बुधवार, 12 जनवरी 2022

भुइं आमला Phyllanthus Niruri Plant

भुइं आमला एक खर पतवार है. ये बरसात के मौसम में उगता है और इसको लोग तवज्जो नहीं देते बल्कि घास समझकर उखाड़कर फ़ेंक देते हैं. 

इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती होती हैं. पौधों की लम्बाई भी ज़्यादा नहीं होती. इसके पौधे कमजोर तने वाले एक से दो फुट ऊंचाई तक बढ़ते हैं. लेकिन इसकी एक खास बात ये है कि पौधा चाहे छोटा हो इसमें फल लगे होते हैं. ये फल पत्तियों के साथ छोटे आकार के दानों जैसे लगते हैं. इन्हें देखकर फल समझा भी नहीं जा सकता है. इनका आकार छोटे आमले जैसा होने के कारण इसे भुइं आमला या भूमि आमला कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम फाइलैंथस निरूरी है. ये इतना गुणकारी पौधा है कि इसे आयुर्वेद ने इस्तेमाल किया और इसके गुणों से परिचित होने पर होम्योपैथिक दवा के रूप में भी इस्तेमाल होता है. बाजार में  फाइलैंथस निरूरी मदर टिंक्चर मिल जाता है.  


भुइं आमला लिवर की बड़ी दवा है. लिवर का कोई भी रोग हो इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. चाहे लिवर में चर्बी बढ़ गयी हो, लिवर की खराबी से बिलरुबिन बढ़ गया हो, पीलिया हो गया हो, शरीर में सूजन आ गयी हो. इसके इस्तेमाल से ठीक हो जाता है. 
जलोधर के रोग में जिसमें प्लेट में पानी भर जाता है भुइं आमला बहुत कारगर है. इसके सब्ज़ी बनाकर थोड़ी मात्रा में खाने से पेट का पानी ठीक हो जाता है. अधिक सुरक्षित तरीका ये है की इसकी गोलियां जो देसी दवाई बनाने वाली कम्पनियां बेचती है लेकर इस्तेमाल करें या फिर ताज़ा पत्तियों का रस दो से चार चमच की मात्रा में पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार लें. 
लिवर के आलावा गुर्दे पर भी इसका बड़ा प्रभाव है. ये गुर्दे की पथरी तोड़कर निकाल देता है. गुर्दे में आक्जलेट जमा नहीं होने देता जिसके कारन पथरियां बनती हैं. यदि मूत्र संसथान के रोग हों और क्रेटिनिन और यूरिया बढ़ गया हो, गुर्दे का कार्य कमज़ोर पड़ गया हो तो इस दवा से काम लें. 
यदि होम्योपैथिक दवा के रूप में इस्तेमाल करना हो तो Phyllanthus Niruri Q के नाम से बाजार में मिल  जाएगा. इस दवा के 10 से 15 बूंद थोड़े पानी में मिलाकर दिन में दो से तीन बार प्रयोग करें. ये प्रयोग करने में भी आसान है और इसकी डोज़ ज़्यादा हो जाने का खतरा भी नहीं है. 
इस दवा को होम्योपैथिक दवा के रूप में आप पुरानी पेचिश के रोग में, लिवर की खराबी में, गुर्दे के रोगों में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि किसी रोग का इलाज चल रहा है तो इलाज न छोड़ें और डाक्टर की सलाह से इस दवा को इस्तेमाल करें. 
गांव के जानकार लोग जिगर के रोगों में इसकी सब्ज़ी बनाकर खाते हैं. इसके साथ वह एक अन्य खर पतवार जिसे बिसखपरा कहते हैं मिलाकर इस्तेमाल करते हैं. 
ये एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसकी लोगों ने क़द्र नहीं की. 


सोमवार, 1 नवंबर 2021

शिवलिंगी

शिवलिंगी एक बेल है जो पौधों और आस पास की चीज़ों पर चढ़ती है.  ये बेल बरसात में उगती है और जाड़े का मौसम आते आते इसके फल पक जाते हैं. 

इस बेल के पत्ते किनारों से कटे होते हैं और इसमें छोटे सफेद फूल खिलते हैं. इसको अपने फलों की सहायता से आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके फल  गोल होते हैं. हरे फलों पर सफ़ेद धारियां पड़ी होते हैं. ये धारियां भी कटी फटी होती हैं जैसे किसी पेंटर ने सुंदर आकृति बनाई हो. इनके फलों का आकार गोल और उनका व्यास लगभग 2 से 2 1 /2 सेंटीमीटर होता है. इसके फल पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं इन पर पड़ी सफ़ेद धारियां बहुत सुंदर लगती हैं. ऐसी लाल फलों वाली बेल को आप आसानी से पहचान सकते हैं. फल पकने पर चटक जाते है और शिवलिंगी के बीज गिर जाते हैं. अगर आप को इसके बीज इकठ्ठा करना हों तो पके फलों को सूखने और चटकने से पहले तोड़कर छाया में सुखाकर इसके बीज निकाल लें. 


