रविवार, 8 मार्च 2020

नेचर जंगल कैसे उगाती है

 पृथ्वी का खाली पड़ा भूभाग जहां पेड़ों के उगने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां हों, जंगल में बदल जाता है. नेचर का जंगल उगाने का अपना सिद्धांत है जो कभी फेल नहीं होता. यदि किसी भी ज़मीन, मकान  को कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाए तो उसमें जंगली पौधे उग आते हैं.
प्रकृति द्वारा बीजों और फलों के बिखरने और दूर दूर तक पहुंचाने का इंतेज़ाम किया जाता है. कुछ बीज बहुत हलके, और छोटे होते हैं और प्रकृति के साधनो - हवा, पानी के साथ दूर दूर तक पहुंच जाते हैं. कुकुरमुत्ते और बहुत से फंगस के बीज आंख से भी नज़र आते.
हवा से बिखरने वाले बीजों में कुछ बीज पंख वाले होते हैं. इन बीजों में चिलबिल एक अच्छा उदहारण है. इसके बीज के चारों ओर पतला आवरण होता है जो हवा में बखूबी उड़ सकता है.   कुछ बीज रेशेदार होते हैं जो हवा में दूर तक उड़ सकते हैं. जैसे आक या मदार  के बीज जिसके सफ़ेद रेशे (जिन्हें आक की रूई कहा जाता है) एक गोले का रूप ले लेते हैं जिनके बीच में बीज होता है. ये बीज हवा के साथ उड़कर दूर दूर चले जाते हैं. अब कहीं तो इन्हे गिरना ही  है. उचित परिस्थितियां मिलने पर इन बीजों से नए पौधे निकलते हैं.
कुछ बीज कांटेदार या रोएंदार होते हैं. कांटेदार बीजों में बड़ा सा बीज बघनखी का होता है. जिसके दो मुड़े हुए कांटे होते हैं. चिड़चिड़े या लटजीरे के बीज भी कांटेदार होते हैं. ऐसे बीज जानवरों के चिपक जाते हैं. और इस तरह दूर दूर तक बिखर जाते हैं.
फलियों में लगने वाले बीज फलियां चटकने पर दूर तक छिटक जाते हैं. गुलमेंहदी इसका अच्छा उदहारण है. इसकी पक्की फली में हाथ लगते ही फली चटक कर बीज छिटक जाते है.
पीपल, पाकड़, बरगद, गूलड़ और अंजीर ये ऐसे पौधे हैं जो दूध / लेटेक्स वाले हैं. दूध वाले पौधे जल्दी नहीं सूखते. इनके बीज भी छोटे होते हैं. इनके बीजों का कवर सख्त होता है. चिड़ियां इन पौधों के फलों के गूदे के साथ हज़ारों की मात्रा में बीज खा जाती हैं. फिर ये चिड़ियां कहीं भी - बिल्डिंग के ऊपर, किसी पेड़ पर, ज़मीन पर मलत्याग (बीट ) करती हैं. इस तरह ये चिड़ियां इन पेड़ों के बीजों को दूर दूर तक पहुंचा देती हैं.
पेड़ों और जानदारों (जिसमें जानवरों के साथ आदमी भी शामिल है ) का इको - सिस्टम (पारिस्थितिकी) में महत्वपूर्ण योगदान है. दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं. पेड़ न केवल चिड़ियों का बल्कि अन्य जानवरों का पेट भी भरते हैं. यदि हम पीपल, पाकड़, बरगद, गूलड़ और अंजीर जैसे पौधों की बात फिर से करें तो पता चलता है कि  बन्दर भी पेट भरने के लिए इन पौधों के फल खाते हैं. इन पौधों के बीजों के छिलके / आवरण ऐसे होते हैं जो पेट की गर्मी और पाचन एंजाइम से भी नष्ट नहीं होते. इन की बीट से निकले बीजों से नये पौधे निकलते हैं. चिड़िया के पाचन तंत्र से गुजरने के बाद इन बीजों में जमने की क्षमता बढ़ जाती है. पाचन रस से इनके बाहरी आवरण कुछ कमज़ोर पड़ जाते हैं और बीजों का जमना आसान हो जाता है. बीट से थोड़ी सी खाद भी मिल जाती है जो नन्हे पौधे को बहुत सहारा देती है.
चमगादड़ जैसे जानवर, कौए भी बीजों को दूर दूर तक पहुंचाते हैं. नीम के पक्के फल जिन्हें निमोली, निमकौली आदि कहा जाता है, कौए और चमगादड़ बड़े शौक से खाते हैं. ये एक साथ कई फल खाकर उड़ते हुए गुठलियां फ़ेंक देते हैं. इस तरह ये बीज दूर दूर पहुंच जाते हैं.
