रविवार, 13 नवंबर 2022

कालीजीरी Centratherum anthelminticum

कालीजीरी एक पौधे के बीज हैं जो दवाओं में  काम आते हैं. इसे कुछ लोग गलती से काला जीरा समझ लेते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है. जीरा एक मसाला है जिसका प्रयोग अक्सर खाने में किया जाता है. इसकी विशेष गंध और स्वाद होता है. लेकिन कालीजीरी का स्वाद कड़वा होता है. इसे खाने की डिश में प्रयोग नहीं किया जाता. ये दवा के रूप में प्रयोग होती है. 


इसके कड़वे स्वाद और मतली, उलटी लाने के प्रभाव के कारण इसका प्रयोग एक बार में एक चौथाई ग्राम से आधा ग्राम की मात्रा में किया जाता है. दिन भर में इसकी एक ग्राम तक की मात्रा ली जा सकती है. इससे अधिक लेने पर इसके दुष्प्रभाव उतपन्न होते हैं जैसे जी मिचलाना, उलटी आना, पेट दर्द, शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना आदि. काली जीरी को कुछ लोग कड़वा जीरा भी कहते हैं. 

इसके वानस्पतिक नाम में anthelminticumशब्द जुड़ा है जो यह बताता है कि कालीजीरी एक ऐसे दवा समूह से सम्बन्ध रखती है जो कृमि नाशक है. ऐसी दवाएं बिना मरीज को नुकसान पहुंचाए कीड़े मार या कृमि नाशक का कार्य करती हैं. 

कालीजीरी नीम की तरह अच्छा एंटीसेप्टिक है. ये पेट के कीड़े भी मारकर निकाल देती है. इसके लिए एक ग्राम वायवडंग का पाउडर, ( यह एक प्रकार के काले भूरे बीज होते हैं, जिनका आकार काली मिर्च से मिलता जुलता होता है, यह भी पेट के कीड़े मारने के लिए प्रयोग की जाती है. ) आधा ग्राम कालीजीरी का पाउडर और थोड़ा सा गुड़ मिलाकर रात को सोते समय  खिलाया जाता है. इसका 2 से 3 दिन का इस्तेमाल पेट के कीड़ों से छुटकारा दिला देता है.  छोटे बच्चों को देना हो तो खुराक आधी करलें. 

कालीजीरी 10 ग्राम , अजवायन 20 ग्राम , मेथी 20 ग्राम और कुटकी 10 ग्राम का पाउडर बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी  के साथ सुबह शाम  लेने से मेटाबॉलिज़्म तेज़ होता है और मोटापा कम हो जाता है. लेकिन इस दवा का प्रयोग हकीम या वैद्य की निगरानी में करें. 

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

अरंड Castor Oil Plant, Ricinus communis

 अरंड, अंडी, अंडौआ  एक मध्यम ऊंचाई के पौधे के नाम हैं जिसकी लकड़ी कमज़ोर और पत्ते पपीते के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. पपीते का पेड़ एक सीधे तने वाला होता है जिसमें गोलाई में चारों ओर पत्ते लगे होते हैं और इसके तने में फूल फल लगते हैं. इस पौधे का वानस्पतिक नाम Ricinus communis है. 


जबकि अरंड का पेड़ बहुत सी शाखाओं वाला एक झाड़ीदार पेड़ होता है. सितंबर, अक्टूबर में इसके फूल निकलते हैं और फिर फल लगते हैं जो एक कांटेदार आवरण में बंद होते हैं. ये कांटे मुलायम होते हैं और हाथ में नहीं चुभते. सूखने पर ये फल तीन भागों में फट जाता है और इसमें से बीज निकलते हैं. इन बीजों को अण्डी कहते हैं. 

अण्डी का छिलका कड़ा होता है. इसपर चित्तियां पड़ी होती हैं. अण्डी काले, भूरे रंग की होती है इसके अंदर मुलायम बीज होता है जो तेल से भरा होता है. इसको हाथ से मसलने पर हाथ में तेल लग जाता है. 

अरंड, या अण्डी के तेल को कैस्टर ऑयल कहते हैं. इसका प्रयोग हकीम, वैद्य और डाक्टर सभी करते हैं. ये बहुत कॉमन दवा है. इसका मुख्य प्रयोग कब्ज़ दूर करने के लिए किया जाता है. सोते समय एक सो दो चमच कैस्टर ऑयल दूध में मिलाकर पिला देते है इससे खुलकर पेट साफ़ हो जाता है. कैस्टर ऑयल काफी गाढ़ा होता है. इसमें एक विशेष गंध आती है जो अरंड की गंध है, इसलिए बहुत से लोगों को ये सूट नहीं करता. 

