शनिवार, 25 जुलाई 2020

दक्षिण में नारियल

नारियल भारत के दक्षिणी भाग का एक मुख्य वृक्ष है. दक्षिण में नारियल और उत्तर में आम बहुतायत से पाया जाता है. नारियल के फल को ही नारियल कहते हैं. इसे गोला, गोलागरी, खोपरा, कोपरा आदि नामों से भी जाना जाता है. कोपरा अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिससे बिगड़कर खोपरा बना है.
कच्चे नारियल में पानी होता है जिसे गर्मी के ड्रिंक के रूप में पिया जाता है. नारियल पर तीन आवरण होते हैं. पहला चिकना छिलका, इसके अंदर नारियल की जटा जो रेशेदार होती है. उसके बाद लकड़ी जैसा सख्त छिलका और उसके अंदर नारियल की गिरी या गूदा होता है. इस गिरी के अंदर पानी भरा होता है जिसका स्वाद मीठा होता है.
सूखे नारियल का प्रयोग मेवे के रूप में किया जाता है. इसमें बहुत अच्छी मात्रा में तेल होता है. नारियल का तेल खाने और लगाने के काम आता है.
दवाई के रूप में नारियल दिमाग को ताकत देता है. पेट के रोगों के लिए फायदेमंद है. जहां आंतों में खुश्की हो वहां नारियल के साथ मिश्री खाना बहुत फायदा करता है. कच्चे नारियल का इस्तेमाल एसिडिटी में फायदा करता है. दक्षिण के लोगों को जो नित्य खाने में किसी न किसी रूप में नारियल इस्तेमाल करते हैं एसिडिटी की प्रॉब्लम नहीं होती.
जिनके दिमाग में खुश्की हो, नींद न आती हो, भूलने की बीमारी हो वे अगर वैसे ही नित्य एक से दो इंच के नारियल का टुकड़ा रोज़ सुबह शाम खाएं, या फिर नारियल का हलवा अन्य मेवों जैसे बादाम, काजू आदि के साथ बनाकर खाएं तो इस बीमारी से छुटकारा मिल जाता है.
चावल से बनी कोई भी डिश खाने के बाद नारियल खाने से चावल आसानी से हज़म हो जाता है.
नारियल और सौंफ का इस्तेमाल खाना खाने के बाद एसिडिटी नहीं होने देता और ये प्रयोग आँखों की जनरल सेहत के लिए भी उपयोगी है.
नारियल के तेल की मालिश करने से शरीर पर झुर्रियां नहीं पड़तीं और बुढ़ापे का असर जल्दी नहीं होता.
खुजली में नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाने से लाभ होता है.
नारियल का स्वाभाव ठंडा और तर है. जिन लोगों का मिज़ाज ठंडा है उनके लिए नारियल का प्रयोग सावधानी से ही उचित है.
कई लोगों को सर में नारियल का तेल डालने से नज़ला ज़ुकाम हो जाता है. ऐसे लोगों को नारियल के प्रयोग से बचना चाहिए.
दवाओं में नारियल का प्रयोग करने के लिए अन्य गर्म दवाएं मिलाकर नारियल के सवभाव को समरूप कर लिया जाता है.
नारियल बहुआयामी पौधा है. व्यापारिक तौर पर इसका बड़ा महत्त्व है. घर की छत में छप्पपर छाने के लिए नारियल के पत्तों का इस्तेमाल होता है. इसका छिलका जलाने के काम आता है. जटा से रस्सी, आदि बनायीं जाती है. खेती बागबानी के लिए कोकोपीट, नारियल का तेल, उसका बुरादा, नारियल की खली सब बड़े व्यापारिक महत्त्व की चीज़ें हैं.
नारियल ऐसा पौधा है जिसका सामाजिक जीवन और व्यापार में बहुत महत्त्व है. 

