शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

उदास पौधा हारसिंघार

हरसिंघार, हारसिंघार, शेफाली, परिजात रात को खिलने वाला पौधा है. इसके फूलों की एक विशेष गंध होती है. फूल का रंग सफ़ेद और फूल की डंडी का रंग पीला, नारंगी होता है. रात में खिलने के बाद सुबह को इसके फूल पेड़ से गिर जाते हैं. दिन में इस पौधे में फूल खिले हुए दिखाई नहीं देते. कुछ लोग इसके इस गुण के कारण इसे नाइट जैस्मिन, रात की चमेली या रात की रानी भी कहते हैं. लेकिन रात की रानी के नाम से एक और पौधा होता है जिसके फूल भी सफ़ेद होते हैं उनमें भी सुगंध होते है लेकिन उनकी सुगंध हरसिंगार से अलग है.
कहते हैं हारसिंघार उदास पौधा है. लोग इसे घरों में लगाना पसंद नहीं करते. ये एक मध्य आकार का पेड़ है. बरसात के बाद सितम्बर अक्टूबर में इसके फूल खिलना शुरू हो जाते है. सुबह को इसके पेड़ के नीचे पड़े हुए सफ़ेद फूलों से इस पौधे की पहचान आसानी से की जा सकती है. फूलों की डंडी से केसर जैसा रंग प्राप्त होता है. ये रंग सुगन्धित भी होता है और दवाई के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.

तीन बोतल मिटटी का तेल और दर्द का इलाज 

किसी आफिस के एक क्लर्क तीन बोतल मिट्टी का तेल और 50 ग्राम काली मिर्च लेकर जोड़ो के दर्द, विशेषकर श्याटिका पेन या अरकुन्निसा के दर्द का काढ़ा बनाकर देते थे. ये सामान वे शनिवार को लेते थे और रविवार को दवा बनाते थे. तीन बोतल मिट्टी  के तेल के बदले तीन बोतल काढ़ा देते थे और उस काढ़े को आधा आधा कप दिन में दो बार पीने को कहते थे. एक से डेढ़ महीने में श्याटिका पेन से पीड़ित मरीज़ हिरण हो जाता था.
उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनकी पत्नी भी तीन बोतल मिट्टी का तेल लेकर ये दवा बनाकर लोगों का इलाज करती रहीं. फार्मूला ये था की तीन बोतल मिट्टी का तेल वह स्टोव में जलाते थे. लगभग एक किलो हरसिंगार के पत्ते लेकर छोटे टुकडे  कर लेते थे और 50 ग्राम काली मिर्च मोटी मोटी कुचलकर दोनों चीज़ों को लगभग पांच लीटर पानी में डालकर स्टोव पर चढ़ा देते थे. हलकी आंच पर इतना पकाते थे की पानी जलकर आधा रह जाए. बस दवा का काढ़ा तैयार हो गया. इस काढ़े को ठंडा करके छानकर बोतलों में भर देते थे. यही श्याटिका पेन के बढ़िया दवा थी. लोग दूर दूर से उनका नाम सुनकर काढ़ा बनवाने आते थे.
पहले लोग अपना समय लगाकर बिना किसी लालच के लोगों की भलाई और दुखी इंसानियत की सेवा किया करते थे अब मरीज़ो को लूटने और अधिक से अधिक पैसा कमाने का धंदा बना रखा है. श्याटिका पेन ऐसा मर्ज़ है जो आसानी से काबू में नहीं आता. लोग दवा खाते खाते तंग आ जाते हैं. कुछ लोगों के मैंने बिस्तर पर पड़े देखा है. दर्द इतना बढ़ जाता है की उठना बैठना मुश्किल हो जाता है. हरसिंगार का केवल एक गुण ही ऐसा अजीब है जो लाख दवाओं पर भारी है.
हरसिंगार केवल श्याटिका पेन के लिए ही लाभकारी नहीं है. ये गठिया की भी बढ़िया दवा है. यही काढ़ा गठिया के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.  लेकिन तब इसकी मात्रा 1 /4  कप काढ़ा दिन में दो से तीन बार पीना चाहिए. हरसिंगार बुखारों और बुखारों के बाद के जोड़ों के दर्दो के लिए भी फायदेमंद है.
दवा के रूप में आम तौर से इसके पत्ते ही प्रयोग किये जाते हैं. छाल और बीज का प्रयोग आम लोग न करें इसे काबिल हकीम और वैद्य की सलाह पलर छोड़ दें. इनका इस्तेमाल नुकसान कर सकता है.
हरसिंगार एक सुन्दर और सुगन्धित पौधा ही नहीं दर्द से कराहते हुए लोगों का इलाज भी है.




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