रविवार, 31 दिसंबर 2017

मेहंदी

मेहंदी का दूसरा नाम हिना है. हिना नाम से ये हर्बल हेयर कलर में प्रयोग की जाती है. ये एक झाड़ीनुमा पौधा है. बीज और कटिंग दोनों से नये पौधे लगाए जाते हैं. इसकी पत्तियों को ही श्रंगार के लिए हाथों, पैरों और बालों में लगाने में इस्तेमाल किया जाता है.

मेहंदी की पत्तियां पीसने पर पीलापन लिए लाल रंग देती हैं. यही मेहंदी का विशेष रंग होता है. मेहंदी एक अच्छा ब्लड प्यूरीफायर है. यह खून को साफ़ करती है. स्किन के दाग धब्बे मिटाती है. मेहंदी की ताज़ी पत्तियां 10 ग्राम  ऐसे ही बिना पीसे नीम की  10 ग्राम पत्तियों के साथ  एक ग्लास पानी में  रात को भिगो दी जाती हैं और सुबह वह पानी खली पेट पीने से स्किन के दाग धब्बे, खुजली, जलन दूर हो जाती है. मेहंदी को इस प्रकार इस्तेमाल करने का मौसम अप्रैल से जून के मध्य है. क्योंकि मेहंदी का स्वाभाव ठंडा है. बरसात और जाड़े में मौसम में मेहंदी का अंदरूनी इस्तेमाल नुक्सान करता है. वे लोग जो नज़ला, खांसी के मरीज़ हैं उन्हें मेहंदी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
मेहंदी सौंदर्य प्रसाधन के रूप में बालों में लगाने से न केवल उन्हें बढ़िया रंग देती है बल्कि बालों की कंडीशनिंग भी करती है. मेहंदी बालों पर एक परत चढ़ा देती है जिससे बाल देखने में घने लगने लगते हैं. यह सर को भी ठंडा रखती है. गर्मी से जिनके सर में दर्द रहता हो, हाई ब्लड प्रेशर हो, तो मेहंदी का सर और हाथ पैर में लगाने से लाभ होता है. मेहंदी में मार्च से लेकर मई जून में फूल आते है. इसका फूल सफ़ेद होता है और गुच्छो में खिलता है. फूल भी त्वचा की बीमारियों में लाभकारी है. इसके फूल को छाया में सुखाकर मुंडी बूटी के फूलों के साथ सामान मात्रा में पानी में भिगोकर पीने से त्वचा कांतिमय हो जाती है और खून के खराबी ठीक हो जाती है. लेकिन मेहंदी का स्वाभाव ठंडा है. जो लोग ठन्डे स्वाभाव के हैं, नज़ला, ज़ुकाम, खांसी के मरीज़ हैं, जिनकी सांस फूलती है और जो दमे के बीमारी का शिकार हैं उनके लिए मेहंदी का प्रयोग खतरनाक हो सकता है.

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

गुले सुपारी

 गुले सुपारी या या सुपारी का का फूल किसी फूल का नाम नहीं है. ये एक पेड़ के गोंद का नाम है जिसे सेमर या सिल्क कॉटन ट्री कहते हैं. कई बार पुराने यूनानी नुस्खे बनाने वाले दवाएं ढूंढते फिरते हैं. कभी कभी दवाओं के बेचने वालों को भी दवाओं के विभिन्न नाम नहीं मालूम होते इसलिए दवाएं नहीं मिलती या फिर एक के स्थान पर दूसरी दवा मिलती है. नतीजा ये होता है की नुस्खा सही नहीं बनता और दोष नुस्खे के सर मढ़ा जाता है.

