका  था.
गोमा कमाल की बूटी है.
बुखारों के लिए भी गोमा ज़बरदस्त असर रखती है. सूखी गोमा बूटी के भरे हुए गद्दे पर मरीज़ को लिटाने से ही पुराना बुखार भी उतर जाता है.
गोमा लिवर की बीमारियों की बड़ी दवा है. लिवर ठीक काम न करता हो, पीलिया रोग में और लीवर की सूजन घटाने में ये जड़ी बूटी लाभकारी है.


मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

सुगंधित वृक्ष यूकेलिप्टस

 यूकेलिप्टस एक सुगंधित वृक्ष है. ये वास्तव में आस्ट्रेलिया का वृक्ष है. इसकी बहुत सी प्रजातियां पायी जाती हैं. 1980 के दशक में जब हरित क्रांति के नाम पर पौधे लगाने का काम भारत में शुरू किया गया तो हर खेत, जंगल और गांव में इसके पौधे बहुतायत से लगाए गए. ये तेज़ी से बढ़ता था और लकड़ी का अच्छा साधन होने की वजह से गरीबो की आय बढ़ाने का काम करता था. लेकिन कुछ समय बाद इसे बदनाम किया जाने लगा कि ये तो दलदली ज़मीनो का पौधा है. ज़मीन से अधिक मात्रा में पानी सोख लेता है. खेत बंजर हो रहे हैं.
यूकेलिप्टस में चिपचिपा सुगंधित तेल पाया जाता है. इसकी पत्तियों से ये तेल निकला जाता है और दवाओं में प्रयोग होता है. इसकी सुगंध लोगों को अच्छी लगती है. कुछ लोग इसे इलाइची जैसी सुगंध समझते हैं.
ये एक नेचुरल माउथ फ्रेशनर है. टूथपेस्ट, माउथ वाश में और मंजन में मिलाया जाता है. ये जीवाणु  और फफूंदी  नाशक है.
कॉमन कोल्ड और ज़ुकाम में प्रयोग की जाने वाली बाम का ये एक विशेष अव्यव है. सीने और माथे पर लगाने से बाम वाष्पित होती है और इसकी सुगंध नाक से अंदर जाकर सर्दी ज़ुकाम में राहत दिलाती है.
यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल बाजार में उपलब्ध है. इसका प्रयोग किसी तेल जैसे जैतून के तेल में मिलाकर मच्छर दूर रखने के लिए किया जा सकता है. ये तेल हाथ पैर में लगा लेने से मच्छर पास नहीं आते.
मुंह की दुर्गन्ध दूर करने के लिए और दांतो और मसूढ़ों से जीवाणु  दूर रखने के लिए माउथ वाश के रूप में एक कप पानी में एक से दो बूंद यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल और एक बूंद पिपरमिंट आयल की ,अच्छी तरह मिलकर माउथ वाश करने से दुर्गन्ध से मुक्ति मिलती है.
घरेलु इस्तेमाल के लिए अगर यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल बनाना हो तो यूकेलिप्टस की पत्तियों को थोड़ा सा कुचलकर कांच के जार में डाल दें और पत्तियों के वज़न से दो गुना जैतून का तेल या तिल का तेल जार में ऊपर से डाल कर अच्छी तरह उसका मुंह बंद करके किसी गर्म कमरे में दो से तीन दिन रखा रहने दें. फिर अच्छी तरह फ़िल्टर कर शीशी में रख लें. इस तेल को मच्छर भगाने, जोड़ो के दर्द, और सर्दी ज़ुकाम में लगाने में प्रयोग कर सकते हैं.
यद् रखे यूकेलिप्टस एसेंशियल आयल एक बाहरी प्रयोग की दवा है. इसको खाने में कदापि प्रयोग न करे, स्वास्थ्य को गम्भीर हानि हो सकती है.

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