शुक्रवार, 14 जून 2024

तपता सूरज सिमटते जंगल

जंगलों को बचाने की जो कवायद थी उसमें सारी दुनिया के देश फेल हो रहे हैं.  पिछले पांच वर्षों में केवल भारत में जंगलों का क्षेत्र लगभग साढ़े छ लाख हेक्टेयर कम हुआ है. ये ब्राज़ील के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा जंगलों के क्षेत्र का नुकसान  है.  


बढ़ती शहरी आबादी, तेज़ी से होता औद्योगीकरण सबसे पहले शहरी क्षेत्र और गांव की ज़मीनो और खेतों को खाते हैं. सिमटते हैं और उनकी जगह पर कालोनियां, सड़कें, हाइवे और फैक्ट्रियां लगती हैं. उसके बाद गांव की जनता का पलायन शुरू होता है. जब खेती किसानी खत्म हो जाती है. बाग़ बगीचे नहीं रहते तो गांव का किसान या तो मज़दूरी करने शहर का रुख करता है या फिर अपनी बची खुची ज़मीन बेचकर बाहर निकल जाता है. इससे न केवल शहरो पर अनावश्यक बोझ पड़ता है, उनकी आबादी तेज़ी से बढ़ती है. पानी के संसाधनों पर दबाव पड़ता है और जल संकट की समस्या भी पैदा होती है. 

जंगलों के इस कटान ने पर्यावरण को भी बहुत नुकसान पहुंचाया है. इसकी वजह से बारिशें कम हुई हैं. हरियाली खत्म हो जाने से बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पाता और फालतू बह जाता है जिससे न केवल बाढ़ की समस्या पैदा होती है बल्कि भूगर्भ जल संकट की समस्या भी पैदा होती है. 

पानी की अत्यधिक दोहन से, जमीन से ज़्यादा पानी निखोदे कालने से भूगर्भ जल संकट गहरा रहा है. पानी का लेवल कम होता जा रहा है. पानी के ओवर हेड टैंक के लिये  ज़्यादा गहरे बोरवेल बनाये जा रहे हैं. ज़मीन के अंदर का पानी खत्म हो जाने के बाद पानी के साधन बहुत कम रह जाएंगे. 

इसलिए जंगल बचाने की बहुत ज़रूरत है. 


   

बुधवार, 6 सितंबर 2023

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10 सेंटीमीटर के लगभग होती है. इस पौधे की कुछ रों पत्तियां सूखी होती हैं  कुछ हरी। इस पौधे का फैलाव इसकी जड़ों से होता है. स्पोर्स भी इसके फैलाओ में सहायक होते हैं जो हवा के साथ उड़कर दूर तक पहुंच जाते हैं और उचित वातावरण मिलने पर नए पौधे बनाते हैं. 

हिन्दी में इसे कुछ लोग मयूर शिखा भी कहते हैं क्योंकि इसके पत्ते कटे किनारीदार होते हैं. लेकिन मयूर शिखा का नाम कन्फूज़न पैदा करता है.  मुर्गा केस cocks comb celosia flower को भी मयूर शिखा उसके फूलों की वजह से कहा जाता है. 

ऊंची दीवारों और महलों के कंगरों पर उगने के कारण इसका नाम महल कंघी पड़ा है जो उचित है और इसके मिजाज से मिलता है. 

इसके पौधे सितंबर अक्तूबर में सूखने लगते हैं और दीवारों पर सूखे गुच्छे से रह जाते हैं. बरसात आने पर नए पौधे पुरानी जड़ों से फूट निकलते हैं. 

इसका प्रयोग वर्षों से देसी और घरेलू दवाओं में किया जा रहा है. इस पौधे में घाव को भरने की शक्ति है. इसलिए इसको पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं. ये एक कीटाणुनाशक का कार्य भी करता है. 

इसका स्वभाव ठंडा और तर है. इसलिए मुंह के छालों में कत्थे के साथ इसकी पत्तियां चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं. ल्यूकोरिया में इसकी चार पांच पत्तियों को पीसकर दूध के साथ दिन में दो बार लेने से आराम होता है. 

इसके आलावा भी इस पौधे को बच्चों के पेट के कीड़े मारने के लिए भी प्रयोग किया जाता है. पत्तियों का पेस्ट बनाकर चीनी के साथ बच्चे की आयु के अनुसार दो से चार ग्राम की मात्रा में खिलाया जाता है. ये खुराक दो से तीन दिन तक दी जाती है. इस दौरान ये देखा जाता है की बच्चे का पेट ठीक रहे और उसे कब्ज़ न हो. आवश्यकतानुसार रेचक दवा भी दी जाती है जिससे पेट के कीड़े मरकर बाहर निकल जाते हैं. 

जड़ी बूटी कोई भी हो और कितनी ही लाभदायक हो उसका प्रयोग किसी काबिल हकीम ये वैध की निगरानी में ही करें क्योंकि कई बार पौधे को पहचानने में गलतियां हुई हैं और कई बार मरीज के मिजाज से विपरीत होने के कारण गंभीर परिणाम उत्पन्न हुए हैं. 

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मंगलवार, 8 अगस्त 2023

कनक चम्पा / मुचकुन्द का वृक्ष

 कनक चम्पा , मुचकुन्द  एक बड़ा वृक्ष है. इसके पत्ते बड़े और कटे किनारों वाले, मैपल के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. बड़े होने के कारण इसके पत्ते टहनियों में इस प्रकार लटकते हैं की मुरझाये हुए से लगते हैं.


फरवरी से लेकर जुलाई महीने तक इसमें बड़े बड़े हलके पीले रंग के फूल खिलते हैं. ये फूल पीली चमेली जिसे आम तौर से चंपा कहा जाता है के फूलों के सामान होने के कारण ही इसका नाम कनक चम्पा पड़ा है. 

वैसे इसका नाम संस्कृत पुस्तकों में मुचकुन्द है. ये सारे भारत में पाया जाने वाला पौधा है और विविध पर्यावरण में आसानी से लग जाता है. इसकी लकड़ी का रंग लाल होता है. इसे इमारती लकड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है. 


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