रविवार, 19 जुलाई 2020

धनिया

धनिया मसालों में प्रयोग होता है. शायद ही कोई डिश ऐसी हो जिसमें धनिया पाउडर या हरे धनिये का प्रयोग न होता हो. धनिया को सुगंध के लिए प्रयोग किया जाता है. धनिया जाड़ों की फसल है. इसे बरसात ख़त्म होने के बाद बोया जाता है. अक्टूबर से मार्च तक इसकी हरी पत्ती बहुतायत से मिलती है. फिर धनिये में बीज लग जाता है. इसके पौधे सूख जाते हैं. और धनिया के बीज को इकठ्ठा कर लिया जाता है.
धनिया का स्वभाव ठंडा है. खाने में इस्तेमाल होने वाले दुसरे मसाले जैसे हल्दी, तेजपात, काली मिर्च, लाल मिर्च  आदि गर्म स्वभाव के हैं. इसका खाने में इस्तेमाल मिर्च से होने वाले नुकसान को बचाता है. धनिया पेट में होने वाले अल्सर से सुरक्षा प्रदान करता है.
गर्मी से होने वाले सर दर्द में धनिये की हरी पत्ती का लेप माथे पर करना बहुत लाभकारी है. जिन लोगो का मिज़ाज गर्म हो और गर्मी के कारन वे परेशान रहते हों, उनके लिए धनिये की पत्ती पानी में घोटकर पिलाने से गर्मी से जनित रोगों से निजात दिलाती है.
जब धनिये की पत्ती उपलब्ध न हो तो सूखा धनिया पाउडर भी यही लाभ करता है. 

नीबू को कौन नहीं जानता

नीबू को कौन नहीं जानता और कौन ऐसा है जिसने नीबू कभी इस्तेमाल नहीं किया. नीबू एक जाना माना  फल है. ये ऐसा पौधा है जिसकी बहुत सी किस्में हैं.
आम तौर पर जो नीबू बाजार में मिलता है उसे देसी नीबू या कागज़ी नीबू कहते हैं. कागज़ी इस लिए की इसका छिलका कागज़ के समान पतला होता है. इसका रंग हल्का पीला होता है जो खुद में नीबू के रंग के नाम से प्रसिद्ध है.
नीबू की दूसरी किस्में - जम्भीरी नीबू जो बड़े आकार के होते हैं. बारामासी नीबू जिसमें साल के हर मौसम में फल आते हैं. अण्डाकार नीबू के अलावा भी बहुत सी किस्में हैं. नीबू की पत्तियों में भी नीबू की सी खुशबु आती है. नीबू की सुगंध किसी को भी ख़राब नहीं लगती.
नीबू का प्रयोग मीट मछली की डिश में मीट की विशेष गंध समाप्त करने के लिए किया जाता है. नीबू दुर्गन्ध को दूर करता है. मीट मछली की डिश बनाने में मॅरिनेट करने के लिए इस्तेमाल होता है. इसके टुकड़े काटकर कमरे में रखने से हवा शुद्ध हो जाती है और कमरे में अच्छी सुगंध आती है.
नीबू का गुण अम्लीय है. ये हल्का एसिड है. इसे सलाद, शिकंजी, शरबत, में इस्तेमाल किया जाता है.
नीबू जी मिचलाने में लाभकारी है. इसको नमक लगाकर या बिना नमक के चाटने से जी मिचलाना और उल्टी रुक जाती है. नीबू निर्जलीकरण या डिहाइड्रेशन से बचाता है. पानी में नीबू निचोड़कर उसमें थोड़ा नमक मिलाकर थोड़ा थोड़ा पिलाने से फ़ायदा होता है.
जब इमरजेंसी में कोई दवा पास न हो और डाक्टर भी आसानी से न मिल सकता हो तो ये साधारण प्रयोग उल्टी दस्त के मरीज़ की जान बचा सकता है.
नीबू का बीज पत्थर पर घिसकर पिलाने से भी उल्टी रुक जाती है. ये अचूक  प्रयोग है.
 नीबू में ब्लड को डिटॉक्स करने या खून साफ़ करने के गुण हैं. विशेषकर खून में से ये अत्यधिक पित्त को घटाता है. इसलिए ये लिवर के रोगों में जहां ब्लड में पित्त की मात्रा बढ़ गयी हो अचूक दवा है.
सुबह खाली ली पेट नीबू का गर्म पानी के साथ इस्तेमाल चुस्ती फुर्ती लता है. वज़न कम  करने में सहायक है.
नीबू का छिलका अंदर की तरफ से दांतों और मसूढ़ों पर मलने से गंदगी को साफ़ करता है और मसूढ़ों की सूजन घटाता है. ये शुरू के पायरिया और दांतों से खून आने में मुफीद है.
अजीब बात है की नीबू एसिड होते हुए भी एसिडिटी के लिए अचूक दवा है. एसिडिटी के मरीज़ों के लिए ज़रूरी है की वह खाना खाने से ठीक आधा घंटा पहले आधा कप पानी में आधा नीबू निचोड़कर पी लें. ऐसा करने से एसिडिटी से निजात मिल जाती है.
ये प्रयोग उन लोगों पर आज़माया जा चुका है जो एसिडिटी के पुराने मरीज़ थे और एन्टासिड जेल और टैबलेट खाकर तंग आ चुके थे.  

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