मंगलवार, 24 मई 2016

अमलतास

अमलतास

अमलतास के फूल मार्च से लेकर मई तक खूब खिलते हैं. ये अपने पीले रंग के फूलों से ये दूर से हे पहचाना जता है. फूल लम्बे गुच्छों के आकार में लटकते हैं. 
गर्मी के मौसम में सड़कों की किनारे कोई ऐसा पौधा नज़र आये जो पीले फूलों से भरा हो तो आप समझ सकते हैं की ये अमलतास का पौधा होगा. इसकी पहचान फोटो से मिलकर कर सकते हैं. गर्मी की धूप  से फूलों का रंग उड़ जाता है. 
ये एक ऐसा पौधा  है जो हकीम और वैद्य दवाओं में प्रयोग करते हैं. हकीम लोग इसे ख्यारशम्बर कहते हैं.
अमलतास का दूसरा नाम Cassia fistula या golden shower tree भी है. दवाओं में आम तौर से इसकी फलियों के अंदर से निकलने वाला काला गूदा प्रयोग किया जाता हैं. ये गूदा चिपचिपा, कोलतार जैसा होता है. 
इसमें एक फुट से लेकर दो फुट तक लम्बी फलिया  लगती हैं. जो पहले हरी बाद में सूख कर भूरी या काली  पड जाती  हैं.

इसकी फली सख्त होती है. ये अंदर से खानो में विभाजित होती है. हर खाना एक गोल पर्दे से अलग होता है. इन गोल पर्दो के दोनो तरफ गूदा चिपका होता है. ये गूदा काले रंग का होता है. जो कोलतार जैसा लगता है लेकिन खाने में मीठा होता है और इसमें से एक विषेश प्रकार की गंध आती है. 

हर दो पर्दो के बीच में जो जगह बचती है उस खाली जगह में बीज भरे होते हैं. इन्हीं बीजो को बोन से अमलतास के पौधे उगते हैं. लेकिन अजीब बात ये है की अमलतास की बीज जो दो वर्ष पुराने होते हैं वही जमते हैं. 

अमलतास का यही काला गूदा दवा के रूप में काम आता है. इसमें खांसी और कब्ज़ दूर करने की शक्ति होती है. 

हकीम यूपियावी कहते हैं कि अमलतास का गूदा पानी में शहद या शकर के साथ पकाकर रोज़ाना इस्तेमाल करने से खासी ठीक होती है और कब्ज़ दूर होता है.

अमलतास के फूलों का गुलकंद भी बनाया जाता है. इसके लिए अमलतास के फूलों की पंखुड़ियां अलग कल ली जाती हैं. फिर उन्हें हाथों से शकर के साथ मलकर किसी खुले बर्तन में धूप में रख दिया जाता है. तीन-चार दिन तक धुप दिखाने से शकर पिघल जाती है और पंखुड़ियां उसमें गल जाती हैं. ये गुलकंद रात को सोते समय तीन से पांच ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ खाने से कब्ज़ की शिकायत नहीं रहती. अमलतास एक खूबसूरत पौधा है. इसके गुण इसकी खूबसूरती से भी ज़्यादा हैं. ये किसी को भी नुक्सान नहीं करता. इसीलिए छोटे बच्चों की जन्म घुट्टी का ये मुख्य अव्यव है. जो बच्चो को खांसी, सीने के रोगों और कब्ज़ से बचता है. 

आक

आक या मदार
सारे भारत में बहुतायत से पाया जाने वाला पौधा है. इसके बहुत से नाम हैं. इसे आक, आख, अकौआ, मदार, सूर्य नेत्र, अरबी भाषा में उश्र, उशार भी कहते है. अंग्रेजी भाषा में इसका नाम कैलोट्रोपिस है. इसे ज़हरीला होने की वजह से कोई जानवर नहीं खाता. फरवरी से लेकर जून तक ये  शबाब पर रहता है. इसमें गुच्छों में फूल खिलते हैं. फिर छोटे आम के बराबर आम जैसे फल लगते हैं. ये फल पाक कर चटक जाते  हैं. उनमें से आक के बीज निकलते हैं जिनके चारों तरफ रूई की तरह रेशे होते हैं. हर बीज उन रेशों के वजह से रूई के एक गोल गाले की तरह हो कर हवा में उड़ने लगता है और दूर दूर पहुँच जाता है. इस तरह इस पौधे का फैलाव  दूर दूर तक हो जाता है.
वैसे ये झाडी नुमा पौधा है लेकिन कुछ किस्में ऐसी भी है जो बहुत बड़ी हो कर एक मीडियम साइज़ के पौधे का रूप ले लेते हैं. इनके फूल भी अलग होते  हैं. ये सफ़ेद रंग के और सितारे के आकर के होते हैं. आम तौर से उत्तर भारत में इसके वे पौधे पाए  जाते हैं जिनके फूलों का रंग बाहर  से सफ़ेद और अंदर से बैंगनी रंग का होता है. उनका आकर भी सितारे की तरह नहीं होता . दवाओं में यही वैरायटी इस्तेमाल होती  है कियोंकि यह दूसरी वैरायटी  से काम ज़हरीली होती है.

