रविवार, 17 जून 2018

बंदा

बांदा या बंदा एक पैरासाइट हर्ब है. ये आम, बबूल, बरगद, आदि के वृक्षों पर पाया जाता है. ये जिस पेड़ पर होता है उसे के गुण इसमें आ जाते हैं.

आम तौर से बंदा को हड्डी टूटने और हड्डी की चोट में प्रयोग करते हैं. इसकी पत्तियों को पीसकर तेल में पकाकर चोट के स्थान पर लगाने से और हड्डी को सहारा देकर ठीक प्रकार से बांध देने से हड्डी जल्दी जुड़ जाती है.
हड्डी की चोट में और हड्डियों को ताकत देने के लिए बाँदा को पीस कर इसका पाउडर एक से तीन ग्राम की मात्रा में दिन में एक से दो बार दूध के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है. इसका अंदरूनी प्रयोग कभी कभी ज़हरीले प्रभाव भी उत्पन्न करता है. इसलिए इसका प्रयोग काबिल हकीम या वैध की निगरानी में ही करना चाहिए.
बांदा में खून  को बंद करने का गुण है. ये मासिक धर्म के अत्यधिक रक्त प्रवाह को नियमित करता है.
बांदा डायूरेटिक है इसका प्रयोग गुर्दे की पथरी को तोड़कर निकल देता है. 

ख़रबूज़ा

ख़रबूज़ा एक मौसमी फल है. अप्रैल और मई में ख़रबूज़े की फसल होती है. इसे पालेज या फालेज़ की फसल भी कहते हैं. ख़रबूज़े की कई वैराइटी हैं. उत्तर प्रदेश में लखनऊ और फर्रुखाबाद की ख़रबूज़े मशहूर हैं. ख़रबूज़े की विशेष सुगंध होती है.
ये एक सस्ता फल और गरीबों के लिए पेट भरने का साधन था. लेकिन मार्केटिंग के इस दौर में ख़रबूज़े भी महंगे हो गए है इसलिए अब ये पेट भरने का साधन नहीं रह गया है.

ख़रबूज़ा पेशाब लाता है ये डायूरेटिक है. यही इसकी अजीब बात और बहुत बड़ा गुण है. नवाबी के ज़माने में फर्रुखाबाद में हकीम मसीहउल्ला खान बड़े मार्के का इलाज किया करते थे. वह गरीबों का इलाज मुफ्त करते लेकिन अमीरों से एडवांस पैसे लिया करते थे. एक दिन फर्रुखाबाद के सेठ का पेशाब बंद हो गया. बहुत इलाज किया लेकिन लाभ नहीं मिला. शाम तक सेठ जी की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. मुनीम जी को हकीम मसीहउल्ला खान का ध्यान आया की उन्हें दिखाया जाए. मुनीम जी घोडा गाड़ी लेकर हकीम जी के घर पहुंचे और सेठ  जी की बीमारी के बारे में बताया. हकीम जी ने कहा की चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन मुआवज़ा क्या दिया जाएगा. मुनीम जी बोले जो आप कहें. हकीम जी ने एक हज़ार रुपये तय किये और मुनीम जी के साथ चल दिए. घर जाकर सेठ जी की नब्ज़ देखी  और कहा ख़रबूज़े के छिलके मंगवाओ.
गर्मी का मौसम था. ख़रबूज़े की बहुतायत थी. ख़रबूज़े के छिलके पीसे गये और पानी में मिलकर सेठ जी को पिला  दिए गए. थोड़ी देर बाद सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ.
हकीम जी को पांच सौ रूपये दिए गये और पांच सौ रूपये बाद में देने का वादा करके हकीम जी को घर भेज दिया गया. हकीम जी ने कई बार रुपयों का तकादा किया लेकिन सेठ जी ने टाल मटोल की और रूपये नहीं दिये हकीम जी भी शांत बैठ गए.
सेठ जी ख़रबूज़े के छिलकों से इलाज देख चुके थे. इसलिए सीज़न में ख़रबूज़े के बहुत से छिलके सुखाकर रख लिए की दुःख दर्द में काम आएंगे.
जाड़ों का का मौसम आया. सेठ जी का पेशाब फिर बंद हो गया. ख़रबूज़े के छिलके पीसकर पिलाये गये लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बार बार पिलाने से सेठ जी का पेट फूल गया और तकलीफ बढ़ गयी.
फिर मुनीम जी रूपये लेकर हकीम जी के पास गए और उन्हें सेठ जी की बीमारी बतायी हकीम जी ने कहा चलने को तो मैं तैयार हूं लेकिन पैसे सब एडवांस लूँगा. क्योंकि तुम पहले वादा खिलाफी कर चुके हो इसलिए 500 पिछले और 1000 रूपये अभी के यानि 1500 रूपये हवाले करो तो मैं चलूँ.
मुनीम जी ने फ़ौरन 1500 रूपये निकल कर दिये हकीम जी ने सेठ जी को जाकर देखा. कहने लगे ख़रबूज़े का मौसम तो है नहीं. कहीं छिलके मिलें तो मंगवाओ.
घर वालों ने कहा वही छिलके तो हम कई बार पीसकर पीला चुके  हैं  उससे तो और तकलीफ बढ़ गयी है.
हकीम जी बोले इसका इलाज तो वही है.
फिर छिलके पीसे गए और पानी में घोले गए. हकीम जी ने कहा अब इस घोल को गर्म करलो और सेठ जी को गर्म गर्म पिला दो.
गर्म घोल पिलाने से सेठ जी को खुलकर पेशाब हुआ और सभी घर वाले खुश हो गए.
हकीम जी ने तीन खुराकें किसी माजून की दीं और कहा अब ये तकलीफ दोबारा  नहीं होगी.
मुनीम जी बोले अगर इतनी सी बात पता चल जाती कि  गर्मियों में ठंडा और जाड़ों में गर्म ख़रबूज़े के छिलकों का घोल पेशाब की रुकावट में दिया जाता है तो डेढ़ हज़ार रूपये का नुकसान नहीं होता.
सेठ जी ने कहा जिसका काम उसी को साझे.
ख़रबूज़ा कब्ज़ के लिए घरेलु दवा है. एक मरीज़ कब्ज़ से बहुत परेशान था. हकीम जी को दिखाया, हकीम जी ने कहा - खाने के साथ ख़रबूज़ा खाया करो. एक कौर खाने का और एक कौर ख़रबूज़े का, कब्ज़ ऐसे भागेगा  जैसे कभी था ही नहीं.
ख़रबूज़े के बीज चहार मगज़ या चार बीज में से एक इंग्रेडिएंट हैं. ये बीज दिमाग को ताकत देते हैं और नींद लेन में सहायक होते हैं. जड़ों में चहार मगज़ के रूप में इस्तेमाल करने से शरीर को गर्म रखते और पुष्ट बनाते हैं. गर्मी में इन्हें घोटकर ठंडाई के रूप में प्रयोग किया जाता हैं.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

