नागबला एक झाड़ीदार पौधा है जो खेतों और सड़कों के किनारे ऊगा हुआ मिल जाता है. आयुर्वेद में इसका बहुत महत्त्व है. चार बालाओं में - बला, अतिबला, महाबला और नागबला प्रसिद्ध हैं जिनका प्रयोग दवाओं में किया जाता है. अतिबला को खरैंटी भी कहते हैं. इसका एक नाम कंघी भी है क्योंकि इसके फल दांतेदार होते हैं. अतिबला का वर्णन इसी बलाग में किया गया है.
नागबला की शाखाएं काली आभा लिए और मज़बूत होती हैं. इसी वजह से इसका नाम नागबला रखा गया है. या फिर ये की इसके प्रयोग से नाग जैसे फुर्ती और बल मिलता है.
इसमें सफेद रंग के फूल खिलते हैं जिनकी पंखुड़ियां बारीक़ होती हैं. इनमें छोटे फल लगते हैं जो पककर पीले, लाल पड़ जाते हैं. ये फल मीठे होते हैं और लोग इन्हें चाव से खाते हैं.
दवाओं में इसकी जड़ और पत्तियों का प्रयोग किया जाता है. ये दिल को ताकत देता है और हार्ट अटैक से बचाता है. इसके पत्तों के काढ़े के प्रयोग से अर्जुन की तरह ही फ़ायदा होता है.
नागबला की पतियों को पीसकर तेल में मिलकर थोड़ा पकाकर जोड़ों पर मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. साथ ही इसी जड़ की पाउडर को एक से तीन ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह शाम खाने से गठिया को रोग में लाभ होता है.
लेकिन किसी भी जड़ीबूटी का प्रयोग हकीम या वैद्य की सलाह से ही करना चाहिए. किसी भी पौधे का स्वयं इस्तेमाल नुकसानदेह हो सकता है.
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