सिल्क कॉटन ट्री का वर्णन इसी ब्लॉग में पहले हो चूका है. ये इस पेड़ का गोंद है जो मोचरस के नाम से भी जाना जाता है. मोचरस एक गोंद है और जंगल में रहने वालों से सस्ता मिल जाता है ये गोंद के रूप में चिपचिपा और एडहेसिव होने के कारण बुक बाइंडिंग और चीजों को चिपकने के भी काम आता है. पेड़ से निकलने पर ताज़ा गोंद भूरे रंग का होता है. सूखने पर ये काला पड़ जाता है. बाजार में इस काले काले गोंद के बड़े और छोटे टुकड़े मिलते हैं.
इस गोंद में दूसरे पेड़ों  के गोंद की मिलावट की जाती  है. अक्सर इसमें सहजन का गोंद मिला होता है. कुछ लोग सहजन के गोंद  को ही मोचरस  बताकर बेच रहे हैं.
आइस क्रीम को गाढ़ा  बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है. कभी कभी गोंद ट्रैगाकंथ या गोंद कतीरा की जगह भी प्रयोग होता है.

मोचरस पुष्टकारी और शक्ति वर्धक के रूप में अन्य दवाओं के साथ मिलकर प्रयोग किया जाता है. ये ल्यूकोरिया और स्पर्मेटोरया की लिए लाभकारी है.
मोचरस को घी में भूनकर खाने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है. 

हरड़

हरड़ एक जानी मानी दवा है. ये तिरफला का अव्यव है. हरीतकी यानि हरड़, विभीतकी यानि बहेड़ा और  अमालकी यानि अमला ये मिलकर तिरफला बनाते हैं.
अरबी हकीमो ने हलीलज, बलीलज और आमलज का नाम दिया तो बाद में यही नाम हलीला, बालीला और आमला हो गया. बाजार में हरड़ की तीन वैराइटी मिलती हैं. काली हरड़ वो हरड़ है जो छोटी और काले रंग की
होती है. ये हरड़ के अविकसित और छोटे फल हैं जो खुद हरड़ के पेड़ों से गिर जाते हैं या तोड़कर सूखा लिए जाते हैं. हरड़ की दूसरी और बहुत आम वैराइटी छोटी हरड़ है. यही आम तौर से दवा में प्रयोग होती  है. इसी का मुरब्बा बनाया जाता है और तिरफले के अव्यव में प्रयोग होती है.
हरड़ का तीसरा प्रकार हलीला काबुली या बड़ी हरड़ कहलाता है. ये हरड़ के फल का पूर्ण विकसित रूप है. ये हरड़ उस समय पेड़ों से तोड़ी जाती है जब हरड़ पकने लगती है और पीली पड़  जाती है.
सूखने पर हरड़ के फलों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. ऐसे सूखे फल तीनो रूपों में बाजार में मिलते हैं. हरड़ का प्रयोग करने से पहले इसकी गुठली निकल दी जाती है और पीसकर पाउडर बना लिया जाता है.
हरड़ का स्वभाव कब्ज़ को दूर करने वाला है. तिरफला के रूप में कब्ज़ दूर करने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है. टैनिक एसिड और गैलिक एसिड होने के कारण हरड़ का प्रयोग दांतों को मज़बूत करता है. हलीला स्याह या काली हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से दांतो और मसूढ़ों के रोगों में लाभ होता है. मुंह की दुर्गन्ध जाती रहती है और मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है. हरड़ का नियमित इस्तेमाल आंतो के बहुत से रोगों और कैंसर से बचाता है.
तिरफला के रूप में हरड़ का इस्तेमाल आयु को बढ़ता है. जवानी को कायम रखता है. और सबसे बढ़कर यह कि रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है.
कब्ज़ के लिए रात को सोते समय एक या दो हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए. हरड़ का मुरब्बा बाजार में आसानी से मिल जाता है. घर पर भी सुखी हरड़ों को पानी में भिगोकर मुलायम होने पर शकर का पाग बनाकर मुरब्बा बनाया जाता है.
अजीब बात ये है की  हरड़ कब्ज़ दूर करने वाली दवा है लेकिन दस्त बंद करने में भी इसका  का प्रयोग किया जा सकता है. काली हरड़ को घी में भूनकर पाउडर बना लें और ठन्डे पानी के साथ इसका प्रयोग करे तो दस्त बंद हो जाते हैं.  

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