सोमवार, 10 मई 2021

नरकचूर Long Zedoary

हैं  नरकचूर दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसको हकीम  ज़रम्बाद कहते हैं. आम लोग इसे सफ़ेद हल्दी के नाम से भी जानते हैं. कुछ लोग ज़रम्बाद को काली हल्दी समझते हैं. काली हल्दी एक अन्य पौधा है. नरकचूर की गांठे  अदरक से मिलती जुलती होती हैं. इसे मुख्यत: पेट की दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Curcuma zedoaria है. इसे Long Zedoary भी कहते हैं. 

ये पौधा हल्दी की तरह दिखाई  है. इसके कंद को दवा में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे में छोटी और बड़ी दो तरह की कंद पायी जाती हैं. छोटी कंद को साबुत उबालकर और बड़ी कंद को टुकड़ों में काटकर उबालकर सूखा लिया जाता है और यही बाजार में नरकचूर, मादा कचूर, कपूर कचरी, और  ज़रम्बाद  के नाम से मिलती है. दवाई गुण छोटे और बड़े दोनों कंद के सामान हैं और इनमें कोई फर्क नहीं है. 

इसको बदहज़मी, और पाचन शक्ति बढ़ाने में प्रयोग किया जाता है. ये जिगर के लिए टॉनिक है. जॉन्डिस में इसका पाउडर 2 - 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में 3 बार इस्तेमाल करने से फायदा होता है. डिसेंट्री में भी इसका उपयोग बेहतर काम करता है. इसके इस्तेमाल से पुरानी डिसेंट्री ठीक हो जाती है. 


नरकचूर फेफड़ों में जमे बलगम को निकालता है. त्वचा को निखारता  है. इसके पाउडर को दूध और बेसन के साथ पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाने से दाग धब्बे मिट जाते हैं और त्वचा की झाइयां भी ठीक हो जाती हैं. 


शनिवार, 8 मई 2021

जरिश्क zarishk

जरिश्क किशमिश से मिलता जुलता भूरे, काले रंग का एक फल है जिसका प्रयोग यूनानी दवाओं में किया जाता है.  इसका पौधा  बर्बेरेडेसी (Berberidaceae) कुल का पौधा है. इस पौधे की लगभग 500 जातियां पायी जाती हैं. 

जरिश्क, BERBERIS ARISTATA पौधे से प्राप्त की जाती है. इसके पौधे को दारुहल्दी या दारहल्द का पौधा भी कहते हैं. इसकी लकड़ी पीले रंग की होती है. इसके टुकड़े सुखी अवस्था में मार्किट में दारहल्द के नाम से मिल जाते हैं. हल्दी से इसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है. केवल इसके पीले रंग के कारण इसे दारहल्द कहते हैं. दार का अर्थ फ़ारसी भाषा में  लकड़ी होता है. इसी नाम को लोगों ने दारुहल्दी कर दिया है. 

दारहल्द को पानी में भिगोकर और उबालकर उसका सत निकला जाता है. जिसे आग पर सुखाकर गाढ़ा कर लिया जाता है. इस सत को जो मार्किट में टुकड़ों की शक्ल में मिलता है रसौत कहते हैं. 

ये पौधा अमरीका से लेकर ईरान, भारत के पहाड़ी इलाकों, नेपाल में पाया जाता है. लेकिन देसी और यूनानी दवाओं में जिस जरिश्क का उपयोग होता है उसका मुख्य स्रोत ईरान है. ईरान में खुरासान का इलाका जरिश्क की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है और यहीं से प्रत्येक वर्ष जरिश्क दुनिया की अन्य भागों में सप्लाई किया जाता है. 


इसका पौधा एक कांटोंदार झड़ी है जो पहाड़ी ढलानों पर उगती है और इसे सुंदरता के लिए बागों के किनारे भी लगाया जाता है. इसके फूल पिले रंग के गुच्छों में खिलते हैं. इसके गुच्छे अमलतास के फूलों के गुच्छो की तरह लटकते हैं. उसके बाद इसमें फल लगते है जो पककर लाल हो जाते है और सूख क्र भूरे, काले हो जाते हैं. इसे पहाड़ी किशमिश या काली किशमिश भी कहा जाता है. 

जरिश्क  का उपयोग दवाओं के आलावा खाने की डिश में किया जाता है. ईरान में ये मसालों की तरह प्रयोग किया जाता है. जरिश्क पुलाव एक मशहूर डिश है जिसमें चावल, चिकेन के साथ जरिश्क का प्रयोग होता है. जरिश्क का मज़ा खट मिट्ठा होता है. 

