शनिवार, 17 नवंबर 2018

पागल बूटी धतूरा

  धतूरा, घूरे, कूड़े के ढेर और खाली पड़े स्थानों पर उगता है. इसके उगने का समय भी बरसात का है. इसकी कई प्रजातियां हैं. जिनमे आम तौर से मिलने वाला सफ़ेद धतूरा, और काला धतूरा प्रमुख हैं.
इसके फल कांटेदार होते हैं. फूल पीछे से पतले और आगे से चौड़े, भोपे के आकर के होते हैं. इसके बहुत से देसी नाम भी हैं. संस्कृत में इसे कनक कहते हैं. फल सूखने पर चटक जाते हैं और उनमे से बीज गिर जाते हैं. इन्ही बीजों से बरसात में नए पौधे उगते हैं. इसके बीज, बैगन के बीज से मिलते जुलते होते हैं. इनका रंग काला, भूरा होता है.
कला धतूरा देखने से ही काली आभा लिए होता है. इसके फूल भी सफ़ेद फूलो के बजाय बैगनी रंग के होते हैं. काला धतूरा सफ़ेद से अधिक ज़हरीला होता है.
इसके पेड़ को कोई जानवर नहीं खता और इस पर कीड़े, मक्खी, मच्छर भी नहीं आते. इसे पहले खेतो की बाढ़ के रूप में किसान लगाते थे जिससे उनके खेत को जानवर न चरे.
देसी दवाओं में इसके पत्तो और बीजो का प्रयोग किया जाता है. कुछ हकीम इसके पत्तों के सूखे चूर्ण को बहुत काम मात्रा में चिलम में डाल कर दमे के मरीज़ को धूम्रपान करते थे इससे दमे का दौरा रुक जाता था. इसके बीजों का प्रयोग शुद्ध करके ही बहुत काम मात्रा में अन्य दवाओं के साथ किया जाता है. क्योंकि धतूरा के प्रयोग से होश-हवास जाते रहते है और आदमी पागलों जैसे हरकते करने लगता है इसलिए कहा जाता है कि धतूरा पागल बूटी है.
धतूरा सूजन और दर्द- नाशक है. इसके पत्तों का तेल जोड़ो के दर्दो, गठिया की सूजन में प्रयोग किया जाता है. इसके पत्तों को सरसों के तेल में डालकर पकाया जाता है कि पत्ते जल जाते हैं. इस तेल को छान कर रख लिया जाता है. जोड़ो के दर्द में थोड़ा गर्म करके इसकी मालिश करके गर्म पट्टी बाँध दी जाती है. ऐसा निरंतर करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. लेकिन ध्यान रहे की इस तेल के प्रयोग के बाद हाथ अच्छी तरह साबुन से धो लिया जाए और इस दवा को बच्चो की पहुंच से दूर रखा जाए.
सावधानी इसी में है कि इस ज़हरीले पौधे से दूर रहे. 

