सोमवार, 1 अगस्त 2022

समुद्र फल Indian Oak, Barringtonia acutangula

समुद्र फल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. ये नदियों की किनारे पाया जाता था इसलिए इसका नाम समुद्र फल या सिंधु फल पड़ा. इसे भारतीय शाह बलूत या इंडियन ओक भी कहते हैं. इसका एक नाम हिज्जाल भी है. हकीम इसे जोज़-अल-कै भी कहते हैं. 

इसके पेड़ में गुच्छो में लम्बी शाखों में लाल रंग की खूबसूरत फूल लगते हैं. फूलों की लम्बी शाखाओं की वजह से ये आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके दवाई गुण बहुत लाभकारी हैं. लेकिन इसका इस्तेमाल करना हर किसी के बस की बात नहीं है. इसका सबसे बड़ा गुण उल्टी लाने का है. इसके इस्तेमाल से बहुत ज़ोर की मिचली और उलटी आती है. बहुत थोड़ी मात्रा में इसका प्रयोग वैद्य लोग बलगम निकालने और खांसी दूर करने में करते हैं. 


ये सूजन को घटाता है इसलिए फेफड़ों की शोथ, न्यूमोनिया, कफ और पुरानी खांसी, दमा रोग में फायदेमंद है लेकिन प्रयोग फिर सावधानी चाहता है और काबिल वैद्य या हकीम की निगरानी में ही इस्तेमाल किया जा सकता है. 

समुद्र फल कैंसर रोधी है. ये ट्यूमर को घटाकर कम कर देता है. इसके अतिरिक्त ये मूत्र की मात्रा को बढ़ा देता है. शरीर में पानी पड़ जाने और उसकी वजह से सूजन आ जाने में फायदा करता है. 

अजीब बात है कि मछलियों की लिए ये एक घातक विष है. मछुआरे इसकी छाल पीसकर पानी में डाल देते हैं जिससे मछलियां मर जाती हैं. दूसरी अजीब बात ये है कि इसके फल रीठे की तरह कपडे धोने में काम आते हैं. कपड़ों के लिए ये एक डिटर्जेंट का काम करता है. 

समुद्र फल का इस्तेमाल न करें. ये खतरनाक हो सकता है.  


आम के बीज से पौधा उगना Mango Seed Germination

आम की गुठली जिसे आम का बीज भी कहते हैं आम का पौधा बहुत आसानी से जमाया जा सकता है. घूरे कूड़े पर पड़ी आम की गुठलियां बरसात का पानी पाकर उनसे पौधे निकलते हैं. लेकिन उचित देख रेख न मिलने या फिर बरसात के बाद पानी न मिलने से सूख जाते हैं.  

आम की गुठली मोटी और सख्त होती है. बीज को जमने के लिए इतने पानी की ज़रूरत होती है जिससे अंदर का बीज फूल जाए, उसमें जड़ निकले और वह बहरी कवर को फाड़कर बाहर निकल सके. इसके लिए कुदरत ने आम के बीज में रेशे बनाए हैं जो पानी सोख लेते हैं और गुठली नरम हो जाती है. आम के बीज को जमने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान की ज़रूरत होती है. इसके अलावा इसे गर्म और नम मौसम चाहिए. उत्तरी भारत में ये सभी आवश्यकताएं बरसात के मौसम में आसानी से पूरी हो जाती हैं इसलिए आम के बीज आसानी से फूट जाते हैं और इनसे नए पौधे निकलते हैं. 

आम की गुठली को एक गमले में बगीचे की मिटटी में लगा दीजिये. इसे हल्का पानी दीजिये जिससे इसमें नमी बनी रहे. गुठली से सबसे पहले जड़ निकलती है. जड़ एक छोटे छेद से निकलती है जहाँ पुर कुदरत ने गुठली को थोड़ा सा कमज़ोर रखा होता है. जड़ पानी लेकर अंदर के बीज को देती है जिससे बीज फूल जाता है और उसके फूलने से गुठली फट जाती है. अब इस गुठली से नन्ही छोटी पत्तियां निकलती हैं जिनका रंग बैगनी होता है. ये आम में मौजूद टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की वजह से होता है. 

गुठली पर धुप पड़ने से वह भी हरे रंग में बदल जाती है और क्लोरोफिल के कारण कुछ भोजन बनाकर नयी पत्तियों को देती है. गुठली में भी इस नये पौधे के लिए भोजन पहले ही मौजूद होता है. लेकिन कुदरत इसका पोषण दो तरह से करती है. 

गुठली से पौधा दो सप्ताह में निकल आता है. दो सप्ताह के पौधे का फोटो ये है. 


पौधा धीरे धीरे डेवलप होता है. इसकी पत्तियां अभी हरी नहीं होतीं. अगले एक सप्ताह के बाद पौधा कुछ इस तरह का लगता है. 


