रविवार, 2 अगस्त 2020

पपीता Papaya

पपीता ऐसा फल है जिसे सभी जानते हैं. इसका पेड़ सीधा बढ़ता है. ऊपरी भाग पर बड़े बड़े पत्ते लगते हैं. इन्हीं पत्तों के बीच तने पर फल और फूल लगते हैं. पपीते में आम तौर से शाखें नहीं होतीं.  कभी कभी पपीते के पेड़ में शाखें भी निकलती हैं और उनमें फल भी लगते हैं.
पपीते का तना कमज़ोर होता है. लगाने के एक वर्ष के भीतर ही इसमें फल आने लगते हैं. फल तने में चरों ओर लगते हैं. कुछ लोग इसे अरण्ड ख़रबूज़ा भी कहते हैं. क्योंकि इसके पत्ते अरण्ड से मिलते जुलते होते हैं.
अजीब बात है की पपीते के पौधे तीन तरह के होते हैं. एक नर पौधे जिसमें केवल फूल आते हैं और फल नहीं लगते. दुसरे वह जिनमे छोटे फल लगते हैं लेकिन ये मादा पौधे होते हैं. इनको पॉलेन न मिलने से फल बढ़ते नहीं हैं. या तो छोटे ही रहते हैं या सूखकर गिर जाते हैं. पपीते का तीसरे प्रकार का पौधा द्विलिंगी होता है. इनमें फल लगते हैं और बीज बनते हैं. बागों में यही पौधे लगाए जाते हैं.
पपीते के अंदर छोटे काले बीज होते हैं. ये बीज काली मिर्च के आकर के लेकिन कुछ लम्बे, अंडाकार होते हैं. काली मिर्च गोल होती है. काली मिर्च में पपीते के बीजों की मिलावट आसानी से बीजों के आकार से पहचानी जा सकती है. पपीते के गीले बीज चिपचिपे आवरण से ढके रहते हैं.

पपीता दूध वाला पेड़ है. इसका पत्ता तोड़ने पर या फल में खुरचने पर दूध निकलता है. ये दूध या लेटेक्स मीट को मुलायम करने और गलाने में उपयोगी है. इसी गुण के कारण पपीता पाचन करने में मददगार साबित होता है. पपीते और अदरक का चूरन एक प्रसिद्ध दवा है जो खाने के बाद खाने से बदहज़मी, खट्टे डकार, एसिडिटी और गैस बनने की समस्या से छुटकारा दिलाता है.
पपीते को चूरन के रूप में उपयोग करने के लिए कच्चे पपीते को पतले स्लाइस में काटकर सुखा  लिया जाता है. फिर इसका पाउडर बनाकर चूरन में डाला जाता है. इसी प्रकार सुखी अदरक जिसे सोंठ कहते हैं, पाउडर बनाकर चूरन में डालते हैं. इसके साथ चूरन में डाली जाने वाले अन्य मसाले/दवाएं जैसे काला नमक, हरड़, सेंधा नमक, आदि डालकर चूरन बनाया जाता है.

पपीते का लेटेक्स दूध में डालने पर उसे फाड़ देता है.  पनीर बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
कच्चे पपीते की सब्ज़ी भी बनायीं जाती है. पपीता जिगर के लिए लाभकारी है. पका पपीता न सिर्फ पौष्टिक है बल्कि लिवर/जिगर के सेहत के लिए अच्छा है. ये जिगर की सूजन घटाता है. लेकिन पपीता स्वयं देर में पचता है. इसलिए जॉन्डिस के मरीज़ों को पका पपीता थोड़ी मात्रा में ही सेवन करना चाहिए. अधिक सेवन से अपच हो सकता है और मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है.
इसके दूध का प्रयोग सीधा खाने और लगाने में न करें. ये बहुत हानिकारक है. लगाने से स्किन पर एलर्जी हो सकती है. खाने में प्रयोग करने से जी मिचलाना, उलटी, डायरिया आदि की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