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

काला बिछुआ या बघनखी

बघनखी या बाघनखी या बाघनख एक पौधा है जो बरसात में उगता है और सर्दी आते आते सूख जाता है. इसके फल सूख कर चटक जाते हैं और उनमे से एक काले या भूरे रंग का बड़ा सा बीज निकलता है. इस बीज की शकल बाघ के मुड़े हुए नाखूनों जैसी होती है. इसलिए इसे बघनखी या बाघनखी या बाघनख कहते हैं.
इसके पत्ते बड़े और रोएंदार होते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को हाथाजोड़ी, हथजोड़ी का पौधा कहकर भ्रम फैला रहे हैं. हथजोड़ी के नाम से जो चीज़ बाजार में महंगे दामों बेची जा रही थी वह मॉनिटर लिज़र्ड का जननांग था और इस पर जब वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके ये बताया कि  मॉनिटर लिज़र्ड इस हथजोड़ी के चक्कर में मारी जा रही है और जंगली जन्तुओं का नाश हो रहा है तो इसका बेचना बंद कर दिया गया. भ्रम फैलाने वाले कहते थे कि असली हथजोड़ी विंध्याचल के जंगलों में मिलती है. कोई इसे हिमालय में बताता था. कोई कहता था की पेड़ की जड़ है और कोई फल बताता था. हथजोड़ी के मामले में भ्रम फैलाने वालों की अब भी कमी नहीं है.
बघनखी के पौधे को अंग्रेजी भाषा में  डेविल्स क्ला (शैतानी पंजा) कहते है. इसका वैज्ञानिक नाम मार्टिनिया एनुआ  है. देसी भाषाओं में कहीं इसे उलट कांटा भी कहते हैं. इसके मुड़े हुए कांटो की वजह से इसे बिच्छू फल या काला बिछुआ भी कहते हैं. कुछ लोग इसके पौधे को बिच्छू झाडी समझते हैं. जबकि बिच्छू झाड़ी एक अलग ही पौधा है.
कुछ लोगों ने ये भ्रम भी पाल रखा है की ये पौधा वहीँ उगता है जहां बिच्छू रहते हैं. और ये बिच्छू काटे की अच्छी दवा है.
इसके कई नाम होने के कारण अन्य पौधों की नामों में भ्रम हो जाता है. ये पौधा ही ऐसा है.
ये पौधा सूजन और दर्द को दूर करता है. इसमें रक्त शोधक गुण हैं. सूजन और दर्द को दूर करने के गुणों के कारण  इसे गठिया रोग में इस्तेमाल किया जाता है. इसके पत्तों को सरसों के तेल में पकाकर ये तेल जोड़ो के दर्द में मालिश करने से बहुत आराम मिलता है. इसके सूखे फलों को कूटकर भी तेल में पका सकते हैं. ये एक अच्छा दर्द निवारक तेल बन जाता है.
इसके फलो का तेल बालों में लगाने से बाल जल्दी सफ़ेद नहीं होते.
इसकी जड़ का पाउडर एक से दो ग्राम की मात्रा में अश्वगंधा का पाउडर सामान मात्रा में मिलाकर शहद के साथ सुबह शाम इस्तेमाल करने से गठिया रोग में राहत मिलती है.
कुछ लोगों को इसके इस्तेमाल से एलर्जी हो जाती है. इसका प्रयोग करने से पहले किसी काबिल हकीम या वैद्य की सलाह अवश्य लें.


बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

लपेटुआ

लपेटुआ का वैज्ञानिक नाम यूरेना लोबाटा है. इस पौधे के बीज रोएंदार होते हैं और इस लिए ये किसी भी व्यक्ति या जानवर के आसानी से चिपक जाते हैं और दूर दूर पहुंच जाते हैं. बरसात में इन बीजों से लपेटुआ के नये पौधे निकलते हैं. ये पौधा खेत खलिहानो में और खाली पड़ी ज़मीनो में उगता है.  
इसका रेशा मज़बूत होता है. जूट के पौधों की तरह ही इसके रेशे भी निकाले जाते हैं और उनकी रस्सी बनायी जाती है या फिर इन रेशो को बुनकर कैनवास जैसा कपडा बनाया जाता है.  ये मालवेसी कुल का  पौधा है. इसे अंग्रेजी में सीज़र -वीड, कांगो-जूट, और मडगास्कर-जूट भी कहते हैं.
इसके बीज पानी में भीगकर लेसदार हो जाते हैं. बीजों का ये म्यूसिलेज, या चिपचिपा पदार्थ पेट के रोगों में फ़ायदा करता है.
इसका स्वाभाव गर्म है. इसकी जड़  को पानी में उबालकर पिलाने  से शिशु-जन्म आसानी से हो जाता है.
फूलों को सुखाकर  रख लिया जाता है. इन फूलो को पानी में पकाकर पीने से खांसी में आराम मिलता है और जमा हुआ बलगम निकल जाता है.
बीजों को पानी में पकाकर पीने से पेट के कीडे मर कर निकल जाते हैं.

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