आक के  रेशों को आक की रूई भी कहते हैं. यह एक ऐसा पौधा  है जिसमें दूध होता है. दूध वाले पौधे ख़राब वातावरण और पानी के कमी में भी ज़िंदा रहते हैं. इसका दूध शरीर पर  लगने से   घाव कर देता है. वह जगह जहाँ दूध लगता है लाल पड़ जाती है. दाने निकल आते हैं और सूजन हो जाती है. कबाइली लोग इसके दूध का इस्तेमाल दाद पर करते हैं जिससे घाव हो कर दाद ठीक हो जाता है. लेकिन ये कोई कारगर तरीका नहीं है. कभी कभी इससे बहुत गम्भीर त्वचा की समस्याएं पैदा होती हैं. दूध का इस्तेमाल खोखले दांतों को निकलने के लिए भी जंगल के निवासियों के द्वारा किया जाता है. रूई भिगोकर खोखले दांत में रख दी जाती है घाव होकर दांत निकल जाता है.  अनचाहे गर्भ से छुटकारे के लिए भी जंगल के निवासियों द्वारा इसके दूध का इस्तेमाल किया जाता है  जिससे अत्यधिक रक्तस्राव  होकर गर्भपात हो जाता है. लेकिन इससे शरीर में घाव पड़ जाते हैं और गम्भीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं. कान के दर्द में भी इसके पत्तों को आग पर  गर्म करके पानी निचोड़ कर कान में  डाला जाता है.


आक के किसी भी भाग को तोड़ने से पहले सावधानी ज़रूरी है की  इसका दूध शरीर पर न लगने पाए और आँख को तो इससे विशेष तौर पर बचाना चाहिए नहीं तो आंख  में घाव हो कर आंख खराब भी हो सकती है. बच्चों को  इससे दूर रखना चाहिए.
जहाँ कहीं दवाओं में इसके फूल इस्तेमाल करने  के ज़रुरत पड़ती है वहां केवल इसके सर बंद फूल यानि कलियाँ जो अभी खिली न हों, इस्तेमाल की  जाती हैं. उनमें ज़हर काम होता है. खिले हुए फूल बहुत ज़हरीले होते हैं. ताज़े फूलों की  जगह इसके सर बंद फूल ही सुखाकर दवाओं में सावधानी से इस्तेमाल किये जाते हैं.
इसके पत्तों को धोकर और इमली के पत्तों के साथ उबाल कर पानी  सुखकर अचार भी बनाया जाता है जो बहुत काम मात्र में इस्तेमाल करने पर पेट के गैस विकार को लाभ करता है.
हकीम यूपियावी कहते हैं की  दवाओं के अन्य पौधों की तरह इसके भी पांचों अंग यानि पंचांग प्रयोग किया जाता  है. पंचांग का मतलब जड़, फूल, पत्ते, छाल और बीज से है.  एक मरीज़ अरकुन्निसा  या श्याटिका पेन से बहुत परेशान था. उसे बताया गया की आक  की जड़ की छाल  निकाल कर उसे धोकर पानी डाल कर उबालो और उसमें थोड़े से चने डाल दो की चने भी उस जड़ के साथ उबल जाएँ. बाद में चनो को निकाल कर सुख लो और पीस कर रख लो. सुबह एक छोटा चमच पानी के साथ सेवन करने से पुराना  श्याटिका पेन ठीक हो गया.
हकीम यूपियावी शरीर के दर्द में इसके पत्तों को सरसों के तेल में जलाकर मालिश करने की सलाह देते हैं.

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