सोमवार, 10 मई 2021

एक नीम के पौधे की कहानी Story of an Azadirachta indica sapling


 नीम के फलों को निबोली, निबौरी, निमकौली आदि कहते हैं. ये फल छोटे होते हैं. नीम का स्वाद कड़वा होता है इसलिए ये फल भी कच्चे होने पर कड़वे होते हैं. लेकिन पकने के बाद इनके फलों में कुछ मिठास आ जाती है. ये मीठापन भी थोड़ी सी कड़वाहट लिए होता है. लेकिन इन्हें आसानी से खाया जा सकता है. 

इन फलों को कौवे और अन्य चिड़ियाँ भी चाव से खाती हैं. चमगादड़ भी इन फलों को खाते हैं. ये परिंदे फल खाकर गुठलियां इधर उधर गिरा देते हैं और इस प्रकार नीम के बीजों का बिखराव होता है जो प्रकृति का नियम है. नेचर ने बीजों के बिखराव के लिए बहुत से साधन बनाये हैं. इनमे मनुष्य और जानवर मुख्य रूप से फलों को खाकर उनके बीज फेंक देते हैं और उचित समय आने पर इन बीजों से पौधे जमते हैं. 

ऐसे ही नीम का एक पौधा मेरे बंगले के में गेट के पास रास्ते के किनारे उगा. ये किनारे की ईंटों की पट्टी से सटा हुआ था और जब बड़ा हुआ तो कई बार पैरों से कुचला गया. लेकिन जब तक बरसात का सीज़न रहा इस पौधे में बार बार नए पत्ते निकल आते थे. बरसात समाप्त होने पर ये पौधा साइड की दीवार से लगा रहा. इसकी बढ़वार रुक चुकी थी. 

इस प्रकार तीन चार साल गुज़रे. जब बरसात आती पौधा बढ़ना शुरू कर देता. लेकिन बार बार कभी पैरों से कुचला जाता और कभी माली उसे काट देता. इस नीम के पौधे को किसी ने कोई अहमियत नहीं दी. नीम उत्तर प्रदेश में बहुतायत से पाया जाता है. एक समय जब घर बड़े बड़े होते थे हर घर में नीम का पेड़ ज़रूर होता था. 

कुछ साल बाद बंगले के मुख्य रस्ते को चौड़ा करने का नंबर आया. ये भी बरसात का मौसम था. नीम का पौधा फिर से बढ़ने लगा था. इतने सालों में उसकी जड़ मोटी हो चुकी थी. नीम की जड़ें बहुत गहराई तक जाती हैं. इस पौधे ने अपनी जड़ें रस्ते की ईंटों की नीचे गहराई तक फैला ली थीं. 

जब मज़दूरों ने रस्ते को चौड़ा करने के लिए साइड की ईंटें उखाड़ीं तो मैंने कहा इस नीम के पौधे को न काटना. मैंने शौच कि तीन चार साल से ये नीम का पौधा ज़िंदा रहने और बढ़ने की कोशिश कर रहा है. इसे काटना ठीक नहीं होगा. क्यों न इसे बंगले में किसी ठीक जगह पर लगा दिया जाए. 

शाम को जब मज़दूर चले गये तो मैंने इस नीम के पौधे को निकालकर दूसरी जगह शिफ्ट करने का इरादा किया. मैंने खुरपी की सहायता से उसकी जड़ निकालने के लिए गहरा गढ़ा किया. मेरा विचार था की छोटा सा पौधा है इसकी जड़ ज़्यादा गहरे में नहीं होगी. गढ़ा काफी गहरा खोदने पर भी उसकी जड़ और ज़्यादा गहराई में दिखाई दी जो रस्ते की ईंटो के नीचे दबी हुई थी. 

कोशिश करने पर इस पौधे के पूरी मेन जड़ नहीं निकल पायी और टूट गयी. 

नीम ऐसा पौधा है जो अपनी मुख्य जड़ सीधी गहराई तक फैलता है. जितना नीम ऊपर होता है उसकी जड़ दो गुनी अंदर होती है. 

मैंने जड़ टूट जाने के दुःख के साथ इस नीम के पौधे को बंगले की बाउंड्री वाल के पास लगा दिया. इस पर मेरी जीवन संगनी ने एतराज़ भी किया: यहाँ कहाँ नीम लगा रहे हो ये कोई ठीक जगह नहीं है. 

मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और नीम का पौधा लगाकर उसकी जड़ में थोड़ा सा पानी डाल दिया और नतीजे का इंतज़ार करने लगा कि नीम का पौधा जिसकी जड़ टूट चुकी है सर्वाइव करता है या नहीं. 

पहले तो इस पौधे को एक झटका लगा उसके पत्ते मुरझाने लगे,. लेकिन कुछ दिन के बाद उसमें नये पत्ते निकले और पौधा जो रास्ते के किनारे तीन चार साल से सर्वाइव करने की जद्दो -जेहद कर रहा था तेज़ी से बढ़ने लगा. 

दो महीने में पौधा खूब बढ़ गया अब वह बंगले की बाउंड्री वाल से लगभग एक फुट ऊंचा हो गया था और दूर से दिखाई देने लगा था. 

एक दिन जब सुबह 6 बजे मैं और मेरी पत्नी लान में लगे पौधों को निहार रहे थे किसी महिला ने बाउंड्री वाल के उस तरफ से नीम के पौधे को तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया. मेरी पत्नी ने पूछा क्या है ?

वह औरत बोली नीम की दातुन तोडना है. 

उसने  कहा इस पौधे में  एक ही तो टहनी है वह भी तोड़ लोगी तो इसमें क्या बचेगा और ये पौधा कैसे बढ़ेगा. 

औरत चली गयी. यदि हम लोग उसे न देखते तो उसने नीम के पौधे का सत्यानाश कर दिया होता. 

अब मैंने इस पौधे को दोबारा गहरी खुदाई करके निकला कि इसे दूसरी जगह लगाया जाए. अब नीम के जड़ें और गहरी पहुंच चुकी थीं. गहरी खुदाई करने के बाद भी जड़ फिर से पूरी नहीं निकल सकी और टूट गयी. 

उस पौधे के अब बंगले के पिछले हिस्से में लगा दिया. बरसात गुज़र चुकी थी. दोबारा स्थान बदलने से उसे फिर झटका लगा और पौधा मुरझा गया. सर्दी का मौसम आया. उस पौधे के सब पत्ते झाड़ चुके थे. टहनियां सूखी लग रहीं थीं. हमने सोचा पौधा सूख गया है. 


फरवरी मार्च में पौधे में फिर से नयी पत्तियां निकलीं. वह पौधा फिर से हरा भरा हो गया. हम लोग बहुत खुश हुए. 

इस तरह दो साल गुज़रे. पौधे ने फिर से बढ़वार पकड़ ली थी. हमें उम्मीद थी की आने वाले तीन चार साल में वह एक छोटा वृक्ष बन जाएगा. 

लेकिन! इसी अप्रैल की बात है. मेरे बंगले के पीछे वाले क्वार्टर में माली ने सूखे पत्ते इकठ्ठा किये और उनमें आग लगा दी. ये पत्ते नीम के पौधे के करीब में थे. और जिस क्यारी में ये नीम का पौधा लगा है उसमें भी सूखे पत्ते जमा थे. माली आग लगाकर चला गया. आग को बिना देखे भाले छोड़ना बहुत नुकसानदेह होता है. पत्ते जलते जलते आग नीम के पौधे तक पहुंच गयी और क्यारी में बहुत से पौधे जल गए. 

अब ये नीम का पौधा झुलसा खड़ा है. बरसात आने वाली है. देखते हैं ये फिरसे हरा भरा होता है या नहीं. 

इस नीम के पौधे का जीवन संघर्ष भरा है. 

 

नरकचूर Long Zedoary

हैं  नरकचूर दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसको हकीम  ज़रम्बाद कहते हैं. आम लोग इसे सफ़ेद हल्दी के नाम से भी जानते हैं. कुछ लोग ज़रम्बाद को काली हल्दी समझते हैं. काली हल्दी एक अन्य पौधा है. नरकचूर की गांठे  अदरक से मिलती जुलती होती हैं. इसे मुख्यत: पेट की दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Curcuma zedoaria है. इसे Long Zedoary भी कहते हैं. 

