अर्जुन एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है. ये भारत में लगभग सभी जगह पाया जाता है. इसके पत्ते लम्बे आगे से गोलाई लिए अमरुद के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. इसमें अप्रैल, मई में लम्बे शहतूत के आकार के फूल खिलते हैं. फिर इसमें कमरक की तरह के फल लगते हैं. जो सख्त किस्म के होते हैं और इनमने पांच उभार या पहल होते हैं. अर्जुन को साइंटिफिक भाषा में टर्मिनेलिया अर्जुना कहते हैं.
फूलों और फलों की सहायता से अर्जुन के वृक्ष की पहचान आसानी से की जा सकती है.
देसी दवाओं और आयुर्वेद में अर्जुन का बड़ा महत्त्व है क्योंकि ये शरीर के बहुत महत्वपूर्ण अंग दिल की दवा है. जो लोग हाय मेरा दिल से परेशान हैं उनके लिए अर्जुन एक कारगर इलाज है.
दिल के लिए अक्सर अर्जुन की छाल का काढ़ा जिसे अर्जुन की चाय या अर्जुन टी कहते हैं प्रयोग की जाती है.
कोरोनरी धमनी रोग या सीएडी हृदय रोग का सबसे आम प्रकार है और हृदय रोग की कारन जितनी मौतें होती हैं उनके लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है. अर्जुन का उपयोग मुख्य रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में दिल के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है. इस पौधे के रस में विभिन्न प्रकार के तत्व होते हैं, जो सूजन को कम करने में मदद करते हैं जिससे धमनियों मेंथक्का बनता है. इसके प्रयोग से स्वस्थ लिपिड प्रोफाइल मेन्टेन रहता है.
अर्जुन में मौजूद ओलिगोमेरिक प्रोएंथोसायनिडिन और फ्लेवोनोइड्स हृदय की प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट रक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं और शरीर के संवहनी तंत्र को मजबूत करते हैं. यह सीएडी रोगियों में प्लेटलेट को इकठ्ठा होने से रोकता है. इसके कारण धमनियों में रक्त का प्रवाह ठीक रहता है.
यह दिल के दर्द को रोकता है. दिल के दर्द को एनजाइना कहते हैं. दिल का दर्द ही दिल के दौरे का मुख्य कारण है. इसका झटका इतना ज़बरदस्त होता है की मरीज़ इसमें कोलैप्स कर जाता है. और जल्दी इलाज न मिले तो उसकी मौत हो सकती है. अर्जुन रक्तचाप को कम करता है, हृदय की विफलता में कारगर है है और लिपिड प्रोफाइल में सुधार करता है.
अर्जुन के लगातार इस्तेमाल से ये एनजाइना की आवृत्ति और गंभीरता को कम किया जा सकता है. हल्के एनजाइना वाले लोगों में, इस्किमिया के कारण हृदय की मांसपेशियों में जो परिवर्तन आता है अर्जुन के इस्तेमाल से वह ठीक हो सकता है. लेकिन ये सब शुरुआत में ही फायदा करता है. गंभीर दिल के रोगों में अर्जुन या अन्य देसी जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से फायदा नहीं होता. तब डाक्टर की सलाह और इलाज ही कारगर है.
अर्जुन की छाल के पाउडर को मूत्रवर्धक के साथ लेने से दिल की विफलता के लक्षणों में सुधार होता है. अर्जुन की छाल का पाउडर सिस्टोलिक रक्तचाप के स्तर को कम करके पुराने उच्च रक्तचाप के प्रतिकूल प्रभाव से हृदय की रक्षा कर सकता है। अर्जुन हृदय की सहनशक्ति को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है.
सामान्यत: चालीस वर्ष या उससे अधिक आयु वाले महिला और पुरुष यदि अर्जुन की छाल के काढ़े का प्रयोग इस प्रकार करें तो दिल की सेहत को कोई खतरा नहीं होता:
अर्जुन के पेड़ से अर्जुन की छाल खुद उतार कर छाया में सूखा लें. अब इसक छल को मोटा मोटा कूट लें और इसमें से दस ग्राम छाल एक ग्लास पानी में भिगो दें. कुछ देर भीगने के बाद इसे आग पर पकाएं की पानी आधा रह जाए. अब इस काढ़े को छान कर चाय की तरह पियें. इस काढ़े का सेवन दिन में एक बार करें और एक सप्ताह के बाद बंद करदें. एक माह में एक सप्ताह पीना काफी है. इससे दिल की सेहत ठीक रहती है.