घुसलाइंद, घुसलता, और बंडाल एक बेल के नाम हैं. डोडा बंडाल इस बेल के फल को कहते हैं. ये बेल बरसात में बढ़ती है और पास की झाड़ियों पर चढ़ जाती है. लोग इसे कुछ अहमियत नहीं देते. लेकिन ये कमाल की दवा है. इसका जितना भी मूल्य लगाया जाए कम है, क्योंकि इसका कोई जोड़ नहीं.
जड़ी बूटियों के जानने वाले और इसकी खासियत से वाक़िफ़ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके पत्ते तुरई के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. इसमें सफ़ेद रंग का फूल आता है. इसका फल कांटेदार होता है. इसके पत्तों पर भी कांटे या रुआं सा होता है. लेकिन इसके फल के कांटे हाथ में चुभने वाले नहीं होते. ये कांटे मुलायम होते हैं. इसकी मुख्यत: दो किस्में हैं. एक के फल सूखने पर पोस्टकार्ड कलर के हो जाते हैं. दूसरी के फल सूखकर डार्क ब्राउन या काले से हो जाते हैं.
इसका फल सूखकर जब चटकता है तो इसके सामने से एक ढक्कन सा खुल जाता है. ऊपर फोटो में ऐसा मुंह खुला फल दिखाई दे रहा है. इस ढक्कन के खुल जाने से बीज गिर जाते हैं और इन बीजों से बरसात में नए पौधे उगते हैं
ये जिगर के लिए बहुत बड़ी दवा है. पीलिया तो इसके सामने टिक नहीं सकता इसके सूखे फल को भिगोकर उसका पानी पिलाने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है. इसके फल का अर्क नाक में टपकाने से पीलिया का पीलापन नाक के रास्ते पीले पानी के रूप में बह जाता है.
लीवर के अन्य रोगों जैसे लीवर सिरोसिस और लीवर कैंसर में भी ये गुणकारी है. इसका उचित इस्तेमाल किसी काबिल वैद्य की निगरानी में इस रोग से छुटकारा दिला सकता है.
इसका इस्तेमाल लीवर सेल को पुनर्जीवित करता है. लिकेन इसकी मात्रा बहुत कम होनी चाहिए. ये दवा बहुत कड़वी होती है. कड़वेपन के कारण जी मिचलाना और उल्टी की शिकायत हो सकती है. लीवर के रोगों में उल्टी आने का लक्षण मिलता है.
इस दवा का सावधानी से प्रयोग जान बचा सकता है.