गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

काहू के चमत्कारी फायदे

काहू के  नाम से इस पौधे को केवल हकीम, या वो लोग जानते जो इसकी खेती और व्यापार करते हैं. इसका प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है. मार्केट में ये आसानी से मिल जाता है. अंग्रेजी भाषा में इसे लेटिस कहते हैं. ये एक सीजनल पौधा है. सितम्बर अक्टूबर में इसका बीज बोया जाता है. जाड़ों के महीनो में इसके पत्तों को सलाद की तरह इस्तेमाल किया जाता है.

इसके पत्ते हरे, झुर्रियों और टेढ़ी मेढ़ी सतह के होते हैं. देखने में ये बहुत खूबसूरत लगता है. उतना ही ये गुणकारी है. कहु उत्तेजना को शांत करता है और गहरी नींद लाता है. आज के युग में बहुत से बीमारियां उत्तेजना और नींद न आने के कारण हो रही हैं. आज के रोगों की ये बड़ी औषधि है.
इसमें डायूरेटिक यानी मूत्र प्रवाह बढ़ाने के शक्ति है. अपने इस गन के कारण ये गुर्दों को साफ करता है और उनके विषैले पदार्थ या टाक्सिन बाहर निकलता है. ये यूरिक एसिड के समस्या से निजात दिलाता है.
इसके पत्तों में मौजूद डाइटरी फाइबर या खाद्य रेशे आँतों की सफाई करते हैं. यहाँ भी ये टॉक्सिन यानि विषैले पदार्थ बहार निकलने का काम करता है. इसमें मौजूद रसायन आंतों को कैंसर जैसे रोग से बचने में सहायता करते हैं.

हकीम काहू के बीजों के तेल या रोगन काहू को नींद न आने के समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस्तेमाल करते थे. ये सदियों से यूनानी और देसी इलाज के पद्धति में  प्रयोग किया जा रहा है.
काहू के पौधे सलाद के लिए लगाए जाते हैं इसलिए ये पत्तों का गुच्छा बड़ा होते ही काट लिए जाते हैं. कहु के पौधे के तने से अगर रस निकला जाए तो ये रस सूख कर कला पड़  जाता है और गाढ़ा हो जाता है. इस रस  का प्रयोग भी नींदलाने  की दवाओं में हकीमों द्वारा किया जाता था.
काहू के पत्ते चूँकि झुर्रियोंदार होते हैं इसलिए इसमें तरह तरह के जर्म्स आसानी से पल जाते हैं. इसमें फंगस भी लग जाता है. इसके पत्तों को सलाद के रूप में इस्तेमाल करने से कभी कभी डायरिया, पेचिश या पेट के अन्य रोग हो जाते हैं. इसके पत्तों को खूब अच्छी तरह धोकर इस्तेमाल करना चाहिए.

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

शतावरी

शतावरी, सतावर, एक कांटेदार बेल है. इसके पत्ते बारीक़ नुकीले होते हैं. बारीक़ पत्तियों के गुच्छों के कारन ये बेल बहुत सुन्दर लगती है. इसे सजावट के लिए घरों और बगीचों में लगाया जाता है. घनी पत्तियों और कांटेदार होने के वजह से इसको दीवारों और बगीचों की बाढ़ पर सुरक्षा के लिए भी लगाया जाता है.

दवा के रूप में इसकी जड़ या कंद प्रयोग की जाती है. इसकी जड़े गुच्छेदार, बीच से मोटी और किनारों पर पतली होती हैं. इन्हे सूखा लिया जाता है. बाजार में देसी दवाओं और जड़ी बूटियों की दुकानों पर सतावर या शतावरी के नाम से इसकी सुखी हुई जड़े मिलती हैं. सूखने पर इन जड़ो पर लम्बाई में झुर्रियां और सिलवटे पद जाती है. सतावर का स्वाद खाने में कुछ मीठा और बाद में हल्का कड़वापन लिए होता है.
सतावर एक पौष्टिक दवा है. पुष्टकारक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है. ये शरीर को बलशाली बनती है. दुबले लोग इसके नियमित प्रयोग से मोटे  हो जाते हैं.
सतावर दूध पिलाने वाली माओं के लिए एक टानिक का काम करती है. ये दूध की मात्रा बढाती है. श्वेत प्रदर को जड़ से नष्ट कर देती है.
जो लोग यूरिक एसिड की समस्या से ग्रस्त हैं. जिनकी शुगर बढ़ी हुई है उन्हें सतावर के प्रयोग से बचना चाहिए.
सतावर की पत्तियां स्वाभाव से ठंडी होती  हैं. इनको शाक के रूप में काम मात्रा में इस्तेमाल करने से नकसीर का खून बहना बंद हो जाता है.

बुधवार, 24 जनवरी 2018

मकोय

मकोय घास फूस के साथ उगती है. इसको मकोह, मकोई, मकुइया और काचमाच या काचूमाचू भी कहते  हैं.  इसके उगने का मौसम बरसात और रबी के फसल के दौरान है. जाड़ों के दिनों में मकोय में सफ़ेद फूल आते हैं और इसमें लाल या काले रंग के फल लगते हैं. ये फल छोटे छोटे लाल या काले रंग के होते हैं. फलों के रंग के कारण मकोय दो प्रकार की होती है. लाल मकोय और काली मकोय.
मकोय के फलों का स्वाद खट्टा -मीठा होता है. इन फलों में बारीक बीज भरे होते हैं. मकोय लिवर की बीमारियों के लिए बहुत उपयोगी है. लिवर की बीमारी के कारण हाथ पैर में सूजन आ जाती है, मकोय इस सूजन को समाप्त कर देती है. लिवर की सूजन में चेहरे, पेट और पैरों पर भी सूजन का प्रभाव पड़ता है. ऐसे रोगियों को मकोय की सब्ज़ी बनाकर खिलने से या मकोय के पत्तों को पीसकर उसका रस पिलाने से लाभ होता है.

स्त्रियों के रोगों में भी जब शरीर आन्तरिक भाग में शोथ हो मकोय बहुत लाभकारी दवा है.
मकोय लिवर के कैंसर से भी बचती है. लिवर के विकारों में मकोय, कसौंदी और कासनी के पत्तों का बराबर मात्रा में सब्ज़ी की तरह प्रयोग करने से आशातीत लाभ होता है.
पके हुए मकोय के फलों  के बीजों से मकोय को आसानी से बगीचे या गमले में उगाया जा सकता है. ये आसानी से उगने और बढ़ने वाला पौधा है. लेकिन बहुत उपयोगी है. मकोय के पत्तों की सब्ज़ी बनाकर कभी कभार खाने से शरीर में जमा पॉइज़न निकल जाते हैं. मकोय डायूरेटिक यानि पेशाबआवार जड़ी बूटी है. अपने इसी गुण के कारण  ये जलंधर रोग यानि ड्रॉप्सी में बहुत लाभ करती है.
दवा के रूप में लाल मकोय का प्रयोग किया जाता है. काली मकोय के गुण -धर्म लाल मकोय से अधिक शक्तिशाली है. लेकिन काली मकोय के इस्तेमाल से बहुत से लोगों का जी मिचलाने लगता है और दस्त आने लगते हैं.
दवा के रूप में प्रयोग करना हो तो मकोय को हमेशा पकाकर प्रयोग करना चाहिए कच्ची मकोय का प्रयोग हितकर नहीं रहता है. ये रोग को बढ़ा सकती है.   

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