यूरोशलम आर्टिचोक को साधारण हिन्दी में हाथीचक के नाम से जाना
जाता है. ये पौधा मूल रूप से अमेरिका और मैक्सिको में पाया जाता है. यूरोशलम आर्टिचोक,
काहू, ग्लोब आर्टिचोक और सूरजमुखी सब एक ही क्म्पोजिटी कुल के पौधे हैं. इसके फूल भी
सूरजमुखी से मिलते जुलते होते हैं. लेकिन ये फूल आकार में छोटे होते हैं जबकि सूरजमुखी
का फूल बड़ा होता है. इसका पौधा भी सूरजमुखी की तरह दिखता है, इसकी जड़
में कंद पैदा होते हैं जो आलू से मिलते जुलते, टेढ़े, मेढ़े होते हैं. इन्हीं कंदों को
लोग हाथीचक के नाम से जानते हैं. ये कंद बाजार में अक्टूबर से लेकेर जनवरी तक मिल जाते
हैं. इन्हें खाने में सब्जी की तरह प्रयोग किया जाता है.
यूरोशलम आर्टिचोक को कैसे उगाएं How to propagate Jerusalem Artichoke.
यूरोशलम आर्टिचोक को उगाना बहुत आसान है. इसके फूल भी सुंदर होते हैं इसलिए इसे फूलों के लिए भी उगाया जाता है. बाद में इसके कंद को खाने में प्रयोग क्र सकते हैं. बाजार में मिलने वाले यूरोशलम आर्टिचोक के कंद लाकर उन्हें गमले या ज़मीन में लगाया जा सकता है. इन कंदों को फरवरी, मार्च तक लगा देना चाहिए। अप्रैल के अंत में या मई के शुरू में इन कंदों से पौधे निकलना शुरू हो जाते हैं. इसके पौधे देखने में सूरज मुखी की पौधों जैसे लगते हैं. इनके तने और शाखों पर रूआं या बारीक़ रेशे होते हैं. बरसात में इसके पौधे खूब बढ़ते हैं लेकिन इनमें पानी का जमाव न होने पाए. इनके पौधों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है जिसे पौधे गिरने नहीं पाते और उनमने कंद भी खूब विकसित होते हैं. यूरोशलम आर्टिचोक के फायदे ( Jerusalem Artichoke Benefits )
यह मूत्रवर्धक, शुक्राणुजनन, पाचन और टॉनिक है, यरूशलेम आटिचोक मधुमेह और गठिया का एक लोक उपचार है. इसमें लोहा, पोटैशियम, तांबा, फास्फोरस और बहुत से खनिज पाए जाते हैं. कहते हैं की इसमें केले से ज़्यादा पोटैशियम होता है. आलू की तरह ये कार्बोहइड्रेट का अच्छा स्रोत है लेकिन अजीब बात ये है की ये डायबेटिस के मरीज़ों के लिए लाभकारी है और अन्य कंदों जैसे आलू, अरवी आदि की तरह नुकसान नहीं करता. इसका एक यही गुण बहुत से गुणों पर भरी है.
ये दिल की सेहत को दुरुस्त रखता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल में रखता है. इसमें ब्लड प्रेशर घटाने और उसे ठीक रखने के गुण हैं. ये धमनियों में रक्त प्रवाह को ठीक रखता है. इसके मिनरल और विटामिन हड्डियों को मज़बूती प्रदान करते हैं. इसके प्रयोग से हड्डियां कमज़ोर और भंगुर नहीं होतीं इस प्रकार ऑस्टिओपोरोसिस का खतरा नहीं रहता.
इसको खाने में आलू की तरह ही भूनकर, उबालकर या आलू की तरह किसी सब्ज़ी के साथ पकाकर इस्तेमाल किया जाता है. इसको हल्का उबालकर सिरके में डालकरधूप में कुछ दिन रखने से बढ़िया अचार बन जाता है जिसे सब्ज़ी, दाल, चावल की डिश के साथ खाया जा सकता है. इस प्रकार इसका इस्तेमाल पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है.