जरिश्क जिगर की गर्मी को शांत करता है और इसमें पित्त ज्वर नाश करने की शक्ति है. इसलिए हकीम जरिश्क को बुखार दूर करने की दवाओं में शामिल करते हैं. 

 इसके दूसरी वैराइटी जिसे BERBERIS VULGARIS कहते हैं मुख्यत: यूरोप, अमरीका का पौधा है. इसका टिंक्चर होम्योपैथी में गुर्दे और पित्ताशय की पथरी निकलने में किया जाता है.  

बुधवार, 5 मई 2021

यूरोशलम आर्टिचोक Jerusalem Artichoke

यूरोशलम आर्टिचोक को साधारण हिन्दी में हाथीचक के नाम से जाना जाता है. ये पौधा मूल रूप से अमेरिका और मैक्सिको में पाया जाता है. यूरोशलम आर्टिचोक, काहू, ग्लोब आर्टिचोक और सूरजमुखी सब एक ही क्म्पोजिटी कुल के पौधे हैं. इसके फूल भी सूरजमुखी से मिलते जुलते होते हैं. लेकिन ये फूल आकार में छोटे होते हैं जबकि सूरजमुखी का फूल बड़ा होता है. इसका पौधा भी सूरजमुखी की तरह दिखता है, इसकी जड़ में कंद पैदा होते हैं जो आलू से मिलते जुलते, टेढ़े, मेढ़े होते हैं. इन्हीं कंदों को लोग हाथीचक के नाम से जानते हैं. ये कंद बाजार में अक्टूबर से लेकेर जनवरी तक मिल जाते हैं. इन्हें खाने में सब्जी की तरह प्रयोग किया  जाता है. 

यूरोशलम आर्टिचोक को कैसे उगाएं  How to propagate Jerusalem Artichoke.


यूरोशलम आर्टिचोक को उगाना बहुत आसान है. इसके फूल भी सुंदर होते हैं इसलिए इसे फूलों के लिए भी उगाया जाता है. बाद में इसके कंद को खाने में प्रयोग क्र सकते हैं. बाजार में मिलने वाले 
यूरोशलम आर्टिचोक के कंद लाकर उन्हें गमले या ज़मीन में लगाया जा सकता है. इन कंदों को फरवरी, मार्च तक लगा देना चाहिए। अप्रैल के अंत में या मई के शुरू में इन कंदों से पौधे निकलना शुरू हो जाते हैं. इसके पौधे देखने में सूरज मुखी की पौधों जैसे लगते हैं. इनके तने और शाखों पर रूआं या बारीक़ रेशे होते हैं. बरसात में इसके पौधे खूब बढ़ते हैं लेकिन इनमें पानी का जमाव न होने पाए. इनके पौधों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है जिसे पौधे गिरने नहीं पाते और उनमने कंद भी खूब विकसित होते हैं. 

यूरोशलम आर्टिचोक के फायदे  (  Jerusalem Artichoke Benefits )

यह  मूत्रवर्धक, शुक्राणुजनन, पाचन और टॉनिक है, यरूशलेम आटिचोक मधुमेह और गठिया का एक लोक उपचार है. इसमें लोहा, पोटैशियम, तांबा, फास्फोरस और बहुत से खनिज पाए जाते हैं. कहते हैं की इसमें केले से ज़्यादा पोटैशियम होता है. आलू की तरह ये कार्बोहइड्रेट का अच्छा स्रोत है लेकिन अजीब बात ये है की ये डायबेटिस के मरीज़ों के लिए लाभकारी है और अन्य कंदों जैसे आलू, अरवी आदि की तरह नुकसान नहीं करता. इसका एक यही गुण बहुत से गुणों पर भरी है. 

Artichoke flowers

ये दिल की सेहत को दुरुस्त रखता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल में रखता है. इसमें ब्लड प्रेशर घटाने और उसे ठीक रखने के गुण हैं. ये धमनियों में रक्त प्रवाह को ठीक रखता है. इसके मिनरल और विटामिन हड्डियों को मज़बूती प्रदान करते हैं. इसके प्रयोग से हड्डियां कमज़ोर और भंगुर नहीं होतीं इस प्रकार ऑस्टिओपोरोसिस का खतरा नहीं रहता. 

इसको खाने में आलू की तरह ही भूनकर, उबालकर या आलू की तरह किसी सब्ज़ी के साथ पकाकर इस्तेमाल किया जाता है. इसको हल्का उबालकर सिरके में डालकरधूप में कुछ दिन रखने से बढ़िया अचार बन जाता है जिसे सब्ज़ी, दाल, चावल की डिश के साथ खाया जा सकता है. इस प्रकार इसका इस्तेमाल पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है. 

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