वे बीज जो बड़े और भारी हैं. उनके फलों में स्वादिष्ट गूदा होता है जैसे आम का फल. इन फलों को आदमी और जानवर दूर दूर तक ले जाते हैं और फल खाकर गुठली फ़ेंक देते हैं. कभी कभी ऐसे फल और बीज हज़ारों किलोमीटर का सफर तय कर लेते हैं.
चीटियां, गिलहरियां और दुसरे जानवर भी बीजों को इधर उधर फैलाने में मददगार साबित होते हैं. चीटियां बीजों को खाने के लिए ले जाती हैं उनमें से कुछ जो खाने से बच जाते है या रास्ते में गिर जाते हैं वह समय अनुकूल पाकर जमते हैं और पौधे बन जाते हैं.
कुदरत बीजों को संभाल कर रखती है. उसने बीजों की रक्षा करने के लिए उपाय किये हैं. सीज़नल पौधों के बीज ज़मीन में पड़े रहते हैं. बारिशें भी होती हैं, पानी भी भरता है, लेकिन ये बीज फूटते नहीं हैं. मौसम आने पर उचित तापमान और नमी मिलने पर ये बीज फूट निकलते हैं. जड़ी बूटियां भी मौसम के हिसाब से ही मिलती हैं. उनके बीज सही समय पर ही जमते हैं. यदि कुदरत इस तरह से बीजों की संभाल न करे तो बहुत से पौधे नष्ट हो जाएं.
इसके आलावा भी कुदरत ने बीजों पर हिफाज़त के लिए मज़बूत आवरण दिया है. आम की गुठली पर रेशे होते हैं. बारिश के मौसम में ये रेशे पानी से भीग जाते हैं और जल्दी सूखते नहीं हैं. पानी पाकर आम का बीज गुठली के अंदर फूलना शुरू करता है. उसमें जड़ और अंकुर निकलता है. किसी भी बीज में जड़ सबसे पहले विकसित होती है क्योंकि अंकुर को वही स्थापित करती है जिससे पौधा सीधा खड़ा हो सके और उसे पानी और पोषण मिलने लगे. आम के बीज के विकास से बाहर की गुठली फट जाती है और पौधा निकल आता है.
किसी भी पौधे का बीज, चाहे वह फल के अंदर हो जैसे आम, कटहल, या फिर फली के अंदर हो जैसे सेम, कपिकच्छु, मूंगफली, या बाली के अंदर हो जैसे जौ और गेंहू अदि, बनने के बाद उसके जमने का समय भी निश्चित होता है. कुछ बीज इतनी जल्दी जमते हैं कि सोचा भी नहीं जा सकता. ज़रूरी नहीं की बीज पककर सूख गया हो. कच्चा बीज भी जम आता है. मक्का का कच्चा भुट्टा यदि रख दिया जाए और उसे उचित नमी और तापमान मिले तो ये कच्चे दाने भी पौधे बन जाते हैं. कटहल के बीज कटहल के अंदर ही जमने लगते हैं. उनमें जड़ें निकल आती हैं. इसी तरह बढ़ल के बीज जो गीले और कच्चे होते हैं जमने लगते हैं.
आम तौर से बीज परिपक्व होने के बाद साल भर तक  उनमें जमने की क्षमता रहती है. लेकिन कुछ बीज दो साल पुराने होने पर ही जमते हैं. अमलतास इसका एक  उदहारण है.
पौधे नेचर में आने वाली तबदीली को भी भांप लेते हैं और उसके अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं. बांस का बीज नहीं होता. बांस में प्रकंद की सहायता से नये पौधे उगते हैं और बांस फैलता चला जाता है. बहुत से ऐसे पौधे हैं जो बिना बीज के प्रकंद की सहायता से उगते हैं. लेकिन अगर बांस के पौधों में फूल आ जाए और बीज लगने लगे तो ये इस बात का संकेत है कि आने वाले वर्षों में सूखा पड़ने वाला है. जानकार गांव वाले इस संकेत से होशियार हो जाते हैं और सूखे से बचने का इंतेज़ाम करने लगते हैं. बांस का ये बीज बहुत कड़ा होता है. कई वर्षों के सूखे में भी ज़मीन पर पड़ा रहने से नष्ट नहीं होता. जब अच्छा मौसम आता है तो इन बीजों से नये पौधे उगते हैं और बांस नेचर में बाकी रहता है.
नेचर इस प्रकार न केवल जंगल उगाती है बल्कि उनके बाकी रहने का प्रबंध भी करती है.