हंसराज एक जड़ी बूटी है

हंसराज किसी चिड़िया का नाम नहीं है. हर्ब्स की दुनिया में ये एक जड़ी बूटी है जो गीले  और नमी वाले स्थानों पर उगती है.   इसे छायादार और नमी वाली जगहें पसंद हैं. इसकी पत्तियां बारीक़, छोटी और डंडियां डार्क ब्राउन रंग की होती हैं. पत्तियों का रंग भी गहरा हरा, छोटी दूधी के पत्तों के रंग से मिलता हुआ होता है.
इसको हकीम और आयुर्वेद जानने वाले समान रूप से इस्तेमाल करते हैं. ये नज़ला ज़ुकाम, खांसी के लिए दिए जाने वाले काढ़े या जोशांदे का एक मुख्य अवयव है. पहले इसके स्थान पर गुलबनफ्शा प्रयोग होता था. लेकिन हंसराज के अपने गुण हैं.
इसे हकीम परसियाओशां, शेअर-उल-अर्ज़ या फिर शेअर-उल-जिन्न लिखते हैं. इसे हंसपदी के नाम से भी जाना जाता है.


हंसराज का प्रयोग नज़ला, ज़ुकाम, खांसी में बलगम निकालने के अलावा बुखार को दूर करने में भी किया जाता है. हंसराज एक अच्छा लिवर टॉनिक है. ये लिवर की सेहत को ठीक रखता है. पित्त के प्रवाह को ठीक करता है. पित्ते की पथरी को घुला देता है.
गुर्दे की पथरी में भी हंसराज का काढ़ा अन्य दवाओं के साथ इस्तेमाल करने से गुर्दे की पथरी टूटकर निकल जाती है.
हंसराज बालों को बढ़ाता है. इसका तेल बनाकर लगाने से बाल बढ़ते और मज़बूत होते हैं. ये गंजेपन को ठीक करता है.
हंसराज में सभी वाइटल अंगों को ठीक रखने के गुण हैं. ये चमत्कारी बूटी है. दवा में इसका इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा ही. ये दिल की सेहत को भी ठीक रखती है. डायबेटिस से बचाती है. इसके इस्तेमाल से कैंसर नहीं होता.
अजीब बात है की हंसराज जहां सर्दी की बीमारियों में लाभदायक है. कोल्ड और कफ में इसका जोशांदा तुरंत गर्मी देता है. वहीँ दूसरी और यदि गर्मी से सर  में दर्द हो रहा हो तो  इसकी ताज़ी पत्तियों के पेस्ट को माथे पर लेप करने से ठीक हो जाता है.
ये बहुत कमाल  की जड़ी बूटी  है. सही हाथों में चमत्कार दिखाती है.



गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बरगद और अमरत्व

 बरगद ऐसा वृक्ष है जो कभी नहीं मरता. ये एक अजर अमर वृक्ष है. इसे अगर प्रकृति की शक्तियां और मानव नष्ट न करे तो ये हज़ारों साल तक बाकी रह सकता है. बरगद और अमरत्व साथ साथ चलते हैं. कहा जा सकता है कि नेचर में अगर किसी वृक्ष ने अमरत्व प्राप्त किया है तो वह बरगद है. बेलों में अमरत्व प्राप्त करने वाली गुर्च की बेल  है. इसीलिए गुर्च का एक नाम अमृता भी है.
इसके अलावा भी ऐसे पौधे और पेड़ हैं जिनमें अमरत्व के के गुण पाए जाते हैं. लेकिन इन दो पौधों को  लोग  आम तौर से जानते और पहचानते हैं. इन पौधों में जीवन दायिनी और पुनरुत्पादन शक्ति अन्य पौधों के मुकाबले तेज़ होती है.
गुर्च और बरगद दोनों में हवाई जड़ें निकलती हैं जो पौधे को नया जीवन और सहारा देती हैं. बरगद लेटेक्स या दूध वाला पेड़ है जबकि गुर्च में दूध नहीं होता. गुर्च में एक चिपचिपा पदार्थ होता  है. यही दूध बरगद को और चिपचिपा पदार्थ गुर्च को सूखने से बचाता है. पानी न मिलने पर भी ये पौधे ज़िन्दा रहते हैं.
बरगद के पेड़ से हवाई जड़ें निकलकर लटकती हैं. इन्हीं जड़ों को बरगद की जटाएं कहते हैं. जैसे बरगद कोई आदमी हो और ये जटाएं उसके बाल हों. इन्हीं जड़ों को बरगद की दाढ़ी भी कहते हैं.
ये जड़ें या जटाएं नीचे की ओर आकर ज़मीन में चली जाती हैं. अजीब बात ये है की जो भाग ज़मीन के अंदर चला जाता है वह जड़ का काम करता है और ऊपरी भाग तना बन जाता है. यही तना मोटा हो जाता है. ये शाखाओं को सहारा भी देता है. बिलकुल इसी तरह जैसे बिल्डिंग में पिलर होते हैं. मूल वृक्ष नष्ट भी हो जाए तो ये बहुत से पिलर पेड़ को बचाए रखते हैं. इस प्रकार ये पेड़ घना और मोटा होकर जड़ों और पिलर के सहारे फैलता  जाता है और एक बड़ा एरिया कवर कर लेता है.


बरगद के पेड़ को बोहड़, और बढ़ या बड़ का पेड़ भी कहते हैं. इसके फल पकने पर लाल हो जाते हैं. इनका आकार गूलर के फलों के आकार से छोटा होता है. ये फल चिड़ियां और बन्दर चाव से खाते हैं. ये परिंदे बरगद के बीजों को दूर तक बिखरने में मदद करते हैं. बरगद के पेड़ इन्हीं बीजों से जमते हैं.
बरगद एक दूध वाला वृक्ष है. इसका दूध, फल, जटा सब दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. लेकिन इनका प्रयोग आम तौर पर नहीं किया जाता. अजीब बात ये है कि दवाई के रूप में इसका प्रयोग कम ही किया गया है.
कहते हैं की बरगद के पेड़ के नीचे बैठने और सोने से शरीर दुबला हो जाता है. बरगद की सूखी जटा अगर पानी में भिगो दी जाए और इन जटाओं का पानी, जब भी पानी पीना हो, प्रयोग करें तो भी शरीर दुबला हो जाता है. लेकिन किसी भी दवा के प्रयोग से पहले  चिकित्सक की सलाह ज़रूरी है.
बरगद की जटाओं को तेल में पकाकर, छानकर  ये तेल बनाकर सर में लगाने से बाल बढ़ते हैं ऐसा विश्वास प्रचलन में है. लेकिन कुछ लोगों के इसके प्रयोग से गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है और सर में जितने बाल थे वह भी झड़ गये. इसलिए किसी भी दवा/ जड़ी बूटी/पेड़ पौधे का बिना किसी हकीम या वैद्य की सलाह के प्रयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है. पुरुषों की समस्याओं में बरगद का दूध बताशे में भरकर खाने को बताया जाता है. कई लोगों को इसके इस्तेमाल से पेट में दर्द और डिसेंट्री की शिकायत हो गयी है. एक व्यक्ति ने दांत के दर्द के लिए बरगद का दूध खोखले दांत में भर दिया. मसूढ़े सूज गए और ऑपरेशन कराना पड़ा.
पौधों का दूध अपने गुणों में  सबसे ज़्यादा असरदार होता है. चाहे वह बरगद का दूध हो, आक  का दूध हो या थूहड़ का. इसलिए पौधों के दूध का प्रयोग बहुत सावधानी और जानकारी चाहता है.
ऐसे प्रयोगों से सावधान रहें क्योंकि जीवन अनमोल है.

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