बुधवार, 31 अगस्त 2016

थूहड़

थूहड़ या सेंहुड़, डंडा थूहड़ आम तौर से पाया जाने वाला पौधा है. ये बाग़ बगीचों में बाढ़ के रूप में लगाया जाता है. इसका तन बेलनाकार और पत्ते लम्बे, आगे से गोलाई लिए चमच के आकर के होते हैं. ये कैक्टस के पौधों की वैराइटी का है. इसमें दूध या लैटेक्स पाया जाता है. काम पानी में भी ज़िंदा रह सकता है.
वर्षों से लोग इसके दूध को रेचक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. दूध में कब्ज़ को दूर करने का गुण है. इसका  दो से पांच बूँद दूध भुने चने के पाउडर में मिला कर गोली सी बना कर खाने से कब्ज़ दूर हो जाता है. दूध के प्रयोग के अन्य तरीके भी हैं. लेकिन कभी भी इसका ताज़ा दूध सीधे ज़बान पर नहीं डालना चाहिए. तेज़ स्वाभाव के कारण ये दाने और छाले पैदा कर सकता है. दूध त्वचा पर लग जाने से त्वचा पर घाव हो सकते हैं, लाल पड़ जाती है, दाने निकल आते हैं.

दूध का प्रयोग तेल में मिला कर और उस तेल को पाक कर और छान कर एक्ज़िमा त्वचा पर दाद, सोराइसिस पर लगाने में करते हैं. इससे त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं.
कान के दर्द में इसके पत्तों  को आग पर गर्म करके, जब पत्ते कुम्हला जाते हैं और मुलायम पद जाते हैं, उनका पानी या रास निचोड़ कर दो तीन बूँद कान में डालने से आराम होता है.
कच्चे फोड़ों को पकाने के लिए इसका पत्ता सरसों का तेल लगाकर, आग पर गर्म करके फोड़े पर बाँधने से फोड़े पाक कर फूट जाता है.
जाड़ों में एड़ियां फट  जाने पर  जब उनमें क्रैक पड़ जाते हैं. थोहड़ के गूदे /सैप को सरसों के तेल में पकाकर, और गूदे को तेल में अच्छी तरह मिक्स करके लगाने से लाभ होता है.
इसको बगीचों के बाढ़ पर लगाने से काँटों के कारण सांप आने का खतरा नहीं रहता. इसलिए इसे common milk hedge भी कहते हैं. 

रविवार, 28 अगस्त 2016

केबू का पौधा

केबू का पौधा वार्षिक पौधों की श्रेणी में आता है. इसके नये पौधे कंद से निकलते हैं. गर्मी के मौसम मई - जून में नमी मिलने पर कंद से इसका पौधा निकलता है. इसकी पत्तिया चक्राकार में व्यवस्थित होती हैं. इसमें सफ़ेद रंग के फूल आते हैं जो घंटी के आकर के होते हैं लेकिन मुड़े हुए होते हैं जैसे घंटी को किसी ने बीच में से मोड़ दिया हो.

इसका स्वाभाव गर्म है. ज़्यादातर इसकी जड़ प्रयोग की जाती है. हमोराइड के रोग को दूर करने में इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है. ये अत्यंत तीखे स्वाभाव की होने के कारण बिना चबाये पानी से बहुत काम मात्रा में निगल ली जाती है. लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले किसी हकीम, वैद्य की सलाह लेना ज़रूरी है.

जड़ अपने तेज़ स्वाभाव के कारण पेट के कीड़ों को मारकर निकल देती है. कुछ लोग इसकी जड़ या कंद को उबाल कर खाते भी हैं. लेकिन इसका प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है. 

शनिवार, 27 अगस्त 2016

तुलसी का पौधा

तुलसी का पौधा एक वार्षिक हर्ब है. ये काली और सफ़ेद दो वैराइटी में पायी जाती है. इसकी गंध दूर से ही पहचान में आ जाती है. इसे holy basil या पवित्र तुलसी का नाम दिया गया है.
ये बुखारों के लिए फायदेमंद है. इसमें जर्मस को दूर करने की शक्ति है. गले का दर्द, गले की खराश, गाला बैठ जाना, ज़ुकाम और बुखार में इसकी पत्तियों को पानी में उबाल कर पीते हैं. कुछ लोग इसे चाय के साथ भी मिला कर पीते हैं जिससे चाय सुगन्धित हो जाती है.

तुलसी के पत्तों को काली मिर्च के साथ पीसकर खाने से पुराने बुखारों में भी लाभ होता है. कीड़े पतिंगे आदि के काटने पर इसकी पत्तियों को काटे हुए स्थान पर रगड़ने से लाभ होता है और शरीर में सूजन नहीं आती.
इसके बीज बहुत बारीक होते हैं. तुलसी मूत्र विकारों और गुर्दे की पथरी में भी लाभकारी है. अपने diuretic गुण के कारण ये गुर्दे की सफाई करती है और यूरिक एसिड से छुटकारा दिलाती है.
इसकी पत्तियां चबाने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है और जीवाणुओं को मारने के गुण के कारण दांतों और मसूढ़ों की सेहत को बेहतर बनाती है.
इसके बीज डिसेंट्री में लाभ करते हैं.

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