अगले एक सो दो सप्ताह में पौधा लम्बाई में बढ़ जाता है. इसके पत्ते भी बड़े हो जाते हैं और जड़ गहराई में पहुंच जाती है. चार सप्ताह के पौधे का चित्र ये है:


पांच से छः सप्ताह में पौधे की पत्तियां और बड़ी हो जाती हैं. इस पौधे का चित्र ये हैं:


आम का नया पौधा सितंबर तक बढ़ता है. लेकिन ये एक डेढ़ फुट से ज़्यादा नहीं बढ़ता. अब क्योंकि पतझड़ का मौसम आ जाता है और आम के पौधे सुप्तावस्था में चले जाते हैं. 

इन नये पौधों को सर्दी के मौसम में सर्दी और पाले की मार से बचाना ज़रूरी है. नहीं तो पौधा मर जाता है. फरवरी में ये पौधे फिर जागते हैं और इनमें नयी पत्तियां निकलती हैं. 

दो या तीन वर्ष के पौधों को नयी जगह पर लगाया जा सकता है. बीज से बने आम के पौधे में फल आने में सात से दस वर्ष लगते हैं. 

बुधवार, 20 जुलाई 2022

लेमन ग्रास और सिट्रोनेला Cymbopogon citratus & Cymbopogon nardus

लेमन ग्रास एक माध्यम ऊंचाई  का पौधा है. घास की तरह ही इसकी पत्तियां जड़ों से निकलती हैं. ये पत्तियां पतली, लम्बी और और नाज़ुक होती हैं इसलिए ये अगले हिस्से में मुड़कर नीचे की तरफ पलट जाती हैं. कुछ बीच में से टूट जाती हैं. इसमें नीबू की खुशबु आती है. इसीलिए इसे लेमन ग्रास या नीबू घास कहते हैं. इसका वनास्पतिक नाम Cymbopogon citratus है. 

लेमन ग्रास कमाल का पौधा है. इसे नरसरी से आसानी से खरीदा जा सकता है. इसे गमले में लगाकर इनडोर भी रख सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि इसे खिड़की के पास की थोड़ी धूप मिलना ज़रूरी है. 

लेमन ग्रास में जीवाणुओं और फफूंद को नष्ट करने के गुण हैं. इसके पास मच्छर और कीड़े मकोड़े नहीं आते. मच्छरों को भगाने के लिए लेमन ग्रास से अधिक प्रभावशाली सिट्रोनेला है. ये भी इसी कुल का पौधा है. इसकी बनावट और इसकी पत्तियां भी लेमन ग्रास की तरह होती हैं. लेकिन सिट्रोनेला के पौधे की पत्तियों के डंठल लाल गुलाबी रंग लिए होते हैं और इसकी गंध बहुत तेज़ होती है. 


लेमन ग्रास की चाय जो थोड़ी पत्तियों को पानी में पकाकर बनायी जाती है शुगर घटाने, मोटापा कम करने और लिपिड घटाने के लिए कारगर है. इस जड़ी बूटी में शोथ या सूजन घटाने के भी गुण हैं. 

लेमन ग्रास का प्रयोग बहुत थोड़ी मात्रा में सलाद में, चटनी में और खाने में किया जाता है. लेकिन कुछ लोगों को इसके प्रयोग से एलर्जी हो सकती है. जी मिचलाना, त्वचा पर दाने निकलना, खुजली, पेट की खराबी, दस्त आदि हो जाते हैं. इसलिए इसका प्रयोग खाने में हितकर नहीं है. 

सिट्रोनेला का वनास्पतिक नाम  Cymbopogon nardus है. ये भी लेमन ग्रास कुल का पौधा है. कुछ लोग लेमन ग्रास को ही सिट्रोनेला समझ लेते हैं. सिट्रोनेला अपने एसेंशियल ऑयल की वजह से मशहूर है. श्री लंका का सिट्रोनेला ऑयल बहुत अच्छा माना जाता है. इसका प्रयोग सुगंध के रूप में, कमरे को सुगन्धित रखने, कपड़ों में, सर दर्द को आराम देने और मूड को फ्रेश रखने के लिए किया जाता है. पानी में डालकर नहाने से दाने खुजली और फफूंद जनक रोग नष्ट हो जाते हैं. 

मच्छरों को दूर रखने के लिए सिट्रोनेला ऑयल, यूक्लिप्टिस ऑयल को  वाइट ऑयल में मिलाकर या फिर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से मच्छर पास नहीं आते. सिट्रोनेला ऑयल मिलाकर मोमबत्ती भी बनायी जाती है जिसको जलाने से मच्छर भागते हैं. 

मार्केट में सिट्रोनेला एसेंशियल ऑयल आसानी से मिल जाता है. लेकिन इसे कदापि खाने में प्रयोग न करें और बच्चों की पहुंच से दूर रखें. 

अजीब बात है की सिट्रोनेला के पौधों को जानवर नहीं खाते. इनका स्वाद गंध और ऑयल की वजह से अच्छा नहीं होता. कहते हैं जानवर चाहे भूखा मर जाए सिट्रोनेला नहीं खाएगा। इसलिए जो लोग बगीचे में जानवरों से परेशान हैं उन्हें किनारों पर सिट्रोनेला लगाना चाहिए. 


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