ये पौधा हल्दी की तरह दिखाई  है. इसके कंद को दवा में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे में छोटी और बड़ी दो तरह की कंद पायी जाती हैं. छोटी कंद को साबुत उबालकर और बड़ी कंद को टुकड़ों में काटकर उबालकर सूखा लिया जाता है और यही बाजार में नरकचूर, मादा कचूर, कपूर कचरी, और  ज़रम्बाद  के नाम से मिलती है. दवाई गुण छोटे और बड़े दोनों कंद के सामान हैं और इनमें कोई फर्क नहीं है. 

इसको बदहज़मी, और पाचन शक्ति बढ़ाने में प्रयोग किया जाता है. ये जिगर के लिए टॉनिक है. जॉन्डिस में इसका पाउडर 2 - 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में 3 बार इस्तेमाल करने से फायदा होता है. डिसेंट्री में भी इसका उपयोग बेहतर काम करता है. इसके इस्तेमाल से पुरानी डिसेंट्री ठीक हो जाती है. 


नरकचूर फेफड़ों में जमे बलगम को निकालता है. त्वचा को निखारता  है. इसके पाउडर को दूध और बेसन के साथ पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाने से दाग धब्बे मिट जाते हैं और त्वचा की झाइयां भी ठीक हो जाती हैं. 


शनिवार, 8 मई 2021

जरिश्क zarishk

जरिश्क किशमिश से मिलता जुलता भूरे, काले रंग का एक फल है जिसका प्रयोग यूनानी दवाओं में किया जाता है.  इसका पौधा  बर्बेरेडेसी (Berberidaceae) कुल का पौधा है. इस पौधे की लगभग 500 जातियां पायी जाती हैं. 

जरिश्क, BERBERIS ARISTATA पौधे से प्राप्त की जाती है. इसके पौधे को दारुहल्दी या दारहल्द का पौधा भी कहते हैं. इसकी लकड़ी पीले रंग की होती है. इसके टुकड़े सुखी अवस्था में मार्किट में दारहल्द के नाम से मिल जाते हैं. हल्दी से इसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है. केवल इसके पीले रंग के कारण इसे दारहल्द कहते हैं. दार का अर्थ फ़ारसी भाषा में  लकड़ी होता है. इसी नाम को लोगों ने दारुहल्दी कर दिया है. 

दारहल्द को पानी में भिगोकर और उबालकर उसका सत निकला जाता है. जिसे आग पर सुखाकर गाढ़ा कर लिया जाता है. इस सत को जो मार्किट में टुकड़ों की शक्ल में मिलता है रसौत कहते हैं. 

ये पौधा अमरीका से लेकर ईरान, भारत के पहाड़ी इलाकों, नेपाल में पाया जाता है. लेकिन देसी और यूनानी दवाओं में जिस जरिश्क का उपयोग होता है उसका मुख्य स्रोत ईरान है. ईरान में खुरासान का इलाका जरिश्क की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है और यहीं से प्रत्येक वर्ष जरिश्क दुनिया की अन्य भागों में सप्लाई किया जाता है. 


इसका पौधा एक कांटोंदार झड़ी है जो पहाड़ी ढलानों पर उगती है और इसे सुंदरता के लिए बागों के किनारे भी लगाया जाता है. इसके फूल पिले रंग के गुच्छों में खिलते हैं. इसके गुच्छे अमलतास के फूलों के गुच्छो की तरह लटकते हैं. उसके बाद इसमें फल लगते है जो पककर लाल हो जाते है और सूख क्र भूरे, काले हो जाते हैं. इसे पहाड़ी किशमिश या काली किशमिश भी कहा जाता है. 

जरिश्क  का उपयोग दवाओं के आलावा खाने की डिश में किया जाता है. ईरान में ये मसालों की तरह प्रयोग किया जाता है. जरिश्क पुलाव एक मशहूर डिश है जिसमें चावल, चिकेन के साथ जरिश्क का प्रयोग होता है. जरिश्क का मज़ा खट मिट्ठा होता है. 

जरिश्क जिगर की गर्मी को शांत करता है और इसमें पित्त ज्वर नाश करने की शक्ति है. इसलिए हकीम जरिश्क को बुखार दूर करने की दवाओं में शामिल करते हैं. 

 इसके दूसरी वैराइटी जिसे BERBERIS VULGARIS कहते हैं मुख्यत: यूरोप, अमरीका का पौधा है. इसका टिंक्चर होम्योपैथी में गुर्दे और पित्ताशय की पथरी निकलने में किया जाता है.  

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