गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

बड़ी दुधी

बड़ी दुधी बरसात के मौसम में खर पतवार के साथ खाली पड़े स्थानों पर उगती है. इसकी दो पत्तियों के  जोड़ पर इसके बारीक़ फूलों और बीजों का गुच्छा लगा होता है. इस कारन ही इस बूटी की पहचान आसानी से के जा सकती है. इसकी शाखाये ज़मीन पर फैलने वाली गुच्छेदार और लचकदार होती हैं. शाखा तोड़ने पर इसमें से दूध निकलता है. इस दूध या  लेटेक्स  के कारण  ही इसका नाम दूधी पड़ा है.

एक और बूटी भी है  जिसे छोटी दूधी कहते हैं. इसके पत्ते  छोटे गहरे हरे रंग के शाखाएं बारीक़ होती हैं. इसको तोड़ने पर भी दूध निकलता है.
छोटी दूधी को पहले ही इसी बलाग अजीब हर्ब में वर्णित किया जा चुका है.
 दूधी को छाया में सुखाकर और पाउडर बनाकर पानी के साथ सेवन करने से डिसेंट्री में लाभ होता है. अपने तर स्वाभाव के कारण ये सूखी खांसी में भी लाभकारी है. खांसी में इसका प्रयोग काढ़े के रूप में करना चाहिए.


  

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

कद्दू

कद्दू एक जानी मानी सब्ज़ी है. ये हर मौसम में मिलता है. लेकिन इसका मुख्य सीज़न बरसात का मौसम है. इसकी बेल होती है. इसमें पीले रंग के सुन्दर फूल खिलते हैं. कद्दू को इंग्लिश में पम्पकिन  कहते हैं. ये दो आकर में मिलता है. गोल और अंडाकार. अंडाकार कद्दू बहुत बड़े बड़े  हो जाते जाते हैं.
कद्दू का  स्वाभाव ठंडा है. इसके बीजों का प्रयोग तरबूज़, ख़रबूज़े, खीरा, ककड़ी के बीजों के साथ मिलकर मेवे के रूप में किया जाता है. कद्दू के बीज मेमोरी को बढ़ाते हैं. इनके प्रयोग से नींद न आने की समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके बीजों  का तेल कद्दू रोगन के नाम से मिलता है. सर में इसकी मालिश नींद लाने में सहायता करती है.
इसके तेल और बादाम के तेल को सामान मात्रा में मिलाकर सर में लगाने से न केवल याददाश्त और मीठी नींद आने में फ़ायदा होता है बल्कि बाल भी काले रहते हैं. इसके तेल को रात को चेहरे पर लगाने से झुर्रियां नहीं पड़ती.

कद्दू का तेल और इसके बीन पौष्टिक, याददाश्त को बढ़ाने वाले, नींद लाने वाले हैं. ये दिमाग को ताकत देते हैं. इसके तेल से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता. सब्ज़ी का प्रयोग उच्च रक्तचाप वालों के लिए लाभकारी है.
कद्दू का फल पककर मीठा हो जाता है. डायबेटीस वालों को कच्चा या हरा कद्दू खाना चाहिए. मीठा कद्दू शुगर लेवल बढ़ा सकता है.
 जिन लोगों का स्वाभाव ठंडा है और जो सर्दीजनित रोगों जैसे खांसी, ठण्ड, बुखार आदि से पीड़ित हों उन्हें कद्दू नुकसान कर सकता है. जो वायुविकारों से पीड़ित हों उनके लिए भी फायदेमंद नहीं है. 

बनकचरा

बनकचरा बरसात  दिनों में खेतों  और अन्य स्थानों में उगने वाला पौधा है. बनकचरे की बेल होती है. इसके पत्ते ख़रबूज़े के पत्तों से मिलते हुए होते  हैं. इसमें छोटे छोटे पीले रंग के फूल खिलते हैं. बनकचरे के फल दो से तीन इंच लम्बे बेलनाकार होते हैं. इनपर लम्बाई में धारियां पड़ी होती हैं.

कच्चा बनकचरा स्वाद में फीका होता है. पककर ये मीठा हो जाता है. कुछ बनकचरे खट्टे और कुछ कड़वे भी होते हैं. इसमें ख़रबूज़े से मिलती जुलती सुगंध आती है.

बनकचरा पेशाब-आवर यानि डाययुरेटिक है. इसके खाने से पेशाब खुलकर आता है और गुर्दों की सफाई हो जाती है. इसके बीज भी ख़रबूज़े के बीजों के समान लेकिन आकर में छोटे होते हैं. बीजों को थोड़ा कुचलकर काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र रोगों में लाभ होता है.
बनकचरा खेतों में अतिरिक्त या फालतू पौधे के रूप में उगता है इसलिए इसे या तो जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है या फालतू जंगली फल समझ कर खाया जाता है इसके मेडिसिनल प्रभाव की तरफ कोई तवज्जो नहीं दी गयी.

Popular Posts

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10...