ये एक बहुत अजीब हर्ब है. इसका तेल चमड़े को नरम करने, जलाकर रौशनी करने, कई प्रकार के साबुन, और औद्योगिक कार्यों में प्रयोग होता है. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है. कैस्टर ऑयल में त्वचा को कांतिमय बनाने, झुर्रियां दूर करने, धूप के बुरे प्रभाव से बचाने के गुण हैं. इसका प्रयोग लिपस्टिक बनाने में भी होता है. इस ऑयल का प्रयोग त्वचा की कुदरती नमी बरक़रार रखता है. 

कैस्टर ऑयल को थोड़ा सा असली गुलाब जल मिलाकर त्वचा पर लगाने से एक अच्छे नमी कारक का कार्य करता है. इसके इस्तेमाल से बालों की रुसी जाती रहती है. 

इसके पौधे को बहुत देखभाल की आवश्यकता नहीं होती. ये बरसात में आसानी से बीज से लगाया जा सकता है. मार्च अप्रैल में इसके फल पककर तैयार हो जाते हैं. किसानों के लिए ये एक अच्छी फसल है. इसका पौधा दो-तीन वर्ष तक रह सकता है. दूसरे साल में इसमें अच्छी पैदावार होती है. तीन साल के बाद इसके पौधे पुराने हो जाते हैं. तब नए पौधे लगाने चाहिए. 


इसकी लकड़ी का कोयला बहुत हल्का होता है. इस कोयले से दांत साफ़ करने से दांत चमक जाते हैं. 

अजीब बात है कि इसका फल जिसे अण्डी कहते है एक खतरनाक ज़हर है. बच्चों को इससे दूर रखें. कई बार बच्चों ने गलती से अण्डी को खा लिया है जिससे गंभीर परिणाम उत्पन्न हुए हैं. 


सोमवार, 8 अगस्त 2022

कायफल Myrica esculenta

 कायफल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है जिसका घर हिमालय का क्षेत्र गढ़वाल, कुमाऊं नेपाल और भूटान है. ये पहाड़ों की ऊंचाई पर 1000 से 2000 फिट की ऊंचाई पर उगता है. ये उत्तराखंड का विशेष फल है और वहां बहुत चाव से खाया जाता है. इसे काफल कहते हैं. 

ये फल छोटे, गोल आकार के पकने  लाल रंग के हो जाते हैं. इन फलों का सीज़न अप्रैल, मई का होता है जब मार्केट में ये बहुतायत से मिलते हैं. 

लेकिन दवाओं में इसकी छाल का प्रयोग होता है. इसकी छाल कायफल के नाम से बाजार में मिलती है. जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों से मांगने पर कायफल की छाल ही मिलती है. इसके लिए अलग से कायफल की छाल कहने की आवश्यकता नहीं है. 

कायफल की छाल का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. इसका स्वाद कड़वा होता है और इसका प्रभाव गर्म तर है. दांतों की समस्याएं, दांतों से खून पीप निकलना, मसूढ़ों की सूजन में इसकी छाल का काढ़ा बनाकर गार्गल करने से लाभ होता है. 

कायफल की छाल एंटीसेप्टिक का कार्य करती है. इसका पाउडर बनाकर घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भर जाते हैं और उनमें सड़न नहीं होती. 

एक आदमी बहुत पुराने नज़ला ज़ुकाम से परेशान था. दादी ने उसे कायफल की छाल का पाउडर बनाकर उसे एक पोटली में बांधकर दे दिया. उससे कहा की इस पोटली को हाथ में रखो और जब तब सूंघते रहो. उसने ऐसा ही किया. कायफल की छाल का पाउडर सूंघने से उसे बहुत छींकें आयीं और पुराना ज़ुकाम बह गया. फिर दादी ने उसे कुश्ता मरजान, खमीरा मरवारीद में मिलकर खाने को कहा. पुराना ज़ुकाम जो किसी दवा से नहीं जाता था, ठीक हो गया. 


कायफल की छाल से बना तेल जोड़ों के दर्दों के लिए भी लाभकारी है. इसे लगाकर सिंकाई करें और गर्म पट्टी बांधें. 

कायफल एक फल ही नहीं एक कमाल की दवा है. 

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