इसके अंदर से जो बीज निकलते  हैं  इन बीजों के कारण ही इसे शिवलिंगी कहते हैं. इन बीजों की आकृति शिवलिंग के सामान होती है. फलों से गीले बीज निकालने पर ये चिपचिपे से पदार्थ से युक्त होते हैं. बीज सूखने पर ये चिपचिपा पदार्थ भी सूख जाता है और बीजों में जज़्ब हो जाता है. 

शिवलिंगी आयुर्वेद की बहुत महत्वपूर्ण दवा है. हकीम लोग शिवलिंगी की बारे में नहीं जानते थे और इसलिए इसका प्रयोग उनके नुस्खों में नहीं मिलता. ये दवा संतान प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है. ये भी कहा जाता है की इसके प्रयोग से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. गर्भधारण के लिए भी प्रयोग की जाती है, इसके अतिरिक्त गर्भ को क्षय होने से रोकने के लिए भी इसके बीजों का प्रयोग किया जाता है. 

शिवलिंगी की जड़ का प्रयोग बुखार उतारने के लिए भी किया जाता है. ये बेल जंगलों में बहुतायत से मिल जाती है. बीजों से भी से आसानी से उगाया जा सकता है. 

इसके बीज भी ढूंढ़ने की ज़रुरत नहीं है. अगर आप इसके बीजों को नहीं पहचानते हैं तो मार्केट में भी इसके बीज देसी दवा बेचने वाली दुकानों से आसानी से मिल सकते हैं. इसके आलावा ऑनलाइन भी मंगाए जा सकते हैं. 


गर्भधारण के तीसरे माह से इसका एक बीज काली गाय के दूध से प्रतिदिन नियमित सेवन करने से कहा जाता है की गर्भ सुरक्षित रहता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. लेकिन ये केवल एक प्रयोग है. 

शिवलिंगी के बीजों के प्रयोग से टेस्टेस्टेरॉन का लेवल बढ़ता है. ये परुषों के अस्वाद को दूर करती है और बेहतर कामोद्दीपक का कार्य करती है. 

शिवलिंगी एक बहुत कारगर दवा है, लेकिन इसका प्रयोग केवल वैद्य की निगरानी में ही करें. 

रविवार, 17 अक्तूबर 2021

नागबला

 नागबला एक झाड़ीदार पौधा है जो खेतों और सड़कों के किनारे ऊगा हुआ मिल जाता है. आयुर्वेद में इसका बहुत महत्त्व है. चार बालाओं में - बला, अतिबला, महाबला और नागबला प्रसिद्ध हैं जिनका प्रयोग दवाओं में किया जाता है.  अतिबला को खरैंटी भी कहते हैं. इसका एक नाम कंघी भी है क्योंकि इसके फल दांतेदार होते हैं. अतिबला का वर्णन इसी बलाग में किया गया है. 

नागबला की शाखाएं काली आभा लिए और मज़बूत होती हैं. इसी वजह से इसका नाम नागबला रखा गया है. या फिर ये की इसके प्रयोग से नाग जैसे फुर्ती और बल मिलता है. 


इसमें सफेद रंग के फूल खिलते हैं जिनकी पंखुड़ियां बारीक़ होती हैं. इनमें छोटे फल लगते हैं जो पककर पीले, लाल पड़ जाते हैं. ये फल मीठे होते हैं और लोग इन्हें चाव से खाते हैं. 

दवाओं में इसकी जड़ और पत्तियों का प्रयोग किया जाता है.  ये दिल को ताकत देता है और हार्ट अटैक से बचाता है. इसके पत्तों के काढ़े के प्रयोग से अर्जुन की तरह ही फ़ायदा होता है. 

नागबला की पतियों को पीसकर तेल में मिलकर थोड़ा पकाकर जोड़ों पर मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. साथ ही इसी जड़ की पाउडर को एक से तीन ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह शाम खाने से गठिया को रोग में लाभ होता है. 

लेकिन किसी भी जड़ीबूटी का प्रयोग हकीम या वैद्य की सलाह से ही करना चाहिए. किसी भी पौधे का स्वयं इस्तेमाल नुकसानदेह हो सकता है. 




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