आम

आम एक बहुत आम पौधा है इसीलिए इसे आम कहते हैं. उत्तर भारत का ये एक मशहूर फल है. यूपी में मलिहाबाद इसकी तरह तरह की वैराइटी के लिए प्रसिद्ध है. बिहार और बंगाल के आम भी प्रसिद्ध हैं.
जनवरी आखिर से फरवरी के महीने में इसका पौधा बौर से भर जाता है. आम के फूल को बौर या मौर कहते हैं. ये भीनी भीने आम की खुशबु लिए होता है. कच्चे बौर को हाथों में मलने से हाथों में ऐसी तासीर आ जाती है जो बर्र या बिच्छू काटने पर बहुत काम करती है. हाथों को काटी हुई जगह पर रख देने से ठंडक पद जाती है और बिच्छू या बर्र का ज़हर नहीं चढ़ता. आम के बौर की ये अजीब बात एक जादू की तरह काम करती है. पुराने समय में जो लोग आम के बौर की इस तासीर से वाकिफ थे वह ऐसा जादुई हाथ बनाकर लोगों में प्रसिद्ध हो जाते थे. ऐसे लोगों को लोग संत और महात्मा कहा करते थे.
आम एक ऐसा पौधा है जो ज़िन्दगी की ज़रूरतों से जुड़ा है. आम को सुखाकर खटाई के रूप में मसाले की तरह साल भर प्रयोग किया जाता है. इसका अचार और मुरब्बा भी बनाया जाता है जो साल भर प्रयोग किया जाता है. कच्चा आम भूनकर उसका रास निकल कर शरबत बनाकर पिलाने से लू या सं स्ट्रोक में फायदा होता है. जिन दिनों में लू लगती है उन्हीं दिनों में कच्चा आम होता है. ये एक कुदरती दवा है. आम की गुठली की अंदर की गिरी जिसे बिजली और आम का बीज भी कहते हैं दांतों से खून आने और मसूढ़ों की सूजन में लाभ करती है. इसे कच्चा ही मुंह में डालकर चबाने से लाभ मिलता है. पक्के आम की गुठली को उबाल कर कुछ दिन बरसात में खुले में पड़ा रहने देते हैं. फिर इसको तोड़कर इसका बीज निकल कर खाने से पेट के रोग दूर होते हैं आँतों के घावों और दस्त के कारण जिन मरीज़ों के सेहत नहीं बनती उन्हें फ़ायदा करती है.

पक्के आम में शुगर की मात्रा बहुत होती  है. ये एक पौष्टिक फल है. जिनका वज़न काम हो आम के नियमित प्रयोग से उनका वज़न बढ़ जाता है. लेकिन डायबिटीज के मरीज़ों के लिए आम का प्रयोग घातक हो सकता है. उन्हें बहुत ही सावधानी से थोड़ा सा आम डाक्टर की सलाह के अनुसार खाना चाहिए.

आम की छाल को सुखाकर और उसक पाउडर बनाकर उसमें जामुन की छाल का पाउडर मिलकर दिन में दो से तीन  बार  पानी के साथ खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है. ये एक गुणकारी दवा है.




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