गुरुवार, 5 मार्च 2020

मुंडी बूटी

मुंडी बूटी एक ऐसा पौधा है जिसकी विशेष गंध होती है. इसके पत्ते रोएंदार होते हैं. ये रबी की फसल का पौधा है और अक्सर गेहूं के खेतों में भी खर-पतवार के साथ में उगता है. इसमें गोल गोल घुंडियां सी लगती हैं. ये मुंडी का फूल है जो बैगनी रंग का होता है. यही घुंडी सूखकर भूरी पड़ जाती है और इसके अंदर बीज बन जाते हैं.यही मुंडी है जिसे गोरखमुंडी भी कहते हैं. यही फल दवा में काम आते हैं.
मुंडी का स्वाद कड़वा होता है. स्वभाव से ये ठंडी और तर है. इसका प्रयोग गर्मी में किया जाता है. मुंडी मार्च- अप्रैल में तैयार हो जाती है जब इसके पौधे सूख जाते हैं. मुंडी बहुत बड़ी रक्त शोधक जड़ी बूटी है. इसका यही एक गुण सौ गुणों पर भारी है. यूनानी और आयुर्वेद में जितनी रक्त-शोधक दवाएं बनायीं जा रही हैं उनमें से शायद ही कोई ऐसी हो जिसमें मुंडी का इस्तेमाल न हुआ हो.
जिन लोगों का मिज़ाज गर्म है, गर्मी, खुश्की और खुजली से परेशान हैं उनके लिए मुंडी बहुत लाभकारी है. ये रक्त की गर्मी को शांत करती है और रक्त से गंदगी, और टॉक्सिन निकाल देती है.
हकीमों का फार्मूला है अगर ब्लड में टॉक्सिन न रहें तो बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है. इसके लिए गर्मी के मौसम में मार्च आखिर से जून तक रक्त शोधक दवाओं का प्रयोग करना चाहिए. मुंडी उनमें से एक है.
आंखों के लिए मुंडी बड़े कमाल की दवा है. इसके इस्तेमाल से आंखे हमेशा निरोग बनी रहती हैं. कहा जाता है की यदि कोई सीज़न में रोज़ाना सुबह मुंडी का अर्क इस्तेमाल करता है तो वह न कभी अंधा होगा और उसे कभी मोतियाबिंद भी नहीं होगा.
गुरु गोरखनाथ, जो प्रसिद्ध योगी गुज़रे हैं, के नाम से दो जड़ी बूटियां मशहूर हैं. - एक मुंडी बूटी जिसे उनके नाम पर गोरखमुंडी कहते हैं. दूसरी जड़ी बूटी गोरखपान है.
मुंडी का प्रयोग इसके अर्क के रूप में किया जाता है. मुंडी का अर्क भपके से डिस्टिलेशन किया हुआ पानी होता है जिसको 25 - 50 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह शाम प्रयोग किया जाता है. पिसी हुई मुंडी का चूर्ण 1 - 3 ग्राम की मात्रा में उपुक्त अनुपान, (मुनासिब बदरका) जैसे काला नमक, शहद, शकर के साथ मिलाकर पानी के साथ खाया जाता है.
विशेष प्रयोग में एक मुंडी साबित भी निगली जाती है.


मंगलवार, 3 मार्च 2020

जो रस से भरी है वही रसभरी है

 रसभरी एक पीले रंग का कवर के अंदर बंद फल है. ये फल बाजार में सर्दी का मौसम जाते समय फरवरी, मार्च के महीनों में मिल जाता है. मुख्यतः ये अफ्रीका का पौधा है. इसे अंग्रेजी में केप गूज़बरी और गोल्डनबरी भी कहते हैं. इसका पौधा बीज या फिर कटिंग से उगाया जाता है. बरसात के मौसम में इसके पौधे खूब बढ़ते हैं और जाड़ों में इसमें फल आते हैं. जो जाड़ा बीतते बीतते पककर पीले गोल्डन हो जाते हैं और इनके ऊपर का छिलका या कवर सूख जाता है. ये फल खाने में खट्टे-मीठे होते हैं.
रसभरी लीवर के लिए फायदेमंद हैं. इसमें सूजन घटाने के गुण हैं और ये लीवर के फंक्शन को तेज़ करती है. ये कोलेस्ट्रॉल के लेवल को ठीक रखती है और इस लिए ख़राब कोलेस्ट्रॉल के कारण बनने वाली पित्ते के पथरियों पर भी असर डालती है. इसके इस्तेमाल से पित्त गाढ़ा नहीं होने पाता और पित्ते में पथरी नहीं. बनती. यही काम इमली भी करती है. इमली का इस्तेमाल करने वालों के पित्ते में पथरी नहीं होती.
रसभरी न केवल इम्युनिटी यानि रोगों से लड़ने की क्षमता को बढाती है बल्कि हड्डियों को भी मज़बूती देती है. आंखों के लिए ये बहुत लाभकारी है. इसके इस्तेमाल से आंखों में मोतियाबिंद नहीं होता और आंखों के मांस पेशियां मज़बूत रहती हैं जिससे आंखों की रौशनी बनी रहती है.
रसभरी का बहुत बड़ा फ़ायदा कैंसर से बचाने में है. इसमें ऐसे तत्व हैं जो कैंसर को न केवल होने नहीं देते बल्कि ट्यूमर को नष्ट करने के क्षमता रखते हैं. ये ब्लड कैंसर के लिए भी लाभकारी है.
अजीब बात है कि पक्की पीली रसभरी के इतने फायदे हैं लेकिन कच्ची रसभरी ज़हरीली होती है.  इसके फूल, पत्ते और पौधा सभी ज़हरीले हैं. इसके इस्तेमाल से जी मिचलाना, उल्टी आना, पेट में दर्द और घबराहट होती है. ऐसे में तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए.

Popular Posts

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10...